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निकाय चुनाव- विपक्ष के लिए चेतावनी, मोदी के चक्रव्यूह एजेन्डे में फंसा विपक्ष

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निकाय चुनाव- विपक्ष के लिए चेतावनी, मोदी के चक्रव्यूह एजेन्डे में फंसा विपक्ष

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मेरठ एवं अलीगढ़ के महापौर के चुनाव में बसपा प्रत्याशियों की जीत भाजपा के लिए अन्दरूनी चेतावनी भी है। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा का मुस्लिम कार्ड पूरी तरह फ्लाप साबित हुआ था, अब 8 माह बाद ही पश्चिम में मरणासन्न हाथी को खड़ा कर गया। इसमें बसपा नेतृत्व का कोई खास योगदान नही रहा। बसपा मुखिया टिकट बांटने के बाद अपने प्रत्याशियों का हाल भी जानने की कोशिश नही की परन्तु यहां पर जनता ने भाजपा को उसका सही आइना दिखा दिया। पश्चिम में मेरठ - अलीगढ़ के अलावा सहारनपुर, आगरा, झांसी में बसपा ने कड़ी टक्कर दी। इससे साफ है कि मुस्लिम मतदाताओं ने सपा और कांग्रेस से ज्यादा बसपा पर भरोसा जताया। प्रदेश की राजनीति में दलित-मुस्लिम गठबंधन बड़ा गठजोड़ है। इसके साथ दूसरे पिछड़े वर्ग के कुछ प्रतिशत वर्ग जुड़ जाया तो बसपा को बड़े पैमाने पर राजनीतिक लाभ मिलेगा। इसी रणनीति के तहत बसपा संस्थापक कांशीराम ने दलितों के साथ ही अति पिछड़ों को अपने अभियान का मुख्य कर्णधार बनाया और यही कारण था कि मुसलमानों के शामिल होने के बाद बसपा को एक बार पूर्ण बहुमत और कई बार सरकार का हिस्सा बनने का मौका मिला। 2007 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद मायावती के अड़ियल रवैये, अन्य वर्गो की उपेक्षा और धन उगाही के आरोपों ने पार्टी को केवल दलित वर्ग तक ही सीमित करके रख दिया। इस बीच बड़े पैमाने पर अतिपिछड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने को बसपा नेतृत्व ने गंभीरता से नही लिया। अब भी बसपा नेतृत्व वही गलती कर रहा है। पिछले दिनों मायावती की मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं राजस्थान में हुई रैलियों में दलितों के आरक्षण को ही मुख्य मुद्दा बनाया गया।