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चुनावी स्टन्ट - राम मंदिर समझौते का नाट्य

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चुनावी स्टन्ट - राम मंदिर समझौते का नाट्य

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राम मंदिर आस्था या संपत्ति -- अयोध्या में राम मंदिर हिन्दू सम्प्रदाय के लिए आस्था का प्रतीक है। हिन्दू समाज का मानना है कि राम मंदिर अयोध्या में नही बनेगा तो अन्य कहा दावा किया जा सकता है। धार्मिक मुद्दों पर आस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता होती है परन्तु यह लड़ाई आस्था पर केन्द्रित न होकर संपत्ति विवाद पर आकर अटक गयी है। सुन्नी वक्फ बोर्ड राम मंदिर परिसर की भूमि को अपनी सपत्ति बताकर हक जताता है। कोई भी हमलावर जिस भूमि पर कब्जा करता है, उसका हो जाता है परन्तु बाद जब दूसरी ताकत हावी होती है, वह संपत्ति उसकी हो जाती है। ऐसे में यह भी देखना होगा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड या मुस्लिम समुदाय अयोध्या की भूमि अपने साथ कही से लायी नही थी बल्कि उस पर कब्जा कर मस्जिद का निर्माण कराया जिसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया। साफ है कि जब अब मुगल शासन काल समाप्त हुए 400 वर्ष से ज्यादा हो गये तो वर्तमान लोकतांत्रिक सरकार को समाज हित में निर्र्णय लेना का अधिकार होना चाहिए। ऐसे में बहुसंख्यक हिन्दू समाज की भावनाओं को देखते हुए अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए रास्ता साफ कर देना चाहिए। कुछ मुठ्ठी भी सुन्नी मुसलमानों की जिद के चलते जमीन के इस टुकडे पर उन्हे विवाद खड़ा कर नफरत फैलाने की बात नही करनी चाहिए। यह तो उसी तरह से है जैसे कोई यहुदी, ईसाई या हिन्दू; मुस्लिम धर्म क्षेत्रों पर अपना कब्जा जमाये। ऐसे में राम मंदिर को लेकर समझौते के पहल की प्रशंसा की जानी चाहिए परन्तु इसे राजनीतिक मुद्दा न बनाया जाय। समझौते के लिए इसके मूल पक्षकारों को भी महत्व दिया जाना चाहिए और नये पक्षकार बनने से बचने का प्रयास होना चाहिए।