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चुनावी स्टन्ट - राम मंदिर समझौते का नाट्य

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चुनावी स्टन्ट - राम मंदिर समझौते का नाट्य

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संघ के एजेन्डे में उत्तर प्रदेश के तीन मंदिरों अयोध्या (राम), काशी (शिव) तथा मथुरा (कृष्ण) के मंदिरों को मस्जिदों से मुक्त कराना है। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने राहुल को शिव भक्त बनाकर अचानक ही उन्हे संघ के एजेन्डे में लपेट दिया है। संघ के एजेन्डे तले पिछली सपा सरकार के मुखिया अखिलेश यादव भी मथुरा के विकास की कई योजनाएं तथा मंदिर निर्माण की बात लेकर पहुंचे थे। अब अखिलेश अपने गांव सैफई में ही भगवान कृष्ण की भव्य मूर्ति स्थापित कराने जा रहे है। इससे जाहिर है कि सभी विपक्षी दल एक-एक कर संघ के एजेन्डे के शिकार होते जा रहे है। राजनीतिक दलों की इस धार्मिक लड़ाई में अलग-थलग पड़ी मायावती भी अपने तरकश से तीर निकालने में नही चुकी परन्तु उनका निशाना चूक गया और उनका दांव फुस्स हो गया। मऊ की रैली में मायावती ने हिन्दू धर्म में ज्यादती का आरोप लगाते हुए कहा कि इसे रोका नही गया तो वह बौद्ध हो जाएगी। मायावती की धमकी कुछ असर करती, वह खुद ही नही समझ पायी। मायावती की धमकी से ऐसा लगा जैसे हिन्दू धर्म उनही के बल से रुका है उनके छोडते ही धराशायी हो जाएगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब मोदी ने विकास का नारा दिया तो सभी अपने को विकास पुरूष कहने लगे। मोदी का विकास असफल होते ही भाजपा ने धर्म का एजेन्डा लागू किया और अब राज्यों के चुनाव में कांग्रेस फंस कर रह गयी। पहले गुजरात के चुनाव में कांग्रेस ने सभी वर्गो को जोडने की रणनीति बनायी थी, वह कारगर थी परन्तु सफलता का विश्वास न होने के कारण रणनीतिकारों ने धर्म की भी आड़ ले ली। कांग्रेस नेतृत्व को अपने रणनीतिकारों में संघ के समर्थकों को खोजना होगा जो उन्हें ऐन मौके पर उन्ही के पाले में डाल देता है।