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वामपंथ का अवसान-जमीनी हकीकत से दूर बौद्धिक बहस में ही सिमटा

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वामपंथ का अवसान-जमीनी हकीकत से दूर बौद्धिक बहस में ही सिमटा

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में वामपंथियों का स्वर्णिम काल १९६९ में रहा जब उन्हें ८० सीटें मिली उसके बाद पार्टी का पराभव होता गया। बसपा के १९८९ में प्रदेश की राजनीति में पर्दापण के बाद बामपंथ और सिकुडïता गया। वर्ष १९९३ के चुनाव में जब बसपा को ६७ सीटें मिली तो भाकपा को ३ और माकपा को ४ सीटें मिली। १९९६ में भाकपा १ और माकपा ४ पर आ गये। भाकपा के इस पराभव का कारण उसके दो धुरन्धर नेता मित्रसेन यादव तथा अफजाल अंसारी को मुलायम सिंह यादव ने सपा में मिला लिया। इसके बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में वामपंथ निष्प्राण सा हो गया।

इस प्रकार कांग्रेस विरोध के नाम पर शुरू हुए राजनीति के दो धूर वामपंथी जहां देश की राजनीति में हाशिये पर चले गये है तो दक्षिणपंथी भाजपा अपने सर्वोच्च उत्कर्ष पर है। यही कारण है कि कभी देश की राजनीति में कांग्रेस विरोधी गठबंधन बनाने की कोशिश होती थी, वह अब भाजपा के इस प्रादुर्भाव के बाद अब भाजपा विरोधी गठबंधन की तैयारियां चल रही है।