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वामपंथ का अवसान-जमीनी हकीकत से दूर बौद्धिक बहस में ही सिमटा

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वामपंथ का अवसान-जमीनी हकीकत से दूर बौद्धिक बहस में ही सिमटा

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किसान-मजदूरों के नाम पर राजनीति करने वाले वामपंथी दलों के सूरत का उत्तर प्रदेश की राजनीति से अवसान हो गया है। अब तो देश भर में जो हालाल है, उससे साफ है कि भारत की राजनीति में वामपंथ राजनीतिक इतिहास का विषय बनकर ही रह जाएगा। देश की राजनीति में अब अपने सबसे बड़े गढ़ पश्चिम बंगाल में ही माइनस में चली गयी है। वामपंथ के लिए नामलेवा अब त्रिपुरा और केरल ही रह गये है। प्रदेश की राजनीति में 1960 से 1970 के दशक में पूर्वी यूपी से पश्चिम तक के पिछड़ों इलाकों में अपनी पैठ रखने वाले और गरीब किसानों एवं मजदूरों को लेकर लाल झंडे उठाने को गर्व महसूस करने वाले वामपंथी नेता अब राजनीतिक बहसों और साम्प्रदायिकता के नाम पर अराजक तत्वों को संरक्षण देने की विज्ञप्ति तक ही सीमित होकर रह गया है।