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मजबूरी-- सपा-कांग्रेस गठबंधन

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मजबूरी-- सपा-कांग्रेस गठबंधन

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रालोद का पेंच फंसेगा--

सपा-कांग्रेस के इस गठबंधन में रालोद का पेंच फंस सकता है। प्रदेश की राजनीति में रालोद मुखिया अजित सिंह की भूमिका सबसे अविश्वसीनय मानी जाती है। सत्ता के लिए अजित सिंह कभी भी पाला बदलकर किसी से हाथ मिला सकते है। 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले अजित सिंह बाद में कांग्रेस सरकार में शामिल हो गये। ऐसे में यह आशंका लगायी जा रही है कि प्रदेश में किसी भी दल की पूर्ण बहुमत की सरकार न बनने पर अजित सिंह किसी भी खेमे में जा सकते है। वैसे इस समय रालोद प्रदेश आैर विशेष कर जाट बाहुल्य पश्चिम में अपने राजनीतिक अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। यही वजह है कि पिछले एक वर्ष से अजित सिंह किसी भी दल से गठबंधन के लिए फड़फड़ा रहे है परन्तु किसी ने अभी तक घास नही डाली। पहली बार सपा के स्थापना दिवस पर लोहिया आैर चौधरी चरण सिंह समर्थकों को एकजुट करने के शिवपाल फार्मूले के तहत अजित सिंह मंच पर आये परन्तु गठबंधन से पहले ही इशारों में अपनी शर्ते भी रखने लगे। इस प्रकार सपा-कांग्रेस गठबंधन में अजित सिंह के लिए 15-20 सीटें दिया जाना भी कठिन होगा जबकि लोकदल 30 से 40 सीटों का दावा कर रहा है।