यूरीड मीडिया- भारत निर्वाचन आयोग, जिसे देश के लोकतंत्र का प्रहरी कहा जाता है, इन दिनों खुद सवालों के घेरे में है। विपक्ष के कई शीर्ष नेता—राहुल गांधी, ममता बनर्जी, एम.के. स्टालिन, शरद पवार और अखिलेश यादव लगातार आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं। राहुल गांधी ने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा लोकसभा चुनाव 2024 में आयोग पर वोट चोरी के गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने इन आरोपों के समर्थन में कई दस्तावेजी सबूत भी पेश किए हैं।
चुनाव आयोग एक संविधान संस्था हैं। देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी इसी पर है, लेकिन हाल के वर्षों में यह बहस तेज हो गई है कि क्या आयोग वास्तव में इस कसौटी पर खरा उतर रहा है? मुख्य निर्वाचन आयुक्त कौन है, या किस प्रक्रिया से नियुक्त हुआ है, यह अब उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिसे जिम्मेदारी दी गई है, क्या वह निष्पक्षता पूर्वक कार्य कर रहा है?
जिस तरह से आयोग विपक्ष के आरोपों पर तथ्यों के साथ जवाब देने और कार्रवाई करने से बचता दिख रहा है, उसने उसकी निष्पक्षता पर और गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। जब चुनाव होते हैं, तब आयोग की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। वर्तमान में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 इसी संदर्भ में एक अहम परीक्षा की तरह है, जहां आयोग के पास अपनी विश्वसनीयता को दोबारा स्थापित करने का अवसर है।
हाल के घटनाक्रमों में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने बिहार के मतदान केंद्रों पर मतदाताओं को डराने-धमकाने, पुलिस की बर्बरता और मतदान प्रक्रिया में अनियमितताओं के आरोप लगाए हैं। आरजेडी ने सोशल मीडिया पर वीडियो साझा कर आयोग से कार्रवाई की मांग की है। हालांकि, मुख्य निर्वाचन अधिकारी बिहार ने इन आरोपों को खारिज किया है। इन विवादों की स्वतंत्र जांच आवश्यक रूप की जानी चाहिए।
बिहार चुनाव में मतदाता सूची संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल उठे हैं। राहुल गांधी ने ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के माध्यम से दावा किया है कि मोदी सरकार और निर्वाचन आयोग मतदाता सूची में हेरफेर कर रहे हैं, खासतौर पर विपक्षी समर्थकों के नाम हटाए जा रहे हैं। भाजपा नेताओं ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए राहुल गांधी से सबूत मांगे हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया, जैसे बीबीसी, ने भी आयोग की विश्वसनीयता पर उठते सवालों का उल्लेख किया है। भले ही आयोग ने कुछ अनियमितताओं पर कार्रवाई की है, लेकिन जनता के बीच विश्वास की कमी लगातार बढ़ती जा रही है।
आयोग की निष्पक्षता तभी सिद्ध होगी जब वह सभी आरोपों पर पारदर्शी जांच करे, ठोस सबूतों के आधार पर कार्रवाई करे और चुनावी प्रक्रिया में तकनीकी सुधार लाए। ईवीएम की विश्वसनीयता सुनिश्चित करना, मतदान केंद्रों पर निगरानी बढ़ाना और शिकायतों का त्वरित समाधान करना आयोग की प्राथमिकता होनी चाहिए। लोकतंत्र का आधार जनता का विश्वास होता है। यदि आयोग इस विश्वास को बनाए रखने में असफल रहता है, तो यह पूरे लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर कर सकता है। बिहार चुनाव इस दृष्टि से न केवल राज्य, बल्कि पूरे देश के लोकतंत्र के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। आयोग को यह अवसर गंवाना नहीं चाहिए, क्योंकि उसकी असली जिम्मेदारी संविधान की रक्षा करना है, किसी राजनीतिक दल की नहीं।
चुनाव आयोग एक संविधान संस्था हैं। देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी इसी पर है, लेकिन हाल के वर्षों में यह बहस तेज हो गई है कि क्या आयोग वास्तव में इस कसौटी पर खरा उतर रहा है? मुख्य निर्वाचन आयुक्त कौन है, या किस प्रक्रिया से नियुक्त हुआ है, यह अब उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिसे जिम्मेदारी दी गई है, क्या वह निष्पक्षता पूर्वक कार्य कर रहा है?
जिस तरह से आयोग विपक्ष के आरोपों पर तथ्यों के साथ जवाब देने और कार्रवाई करने से बचता दिख रहा है, उसने उसकी निष्पक्षता पर और गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। जब चुनाव होते हैं, तब आयोग की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। वर्तमान में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 इसी संदर्भ में एक अहम परीक्षा की तरह है, जहां आयोग के पास अपनी विश्वसनीयता को दोबारा स्थापित करने का अवसर है।
हाल के घटनाक्रमों में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने बिहार के मतदान केंद्रों पर मतदाताओं को डराने-धमकाने, पुलिस की बर्बरता और मतदान प्रक्रिया में अनियमितताओं के आरोप लगाए हैं। आरजेडी ने सोशल मीडिया पर वीडियो साझा कर आयोग से कार्रवाई की मांग की है। हालांकि, मुख्य निर्वाचन अधिकारी बिहार ने इन आरोपों को खारिज किया है। इन विवादों की स्वतंत्र जांच आवश्यक रूप की जानी चाहिए।
बिहार चुनाव में मतदाता सूची संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल उठे हैं। राहुल गांधी ने ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के माध्यम से दावा किया है कि मोदी सरकार और निर्वाचन आयोग मतदाता सूची में हेरफेर कर रहे हैं, खासतौर पर विपक्षी समर्थकों के नाम हटाए जा रहे हैं। भाजपा नेताओं ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए राहुल गांधी से सबूत मांगे हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया, जैसे बीबीसी, ने भी आयोग की विश्वसनीयता पर उठते सवालों का उल्लेख किया है। भले ही आयोग ने कुछ अनियमितताओं पर कार्रवाई की है, लेकिन जनता के बीच विश्वास की कमी लगातार बढ़ती जा रही है।
आयोग की निष्पक्षता तभी सिद्ध होगी जब वह सभी आरोपों पर पारदर्शी जांच करे, ठोस सबूतों के आधार पर कार्रवाई करे और चुनावी प्रक्रिया में तकनीकी सुधार लाए। ईवीएम की विश्वसनीयता सुनिश्चित करना, मतदान केंद्रों पर निगरानी बढ़ाना और शिकायतों का त्वरित समाधान करना आयोग की प्राथमिकता होनी चाहिए। लोकतंत्र का आधार जनता का विश्वास होता है। यदि आयोग इस विश्वास को बनाए रखने में असफल रहता है, तो यह पूरे लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर कर सकता है। बिहार चुनाव इस दृष्टि से न केवल राज्य, बल्कि पूरे देश के लोकतंत्र के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। आयोग को यह अवसर गंवाना नहीं चाहिए, क्योंकि उसकी असली जिम्मेदारी संविधान की रक्षा करना है, किसी राजनीतिक दल की नहीं।
8th November, 2025
