राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- प्रथम चरण के मतदान में जिस तरह से युवा, महिला और प्रवासी बिहारियों ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की, उसी से मतदान प्रतिशत 2020 चुनाव की तुलना में 8% बढ़ गया है। इस बढ़े हुए मतदान में प्रशांत किशोर की जनसंपर्क यात्रा में रोजगार दिलाने और पलायन रोकने की अहम भूमिका है। बढ़े हुए मतदान को लेकर महागठबंधन और एनडीए दोनों बढ़-चढ़कर जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन प्रशांत की रणनीति से सभी सहमे भी हुए हैं। जन स्वराज किसको कितना नुकसान करेगी — लालू-नीतीश के जातीय ध्रुवीकरण और भाजपा के हिंदुत्व पर कितना गहरा आघात होगा — यही 14 नवंबर को मतगणना में तय हो जाएगा।
बिहार में मंडल-कमंडल तूफ़ान के बाद 1990 से लेकर 2020 तक बिहार की सियासत लालू और नीतीश के आसपास ही घूमती रही। 1990 में लालू ने कांग्रेस से सत्ता हथियाई और लगातार 15 वर्षों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। 2005 में नीतीश ने लालू की सत्ता छीनी और वह 20 वर्षों तक निरंतर मुख्यमंत्री बने रहे। 20 वर्षों के कार्यकाल में नीतीश कुमार ने भाजपा और कभी आरजेडी के साथ चुनावी गठबंधन किया और मुख्यमंत्री बने रहे। भाजपा, कांग्रेस एवं वामपंथ तीनों राष्ट्रीय दल लालू-नीतीश के ही पिछलग्गू बने हुए हैं। कांग्रेस और लेफ्ट आरजेडी के साथ तो भाजपा नीतीश से गलबहियां जोड़कर और तोड़कर सियासत करती रही। यह कहा जा सकता है कि साढ़े तीन दशक तक बिहार की राजनीति जयप्रकाश के दो चेलों में सिमटी रही। लेकिन 2025 में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार की जातीय झंझावत में सिमटी हुई सियासत को बेरोजगारी, पलायन और विकास के मुद्दे में मोड़ दिया है।
तीन वर्षों से लगातार बिहार के गांव-गांव में पदयात्रा करके, राजनीतिक रूप से कुशाग्र बिहारियों को यह समझाने में सफल रहे कि नीतीश और लालू के जातीय जकड़न से बाहर निकलें और बच्चों के भविष्य के बारे में सोचें। उन्होंने बहुत ही सुनियोजित तरीके से महिलाओं और युवाओं में यह बताने और जागरूकता लाने का प्रयास किया कि आप अपने बच्चों के भविष्य के लिए सोचिए। इसका उदाहरण देते रहे हैं कि लालू प्रसाद यादव नौवीं पास बच्चे को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं और आपके पति, बेटे-बेटियां स्नातक-परास्नातक होकर भी बेरोजगार हैं और जीविका के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं।
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और कैबिनेट मंत्री मंगल पांडेय सहित कई नेताओं पर भ्रष्टाचार और हत्या के जैसे गंभीर आरोप लगाकर आरजेडी पर लगाए जा रहे भ्रष्टाचार के मुद्दे को कमजोर किया। आरजेडी के एमवाई समीकरण में मुस्लिम क्षेत्रों में भी अच्छे मुस्लिम प्रत्याशी देकर उसे कमज़ोर किया है। पीके ने पूरे बिहार के 243 विधानसभा सीटों पर सबसे अच्छे, स्वच्छ छवि के प्रत्याशी उतारे हैं और यह मुद्दा बनाने में सफल रहे हैं कि बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है और जन स्वराज बिहार में ही उद्योग और रोजगार-परक ऐसी योजनाएं लाएगी जिससे बिहारियों को घर में ही रोजगार मिलेगा — उन्हें परिवार छोड़कर जाना नहीं होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार विरोधी बताया कि उद्योग गुजरात में लगा रहे हैं और वोट मांगने बिहार में आ रहे हैं। पीके के रोजगार के मुद्दे के दबाव में महागठबंधन और एनडीए ने भी रोजगार को मुद्दा बनाया। तेजस्वी ने कहा कि सत्ता में आएंगे तो हर परिवार को, जिसके पास नौकरी नहीं, उस परिवार में नौकरी देंगे। जबकि भाजपा ने 1 करोड़ रोजगार देने का वादा किया है।
पहली बार बिहार चुनाव में प्रवासी बिहारी आए और उन्होंने मतदान में हिस्सा लिया। युवाओं ने भी बढ़-चढ़कर भागीदारी की है। इसलिए मतदान प्रतिशत भी बढ़ा है और लालू-नीतीश के जातीय समीकरण को भी चुनौती मिली है।
बिहार में मंडल-कमंडल तूफ़ान के बाद 1990 से लेकर 2020 तक बिहार की सियासत लालू और नीतीश के आसपास ही घूमती रही। 1990 में लालू ने कांग्रेस से सत्ता हथियाई और लगातार 15 वर्षों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। 2005 में नीतीश ने लालू की सत्ता छीनी और वह 20 वर्षों तक निरंतर मुख्यमंत्री बने रहे। 20 वर्षों के कार्यकाल में नीतीश कुमार ने भाजपा और कभी आरजेडी के साथ चुनावी गठबंधन किया और मुख्यमंत्री बने रहे। भाजपा, कांग्रेस एवं वामपंथ तीनों राष्ट्रीय दल लालू-नीतीश के ही पिछलग्गू बने हुए हैं। कांग्रेस और लेफ्ट आरजेडी के साथ तो भाजपा नीतीश से गलबहियां जोड़कर और तोड़कर सियासत करती रही। यह कहा जा सकता है कि साढ़े तीन दशक तक बिहार की राजनीति जयप्रकाश के दो चेलों में सिमटी रही। लेकिन 2025 में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार की जातीय झंझावत में सिमटी हुई सियासत को बेरोजगारी, पलायन और विकास के मुद्दे में मोड़ दिया है।
तीन वर्षों से लगातार बिहार के गांव-गांव में पदयात्रा करके, राजनीतिक रूप से कुशाग्र बिहारियों को यह समझाने में सफल रहे कि नीतीश और लालू के जातीय जकड़न से बाहर निकलें और बच्चों के भविष्य के बारे में सोचें। उन्होंने बहुत ही सुनियोजित तरीके से महिलाओं और युवाओं में यह बताने और जागरूकता लाने का प्रयास किया कि आप अपने बच्चों के भविष्य के लिए सोचिए। इसका उदाहरण देते रहे हैं कि लालू प्रसाद यादव नौवीं पास बच्चे को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं और आपके पति, बेटे-बेटियां स्नातक-परास्नातक होकर भी बेरोजगार हैं और जीविका के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं।
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और कैबिनेट मंत्री मंगल पांडेय सहित कई नेताओं पर भ्रष्टाचार और हत्या के जैसे गंभीर आरोप लगाकर आरजेडी पर लगाए जा रहे भ्रष्टाचार के मुद्दे को कमजोर किया। आरजेडी के एमवाई समीकरण में मुस्लिम क्षेत्रों में भी अच्छे मुस्लिम प्रत्याशी देकर उसे कमज़ोर किया है। पीके ने पूरे बिहार के 243 विधानसभा सीटों पर सबसे अच्छे, स्वच्छ छवि के प्रत्याशी उतारे हैं और यह मुद्दा बनाने में सफल रहे हैं कि बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है और जन स्वराज बिहार में ही उद्योग और रोजगार-परक ऐसी योजनाएं लाएगी जिससे बिहारियों को घर में ही रोजगार मिलेगा — उन्हें परिवार छोड़कर जाना नहीं होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार विरोधी बताया कि उद्योग गुजरात में लगा रहे हैं और वोट मांगने बिहार में आ रहे हैं। पीके के रोजगार के मुद्दे के दबाव में महागठबंधन और एनडीए ने भी रोजगार को मुद्दा बनाया। तेजस्वी ने कहा कि सत्ता में आएंगे तो हर परिवार को, जिसके पास नौकरी नहीं, उस परिवार में नौकरी देंगे। जबकि भाजपा ने 1 करोड़ रोजगार देने का वादा किया है।
पहली बार बिहार चुनाव में प्रवासी बिहारी आए और उन्होंने मतदान में हिस्सा लिया। युवाओं ने भी बढ़-चढ़कर भागीदारी की है। इसलिए मतदान प्रतिशत भी बढ़ा है और लालू-नीतीश के जातीय समीकरण को भी चुनौती मिली है।
8th November, 2025
