
राजेन्द्र द्विवेदी-
नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में SIR (विशेष मतदाता पुनरीक्षण अभियान) के शोरगुल में बिहार के असली मुद्दे गायब हो गए। SIR का शोर बिहार से लेकर दिल्ली और पूरे देश में इतना अधिक हो गया है कि विपक्ष सड़क से लेकर सदन तक संघर्ष कर रहा है। यही नहीं, 300 से अधिक सांसद संसद भवन से लेकर निर्वाचन आयोग कार्यालय जाने का प्रयास किया। उच्चतम न्यायालय में SIR को लेकर पक्ष और विपक्ष में जबरदस्त बहस हो रही है, निर्णय जो भी हो। इस बीच राहुल गांधी ने 7 अगस्त को कर्नाटक लोकसभा के अंतर्गत आने वाली महादेव विधानसभा के एक लाख से ज्यादा वोट चोरी करने का आरोप चुनाव आयोग पर आकड़ों के साथ लगाया है। उन्होंने बताया है कि किन 5 तरीकों से वोटों की चोरी हो रही है।
इसमें डुप्लीकेट वोटर, फर्जी पते, अवैध फोटो, फॉर्म 6 का दुरुपयोग और एक पते पर कई मतदाता शामिल हैं। उन्होंने इसका उदाहरण भी दिया जिसमें गुरकीरत सिंह डैंग का नाम चार अलग-अलग बूथों में था। कई मतदाताओं के पते गलत या अमान्य थे, जैसे “हाउस नंबर 0” पर दर्ज हैं । एक छोटे से घर में 50-60 मदताओं का नाम था, अवैध और फर्जी फोटो हैं या इतने छोटे फोटो लगे हैं जिससे उनकी पहचान नहीं हो सकती है। नए मतदाताओं को जोड़ने के लिए फॉर्म 6 का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया है। पुराने मतदाता का नाम फॉर्म 6 में भर कर नये मतदाता बना दिए है।
राहुल के इन गंभीर आरोपों के जवाब में निर्वाचन आयोग ने हर आरोप की जांच करने की बजाय मामले को और उलझा दिया। राहुल गांधी से शपथ पत्र देने के लिए कहा, जिसे लेकर विवाद गहराता जा रहा है। निर्वाचन आयोग संदेह के घेरे में है। बिहार से शुरू हुआ SIR का संग्राम पूरे देश में पक्ष और विपक्ष के बीच निर्वाचन आयोग को लेकर एक ऐसा मुद्दा बन गया है, जो आने वाले दिनों में जनसंघर्ष का आधार बन रहा है। भारत निर्वाचन आयोग की चुप्पी, प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बी24/19 लिस्ट में देखा जा सकता है कि इस पते पर 50 से ज्यादा वोटर रहते हैं और सभी के पिता एक ही हैं। सीवान के दुरौंधा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में आने वाले अरजानीपुर गांव की निवासी मिंता देवी की उम्र 124 साल बता दी गयी जबकि वह 34 वर्ष की हैं। ऐसी तमाम खामियां वोटर लिस्ट में सामने आई हैं, जिसको लेकर आयोग पर जनता का संशय बढ़ता जा रहा है। यह लोकतंत्र के लिए घातक है।
SIR को लेकर जिस तरह से संघर्ष शुरू हुआ है, उससे नीतीश सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, अपराध—सभी मुद्दे गायब हो गए हैं। SIR के दो पहलू हैं। पहला यह कि मोदी सरकार की चुनावी रणनीति कही जा रही है कि SIR लागू करके नीतीश के स्वास्थ्य को लेकर चल रही चर्चाएं, डबल इंजन सरकार की कमियां, बाढ़ और विपक्ष के जन-समस्याओं के मुद्दे को कमजोर करने की रणनीति है। क्योंकि आयोग और केंद्र सरकार दोनों को यह आभास था कि चुनाव में मतदाताओं को लेकर मतदाता सूची पर हल्ला मचेगा, लेकिन उन्हें यह एहसास नहीं था कि चुनाव जीतने के लिए बिहार में शुरू किया गया SIR मोदी सरकार के लिए ही चुनौती बन जाएगा।
दूसरा पहलू यह है कि कर्नाटक, महाराष्ट्र और लोकसभा चुनाव में जिस राजनीतिक कौशल से आयोग का सहारा लेकर सफलता अर्जित की थी, उस पर संदेह हो गया है। इसलिए बिहार में भी जीत के लिए नई सियासी जाल SIR बिछाया गया। SIR के जाल की गिरफ्त में महागठबंधन से ज्यादा पूरे बिहार की 13 करोड़ आबादी फंस गई। निर्वाचन आयोग की चुप्पी, भाजपा को मदद करने के लिए किये जा रहे एकपक्षीय निर्णय से बिहार की मूलभूत समस्याओं की आवाज खत्म हो गई है। आयोग ने SIR के माध्यम से 7.80 करोड़ मतदाताओं में से 65 लाख मतदाताओं का नाम हटा दिया है और हटाए गए नामों की जानकारी भी मतदाताओं या विपक्षी नेताओं को न मिले, इसके लिए नियमों में भी बदलाव किया है। मतदाता सूची की पीडीएफ मिलेगी, जिसे विश्लेषण करना बहुत मुश्किल होगा क्योंकि यह डिजिटल स्वरूप में नहीं होगा।
SIR का प्रभाव यह हुआ है कि देश के सबसे अति पिछड़े राज्य का हर गरीब मतदाता इस बात को लेकर डरा हुआ है कि अगर मतदाता सूची में नाम नहीं रहा तो उसे सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं (अनाज, पेंशन, आवास, स्वास्थ्य) में से किसी का लाभ नहीं मिलेगा। जनता की इस आशंका को विपक्ष और हवा दे रहा है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव इस बात पर ज्यादा जोर दे रहे हैं कि मतदाता सूची से नाम काटेंगे और फिर सरकार से मिलने वाली विभिन्न सहायता को भी खत्म कर देंगे। 17 अगस्त से राहुल और तेजस्वी के साथ महागठबंधन की "वोट अधिकार यात्रा" जो 23 जिलों में 2 हफ्ते तक चलेगी, जिसका समापन 1 सितंबर को पटना में होगा। इस वोट अधिकार यात्रा में SIR ही मुद्दा होगा।
जनता का जो सबसे गंभीर मुद्दा बेरोजगारी है, उसके साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, बाढ़, पलायन के मुद्दे कमजोर होंगे। बिहार का दुर्भाग्य यही है कि 80 प्रतिशत से अधिक आबादी दलित-पिछड़ों की है और पिछले 35 वर्षों से पिछड़े एवं दलित की सरकार ही सत्ता में है। 15 वर्षों तक लालू-राबड़ी और 20 वर्षों से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं लेकिन बिहार अन्य राज्यों की तुलना में आज भी बहुत पीछे है।
अपनी जीविका चलाने के लिए आज भी बिहार में सबसे अधिक पलायन होता है। बिहार में आज भी गरीबी और आर्थिक असमानता है। नीति आयोग के 2021-22 के डेटा के सूचकांक के अनुसार, बिहार में 33.76% आबादी बहुआयामी गरीबी में जी रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी गंभीर है, जहां बुनियादी सुविधाओं जैसे बिजली, स्वच्छ पानी और सड़कों की कमी है। बिहार में बेरोजगारी एक दीर्घकालिक समस्या है। लाखों युवा रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों में पलायन करते हैं। 2023 के CMIE डेटा के अनुसार, बिहार में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। शिक्षा की स्थिति चिंताजनक है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी, बुनियादी ढांचे का अभाव और उच्च ड्रॉपआउट दर (विशेष रूप से लड़कियों में) प्रमुख समस्याएं हैं। 2022 के ASER सर्वे के अनुसार, बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 60% बच्चे अपनी उम्र के अनुसार पढ़ने-लिखने में सक्षम हैं। बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी दयनीय है। प्रति व्यक्ति अस्पताल बेड की संख्या राष्ट्रीय औसत से बहुत ही कम है और ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है। कोविड में बिहार ने पूरे देश में सबसे ज्यादा त्रासदी झेली है। इसी तरह बिहार में सड़क, बिजली और स्वच्छ पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी एक प्रमुख समस्या है। बाढ़ और सूखे जैसे प्राकृतिक आपदाओं ने इस स्थिति को और जटिल बनाया है। यह सभी SIR की शोर में कहीं खो गए हैं।
13th August, 2025