
राजेन्द्र द्विवेदी, त्रिपुरा - यूरीड मीडिया- 2023 में 9 राज्यों के चुनाव होने है। 9 राज्यों के चुनाव परिणाम 2024 के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 2023 के शुरू में पूर्वी भारत के 3 राज्यों नागालैंड, मेघालय और त्रिपुरा में 16 फरवरी को मतदान है। इनमें त्रिपुरा का चुनाव परिणाम भाजपा के लिए बहुत अहम है क्योकि 2018 में भाजपा ने असम के बाद 28 वर्षों से जमे सीपीएम की सरकार को दो तिहाई बहुमत से करारी शिकस्त दी थी। जबकि इसके पहले त्रिपुरा राज्य के गठन 1972 से लेकर 2013 तक सीपीएम और कांग्रेस के बीच ही सिधी लड़ाई होती रही है। भाजपा भी पिछले कई चुनाव लगातार लड़ रही है। 1 से लेकर 1.5% तक वोट मिलते थे लेकिन कभी भी 1 सीट तक जीत नही पायी। 2018 में मिली सफलता को 2023 में बनाये रखने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री भारत सरकार अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह , उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा के अध्यक्ष जे पी नड्डा लगातार मीटिंग और रोड शो कर रहे है। 2023 का चुनाव 2018 से अलग है और नए समीकरण बने है। वर्षों से आमने सामने रहने वाले वामदल एवं कांग्रेस एक साथ लड़ रहे है। ममता बनर्जी भी 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सबसे रोचक चुनाव आदिवासी राजा के वंशज प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन इनका आदिवासियों में बहुत अच्छा प्रभाव है। त्रिपुरा वर्ष का पहला चुनाव है। इसके बाद कर्णाटक, मध्यप्रदेश , राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने है। जिन राज्यों में होने है उनमें लोकसभा की 116 सीटें आती है। अडानी प्रकरण के बाद जिस तरह से विपक्ष मोदी पर हमलावर है अगर त्रिपुरा में भाजपा सरकार बनाने में सफल नहीं हुई तो मोदी को लेकर एक नकारात्मक परशेप्शन पूरे देश में चला जायेगा जिसका आने वाले राज्यों के विधानसभा चुनाव एवं 2024 में लोकसभा चुनाव में हो सकता है। लेकिन अगर त्रिपुरा में भाजपा सरकार बनाने में सफल रही तो मोदी के खिलाफ चलाये जा रहे विपक्ष का अभियान कमजोर होगा और जैसा कि मोदी कहते है कि उन्हें जनता का आशीर्वाद है उस पर मोहर भी लग जाएगी। पिछले 4 दिनों से वेस्ट त्रिपुरा के कई ST/SC विधानसभा Simna, Mandaibazar, एवं सामान्य विधानसभा क्षेत्रों से विभिन्न वर्गों के मतदाताओं से बातचीत किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 तारिख को गोमती जनपद के उदय पुर में प्रधानमंत्री और 12 तारिख को अमित शाह की रैली एवं अगरतल्ला में रोड शो को देखा। राजा प्रद्योत बिक्रम की रैलियां भी देखी। भाजपा की रैली एवं राजा प्रद्योत बिक्रम की रैली में भारी संख्या में भीड़ जुट रही है। पिछले दिनों जिस रेवड़ी कल्चर को लेकर प्रधानमंत्री विपक्ष पर आरोप लगाते थे लेकिन उसी रेवड़ी कल्चर को भाजपा त्रिपुरा में प्रयोग कर रही है। अमित शाह मेघावी बच्चियों को स्कूटी देने तथा अन्य कई तरह के सीधे लाभ देने की बात मीटिंग में कहते है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा पूरी तरह से डेरा डाले है। त्रिपुरा में दौरे के समय पूरे राज्य में गांव हो या शहर, गली और सड़कों के दोनों तरफ ढाई ढाई फ़ीट भाजपा के झंडे लहराते हुए दिख रहे है। पूरे त्रिपुरा में एक इवेंट की तरह भाजपा का आक्रामक प्रचार चल रहा है। संसाधनों के मामले में विपक्ष पूरे त्रिपुरा में बहुत कमजोर है। भाजपा बड़ी बड़ी रैलियां कर रही है। प्रधानमंत्री से लेकर सभी बड़े नेता बड़ी रैलियों को सम्बोधित कर रहे हैं। वही सीपीएम और कांग्रेस छोटी छोटी रैलियां कर रही है। राजा प्रद्योत बिक्रम अकेले प्रचारक है। लगातार रैलियां और मीटिंग कर रहे है। जिसमे उन्हें आदिवासी क्षेत्रों में व्यापक जनसमर्थन दिखाई दे रहा है। 2018 में सीपीएम के 28 वर्षों के सरकार को हटाने के लिए भाजपा के साथ आदिवासी, छोटे छोटे दल, राजा प्रद्योत बिक्रम तथा कांग्रेस के प्रभावशाली नेता सुदीप देव वर्मन एक जुट होकर भाजपा के साथ खड़े थे जिसका अप्रत्याशित लाभ भाजपा को मिला और 2013 में 49 सीटों पर रहने वाली सीपीएम 16 सीटों पर सिमट गयी। सीपीएम को हटाने के लिए भाजपा के समर्थन में सभी के एक साथ आने से 2013 में 2% से कम पाने वाली भाजपा 43% से अधिक मत पाकर 36 सीटें जीती।
2023 में ऐसा नहीं है। लड़ाई कई सीटों पर त्रिकोणीय तो कई सीटों पर चतुरकोणीय बन गयी है। कल 13 तारिख को प्रधानमंत्री को अगरतल्ला में एक बड़ी रैली होगी। त्रिपुरा की राजधानी अगरतल्ला से लेकर आस पास के क्षेत्र पोस्टर बैनर कट आउट से पट गए हैं। लेकिन इस सब में एक महत्वपूर्ण बात मोदी के प्रति लोगों का समर्थन दिखाई दे रहा है और मोदी के नाम पर जनसमर्थन तथा 5 किलो अनाज, हर घर नल, उज्ज्वला, जन धन, किसान निधी यही योजनाएं भाजपा की ताकत है। मोदी का प्रभाव महिला मतदाताओं में अधिक दिखाई दे रहा है। गठबंधन के नाम पर IPFT बहुत कमजोर है उनका ST में प्रभाव 2018 की तरह नहीं रहा। भाजपा के लिए अहम ST की 20 सीटें हैं जहाँ पर 2018 में गठबंधन के साथ मिलकर 18 सीटें जीती थी। इस बार ST सीटों पर राजा प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन को व्यापक समर्थन मिल रहा है जिससे भाजपा का नुकसान हो सकता है। मतदान को 2 दिन बच्चे है। पूरे त्रिपुरा में झंडा, बैनर, कट आउट, रैलियां दिखाई दे रहे है इसका भी प्रभाव फ्लोटिंग मतदाताओं पर है। जिसका लाभ भी भाजपा को मिल सकता है लेकिन इन तमाम संसाधन, बड़े बड़े नेताओं की रैली, प्रधानमंत्री की लोकप्रियता, कल्याणकारी योजनाएं आदि के बाद भी भाजपा 2018 जैसी स्थिति में अभी नहीं दिखाई दे रही है। सीपीएम कांग्रेस गठबंधन, प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन की मोथा पार्टी,ममता की TMC अलग अलग सीटों पर भाजपा से लड़ाई लड़ रहे है। अगर हम वर्तमान राजनीतिक सियासत एवं पुराने चुनाव परिणाम का विश्लेषण करे तो बहुत सारे समीकरण बनते बिड़ते दिख रहे है जिससे लग रहा है कि भाजपा का मोदी फैक्टर आदिवासियों में चल गया तो 2018 की तरह चौकाने वाले परिणाम हो सकते है। 16 फरवरी को मतदान है। किसे लाभ किसे हानि होगी यह 2 मार्च चुनाव परिणाम आने के बाद तय होगा।
त्रिपुरा पूर्वी भारत का एक छोटा सा राज्य है जिसकी सीमा बांग्लादेश से मिलती है। इसका गठन 21 जनवरी 1972 को हुआ। इसके पहले यह एक केंद्र शासित प्रदेश था। 2018 से पहले त्रिपुरा की सियासत कांग्रेस और वामदलों के बीच ही घूमती रही। 1993 से 2018 तक लगातार 28 वर्षों तक सीपीएम की सरकार रही। पश्चिम बंगाल में 2011 में ममता के मुख्यमंत्री बनने के बाद ऐसा लगा था कि त्रिपुरा में सीपीएम का विकल्प टीएमसी बन सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। सीपीएम 1993 से लेकर 2018 तक लगातार सत्ता में बनी रही। वामपंथी सरकार से परेशान त्रिपुरा की जनता पश्चिम बंगाल की तरह विकल्प ढूंढ रही थी, जिसका लाभ 2018 में भाजपा ने उठाया। त्रिपुरा राज्य में 70% बंगाली और 30% त्रिपुरी आबादी है। 54% आबादी अनुसूचित जनजाति और 18% अनुसूचित जाति की जनसंख्या है। जिनमें 83% हिन्दू, 9% मुस्लिम, 4.5% ईसाई, 3.5% बौद्ध रहते है। SC और ST की आबादी 70% से अधिक होने के कारण प्रदेश की 60 विधानसभा सीटों में 20 सीटें ST और 10 सीटें SC के लिए सुरक्षित है। शेष 30 सीटें अनारक्षित है।
35 वर्षों से लगातार सीपीएम को सरकार से हटाने में कांग्रेस नाकाम रही। जिसके कारण क्षेत्रीय दलों ने सीपीएम से लड़ाई लड़ते रहे। तमाम विसंगतियों के कारण स्थानीय स्तर पर जनजातियों में विद्रोह की स्थिति बनी थी। स्थानीय स्तर पर राजनीतिक समीकरण के अनुसार भाजपा ने दूसरे दलों के प्रभावशाली नेताओ को पार्टी में शामिल कराया। जिसका उसे लाभ मिला।
विधानसभा चुनाव 2018 भाजपा के जीत कारण
विधानसभा चुनाव 2018 भाजपा के जीत कारण के पहले भाजपा ने कांग्रेस के प्रभावशाली नेता सुदीप रॉय बर्मन को पार्टी में शामिल कराया। सुदीप रॉय त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री समीर रंजन वर्मन के पुत्र थे और 1998 से लगातार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतते रहे। बर्मन का राजनीतिक प्रभाव कांग्रेस के मतदाताओं में रहा। दूसरा भाजपा ने IPFT से समझौता किया। IPFT का अनुसूचित जाति में काफी प्रभाव है। सबसे महत्वपूर्ण प्रद्योत बिक्रम माणिक्य वर्मन राजशाही परिवार के वंशज है, उनका समर्थन हासिल किया। सीपीएम सरकार का विकल्प ढूंढ रहे जनता को भाजपा के रूप में विकल्प मिला। भाजपा 35 सीटों पर चुनाव जीती और 43.40% मत मिला। भाजपा गठबंधन से IPFT 9 सीटों पर चुनाव लड़ी और 8 सीटें जीती और 7.35% मत मिले।
IPFT और राजशाही घराने का समर्थन मिलने से भाजपा गठबंधन ने 20 ST सीटों में से 18 सीटें जीती और SC की 10 सीटों में 8 सीटें जीती। IPFT जिसका अनुसूचित जनजातियों में सबसे अधिक प्रभाव था उसे गठबंधन में ST सीटों की 9 सीटें दी गयी जिसमें 8 सीटें जीती। SC बाहुल्य क्षेत्रों में कांग्रेस के सुदीप रॉय वर्मन का प्रभाव था जिनके भाजपा में शामिल होने से 10 सुरक्षित सीटों में 8 में भाजपा सफलता हासिल की। कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला जबकि 2013 में 49 सीटें जीतने वाली सीपीएम 16 सीटों पर सिमट कर रह गयी और उनका मत प्रतिशत 48% से घट कर 43% हो गया। कांग्रेस जिसे 2013 में 36% मत और 10 सीटें जीती थी वह मात्र 1.8% मत पर सिमट गयी और 1 भी सीट नहीं मिली। IPFT भाजपा गठबंधन के साथ 8 सीट जीती एवं 7.5% वोट मिले। भाजपा को 43.59% मत मिले थे और सीपीएम को 42.22 मत, मात्र 1.37% वोट कम होने पर सीपीएम 16 और भाजपा को 35 सीटों पर पहुंच गई थी। भाजपा के IPFT गठबंधन एवं प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देव वर्मा के समर्थन के कारण अन्य क्षेत्रीय दल हाशिये पर चले गए।
2023 विधानसभा चुनाव की चुनौती
भारतीय जनता पार्टी 5 साल सत्ता में रहने के बाद 2023 में नए चुनौतियों का सामना कर रही है। सबसे बड़ी चुनौती त्रिपुरा के राजा प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देव वर्मा की नवगठित त्रिपुरा मोथा पार्टी दे रही हैं। राजा का अनुसूचित जनजातियों में बहुत प्रभाव है और उन्हें भगवान के रूप में सम्मान दिया जाता है।
20 ST विधानसभा में राजा का जबरदस्त प्रभाव है। उनकी रैलियों में भारी संख्या में आदिवासी महिलाओं आती है। प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देव वर्मा स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे है लेकिन ST की 20 और SC की 6 सीटें सहित 42 सीटों पर उनके दल के प्रत्याशी मैदान में है। SC और ST की इन 30 सीटों में भाजपा को 18 तथा IPFT को 8 सीटें मिली थी। 30 में से 26 सीटें भाजपा गठबंधन की थी। इन ST और SC सीटों पर मोथा पार्टी भाजपा को 2018 में किये गए वादों की याद दिलाती है। मोथा पार्टी का नेतृत्व कर रहे प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देव वर्मा बंगाली हैं और त्रिपुरा की 70% आबादी भी बंगाली है। इसका भी लाभ मोथा पार्टी को SC और ST अलावा अन्य जाति एवं धर्म के मतदाताओं में मिल रहा है। देव वर्मन भाजपा पर सीधे आरोप लगाते है कि गृह मंत्री भाजपा सरकार अमित शाह दिल्ली से आते हैं, बड़े-बड़े वादे करते हैं लेकिन कोई भी वादा भाजपा ने पूरा नहीं किया। मोथा पार्टी मतदाताओं में भाजपा द्वारा किये गए वादे- मिस कॉल करो, नौकरी पाओ, स्मार्ट फ़ोन, त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत जिला परिषद को अधिक अधिकार देने की बात कही थी लेकिन नहीं दिया। इसी तरह के तमाम आरोपों के साथ त्रिपुरा जनजातीय कल्याण के लिए भारत के संविधान के अनुछेद के तहत ग्रेटर टिपरा लैंड नामक नए राज्य निर्माण की मांग भी करते है। टिपरा मोथा पार्टी का नारा है-
(पोइला जाति उबालो जाति और पुइला जाति उलो जाति)
मतलब समुदाय पहले पार्टी बाद में । टिपरा मोथा पार्टी पर काँग्रेस एवं वांम दलों के मदद करने के आरोपों पर प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देव वर्मा इसका खंडन करते हुये जनजातियों में संदेश दे रहे है कि वह त्रिपुरा के अंतिम राजा के वंसज होने के कारण कम्युनिस्ट का कभी भी सहयोग नहीं कर सकते। बीमार होने के बाद भी लगातार रैलियों में जा रहे हैं और काफी भीड़ जुटती है। भाजपा के लिए मोथा पार्टी एसटी की 20 और एससी की 6 सीटों पर कड़ी चुनौती दे रही है। आदिवासी राजा मोथा पार्टी को राजनीतिक दल नहीं, मूवमेंट की बात कहते है और आदिवासियों की भूमि, संस्कार और अधिकार की मांग उठा रहे हैं । जिसका उन्हें व्यापक समर्थन मिल रहा है।
2018 में 20 सीटों में 10 भाजपा 8 आईपीएफटी गठबंधन 18 सीटें जीती थी। उनमें कई सीटें बहुत कम मतों के अंतर से जीत हुई है। भाजपा की सहयोगी आईपीएफ़टी जिसका जन जातियों में प्रभाव था। राजा का समर्थन था तब गठबंधन को 20 में 18 सीटें मिली थी । आईपीएफ़टी का ज्यादा प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देव वर्मा का प्रभाव दिखाई दे रहा है और उनकी रैलियों में भीड़ भी हो रही है। प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देव वर्मा राजा काँग्रेस से जुड़े रहे । 2019 में उनकी बहन ने काँग्रेस का लोकसभा का चुनाव लड़ा था । त्रिपुरा ईस्ट से प्रज्ञा देव वर्मन हार गयी उन्हें 2 लाख 77 हजार वोट मिले थे। मोथा पार्टी का प्रभाव जीत से ज्यादा भाजपा गठबंधन और कॉंग्रेस सीपीएम गठबंधन को जबर्दस्त त्रिकोणात्मक लड़ाई के बीच खड़ा कर दिया है।
अनुसूचित जाति की सुरक्षित 10 सीटों में 6 सीटों पर मोथा पार्टी लड़ रही है। इनमें भी 18 से 22% अनुसूचित जनजाति मतदाता हैं। इन सीटों पर मोथा पार्टी ने भाजपा के लिए कड़ी चुनौती पैदा कर दी है। लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया है। कई सीटों पर TMC के मजबूत प्रत्याशी भी चुनौती दे रहे हैं। मोथा पार्टी के आदिवासी राजा प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देव वर्मा के आक्रामक चुनाव प्रचार और आदिवासियों के मांगे जा रहे है अधिकारों पर व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है। चुनाव में फायदा नुकसान चुनाव परिणाम आने के बाद पता चलेगा। लेकिन जो जमीनी हालात और समर्थन मोथा पार्टी को मिल रहा है उसे देखते हुए किंग मेकर की भूमिका में भी मोथा पार्टी आ सकती है।
वामपंथ एवं कांग्रेस गठबंधन
दशकों से आमने सामने सीधी लड़ाई लड़ने वाली सीपीएम और कांग्रेस मजबूरी में भाजपा के सामने एकजुट हुए हैं। त्रिपुरा राज्य गठन से लेकर 2013 तक कांग्रेस और सीपीएम आमने सामने लड़ती रही। गत 35 वर्षों से सीपीएम सरकार में थी। 2018 के पहले 2013 विधानसभा चुनाव परिणाम देखे को सीपीएम को 48.11% मत और 49 सीटें मिली थी जबकि कांग्रेस 36.73% मत पाकर 10 सीटें जीती थी। सीपीआई 1 सीट और भाजपा को 1.54 % मत मिले और खाता नहीं खुला था। 2018 में भाजपा ने पूर्वी भारत में असंम के बाद त्रिपुरा में अप्रत्याशित पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और 2023 में भी आक्रामक रणनीति एवं मोदी के चेहरे पर सरकार बनाने का प्रयास कर रही है। 2018 में कांग्रेस 2013 की तरह 1. 79% मत और शून्य सीटें थी यही नहीं 59 प्रत्यशियों में से 58 की जमानत तक जप्त हो गयी थी। सीधी लड़ाई सीपीएम और भाजपा गठबंधन के बीच रही। भाजपा ने 51 सीटों पर लड़ी 35 जीती और 16 दूसरे स्थान पर रही जबकि सीपीएम 57 सीटों पर लड़ी 14 जीती और 41 पर दूसरे स्थान पर रही। 2018 के परिणामों को देखते हुए ही सीपीएम 43 और कांग्रेस 13 तथा सीपीआई, RSP, आल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक और एक निर्दलीय के गठबंधन के साथ सभी 60 सीटों पर चुनाव मैदान में है। इस गठबंधन की ताकत सीपीएम के साथ कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे सुदीप राय बर्मन का भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में वापसी भी है। लेकिन यह गठबंधन ऊपरी नेताओं में ज्यादा जबकि जमीन में कार्यकर्ताओं के बीच बहुत कम दिखाई दे रहा है। वर्षों तक आमने सामने लड़ने वाले सीपीएम और कांग्रेस कार्यकर्त्ता चुनाव में एक साथ नहीं दिख रहे है जिसका लाभ भाजपा को मिलने की उम्मीद है।
भाजपा गठबंधन
भाजपा पूर्वी भारत में दूसरी बार असम में सरकार बनाने वाली भाजपा त्रिपुरा में भी दूसरी बार सरकार बनाने के प्रयास में लगी है। भाजपा के प्रभाव को देखते हुए वर्षों से एक दूसरे के खिलाफ लड़ने वाले सीपीएम और कांग्रेस एक साथ होकर चुनौती देने में जुटे हैं। 2018 में ST और SC से जुडी पार्टियां एवं आदिवासी राजा का एक तरफ़ा मिला समर्थन 2023 में भाजपा के लिए नई चुनौती बन गया है। आदिवासी राजा ने मोथा पार्टी बनाई 26 सीटों पर लड़ रही है। भाजपा 2018 की IPFT से समझौते में है लेकिन इस बार 9 सीटों के साथ पर 5 सीटें दी है। 55 पर भाजपा और 5 पर IPFT लड़ रही है। भाजपा ने इस बार त्रिपुरा में बोक्सा नगर से तफज्जुल हुसैन और कैलाश हर से मुबारक अली 2 मुस्लिम प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि त्रिपुरा में मात्र 8 प्रतिशत मुस्लिम है। यह माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पसमांदा मुसलमान को जोड़ने के लिए कहा था उसी रणनीति के तहत 2023 के शुरुवात में हो रहे त्रिपुरा राज्य चुनाव में 2 मुसलमानों को प्रत्याशी बनाया गया है। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो देश के अन्य राज्यों में भाजपा मुसलमान प्रत्याशी उतार सकती है। त्रिपुरा में हिन्दू मुस्लिम का चुनाव नहीं होता लेकिन भाजपा की सबसे बड़ी ताकत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा तथा उनके द्वारा चलाई जा रही गरीबो के लिए कल्याणकारी योजनाएं है। ST सीटों वाले क्षेत्रों में मोथा पार्टी में आदिवासी राजा के समर्थन में भीड़ जुटती है। समर्थन और अधिकारों की मांग उठती है लेकिन इन सबके बाद भी प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा लोकप्रिय बना हुआ है। कल्याणकारी योजनाएं जिनमे 5 किलो अनाज, शौचालय, बिजली, हर घर नल व अन्य सीधे लाभ देने वाली योजनाओं का प्रभाव सीधे आदिवासियों में दिखाई दे रहा है। संसाधनों और प्रचार तंत्र तथा स्थानीय स्तर परछोटे छोटे नेताओं को जोड़ने में भाजपा काफी सफल है। मोथा पार्टी तथा गठबंधन होने से 2018 जैसी एक तरफ़ा एवं दो तिहाई बहुमत परिणाम को कड़ी चुनौती जरूर मिल रही लेकिन इन तमाम समीकरणों के बाद मोदी का चेहरा और कल्याणकारी योजनाएं 70% से अधिक आबादी वाले SC/ST क्षेत्रों में भाजपा असम की तरह त्रिपुरा में वर्चस्व बना सकती है। मुस्लिम महिलाओं में भी भाजपा का समर्थन दिखाई दे रहा है।
तृणमूल कांग्रेस
TMC पश्चिम बंगाल में 3 दशक से काबिज वामपंथियों को उखाड़ फेकने वाली लगातार तीन बार विधानसभा का चुनाव जीतने वाली ममता बनर्जी त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में सीपीएम का विकल्प नहीं बन गयी। 2018 में भाजपा सीपीएम का विकल्प बनी और 28 वर्षों से लगातार जमे सीपीएम को सत्ता से उखाड़ फेखा। 2023 में ममता बनर्जी त्रिपुरा में 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और 12 सीटों पर लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया है।