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बुआ-भतीजे का रागालाप...

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बुआ-भतीजे का रागालाप...

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बुआ-भतीजे का खटरस...

गरमी के मौसम में आम से खटरस बनाने की पुरानी परम्परा रही है। गांवों में जब गरमी के मौसम में सब्जिया आदि नही मिलती थी तो गरीब लोगों के लिए खटरस सबसे प्रिय और पौष्टिक होता था जिसे रोटी के साथ खाते थे। राजनीति की आड़ में पैसे का खेल करने वालों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने "नोटबंदी" कर गरीबी की रेखा के नीचे लाकर खड़ा कर दिया। ऐसे में राजनीतिक कमाई करने वाले राजनीतिज्ञों को आजकल खटरस का ही इस्तेमाल करने की याद आयी है।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव परिणाम ने सपा-बसपा को राजनीतिक धरातल पर ला दिया है। बसपा की हालत इतनी पतली हो गयी है कि मायावती के मई 2018 में राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने पर किसी भी सदन का सदस्य होने के लाले पड़ जाएगे। ऐसे में मायावती के पास अखिलेश और राहुल की गलबहिया करने अलावा अन्य कोई विकल्प नही बचा है। राज्यसभा जाने के लिए मायावती इतनी बेचैन है कि वह 2 जून 1995 के लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस कांड की मर्मान्तक पीड़ादायी घटना को भी भूला देना चाहती है। इस घटना को अंजाम देने के आरोपी बड़े भाई मुलायम सिंह यादव जब दन्तविहीन शेर हो गये है तो भतीजे अखिलेश से शिकवा-शिकायत मिटाकर रिश्तों की दुहाई तो दी ही जा सकती है। यह बात अलग है कि भतीजा खुद भी पिता सहित सभी परिवारीजनों को लतिया कर अलग हो गया है। ऐसे हालात में अपनों के ही सताये बुआ-भतीजे एक थाल में खटरस ( खट्टा-मीठा) का स्वाद ले तो शायद कुछ जायका बदला नजर आये।