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बुआ-भतीजे का रागालाप...

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सत्ता पर कब्जे की जिद...

मुगलकालीन इतिहास में औरंगजेब का नाम इस बात के लिए विख्यात है कि उसने सत्ता हासिल करने के लिए अपने ही पिता को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया और भाइयों का कत्ल करा दिया। हम जब कुछ पिछले दिनों के घटनाक्रम पर गौर करे तो प्रदेश के यादवी परिवार का कलह जब चरम पर था। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते अखिलेश यादव ने सरकार और संगठन पर अपना बर्चस्व कायम करने के लिए हर वह दांव-पेंच शुरू कर दिया जो समाज और परिवार की भावना के खिलाफ था तो उसी को आधार बनाकर एक समाचार पत्र ने अखिलेश की तुलना औरंगजेब से कर दी तो सत्ता शीर्ष तिलमिला उठा। अखिलेश मीडिया की ऐसी उपमाओं को लेकर काफी आक्रोश व्यक्त कर चुके है लेकिन बाद में वही अखिलेश जब अपने ही पिता मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी से बेदखल कर मुखिया पद पर काबिज हो जाते है तो अपने कृत्य पर किसी तरह की सफाई देना मुनासिब नही समझते। जब अखिलेश ने सपा के अध्यक्ष पद से मुलायम को बेदखल कर अपने को स्थापित किया था, उस समय यदि अखिलेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नही होते तो कल्पना कीजिए कि क्या सपा की वह भीड़ मुलायम के खिलाफ इक्कठा होती और उसमें शामिल वरिष्ठ नेतागण अखिलेश के बैनर तले ऐसा प्रस्ताव पारित करा पाते। तब अखिलेश ने कहा था कि चुनाव बाद वह पिता मुलायम सिंह यादव के लिए सपा अध्यक्ष का पद छोड़ देगे। मुलायम के विरोध के बावजूद बसपा प्रमुख मायावती से राजनीतिक पंगे बढ़ाने वाले अखिलेश क्या यह दमखम दिखा सकते हैं कि सपा का फिर से खुला अधिवेशन बुलाकर अपने अध्यक्ष पद पर मुहर लगवा सके? इसी बात को लेकर चचा शिवपाल ने कई बार अखिलेश को सपा अध्यक्ष पद छोड़ कर मुलायम सिंह यादव की गरिमा वापस किये जाने की मांग की है परन्तु उत्तर प्रदेश की सत्ता गंवाने के बाद अब राष्ट्रीय राजनीति में लकीर खींचने की कोशिश में जुटे है। प्रदेश के इस यादवी परिवार में अब एकजुटता की कोई लौ नही दिखती है। सामने से लड़ाई तो बाप-बेटे (मुलायम-अखिलेश) की है लेकिन दांव तो दोनों तरफ से चचा शिवपाल और रामगोपाल ही चल रहे है। यह बात दिगर है कि शिवपाल को कमजोर पड़ता देख मुलायम की दूसरी पत्नी साधना पिछे से उन्हें पुशअप करती रहती है।