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बुआ-भतीजे का रागालाप...

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बुआ-भतीजे का रागालाप...

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माया की माया...

"यथा नाम:तथा गुण" बहुजन समाज पार्टी मुखिया मायावती पर यह युक्ति पूरी तरह से चरितार्थ होती है। कहा जाता है कि व्यक्ति के कृत्य पर उसके नाम का प्रभाव होता है। दलित समाज के उत्थान के नारे पर मायावती ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो मुकाम हासिल किया, उसे अपने नाम के ही प्रभाव में खो दिया। मायावती ने दलित समाज के भावनात्मक लगाव को धन (माया) की चासनी में ऐसा भिगोया कि उसकी मिठास ही उसके अन्त का भी कारण बनी। मायावती ने एक बार दलित समाज से कहा था कि वह मंदिर में या किसी पंडित को दान न करे बल्कि वह धन उन्हें दे। उन्होंने स्वयं को जीती जागती माया (लक्ष्मी) की संज्ञा दी थी। यह सब कुछ तो ठीक था लेकिन "अति सर्वत्र बर्जयेत"। माया-माया की जाल मेंही फंसती चली गयी और परिणाम यह रहा कि इस कार्य में उनका साथ देने वाले भी एक-एक कर इस यातना गृह से अलग होते चले गये। अब एक सतीश चन्द्र मिश्र बचे हैजिनकी स्थिति "गुड़ के चींटे" की तरह है।