बिहार चुनाव 2025 का रण अब सिर्फ सीटों और गठबंधनों का नहीं रह गया है। यह एक ऐसी जंग बन चुका है, जहां एक तरफ "बिहार बनाम गुजरात" का मुद्दा युवाओं को प्रभावित कर रहा है, तो दूसरी तरफ "सुशासन बनाम जंगलराज" की पुरानी बहस फिर से सुलग रही है। मतदाता असमंजस में हैं। 20 साल से सत्ता संभाले नीतीश कुमार के वादों पर भरोसा करें, जहां महिलाओं को 10 हजार रुपये मासिक सहायता और हर हाथ को रोजगार का वादा किया जा रहा है, या तेजस्वी यादव के महागठबंधन के वादों पर, जो हर परिवार को सरकारी नौकरी, हर वर्ग के लिए कल्याण योजनाएं और पलायन रोकने का सपना बेच रहे हैं। चुनावी घोषणाओं का अम्बार लग गया है, लेकिन असली मुद्दा बेरोजगारी और पलायन है, जो बिहार की सबसे बड़ी विपदा बन चुका है। प्रशांत किशोर ने इस "बिहार बनाम गुजरात" को जन-जन तक पहुंचाया है, लेकिन लगता है कि इसका फायदा तेजस्वी को मिल रहा है।
बिहार की सियासत हमेशा से ही ध्रुवीकरण पर टिकी रही है जाति, धर्म या क्षेत्रवाद। लेकिन इस बार, 6 और 11 नवंबर को होने वाले मतदान से ठीक दो हफ्ते पहले, मुद्दा विकास बनाम उपेक्षा का हो गया है। एनडीए की रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और अन्य नेता सुशासन की दुहाई दे रहे हैं। मोदी ने समस्तीपुर और बेगूसराय की रैलियों में कहा कि एनडीए ने गुजरात, यूपी और मध्य प्रदेश में रिकॉर्ड तोड़े हैं, और बिहार में भी नीतीश के नेतृत्व में ऐसा ही होगा। उन्होंने महागठबंधन पर "जंगलराज" लौटने का आरोप लगाया, याद दिलाया कि 2005 से पहले लालू-राबड़ी राज में अपराध, भ्रष्टाचार और पलायन चरम पर था। नीतीश ने भी कहा, "बिहार कभी जंगलराज में वापस नहीं लौटेगा।" एनडीए का फोकस महिलाओं पर है—महिला आरक्षण बढ़ाना, 10 हजार रुपये मासिक सहायता, साइकिल योजना का विस्तार और उद्यमिता के लिए लोन। युवाओं के लिए रोजगार मेले, आईआईटी-आईआईएम जैसे संस्थान और बुनियादी ढांचे पर जोर। लेकिन आंकड़े झूठ नहीं बोलते। बिहार का बेरोजगारी दर 2023-24 में 9.9% था, जो 2018-19 के 30.9% से कम है, लेकिन राष्ट्रीय औसत से ऊपर। हर साल 20 लाख युवा श्रमिक बाहर पलायन कर जाते हैं, ज्यादातर गुजरात, दिल्ली और महाराष्ट्र। छठ पूजा पर घर लौटे प्रवासी ट्रेनों में ठूंसकर आए और उनकी शिकायत एक ही है रोजगार नहीं मिला तो घर कैसे संभालें?
दूसरी तरफ, महागठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आक्रामक है। राहुल गांधी 29 अक्टूबर से मुजफ्फरपुर में अभियान शुरू करेंगे। तेजस्वी ने मुजफ्फरपुर रैली में कहा, "गुजरात को बुलेट ट्रेन, बिहार को डेटा? फैक्टरियां गुजरात ले जाओ, बिहार का वोट मांगो?" उनका "माई-बहिन मान योजना" महिलाओं को 2,500 रुपये मासिक देगी। हर परिवार को एक सरकारी नौकरी, पंचायत प्रतिनिधियों की पेंशन दोगुनी, वक्फ एक्ट रद्द और मुस्लिम उपमुख्यमंत्री का संकेत। लेकिन सबसे बड़ा हथियार "बिहार बनाम गुजरात" है। तेजस्वी बोले, "11 साल में गुजरात को क्या मिला, बिहार को क्या? बिहार को गुजरात का 1% भी नहीं।" आंकड़े उनके पक्ष में हैं: गुजरात की प्रति व्यक्ति आय 2.76 लाख रुपये, बिहार की 60 हजार। गुजरात की साक्षरता 82%, बिहार की 70%। गुजरात में उद्योग-निर्यात फल-फूल रहा, बिहार में पलायन। पीके ने इस हमले को और तीखा किया। उन्होंने मोतीहारी में कहा, "गुजरात को बुलेट ट्रेन, बिहार को पैसेंजर ट्रेन। 1 लाख करोड़ का प्रोजेक्ट गुजरात में, बिहार के युवा छठ के लिए सीट के लिए तरसते हैं।" पीके भ्रष्टाचार, पलायन और जंगलराज पर एनडीए को घेर रहे हैं।
यह मुद्दा गहरा होता जा रहा है। पीके को इसका श्रेय जाता है, जिन्होंने 2022 से पादयात्रा में पलायन को बिहार की "सबसे बड़ी समस्या" बताया। लेकिन राजनीतिक हालात एनडीए के खिलाफ हैं। तेजस्वी का "बिहारी बनाम बहरी" का नारा पकड़ रहा है "दो गुजराती (मोदी-शाह) बिहार चला रहे हैं।" सोशल मीडिया पर #BiharVsGujarat ट्रेंड कर रहा है। "गुजरात को गिफ्ट सिटी, बिहार को 4 किलो अनाज।" एनडीए इसे खारिज कर रहा है—अमित शाह ने कहा, "एनडीए विकास और कानून-व्यवस्था का गारंटर है।" लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। बिहार में 3 करोड़ प्रवासी हैं, जो गुजरात जैसे राज्यों में मजदूरी कर परिवार चलाते हैं। छठ पर लौटे युवा कहते हैं, "ट्रेनों में जगह नहीं, वोट तो देंगे बदलाव को।"
सुशासन बनाम जंगलराज की बहस पुरानी है, लेकिन इस बार पलायन ने इसे नया रंग दे दिया। एनडीए दावा करता है कि नीतीश ने अपराध दर 80% कम की, सड़कें दोगुनी कीं और 2 करोड़ को मुफ्त बिजली दी। लेकिन विपक्ष कहता है, "सुशासन का मतलब पलायन रोकना नहीं?" तेजस्वी ने वादा किया, "20 महीने में 20 साल का काम करेंगे।" महागठबंधन का घोषणापत्र "तेजस्वी प्रण पत्र" आज रिलीज कर दिया है, जिसमे इंडिया गठबंधन की सरकार बनने के 20 दिन के भीतर हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का अधिनियम लाने का वादा किया गया है। महिलाओं को 1 दिसंबर से ₹2,500 प्रतिमाह की आर्थिक सहायता दी जाएगी। सभी संविदा और आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को स्थायी किया जाएगा। जीविका दीदियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और ₹30,000 वेतन दिया जाएगा। राज्य में OPS (Old Pension Scheme) को फिर से लागू करने का वादा किया गया है। हर परिवार को 200 यूनिट तक बिजली मुफ़्त दी जाएगी। वृद्धजन, विधवा और दिव्यांगों के लिए क्रमशः ₹1,500 और ₹3,000 मासिक पेंशन का प्रावधान होगा। प्रत्येक अनुमंडल में महिला कॉलेज और 136 प्रखंडों में नए डिग्री कॉलेज खोलने की घोषणा की गई है। सभी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी दी जाएगी और मंडियों को फिर से सक्रिय किया जाएगा। हर व्यक्ति को ₹25 लाख तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा देने की बात कही गई है। मनरेगा मज़दूरी ₹255 से बढ़ाकर ₹300 करने और काम के दिनों को 100 से बढ़ाकर 200 करने की घोषणा। अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने का दावा किया गया है। एनडीए ने अभी घोषणापत्र नहीं जारी किया, लेकिन 20 से ज्यादा वादे कर चुके है। महिलाओं के लिए उद्यम लोन, युवाओं के लिए 10 लाख नौकरियां।
चुनावी आरोप-प्रत्यारोप निचले स्तर पर हैं। पीके ने तेजस्वी के वादों को "लूट-हत्या का रास्ता" कहा, तो एनडीए ने आरजेडी को "लैंड-फॉर-जॉब्स" घोटाले का दोषी ठहराया। लेकिन मतदाता अब मुद्दों पर हैं। बेरोजगारी-पलायन को टॉप इश्यू है। ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) और युवा वोटर निर्णायक होंगे। एनडीए को ऊपरी जातियों का समर्थन है, लेकिन ओबीसी में सेंध लग रही है। जन सुराज त्रिकोणीय मुकाबला बना रही है। 14 नवंबर को रिजल्ट आएंगे। क्या बिहार गुजरात जैसा बनेगा, या जंगलराज लौटेगा? सवाल बिहारियों का है। पलायन रुके, रोजगार आए—यही असली सुशासन होगा। तेजस्वी का मुद्दा तेजी पकड़ रहा है, लेकिन नीतीश का अनुभव भारी पड़ सकता है।
बिहार की सियासत हमेशा से ही ध्रुवीकरण पर टिकी रही है जाति, धर्म या क्षेत्रवाद। लेकिन इस बार, 6 और 11 नवंबर को होने वाले मतदान से ठीक दो हफ्ते पहले, मुद्दा विकास बनाम उपेक्षा का हो गया है। एनडीए की रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और अन्य नेता सुशासन की दुहाई दे रहे हैं। मोदी ने समस्तीपुर और बेगूसराय की रैलियों में कहा कि एनडीए ने गुजरात, यूपी और मध्य प्रदेश में रिकॉर्ड तोड़े हैं, और बिहार में भी नीतीश के नेतृत्व में ऐसा ही होगा। उन्होंने महागठबंधन पर "जंगलराज" लौटने का आरोप लगाया, याद दिलाया कि 2005 से पहले लालू-राबड़ी राज में अपराध, भ्रष्टाचार और पलायन चरम पर था। नीतीश ने भी कहा, "बिहार कभी जंगलराज में वापस नहीं लौटेगा।" एनडीए का फोकस महिलाओं पर है—महिला आरक्षण बढ़ाना, 10 हजार रुपये मासिक सहायता, साइकिल योजना का विस्तार और उद्यमिता के लिए लोन। युवाओं के लिए रोजगार मेले, आईआईटी-आईआईएम जैसे संस्थान और बुनियादी ढांचे पर जोर। लेकिन आंकड़े झूठ नहीं बोलते। बिहार का बेरोजगारी दर 2023-24 में 9.9% था, जो 2018-19 के 30.9% से कम है, लेकिन राष्ट्रीय औसत से ऊपर। हर साल 20 लाख युवा श्रमिक बाहर पलायन कर जाते हैं, ज्यादातर गुजरात, दिल्ली और महाराष्ट्र। छठ पूजा पर घर लौटे प्रवासी ट्रेनों में ठूंसकर आए और उनकी शिकायत एक ही है रोजगार नहीं मिला तो घर कैसे संभालें?
दूसरी तरफ, महागठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आक्रामक है। राहुल गांधी 29 अक्टूबर से मुजफ्फरपुर में अभियान शुरू करेंगे। तेजस्वी ने मुजफ्फरपुर रैली में कहा, "गुजरात को बुलेट ट्रेन, बिहार को डेटा? फैक्टरियां गुजरात ले जाओ, बिहार का वोट मांगो?" उनका "माई-बहिन मान योजना" महिलाओं को 2,500 रुपये मासिक देगी। हर परिवार को एक सरकारी नौकरी, पंचायत प्रतिनिधियों की पेंशन दोगुनी, वक्फ एक्ट रद्द और मुस्लिम उपमुख्यमंत्री का संकेत। लेकिन सबसे बड़ा हथियार "बिहार बनाम गुजरात" है। तेजस्वी बोले, "11 साल में गुजरात को क्या मिला, बिहार को क्या? बिहार को गुजरात का 1% भी नहीं।" आंकड़े उनके पक्ष में हैं: गुजरात की प्रति व्यक्ति आय 2.76 लाख रुपये, बिहार की 60 हजार। गुजरात की साक्षरता 82%, बिहार की 70%। गुजरात में उद्योग-निर्यात फल-फूल रहा, बिहार में पलायन। पीके ने इस हमले को और तीखा किया। उन्होंने मोतीहारी में कहा, "गुजरात को बुलेट ट्रेन, बिहार को पैसेंजर ट्रेन। 1 लाख करोड़ का प्रोजेक्ट गुजरात में, बिहार के युवा छठ के लिए सीट के लिए तरसते हैं।" पीके भ्रष्टाचार, पलायन और जंगलराज पर एनडीए को घेर रहे हैं।
यह मुद्दा गहरा होता जा रहा है। पीके को इसका श्रेय जाता है, जिन्होंने 2022 से पादयात्रा में पलायन को बिहार की "सबसे बड़ी समस्या" बताया। लेकिन राजनीतिक हालात एनडीए के खिलाफ हैं। तेजस्वी का "बिहारी बनाम बहरी" का नारा पकड़ रहा है "दो गुजराती (मोदी-शाह) बिहार चला रहे हैं।" सोशल मीडिया पर #BiharVsGujarat ट्रेंड कर रहा है। "गुजरात को गिफ्ट सिटी, बिहार को 4 किलो अनाज।" एनडीए इसे खारिज कर रहा है—अमित शाह ने कहा, "एनडीए विकास और कानून-व्यवस्था का गारंटर है।" लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। बिहार में 3 करोड़ प्रवासी हैं, जो गुजरात जैसे राज्यों में मजदूरी कर परिवार चलाते हैं। छठ पर लौटे युवा कहते हैं, "ट्रेनों में जगह नहीं, वोट तो देंगे बदलाव को।"
सुशासन बनाम जंगलराज की बहस पुरानी है, लेकिन इस बार पलायन ने इसे नया रंग दे दिया। एनडीए दावा करता है कि नीतीश ने अपराध दर 80% कम की, सड़कें दोगुनी कीं और 2 करोड़ को मुफ्त बिजली दी। लेकिन विपक्ष कहता है, "सुशासन का मतलब पलायन रोकना नहीं?" तेजस्वी ने वादा किया, "20 महीने में 20 साल का काम करेंगे।" महागठबंधन का घोषणापत्र "तेजस्वी प्रण पत्र" आज रिलीज कर दिया है, जिसमे इंडिया गठबंधन की सरकार बनने के 20 दिन के भीतर हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का अधिनियम लाने का वादा किया गया है। महिलाओं को 1 दिसंबर से ₹2,500 प्रतिमाह की आर्थिक सहायता दी जाएगी। सभी संविदा और आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को स्थायी किया जाएगा। जीविका दीदियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और ₹30,000 वेतन दिया जाएगा। राज्य में OPS (Old Pension Scheme) को फिर से लागू करने का वादा किया गया है। हर परिवार को 200 यूनिट तक बिजली मुफ़्त दी जाएगी। वृद्धजन, विधवा और दिव्यांगों के लिए क्रमशः ₹1,500 और ₹3,000 मासिक पेंशन का प्रावधान होगा। प्रत्येक अनुमंडल में महिला कॉलेज और 136 प्रखंडों में नए डिग्री कॉलेज खोलने की घोषणा की गई है। सभी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी दी जाएगी और मंडियों को फिर से सक्रिय किया जाएगा। हर व्यक्ति को ₹25 लाख तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा देने की बात कही गई है। मनरेगा मज़दूरी ₹255 से बढ़ाकर ₹300 करने और काम के दिनों को 100 से बढ़ाकर 200 करने की घोषणा। अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने का दावा किया गया है। एनडीए ने अभी घोषणापत्र नहीं जारी किया, लेकिन 20 से ज्यादा वादे कर चुके है। महिलाओं के लिए उद्यम लोन, युवाओं के लिए 10 लाख नौकरियां।
चुनावी आरोप-प्रत्यारोप निचले स्तर पर हैं। पीके ने तेजस्वी के वादों को "लूट-हत्या का रास्ता" कहा, तो एनडीए ने आरजेडी को "लैंड-फॉर-जॉब्स" घोटाले का दोषी ठहराया। लेकिन मतदाता अब मुद्दों पर हैं। बेरोजगारी-पलायन को टॉप इश्यू है। ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) और युवा वोटर निर्णायक होंगे। एनडीए को ऊपरी जातियों का समर्थन है, लेकिन ओबीसी में सेंध लग रही है। जन सुराज त्रिकोणीय मुकाबला बना रही है। 14 नवंबर को रिजल्ट आएंगे। क्या बिहार गुजरात जैसा बनेगा, या जंगलराज लौटेगा? सवाल बिहारियों का है। पलायन रुके, रोजगार आए—यही असली सुशासन होगा। तेजस्वी का मुद्दा तेजी पकड़ रहा है, लेकिन नीतीश का अनुभव भारी पड़ सकता है।
28th October, 2025
