
राजेन्द्र द्विवेदी- लोकतंत्र में न्यायपालिका की निष्पक्ष भूमिका अहम होती है। ब्राज़ील इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है जहाँ पर पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो चुनाव हारने के बाद साजिशन कुर्सी न छोड़ने की रणनीति बनाई थी। जिसमें चुनाव हारने के बाद कैसे और किस तरीके से लोकतांत्रिक व्यवस्था को हिंसक तरीके से ख़त्म करने की कोशिश, सोशल मीडिया के माध्यम से फर्जी जानकारी देकर जनता को भ्रमित करने का प्रयास, सैन्य तख्तापलट की साजिश, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान और सरकारी भवनों पर हमला यह सब करने के लिए हथियारबंद आपराधिक संगठन का गठन करके उसका नेतृत्व किया था। अगर जेयर बोल्सोनारो की यह रणनीति सफल हो जाती तो 1985 में लोकतंत्र बना ब्राज़ील फिर तानाशाही के आगोश में चला जाता। ब्राज़ील का लोकतांत्रिक इतिहास काफ़ी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। इसे दो मुख्य चरणों में समझा जा सकता है। लोकतंत्र की पहली शुरुआत 1889 से शुरू हुई और 1891 में पहला लोकतांत्रिक संविधान बना जिसमें राष्ट्रपति चुने जाते थे। यह लोकतंत्र तानाशाही के माध्यम से 7 दशकों तक चला। जिसमें जनता का काफ़ी शोषण होता रहा। 1964 में सेना ने पूर्ण रूप से लोकतंत्र पर कब्ज़ा कर लिया और 21 वर्षों तक सैन्य तानाशाही चलती रही।
दुनिया में बदले समीकरण और युवाओं की चेतना से जनविद्रोह हुआ। 1985 में सेना ने सत्ता छोड़ी और दूसरी बार मज़बूत लोकतंत्र बना। इस लोकतंत्र को चलाने के लिए नए संविधान की रचना हुई और जिसमें न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, निष्पक्ष चुनाव जैसे तमाम संवैधानिक संस्थाओं को अधिकार और महत्व दिया गया। इसके बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई। तमाम उतार-चढ़ाव के बीच ब्राज़ील में लोकतंत्र चलता रहा। चुनाव होते रहे। इसका इतिहास विस्तृत विश्लेषण कर सकते हैं लेकिन वर्तमान में न्यायपालिका की अहम भूमिका ने लोकतंत्र को कैसे बचाया उस पर वापस आते हैं।
जेयर बोल्सोनारो ने 2018 के आम चुनाव में फर्नांडो हद्दाद को हराकर जीत हासिल की थी। इनका कार्यकाल 1 जनवरी 2019 से शुरू हुआ और 1 जनवरी 2023 को समाप्त हुआ। 2022 के आम चुनाव में ये हार गए लेकिन इसके बाद सत्ता छोड़ने से इंकार कर दिया। हार के बावजूद समर्थकों के बीच यह धारणा फैलाने का प्रयास किया कि लोकतंत्र हाईजैक हो गया है। उन्होंने सेना और पुलिस से कहा कि हस्तक्षेप करें। व्यापारिक मित्रों से मिलकर एक रणनीति बनाई जिसके माध्यम से हथियारबंद आपराधिक संगठन को आगे करके 8 जनवरी 2023 को राजधानी ब्रासीलिया में हज़ारों की संख्या में समर्थक पहुंचे। ब्राज़ील के इतिहास में यह लोकतंत्र के लिए काला दिन कहा जा सकता है। प्रदर्शनकारियों ने 8 जनवरी 2023 को संसद भवन, राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। खिड़कियाँ तोड़ीं, फ़र्नीचर जलाया और यह हमला अमेरिका के 6 जनवरी 2021 के कैपिटल दंगे जैसा था, जहाँ पर ट्रम्प समर्थकों ने संसद पर धावा बोला था। लेकिन उनकी यह रणनीति असफल रही। लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा, जो चुनाव जीते थे, उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और पूरे घटनाक्रम पर जेयर बोल्सोनारो के खिलाफ सैन्य तख्तापलट की साजिश रचने का प्रयास, हथियारबंद आपराधिक संगठन का नेतृत्व करना, लोकतांत्रिक व्यवस्था को हिंसक तरीक़े से खत्म करने की कोशिश, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान और सरकारी भवनों पर हमला, फर्जी जानकारी फैलाने के आरोपों की जांच शुरू हुई जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ ने 11 सितम्बर 2025 को 27 साल 3 महीने जेल की सज़ा सुनाई और इसे लोकतांत्रिक संस्थाओं को मज़बूत करने के निर्णय के रूप में दुनिया देख रही है।
इस बीच वह नज़रबंद भी रहे। हालाँकि अमेरिका और यूरोपीय संघ सभी ने इसका स्वागत किया लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प इससे सहमत नहीं हैं। उन्होंने लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा का राजनीतिक बदला बताते हुए केस को ख़त्म करने की मांग की है। ब्राज़ील और ट्रम्प के बीच टैरिफ वार का कारण भी यही माना जाता है।
यह निर्णय वर्तमान हालात में भारत के लिए काफ़ी प्रासंगिक माना जा सकता है। ब्राजील में चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से होते हैं। 2018 में जब जेयर बोल्सोनारो कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाकर राष्ट्रपति बने थे, उनकी सियासत राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी और धार्मिक कट्टरपन से जुड़ी मानी जाती है। न्यायपालिका के इस निर्णय से ब्राज़ील में लोकतंत्र को मज़बूत किया गया है और यह साबित हो गया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेता भी अगर ग़लत तरीक़े से उद्योगपति मित्रों और आपराधिक युवाओं का संगठन बनाकर जनता को भ्रमित करके सत्ता पर कब्ज़ा करना चाहें, तो न्यायपालिका लोकतंत्र को बचाने में अहम भूमिका निभाएगी। भारत में भी इलेक्ट्रॉनिक मशीन और संवैधानिक संस्थानों की निष्पक्षता पर हमला करके लोकतंत्र को कमजोर करने की मुहिम चलाई जा रही है। इन सभी पर रोक लगाने के लिए न्यायालय की अहम भूमिका होगी। देश में चाहे जितने ताक़तवर नेता हों लेकिन भारत की न्यायपालिका में भी प्रधानमंत्री पर फैसला देने वाले बहुत से न्यायाधीश जगमोहन जैसे आज भी न्यायालयों में बैठे हुए हैं, जिन पर 140 करोड़ जनता का भरोसा है और कोई भी सत्ता या संस्थाएँ लोकतंत्र को कमजोर नहीं कर पाएंगी।
दुनिया में बदले समीकरण और युवाओं की चेतना से जनविद्रोह हुआ। 1985 में सेना ने सत्ता छोड़ी और दूसरी बार मज़बूत लोकतंत्र बना। इस लोकतंत्र को चलाने के लिए नए संविधान की रचना हुई और जिसमें न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, निष्पक्ष चुनाव जैसे तमाम संवैधानिक संस्थाओं को अधिकार और महत्व दिया गया। इसके बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई। तमाम उतार-चढ़ाव के बीच ब्राज़ील में लोकतंत्र चलता रहा। चुनाव होते रहे। इसका इतिहास विस्तृत विश्लेषण कर सकते हैं लेकिन वर्तमान में न्यायपालिका की अहम भूमिका ने लोकतंत्र को कैसे बचाया उस पर वापस आते हैं।
जेयर बोल्सोनारो ने 2018 के आम चुनाव में फर्नांडो हद्दाद को हराकर जीत हासिल की थी। इनका कार्यकाल 1 जनवरी 2019 से शुरू हुआ और 1 जनवरी 2023 को समाप्त हुआ। 2022 के आम चुनाव में ये हार गए लेकिन इसके बाद सत्ता छोड़ने से इंकार कर दिया। हार के बावजूद समर्थकों के बीच यह धारणा फैलाने का प्रयास किया कि लोकतंत्र हाईजैक हो गया है। उन्होंने सेना और पुलिस से कहा कि हस्तक्षेप करें। व्यापारिक मित्रों से मिलकर एक रणनीति बनाई जिसके माध्यम से हथियारबंद आपराधिक संगठन को आगे करके 8 जनवरी 2023 को राजधानी ब्रासीलिया में हज़ारों की संख्या में समर्थक पहुंचे। ब्राज़ील के इतिहास में यह लोकतंत्र के लिए काला दिन कहा जा सकता है। प्रदर्शनकारियों ने 8 जनवरी 2023 को संसद भवन, राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। खिड़कियाँ तोड़ीं, फ़र्नीचर जलाया और यह हमला अमेरिका के 6 जनवरी 2021 के कैपिटल दंगे जैसा था, जहाँ पर ट्रम्प समर्थकों ने संसद पर धावा बोला था। लेकिन उनकी यह रणनीति असफल रही। लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा, जो चुनाव जीते थे, उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और पूरे घटनाक्रम पर जेयर बोल्सोनारो के खिलाफ सैन्य तख्तापलट की साजिश रचने का प्रयास, हथियारबंद आपराधिक संगठन का नेतृत्व करना, लोकतांत्रिक व्यवस्था को हिंसक तरीक़े से खत्म करने की कोशिश, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान और सरकारी भवनों पर हमला, फर्जी जानकारी फैलाने के आरोपों की जांच शुरू हुई जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ ने 11 सितम्बर 2025 को 27 साल 3 महीने जेल की सज़ा सुनाई और इसे लोकतांत्रिक संस्थाओं को मज़बूत करने के निर्णय के रूप में दुनिया देख रही है।
इस बीच वह नज़रबंद भी रहे। हालाँकि अमेरिका और यूरोपीय संघ सभी ने इसका स्वागत किया लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प इससे सहमत नहीं हैं। उन्होंने लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा का राजनीतिक बदला बताते हुए केस को ख़त्म करने की मांग की है। ब्राज़ील और ट्रम्प के बीच टैरिफ वार का कारण भी यही माना जाता है।
यह निर्णय वर्तमान हालात में भारत के लिए काफ़ी प्रासंगिक माना जा सकता है। ब्राजील में चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से होते हैं। 2018 में जब जेयर बोल्सोनारो कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाकर राष्ट्रपति बने थे, उनकी सियासत राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी और धार्मिक कट्टरपन से जुड़ी मानी जाती है। न्यायपालिका के इस निर्णय से ब्राज़ील में लोकतंत्र को मज़बूत किया गया है और यह साबित हो गया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेता भी अगर ग़लत तरीक़े से उद्योगपति मित्रों और आपराधिक युवाओं का संगठन बनाकर जनता को भ्रमित करके सत्ता पर कब्ज़ा करना चाहें, तो न्यायपालिका लोकतंत्र को बचाने में अहम भूमिका निभाएगी। भारत में भी इलेक्ट्रॉनिक मशीन और संवैधानिक संस्थानों की निष्पक्षता पर हमला करके लोकतंत्र को कमजोर करने की मुहिम चलाई जा रही है। इन सभी पर रोक लगाने के लिए न्यायालय की अहम भूमिका होगी। देश में चाहे जितने ताक़तवर नेता हों लेकिन भारत की न्यायपालिका में भी प्रधानमंत्री पर फैसला देने वाले बहुत से न्यायाधीश जगमोहन जैसे आज भी न्यायालयों में बैठे हुए हैं, जिन पर 140 करोड़ जनता का भरोसा है और कोई भी सत्ता या संस्थाएँ लोकतंत्र को कमजोर नहीं कर पाएंगी।
15th September, 2025