
"न्यायपालिका का व्यवहार 'सुपर संसद' जैसा" – उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर सीधा और तीखा हमला करते हुए कहा कि न्यायपालिका का व्यवहार अब 'सुपर संसद' जैसा हो गया है, जबकि उसकी कोई जवाबदेही नहीं है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा संविधान की मनमानी व्याख्या करने और राष्ट्रपति की शक्तियों में हस्तक्षेप को अनुचित ठहराया।
उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 को लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ एक "परमाणु मिसाइल" बताया।
📝 अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी मामले में "पूर्ण न्याय" सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक कोई भी आदेश या डिक्री पारित कर सकता है, भले ही वह वर्तमान कानूनों से हटकर ही क्यों न हो।
यह बयान उस समय आया जब उच्चतम न्यायालय ने संसदीय वक्फ संशोधन कानून पर टिप्पणी की थी। इस कानून के खिलाफ 72 से अधिक याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गई थीं, जिन पर 16 और 17 अप्रैल को सुनवाई हुई थी। अदालत ने इस कानून को लेकर कई सवाल उठाए और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जिसकी अगली सुनवाई 5 मई को होगी।
धनखड़ ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर आपत्ति जताते हुए कहा कि न्यायपालिका खुद के लिए मापदंड तय करती है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस वर्मा के आवास से बड़ी मात्रा में नोट बरामद होने के बावजूद कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई।
उन्होंने सवाल किया, "क्या न्यायाधीश खुद को कानून से ऊपर समझते हैं?"
उनका आरोप था कि नोट मिलने के एक सप्ताह तक इस मामले को दबाकर रखा गया, और जब जले हुए नोटों की तस्वीरें और वीडियो मीडिया में आईं, तब पारदर्शिता दिखाने के लिए एक तीन-सदस्यीय समिति गठित कर दी गई।
धनखड़ ने यह भी पूछा, "क्या जांच का अधिकार सिर्फ न्यायपालिका के पास है? यदि हाँ, तो वह खुद अपने ऊपर कार्रवाई क्यों नहीं करती, क्योंकि न्यायाधीशों ने खुद को एक तरह से 'संरक्षित' कर लिया है।"
उनके इस बयान की तीखी आलोचना कांग्रेस और अन्य गैर-भाजपा दलों द्वारा की जा रही है। विपक्ष का आरोप है कि उपराष्ट्रपति संसद में विपक्ष को बोलने नहीं देते और संविधान में न्यायपालिका को दिए गए अधिकारों पर सवाल उठा रहे हैं।
18th April, 2025