
यूरीड मीडिया- जाने-माने पत्रकार वेद प्रताप वैदिक का निधन हो गया है। वह 78 साल के थे। जानकारी के अनुसार, आज सुबह अपने घर में बाथरूम में फिसलने से वह चोटिल हो गए थे। जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया तो डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
देश के जाने-माने पत्रकार वेद प्रताप वैदिक के निधन से मीडिया जगत में शोक की लहर है। ऐसी जानकारी मिली है कि आज सुबह नौ बजे वो बाथरूम में फिसल गए थे। जिसके बाद उन्हें गंभीर चोट आ गई। आनन-फानन में अस्पताल ले जाया लेकिन, तब तक देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
1944 को इंदौर में जन्मे वेद प्रताप वैदिक ने पत्रकारिता में अपना करियर 1958 में शुरू किया था। वे जानी-मानी मीडिया संस्थाओं के लिए काम भी कर चुके थे। वे देश के बड़े पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक माने जाते थे। जेएनयू से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी हासिल करने के साथ ही वह कई भारतीय और विदेशी शोध-संस्थानों और विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं।
वेद प्रताप वैदिक को हिन्दी पत्रकारिता के चेहरे के रूप में भी देखा जाता है। उन्होंने साल 1957 में महज 13 साल की उम्र में हिन्दी के लिए सत्याग्रह किया और जेल गए। उन्होंने पहला अंतरराष्ट्रीय शोध हिन्दी में लिखा था। जिसे जेएनयू ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया और उन्हें विवि से बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह बात 1966-67 की है। उस वक्त भारतीय संसद में इस पर काफी हंगामा भी हुआ था।
देश के जाने-माने पत्रकार वेद प्रताप वैदिक के निधन से मीडिया जगत में शोक की लहर है। ऐसी जानकारी मिली है कि आज सुबह नौ बजे वो बाथरूम में फिसल गए थे। जिसके बाद उन्हें गंभीर चोट आ गई। आनन-फानन में अस्पताल ले जाया लेकिन, तब तक देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
1944 को इंदौर में जन्मे वेद प्रताप वैदिक ने पत्रकारिता में अपना करियर 1958 में शुरू किया था। वे जानी-मानी मीडिया संस्थाओं के लिए काम भी कर चुके थे। वे देश के बड़े पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक माने जाते थे। जेएनयू से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी हासिल करने के साथ ही वह कई भारतीय और विदेशी शोध-संस्थानों और विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं।
वेद प्रताप वैदिक को हिन्दी पत्रकारिता के चेहरे के रूप में भी देखा जाता है। उन्होंने साल 1957 में महज 13 साल की उम्र में हिन्दी के लिए सत्याग्रह किया और जेल गए। उन्होंने पहला अंतरराष्ट्रीय शोध हिन्दी में लिखा था। जिसे जेएनयू ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया और उन्हें विवि से बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह बात 1966-67 की है। उस वक्त भारतीय संसद में इस पर काफी हंगामा भी हुआ था।
14th March, 2023