
डॉक्टर अनिल चतुर्वेदी , यूरीड मीडिया- भृगुनन्दन परशुराम ने पृथ्वी पर जहाँ कहीं भी अन्याय, अत्याचार एवं जनता के अधिकारों का हनन होते देख उसका अंत करने के लिए अपने हथियारों का प्रयोग किया। महाभारत में जब भीष्म ने काशी नरेश की पुत्रियों का अपहरण करके अपने राज्य ले आये और स्त्रियों के मान सम्मान को खंडित किया तब परशुराम ने भीष्म को दण्डित करने के उद्देश्य एवं स्त्री धर्म की रक्षा के लिए कुरुक्षेत्र में उनसे भीषण युद्ध किया।
यह कहानी स्वयं भीष्म पितामह ने दुर्योधन के ये पूछने पर कि जब शिखंडी आपके सामने रणभूमि में आएगा तो आप उसका वध क्यों नहीं करेंगे ? इस प्रश्न का जवाब देते हुए भीष्म ने कहा कि मैंने माता सत्यवती की सलाह से विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर का राजा बनाया और उसके लिए मैंने काशी राज्य की पुत्री अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का हरण किया। स्वयंवर में आये हुए सभी राजाओं को मैंने हरा दिया। तीनों पुत्रियों को लेकर मैं जब हस्तिनापुर आया तो अम्बा ने मुझसे कहा, कि मैंने मन ही मन राजा शाल्व को अपना वर मान चुकी हूँ। इसलिए आप अपने राज्य धर्म को छोड़कर मुझे अपने घर में क्यों रखना चाहते हैं ? वैसे आप जैसा उचित समझे वैसा करें। तब मैंने अम्बा को राजा शाल्व के घर भेज दिया, परन्तु राजा शाल्व ने मुझे स्वीकार करने से यह कह कर मना कर दिया कि तुम्हारा अब सम्बन्ध दूसरे पुरुष से हो चुका है। इसलिए मैं तुम्हे स्त्री का दर्जा नहीं दे सकता। राजा शाल्व के द्वारा अपने तिरस्कार को महसूस कर अम्बा ने सोचा कि पृथ्वी पर मेरे सामान दुखी कोई भी युवती नहीं होगी। इस विषम परिस्थिति में मैं अपने पिता के घर नहीं जाउंगी बल्कि मैं किसी मुनि के आश्रम में रह लुंगी। एक बार जब वह आश्रम में बैठी थी, तो उसके नाना राजर्षि होत्रवाहन आये। अम्बा की बातें सुनकर होत्रवाहन को बड़ा दुःख हुआ। तब उन्होंने कहा कि मेरे कहने से तू भगवान् परशुराम के पास जा। वह तेरे दुःख और संताप को अवश्य दूर कर देंगे। वह मेरे मित्र भी है जब यह वार्ता चल रही थी तभी परशुराम जी के प्रिय सेवक अकृतव्रण आ गए उन्होंने कहा कि परशुराम जी अभी यही आ रहे हैं।
कुछ समय बाद वहां परशुराम जी पधारे और बोले बेटी ! मुझ से क्या काम है बताओ! इस पर अम्बा ने अपनी कहानी सुनाई। तब भगवान परशुराम ने कहा, कि मैं तुझे भीष्म के पास भेज दूंगा। वह जैसा मैं कहूंगा वैसा ही करेगा। यदि उसने मेरी बात नहीं मानी तो मैं उसे भस्म कर दूंगा। अम्बा ने कहा जैसा आप उचित समझे वैसा करे। तब परशुराम जी भीष्म पितामह के पास गए, और कहा कि यदि तुम्हे स्वयं विवाह करने की इच्छा नहीं थी तो तुम इस काशी राज्य की पुत्री को क्यों हर ले गए और फिर इसका त्याग क्यों कर दिया ? देखो इस अबला नारी पर स्त्री धर्म से भ्रष्ट होने का लांक्षण लग रहा है। न तो राजा शाल्व और न ही तुमने इसे स्वीकार किया। अतः अब अग्नि को साक्षी मानकर तुम ही इसे ग्रहण करो। भीष्म ने कहा, मैं इस स्त्री के लिए अपने क्षत्रीय धर्म से विचलित नहीं हो सकता है। मैंने आजीवन अविवाहित रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की है। यह सुनकर परशुराम जी क्रोधित हो गए और कहा मैं तुम्हारे मंत्रियों सहित तुम्हे नष्ट कर दूंगा। तब मैंने उनके चरणों पर अपना सर रखकर पूछा कि हे भगवन! आप मुझसे युद्ध करना क्यों चाह रहे है इसका कारण क्या है ? बचपन में मुझे आप ने ही चार प्रकार की धनुर्विद्या सिखाई थी। मैं तो आप का शिष्य हूँ और आप मेरे गुरु हैं।
मैं युद्ध में गुरु का विशेषतः ब्राह्मण और उसमे भी तपोवृद्ध ब्राह्मण का वध नहीं कर सकता। किन्तु धर्म शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि यदि क्षत्रीय के सामने कोई भी ब्राह्मण योद्धा के रूप में हथियार उठा कर युद्धक्षेत्र में उसके सामने खड़ा हो और युद्ध के दौरान उनका वध कर डालता है तो उसे ब्रह्महत्या का पाप नहीं लगता। तब परशुराम जी ने हंस कर कहा तुम मेरे साथ युद्ध करना चाहते हो, यह बड़ी प्रसन्नता की बात है। अच्छा, लो मैं कुरुक्षेत्र को चलता हूँ, तुम भी वही आ जाना। जब माता गंगा जी को पता चला, तो वे परशुराम जी के पास गयी और उनसे क्षमा मांगने लगी। मां गंगा ने कहा कि आप अपने शिष्य भीष्म के साथ युद्ध न करें। तब परशुराम जी ने कहा तुम अपने पुत्र को ही रोको। क्योकि उसने ही मुझे युद्ध के लिए ललकारा है। तदोपरांत भीष्म ने रणभूमि में खड़े परशुराम जी से कहा कि आप पृथ्वी कर खड़े हैं और मैं रथ पर चढ़ कर आया हूँ। यदि आप मेरे साथ युद्ध करना चाहते है तो रथ पर चढ़ जाइये और कवच धारण कर लीजिये। परशुराम जी ने हस कर कहा हे भीष्म ! पृथ्वी ही मेरा रथ है, वेद घोड़े है। वायु सारथी है। वेद माता गायत्री, सावित्री एवं सरस्वती कवच हैं। उनके द्वारा मैं अपने शरीर को सुरक्षित करके ही युद्ध करूँगा। इस तरह से भीष्म और परशुराम के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया। भीष्म जानते थे कि परशुराम जी बड़े ही पराक्रमी हैं। उन्हें युद्ध में जीता नहीं जा सकता। अगर देवता लोग मेरी जीत की थोड़ी भी सम्भावना जानते हो तो आकर मेरी मदद करे। तब देवताओं ने कहा हम तुम्हारी जीवन की रक्षा करेंगे किन्तु तुम इस युद्ध में किसी प्रकार नहीं जीत सकते। देखो यह प्रस्वाप नाम का अस्त्र है यह स्वयं देवता प्रजापति हैं। इसे परशुराम जी अथवा पृथ्वी पर कोई दूसरा मनुष्य नहीं जानता। इस अस्त्र की पीड़ा से वे अचेत होकर सो जायेंगे और उनकी मृत्यु भी नहीं होगी। जब युद्ध क्षेत्र में भीष्म ने प्रस्वाप अस्त्र को उठाया तभी परशुराम जी के पिता जमदग्नि ऋषि युद्ध क्षेत्र में आये और परशुराम जी से कहा कि युद्ध करना तो क्षत्रियों का कुल धर्म है। ब्राह्मणों का परमधर्म तो स्वाध्याय और व्रत ही है। भीष्म के साथ इतना युद्ध करना बहुत है अब तो रणभूमि से हट जाओ। परशुराम जी ने कहा कि मैं युद्ध से पीछे पैर नहीं रख सकता मैंने किसी भी संग्राम में पीठ नहीं दिखाई है। मैं किसी भी हालत में अपने सनातन धर्म का त्याग नहीं कर सकता। इस संशय की स्थिति में मां गंगा एवं मुनि गणों ने कहा, हे भृगु नंदन! ब्राह्मण का ह्रदय ऐसा विनय शून्य नहीं होना चाहिए। इसलिए अब तुम शांत हो जाओ। अब आप युद्ध करना बंद करे। न तो भीष्म का तुम्हारे हाथ से मारा जाना उचित है न भीष्म को ही तुम्हारा वध करना चाहिये। ऐसा कह कर मुनियों ने परशुराम जी के शस्त्र रखवा दिये। तब मैंने उनके पास जाकर प्रणाम किया। उन्होने मुझ आशीर्वाद देते हुए कहा कि इस लोक में तुम्हारे समान कोई दूसरा क्षत्रीय नहीं है। तुमने मुझे बहुत प्रसन्न किया।
इस युद्ध के बाद अम्बा के पास और कोई रास्ता नहीं बचा तो अम्बा ने भीष्म को मारने के लिए कठोर तपस्या की। तब महादेव जी प्रसन्न हुये और अम्बा से कहा कि "तू भीष्म का नाश कर सकेगी" ।अम्बा ने कहा कि मैं स्त्री हूँ और युद्ध में भीष्म को कैसे जीत सकूँगी ? तब भगवान शंकर बोले कि मेरी बात असत्य नहीं हो सकती है तू अवश्य ही भीष्म वध करेगी और पुरुषत्व को प्राप्त करेगी। स्त्री से पुरुष का रूप लेने पर भी तुम्हें सभी बातें याद रहेगी। तुम ध्रुपद राजा के यहाँ कन्या के रूप में जन्म लोगी और समय बीतने के बाद पुरुष हो जाओगी और इस तरह से राजा ध्रुपद के यहाँ शिखंडी के रूप में अम्बा का जन्म हुआ और वह महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह के वध का कारण बनी।
यह कहानी स्वयं भीष्म पितामह ने दुर्योधन के ये पूछने पर कि जब शिखंडी आपके सामने रणभूमि में आएगा तो आप उसका वध क्यों नहीं करेंगे ? इस प्रश्न का जवाब देते हुए भीष्म ने कहा कि मैंने माता सत्यवती की सलाह से विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर का राजा बनाया और उसके लिए मैंने काशी राज्य की पुत्री अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का हरण किया। स्वयंवर में आये हुए सभी राजाओं को मैंने हरा दिया। तीनों पुत्रियों को लेकर मैं जब हस्तिनापुर आया तो अम्बा ने मुझसे कहा, कि मैंने मन ही मन राजा शाल्व को अपना वर मान चुकी हूँ। इसलिए आप अपने राज्य धर्म को छोड़कर मुझे अपने घर में क्यों रखना चाहते हैं ? वैसे आप जैसा उचित समझे वैसा करें। तब मैंने अम्बा को राजा शाल्व के घर भेज दिया, परन्तु राजा शाल्व ने मुझे स्वीकार करने से यह कह कर मना कर दिया कि तुम्हारा अब सम्बन्ध दूसरे पुरुष से हो चुका है। इसलिए मैं तुम्हे स्त्री का दर्जा नहीं दे सकता। राजा शाल्व के द्वारा अपने तिरस्कार को महसूस कर अम्बा ने सोचा कि पृथ्वी पर मेरे सामान दुखी कोई भी युवती नहीं होगी। इस विषम परिस्थिति में मैं अपने पिता के घर नहीं जाउंगी बल्कि मैं किसी मुनि के आश्रम में रह लुंगी। एक बार जब वह आश्रम में बैठी थी, तो उसके नाना राजर्षि होत्रवाहन आये। अम्बा की बातें सुनकर होत्रवाहन को बड़ा दुःख हुआ। तब उन्होंने कहा कि मेरे कहने से तू भगवान् परशुराम के पास जा। वह तेरे दुःख और संताप को अवश्य दूर कर देंगे। वह मेरे मित्र भी है जब यह वार्ता चल रही थी तभी परशुराम जी के प्रिय सेवक अकृतव्रण आ गए उन्होंने कहा कि परशुराम जी अभी यही आ रहे हैं।
कुछ समय बाद वहां परशुराम जी पधारे और बोले बेटी ! मुझ से क्या काम है बताओ! इस पर अम्बा ने अपनी कहानी सुनाई। तब भगवान परशुराम ने कहा, कि मैं तुझे भीष्म के पास भेज दूंगा। वह जैसा मैं कहूंगा वैसा ही करेगा। यदि उसने मेरी बात नहीं मानी तो मैं उसे भस्म कर दूंगा। अम्बा ने कहा जैसा आप उचित समझे वैसा करे। तब परशुराम जी भीष्म पितामह के पास गए, और कहा कि यदि तुम्हे स्वयं विवाह करने की इच्छा नहीं थी तो तुम इस काशी राज्य की पुत्री को क्यों हर ले गए और फिर इसका त्याग क्यों कर दिया ? देखो इस अबला नारी पर स्त्री धर्म से भ्रष्ट होने का लांक्षण लग रहा है। न तो राजा शाल्व और न ही तुमने इसे स्वीकार किया। अतः अब अग्नि को साक्षी मानकर तुम ही इसे ग्रहण करो। भीष्म ने कहा, मैं इस स्त्री के लिए अपने क्षत्रीय धर्म से विचलित नहीं हो सकता है। मैंने आजीवन अविवाहित रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की है। यह सुनकर परशुराम जी क्रोधित हो गए और कहा मैं तुम्हारे मंत्रियों सहित तुम्हे नष्ट कर दूंगा। तब मैंने उनके चरणों पर अपना सर रखकर पूछा कि हे भगवन! आप मुझसे युद्ध करना क्यों चाह रहे है इसका कारण क्या है ? बचपन में मुझे आप ने ही चार प्रकार की धनुर्विद्या सिखाई थी। मैं तो आप का शिष्य हूँ और आप मेरे गुरु हैं।
मैं युद्ध में गुरु का विशेषतः ब्राह्मण और उसमे भी तपोवृद्ध ब्राह्मण का वध नहीं कर सकता। किन्तु धर्म शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि यदि क्षत्रीय के सामने कोई भी ब्राह्मण योद्धा के रूप में हथियार उठा कर युद्धक्षेत्र में उसके सामने खड़ा हो और युद्ध के दौरान उनका वध कर डालता है तो उसे ब्रह्महत्या का पाप नहीं लगता। तब परशुराम जी ने हंस कर कहा तुम मेरे साथ युद्ध करना चाहते हो, यह बड़ी प्रसन्नता की बात है। अच्छा, लो मैं कुरुक्षेत्र को चलता हूँ, तुम भी वही आ जाना। जब माता गंगा जी को पता चला, तो वे परशुराम जी के पास गयी और उनसे क्षमा मांगने लगी। मां गंगा ने कहा कि आप अपने शिष्य भीष्म के साथ युद्ध न करें। तब परशुराम जी ने कहा तुम अपने पुत्र को ही रोको। क्योकि उसने ही मुझे युद्ध के लिए ललकारा है। तदोपरांत भीष्म ने रणभूमि में खड़े परशुराम जी से कहा कि आप पृथ्वी कर खड़े हैं और मैं रथ पर चढ़ कर आया हूँ। यदि आप मेरे साथ युद्ध करना चाहते है तो रथ पर चढ़ जाइये और कवच धारण कर लीजिये। परशुराम जी ने हस कर कहा हे भीष्म ! पृथ्वी ही मेरा रथ है, वेद घोड़े है। वायु सारथी है। वेद माता गायत्री, सावित्री एवं सरस्वती कवच हैं। उनके द्वारा मैं अपने शरीर को सुरक्षित करके ही युद्ध करूँगा। इस तरह से भीष्म और परशुराम के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया। भीष्म जानते थे कि परशुराम जी बड़े ही पराक्रमी हैं। उन्हें युद्ध में जीता नहीं जा सकता। अगर देवता लोग मेरी जीत की थोड़ी भी सम्भावना जानते हो तो आकर मेरी मदद करे। तब देवताओं ने कहा हम तुम्हारी जीवन की रक्षा करेंगे किन्तु तुम इस युद्ध में किसी प्रकार नहीं जीत सकते। देखो यह प्रस्वाप नाम का अस्त्र है यह स्वयं देवता प्रजापति हैं। इसे परशुराम जी अथवा पृथ्वी पर कोई दूसरा मनुष्य नहीं जानता। इस अस्त्र की पीड़ा से वे अचेत होकर सो जायेंगे और उनकी मृत्यु भी नहीं होगी। जब युद्ध क्षेत्र में भीष्म ने प्रस्वाप अस्त्र को उठाया तभी परशुराम जी के पिता जमदग्नि ऋषि युद्ध क्षेत्र में आये और परशुराम जी से कहा कि युद्ध करना तो क्षत्रियों का कुल धर्म है। ब्राह्मणों का परमधर्म तो स्वाध्याय और व्रत ही है। भीष्म के साथ इतना युद्ध करना बहुत है अब तो रणभूमि से हट जाओ। परशुराम जी ने कहा कि मैं युद्ध से पीछे पैर नहीं रख सकता मैंने किसी भी संग्राम में पीठ नहीं दिखाई है। मैं किसी भी हालत में अपने सनातन धर्म का त्याग नहीं कर सकता। इस संशय की स्थिति में मां गंगा एवं मुनि गणों ने कहा, हे भृगु नंदन! ब्राह्मण का ह्रदय ऐसा विनय शून्य नहीं होना चाहिए। इसलिए अब तुम शांत हो जाओ। अब आप युद्ध करना बंद करे। न तो भीष्म का तुम्हारे हाथ से मारा जाना उचित है न भीष्म को ही तुम्हारा वध करना चाहिये। ऐसा कह कर मुनियों ने परशुराम जी के शस्त्र रखवा दिये। तब मैंने उनके पास जाकर प्रणाम किया। उन्होने मुझ आशीर्वाद देते हुए कहा कि इस लोक में तुम्हारे समान कोई दूसरा क्षत्रीय नहीं है। तुमने मुझे बहुत प्रसन्न किया।
इस युद्ध के बाद अम्बा के पास और कोई रास्ता नहीं बचा तो अम्बा ने भीष्म को मारने के लिए कठोर तपस्या की। तब महादेव जी प्रसन्न हुये और अम्बा से कहा कि "तू भीष्म का नाश कर सकेगी" ।अम्बा ने कहा कि मैं स्त्री हूँ और युद्ध में भीष्म को कैसे जीत सकूँगी ? तब भगवान शंकर बोले कि मेरी बात असत्य नहीं हो सकती है तू अवश्य ही भीष्म वध करेगी और पुरुषत्व को प्राप्त करेगी। स्त्री से पुरुष का रूप लेने पर भी तुम्हें सभी बातें याद रहेगी। तुम ध्रुपद राजा के यहाँ कन्या के रूप में जन्म लोगी और समय बीतने के बाद पुरुष हो जाओगी और इस तरह से राजा ध्रुपद के यहाँ शिखंडी के रूप में अम्बा का जन्म हुआ और वह महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह के वध का कारण बनी।
12th August, 2020