लखनऊ, राजेन्द्र द्विवेदी, यूरिड मीडिया न्यूज। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताकर फिल्म बनाने वाले अनुपम खेर को इतिहास का ज्ञान नही। मनमोहन सिंह देश के चन्द योग्यतम व्यक्ति है जो जिस पद पर रहे उसकी गारिमा बढ़ायी। आर.बी.आई. गर्वनर वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह एक सफलतम व्यक्ति कहे जा सकते है।
2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद 2009 का लोकसभा चुनाव मनमोहन सिंह नेतृत्व में ही लड़ा गया। मनमोहन सिंह ही 2009 में प्रधानमंत्री पद के घोषित प्रत्याशी थे। जिस तरह से नरेन्द्र मोदी 2014 में भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के घोषित प्रत्याशी थे। मनमोहन सिंह ने अपनी योग्यता और सफलता 2009 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बन करके दिखाया। 2009 में जनता ने मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल पर मुहर लगायी और दूसरी बार मौका दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता हो सकती है लेकिन मनमोहन सिंह की योग्यता को भाजपा चुनौती नही दे सकती है। मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताना देश के एक सफलतम योग्य व्यक्ति का अपमान करना है।
कहने के लिए मनमोहन सिंह राजनीतिक नही थे लेकिन बड़े-बड़े कांग्रेसी दिग्गज राजनीतिज्ञों पर भारी थे पी॰ वी॰ नरसिम्हा रावके सरकार में वित्तमंत्री के रूप में सबसे प्रिय और सफल मंत्री थे। नरसिम्हा राव के अतिनिकट थे अगर नरसिम्हा राव की सफलतम एक उपलब्धि बतायी जाय तो मनमोहन सिंह का वित्त मंत्रालय माना जायेगा। जिसने आर्थिक उदारीकरण और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का कार्य किया। ऐसे मनमोहन सिंह सोनिया और राहुल के विश्वनीय व्यक्ति बने। यह मनमोहन सिंह की राजनीतिज्ञ कुशलता ही मानी जायेगी। क्योंकि यह सर्वविदित है कि राव और सोनिया के रिश्ते अच्छे नही थे। ऐसे में मनमोहन सिंह की किसी प्रकार से एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताना दुर्भाग्य पूर्ण है और इतिहास की गलत व्याख्या करना हैं।
एक्सीडेन्टल का अर्थ दुर्घटनावश माना जाता है। अगर एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर की टाईटिल दी जाय तो चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, चन्द्रशेखर, एच डी देवगौड़ा और इन्द्रकुमार गुजराल एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर कहे जा सकते है। यह सभी एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने है। चैधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को राजनीतिक अस्थिरता के कारण एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बन गये। 31 अक्टूबर 1984 को इंन्दिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने। 10 नवम्बर 1090 को चन्द्रशेखर एक नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम वी.वी. सिंह के इस्तीफे के बाद एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने। 01 जून 1996 को अटल विहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार को बहुमत न मिलने से एक जून 1996 को एच.डी.देवगौड़ा एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने।
राजनीतिक उठा-पटक में 21 अप्रैल 1997 को एच.डी.देव गौड़ा के इस्तीफे के बाद इन्द्रकुमार गुजराल एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने। मनमोहन सिंह 22 मई 2004 को प्राइम मिनिस्टर बने जो 26 मई 2014 तक रहे। यहां सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि जितने भी एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने उन्हें दूसरी बार अवसर नही मिला। जबकि चन्द्रशेखर, नरसिंहराव सहित कई एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया। अगर 2009 में मनमोहन सिंह नेतृत्व में लड़ा गया चुनाव में कांग्रेस सरकार नही बना पाती और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री नही बनते तो मनमोहन सिंह को चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, चन्द्रशेखर, एच.डी.देव गौड़ा, इन्द्रकुमार गुजराल और पी.वी.नरसिंह राव की तरह एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर कहा जा सकता लेकिन दूसरी बार 2009 में प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रुप में मनमोहन सिंह चुनाव लड़े और पांच वर्षो तक कार्यकाल पूरा करके एक सफल प्रधानमंत्री रहे। इसलिए एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह को बताना मानसिक दिवालियापन राजनीति से प्रेरित और इतिहास की अज्ञानता मानी जायेगी। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के रूप में कैसे कार्य करते थे सोनिया गांधी, राहुल गांधी का क्या दबाव था यह अलग विषय और फिल्म का भाग हो सकता है लेकिन मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर कहना एक योग्यतम व्यक्ति का अपमान करना है।
राजनीति में बहुत सारे नेताओं को कुर्सियां एक्सीडेन्टल ही मिलती रही है। 2 जून 1995 की घटना के बाद मायावती भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी थी तो क्या मायावती एक्सीडेन्टल चीफ मनिस्टर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोेदी एक लोकप्रिय जननेता के रुप में 2014 में प्रधानमंत्री बने। अगर 2019 में नरेन्द्र मोदी को जनता 2014 की तरह सम्मान देकर प्रधानमंत्री नही बनाती तो क्या नरेन्द्र मोदी 2014 के एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर नही कहे जायेगें। अनुपम खेर एक योग्य कलाकार मोदी समर्थक घोषित है इसलिए चुनाव के चन्द दिन पहले एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर की फिल्म रिलीज को लेकर कांग्रेस आरोप लगा रही है। लोकतंत्र है अभिव्यक्ति की आजादी है अनुपम खेर जिन बातों का हवाला देकर एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर फिल्म की वकालत कर रहे वह कुछ हद तक सही है कि देश की जनता को सत्य पर आधारित ओरिजनल नाम के राजनेता पर फिल्म बननी चाहिए और ऐसे फिल्म बनाने वाले बधाई के पात्र होंगे। लेकिन इतिहास को तोड़-मरोड़कर योग्तम व्यक्ति को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताना यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों को अभिव्यकित की आजादी पर प्रतिबंध लगाने और तथा आरोप-प्रत्यारोप से बचना चाहिए। अभी तक जिन राजनेताओं पर फिल्म बनी है वह उनमें से अधिकांश के देहान्त के बाद ही बनी है। यह पहली फिल्म है जिसमें सभी पात्र जिन्दा है और तत्कालिक घटनाक्रम है जिसे जनता ने देखा है निकटतम व्यकित अगर कोई दुर्भावना से किसी सफलम और महान व्यक्ति पर पुस्तक लिख दे और उसे सत्य बताकर फिल्म बना दी जाये यह भी न्याय उचित नही है।
संजय बारू जो मनमोहन सिंह के 2004 से 2008 तक चार वर्षो तक मीडिया सलाहकार रहे उनके लिखी पुस्तक को सत्य मानते हुए मनमोहन सिह के दस वर्ष के कार्यकाल पर एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर कहते हुए फिल्म बनाना तर्क संगत नही कहा जा सकता क्योंकि मनमोहन सिंह 10 वर्षो तक प्रधानमंत्री रहे और संजय बारू मात्र चार वर्षो तक प्रथमकार्य काल में ही मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ कार्य करने वाले निकटतम व्यक्ति अगर पुस्तक लिख दे जिसमें तमाम आपत्ति जनक बाते हो और उसपर मोदी विरोधी कोई एक्टर फिल्म बना दे और यह कहे कि अमुख व्यक्ति ने नरेन्द्र मोदी के साथ कार्य किया है और उसने पुस्तक लिखी है जो सत्य पर आधारित है उसी आधार पर फिल्म बनायी गयी है। यह तर्क उचित नही कहा जा सकता। इतिहास को तोड़-मरोड़ कर सत्य से हटकर अन्ध भक्त के रुप में अनुपम खेर जैसे योग्यतम कलाकार मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताकर फिल्म बनायी है उसे उचित नही कहा जा सकता। मनमोहन सिंह को किसी भी तरह से एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर की संज्ञा nahi दी जा सकती और अगर अनुपंम खेर मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर मानते है तो क्या 2019 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री नही बनते तो क्या नरेन्द्र मोदी 2014 के एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर कहे जायेगें। अगर ऐसा है तो जनभवनाओं का अनादर होगा क्योंकि 2014 में जनता ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़े गये चुनाव पर मुहर लगाकर प्रधानमंत्री बनाया है उसी तरह 2009 में दूसरी बार मनमोहन सिंह नेतृत्व में लड़े गये चुनाव पर जनता ने समर्थन दिया और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे इसलिए मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताना जन-भावनाओं का अनादर भी माना जा सकता है।
अनुपंम खेर जैसे योग्य कलाकार को अन्ध भक्ति से हटकर मनमोहन सिह के 10 वर्ष के कार्यकाल पर फिल्म बनाते समय एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर का टाइटिल पर एक्टिंग करना शोभा नही देता। मेरा विचार यही है कि फिल्म बनाते समय अन्धभक्ति से हटकर किसी महान सफलतम व्यक्ति को अपमानित करने के लिए फिल्म का नाम नही रखना चाहिए जैसा कि मनमोहन सिंह के लिए एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताया गया है।
2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद 2009 का लोकसभा चुनाव मनमोहन सिंह नेतृत्व में ही लड़ा गया। मनमोहन सिंह ही 2009 में प्रधानमंत्री पद के घोषित प्रत्याशी थे। जिस तरह से नरेन्द्र मोदी 2014 में भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के घोषित प्रत्याशी थे। मनमोहन सिंह ने अपनी योग्यता और सफलता 2009 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बन करके दिखाया। 2009 में जनता ने मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल पर मुहर लगायी और दूसरी बार मौका दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता हो सकती है लेकिन मनमोहन सिंह की योग्यता को भाजपा चुनौती नही दे सकती है। मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताना देश के एक सफलतम योग्य व्यक्ति का अपमान करना है।
कहने के लिए मनमोहन सिंह राजनीतिक नही थे लेकिन बड़े-बड़े कांग्रेसी दिग्गज राजनीतिज्ञों पर भारी थे पी॰ वी॰ नरसिम्हा रावके सरकार में वित्तमंत्री के रूप में सबसे प्रिय और सफल मंत्री थे। नरसिम्हा राव के अतिनिकट थे अगर नरसिम्हा राव की सफलतम एक उपलब्धि बतायी जाय तो मनमोहन सिंह का वित्त मंत्रालय माना जायेगा। जिसने आर्थिक उदारीकरण और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का कार्य किया। ऐसे मनमोहन सिंह सोनिया और राहुल के विश्वनीय व्यक्ति बने। यह मनमोहन सिंह की राजनीतिज्ञ कुशलता ही मानी जायेगी। क्योंकि यह सर्वविदित है कि राव और सोनिया के रिश्ते अच्छे नही थे। ऐसे में मनमोहन सिंह की किसी प्रकार से एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताना दुर्भाग्य पूर्ण है और इतिहास की गलत व्याख्या करना हैं।
एक्सीडेन्टल का अर्थ दुर्घटनावश माना जाता है। अगर एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर की टाईटिल दी जाय तो चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, चन्द्रशेखर, एच डी देवगौड़ा और इन्द्रकुमार गुजराल एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर कहे जा सकते है। यह सभी एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने है। चैधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को राजनीतिक अस्थिरता के कारण एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बन गये। 31 अक्टूबर 1984 को इंन्दिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने। 10 नवम्बर 1090 को चन्द्रशेखर एक नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम वी.वी. सिंह के इस्तीफे के बाद एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने। 01 जून 1996 को अटल विहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार को बहुमत न मिलने से एक जून 1996 को एच.डी.देवगौड़ा एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने।
राजनीतिक उठा-पटक में 21 अप्रैल 1997 को एच.डी.देव गौड़ा के इस्तीफे के बाद इन्द्रकुमार गुजराल एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने। मनमोहन सिंह 22 मई 2004 को प्राइम मिनिस्टर बने जो 26 मई 2014 तक रहे। यहां सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि जितने भी एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बने उन्हें दूसरी बार अवसर नही मिला। जबकि चन्द्रशेखर, नरसिंहराव सहित कई एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया। अगर 2009 में मनमोहन सिंह नेतृत्व में लड़ा गया चुनाव में कांग्रेस सरकार नही बना पाती और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री नही बनते तो मनमोहन सिंह को चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, चन्द्रशेखर, एच.डी.देव गौड़ा, इन्द्रकुमार गुजराल और पी.वी.नरसिंह राव की तरह एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर कहा जा सकता लेकिन दूसरी बार 2009 में प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रुप में मनमोहन सिंह चुनाव लड़े और पांच वर्षो तक कार्यकाल पूरा करके एक सफल प्रधानमंत्री रहे। इसलिए एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह को बताना मानसिक दिवालियापन राजनीति से प्रेरित और इतिहास की अज्ञानता मानी जायेगी। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के रूप में कैसे कार्य करते थे सोनिया गांधी, राहुल गांधी का क्या दबाव था यह अलग विषय और फिल्म का भाग हो सकता है लेकिन मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर कहना एक योग्यतम व्यक्ति का अपमान करना है।
राजनीति में बहुत सारे नेताओं को कुर्सियां एक्सीडेन्टल ही मिलती रही है। 2 जून 1995 की घटना के बाद मायावती भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी थी तो क्या मायावती एक्सीडेन्टल चीफ मनिस्टर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोेदी एक लोकप्रिय जननेता के रुप में 2014 में प्रधानमंत्री बने। अगर 2019 में नरेन्द्र मोदी को जनता 2014 की तरह सम्मान देकर प्रधानमंत्री नही बनाती तो क्या नरेन्द्र मोदी 2014 के एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर नही कहे जायेगें। अनुपम खेर एक योग्य कलाकार मोदी समर्थक घोषित है इसलिए चुनाव के चन्द दिन पहले एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर की फिल्म रिलीज को लेकर कांग्रेस आरोप लगा रही है। लोकतंत्र है अभिव्यक्ति की आजादी है अनुपम खेर जिन बातों का हवाला देकर एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर फिल्म की वकालत कर रहे वह कुछ हद तक सही है कि देश की जनता को सत्य पर आधारित ओरिजनल नाम के राजनेता पर फिल्म बननी चाहिए और ऐसे फिल्म बनाने वाले बधाई के पात्र होंगे। लेकिन इतिहास को तोड़-मरोड़कर योग्तम व्यक्ति को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताना यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों को अभिव्यकित की आजादी पर प्रतिबंध लगाने और तथा आरोप-प्रत्यारोप से बचना चाहिए। अभी तक जिन राजनेताओं पर फिल्म बनी है वह उनमें से अधिकांश के देहान्त के बाद ही बनी है। यह पहली फिल्म है जिसमें सभी पात्र जिन्दा है और तत्कालिक घटनाक्रम है जिसे जनता ने देखा है निकटतम व्यकित अगर कोई दुर्भावना से किसी सफलम और महान व्यक्ति पर पुस्तक लिख दे और उसे सत्य बताकर फिल्म बना दी जाये यह भी न्याय उचित नही है।
संजय बारू जो मनमोहन सिंह के 2004 से 2008 तक चार वर्षो तक मीडिया सलाहकार रहे उनके लिखी पुस्तक को सत्य मानते हुए मनमोहन सिह के दस वर्ष के कार्यकाल पर एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर कहते हुए फिल्म बनाना तर्क संगत नही कहा जा सकता क्योंकि मनमोहन सिंह 10 वर्षो तक प्रधानमंत्री रहे और संजय बारू मात्र चार वर्षो तक प्रथमकार्य काल में ही मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ कार्य करने वाले निकटतम व्यक्ति अगर पुस्तक लिख दे जिसमें तमाम आपत्ति जनक बाते हो और उसपर मोदी विरोधी कोई एक्टर फिल्म बना दे और यह कहे कि अमुख व्यक्ति ने नरेन्द्र मोदी के साथ कार्य किया है और उसने पुस्तक लिखी है जो सत्य पर आधारित है उसी आधार पर फिल्म बनायी गयी है। यह तर्क उचित नही कहा जा सकता। इतिहास को तोड़-मरोड़ कर सत्य से हटकर अन्ध भक्त के रुप में अनुपम खेर जैसे योग्यतम कलाकार मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताकर फिल्म बनायी है उसे उचित नही कहा जा सकता। मनमोहन सिंह को किसी भी तरह से एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर की संज्ञा nahi दी जा सकती और अगर अनुपंम खेर मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर मानते है तो क्या 2019 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री नही बनते तो क्या नरेन्द्र मोदी 2014 के एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर कहे जायेगें। अगर ऐसा है तो जनभवनाओं का अनादर होगा क्योंकि 2014 में जनता ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़े गये चुनाव पर मुहर लगाकर प्रधानमंत्री बनाया है उसी तरह 2009 में दूसरी बार मनमोहन सिंह नेतृत्व में लड़े गये चुनाव पर जनता ने समर्थन दिया और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे इसलिए मनमोहन सिंह को एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताना जन-भावनाओं का अनादर भी माना जा सकता है।
अनुपंम खेर जैसे योग्य कलाकार को अन्ध भक्ति से हटकर मनमोहन सिह के 10 वर्ष के कार्यकाल पर फिल्म बनाते समय एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर का टाइटिल पर एक्टिंग करना शोभा नही देता। मेरा विचार यही है कि फिल्म बनाते समय अन्धभक्ति से हटकर किसी महान सफलतम व्यक्ति को अपमानित करने के लिए फिल्म का नाम नही रखना चाहिए जैसा कि मनमोहन सिंह के लिए एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर बताया गया है।
29th December, 2018