सपा का मुखौटा...
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विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ। पिछले साढ़े चार वर्षो से भी ज्यादा समय से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का मुखौटा रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अब उन्ही के परिजन दागदार बनाने में जुटे हुए है। चुनाव का समय जब नजदीक आ रहा है, ऐसे समय में जब पार्टी को अपराधी छवि से उबर कर स्वच्छ जनप्रिय चेहरे के साथ होना चाहिए तो दलालों आैर अपराधियों को संरक्षण देने वाले समाजवादी अखिलेश को भी अपने ही सांचे में ढालने में जुट गये है। सरकार तथा पार्टी का राज्य में रहते हुए अपराधियों तथा दलालों को तरजीह न देने वाले तथा नजदीक न सटाने वाले अखिलेश कोे अब उनके वरिष्ठ ही उसी नरक में डालने को विवश कर रहे है जिसमें उन्होने पूरा जीवन गुजार दिया। यह तो अखिलेश का आत्म विश्वास तथा संकटों से जूझने का मद्दा जो परिवार में अलग-थलक पड़ने के बाद भी अपनी जंग जारी रखे हुए है। अखिलेश इस जंग को अपने पाले में लाने में कुछ भी हद तक कामयाब हुए तो भविष्य में समाजवाद का चेहरा बदला दिखेगा अन्यथा अपराधियों आैर साम्प्रदायिक तत्वों के हाथ में खेलने वाली सपा अपने ही जाल में उलझ कर सिमट जाएगी। सपा मुखिया आैर पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के बाद सपा का भविष्य अखिलेश यादव के हाथों में ही संरक्षित आैर परिष्कृत हो सकता है अन्यथा शिवपाल तो इटावा में भी अपनी साख बचाने में कामयाब नही होगे। लंबे राजनीतिक जीवन के बाद भी शिवपाल कभी भी नेता नही बन पाये। शिवपाल का अपना कोई व्यक्तित्व नही। वह केवल मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई के ही रूप में जाने जाते है आैर आजकल भाभी (साधना) के प्रिय भक्त आैर राजनीतिक दलाल के नाम से विख्यात अमर सिंह के कठपुतली।
मुलायम की कच्ची गोट--
देश की राजनीति में अलग छवि कायम रखने वाले मुलायम सिंह अपने अवसान के दिनों में पारिवारिक मामले को लेकर दिग्रभमित से नजर आ रहे है। अब मुलायम वीसवीं सदी के अन्तिम चरण के वह संघर्षशील राजनेता के रूप में नही दिख रहे है बल्कि अपनी कमजोरियों के वशीभूत नजर आ रहे है। यदि ऐसा नही तो मुलायम सिंह जैसा व्यक्ति का यह कथन आम जन के लिए काफी पीड़ादायी है कि अमर सिंह न होता तो वह जेल में होते। मुलायम के इस कथन से बेहतर लालू की राजनीति रही जो जेल जाने के बाद भी इस तरह की किसी कमजोरी के वशीभूत नही नजर आये कि कोई अमर सिंह जैसा दलाल व्यक्ति उन्हें राजनीति का पाठ पढ़ाये। मुलायम ने अपने कथन से ही अपने को न केवल छोटा कर दिखाया बल्कि अमर सिंह की दलाली संस्कृति को भी महिमा मंडित कर दिया। यही वजह रही कि मुख्यमंत्री अखिलेश ने अमर को पारिवारिक झगड़े की जड़ बताते हुए "दलाल अंकल" कहने के साथ ही उन सारे घटनाक्रमों की कलई खोल दी। अखिलेश की यह साफ गोई ही थी कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की अमर-शिवपाल की साजिश नाकाम हो गयी।
शिवपाल की पद लालसा--
सपा कार्यालय में 24 अक्टूबर की बैठक में शिवपाल की वर्षो से दबी राजनीतिक लालसा खुलकर सामने आ गयी। अखिलेश को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए शिवपाल-अमर की साजिश का हिस्सा था कि शिवपाल ने मुलायम सिंह यादव की आड़ में यह दांव खेला। शिवपाल ने कहा कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) आप उत्तर प्रदेश की कमान संभाले आैर सभी लोग आपके साथ रहेंगे। असल में शिवपाल की चाल यह रही कि अखिलेश को मुख्यमंत्री पद से हटाने का निर्णय मुलायम सिंह यादव कर लेते है तो मुलायम को उम्र का तकाजा देकर उनके स्थान शिवपाल को कमान सौंप दी जाएगी। शिवपाल की इस चाल में अप्रत्यक्ष रूप से भाभी साधना का भी समर्थन हासिल था आैर सबकी कोशिश किसी भी तरह से अखिलेश को पद से हटाने का प्रयास था। इस दरम्यान अखिलेश ने शिवपाल की सीडी मुलायम सिंह को दिखाकर जिस प्रकार अमर-शिवपाल की साजिश का पर्दाफाश किया, उसके बाद मुलायम सिंह यादव को अपने हाथ पीछे खिंचने पड़े। दूसरी तरफ मुलायम सिंह यादव को यह डर भी सताने लगा कि कुछ माह तक मुख्यमंत्री पद पर रहने के बादविधाा चुनाव में पार्टी की हार का पूरा ठिकरा्ही के सपर पड़ेगा आैर इससे उनकी छवि आैर खराब हो जाएगी।
खुले मंच पर सियासी ड्रामा--
समाजवादी पार्टी के 24 अक्टूबर की बैठक में जो कुछ हुआ, उसको लेकर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाए हो रही है। राजनीतिक विश्लेषकों के यह समझ नही आ रहा है कि शिवपाल-अखिलेश में इस प्रकार की तू-तू, मैं-मैं होनी थी तो इसे पार्टी फोरम पर खुले आम किये जाने की जरूरत क्या थी? बेहतर होता मुलायम सिंह यादव इन्हें घर में आमने-सामने बैठाकर सारे गिले-शिकवे दूर करा देते। मंच पर शिवपाल ने जिस प्रकार मुख्यमंत्री के हाथ से माइक खींचा, उससे अपराधिक मानसिकता साथ हो गयी। जो व्यक्ति मुख्यमंत्री के हाथ से सार्वजनिक तौर पर माइक छीन सकता है आैर धक्के मार सकता है, उसका आम आदमी के साथ क्या हाथ होगा।
समझौते के आसार कम--
फिलहाल में सपा में अभी तक जो कुछ भी चल रहा है, उससे समझौते के आसार कम होते जा रहे है। मुलायम सिंह यादव तथा शिवपाल अपनी जिद में अमर सिंह को साथ रखने पर अड़े हुए थो अखिलेश के लिए भी चचा राम गोपाल का इस हाल में साथ छोड़ना संभव नही लग रहा है। समझौते के आसार तभी संभव होगे जब मुलायम बड़कपन का परिचय देते हुए बेटे अखिलेश की जायज मांगों को स्वीकार करे। यदि मुलायम छोटे भाई शिवपाल की गुण्डई को अमली जामा पहना सकते है तो चचेरे भाई राम गोपाल की तार्किक बातों का भी सम्मान करना पड़ेगा। यही नही बेटे के हाथों को काटने का प्रयास छोड़कर उसे सशक्त करना ही होगा। इसके लिए अखिलेश समर्थकों की सपा से बरखास्तगी को बिना शर्त वापस करने के साथ ही टिकट वितरण में प्रभावी भूमिका स्वीकार करनी होगी। मुलायम-शिवपाल के लिए यह स्थिति भी बेहतर होती कि वे अखिलेश के चेहरे पर ही चुनाव में जाये आैर नकरात्मक रिजल्ट आने पर उसका ठिकरा भी अखिलेश के ही सर जाएगा। फिलहाल जिस प्रकार से दोनों तरफ से तनातनी चल रही है, उसमें समझौते के आसार कम लग रहे है। मुलायम सिंह यादव यदि अपने चिर-प्रतिद्वन्दी से अजीत सिंह से हाथ मिला सकते है तो अखिलेश को अलग कर कोई समझौता कारगर नही होगा। शिवपाल - अखिलेश का यह विवाद अभी आैर आगे तक जाने की संभावना है।





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मुलायम की कच्ची गोट--
देश की राजनीति में अलग छवि कायम रखने वाले मुलायम सिंह अपने अवसान के दिनों में पारिवारिक मामले को लेकर दिग्रभमित से नजर आ रहे है। अब मुलायम वीसवीं सदी के अन्तिम चरण के वह संघर्षशील राजनेता के रूप में नही दिख रहे है बल्कि अपनी कमजोरियों के वशीभूत नजर आ रहे है। यदि ऐसा नही तो मुलायम सिंह जैसा व्यक्ति का यह कथन आम जन के लिए काफी पीड़ादायी है कि अमर सिंह न होता तो वह जेल में होते। मुलायम के इस कथन से बेहतर लालू की राजनीति रही जो जेल जाने के बाद भी इस तरह की किसी कमजोरी के वशीभूत नही नजर आये कि कोई अमर सिंह जैसा दलाल व्यक्ति उन्हें राजनीति का पाठ पढ़ाये। मुलायम ने अपने कथन से ही अपने को न केवल छोटा कर दिखाया बल्कि अमर सिंह की दलाली संस्कृति को भी महिमा मंडित कर दिया। यही वजह रही कि मुख्यमंत्री अखिलेश ने अमर को पारिवारिक झगड़े की जड़ बताते हुए "दलाल अंकल" कहने के साथ ही उन सारे घटनाक्रमों की कलई खोल दी। अखिलेश की यह साफ गोई ही थी कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की अमर-शिवपाल की साजिश नाकाम हो गयी।