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गैरो पर करम - अपनों पर सितम, हाले बयां कांग्रेस

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गैरो पर करम - अपनों पर सितम, हाले बयां कांग्रेस

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विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ। देश की सबसे पुरानी आैर बड़ी पार्टी  का सबसे बड़े राज्य में क्या हाल हो गया है कि उसके पास अपना कहने वाला नही है। हालात यह है कि जो कांग्रेस के साथ है, उन पर नेतृत्व का विश्वास नही आैर जो चापलुसी की राजनीति से समय के अनुसार पाला बदलते है, वह ही पार्टी के सिरमौर बन रहे है। असल में सत्ता का शाश्वत सत्य है सिर्फ आैर सिर्फ "आत्म प्रशंसा" सुनना जिसे ठेठ भाषा में चापलुसी कहते है। सत्ता में बैठे व्यक्ति को विरोधी स्वर अच्छे नही लगते विशेष कर अपनों की। यही भाव आता है कि जब अपना कोई आगे नही बढ़ पाता है तो वह बुराई करने लगता है। सत्तानसीन हमेशा से चापलुसों की बातों में पगा हुआ अपनों को दूर रखने का ही प्रयास करता है। अब देश की सत्ता पर इतनों दिनों से काबिज कांग्रेसी परिवार को अपने अच्छे नही लगते। वर्षो से कांग्रेस के प्रति उनकी निष्ठा इसलिए है कि जन सच्चाई से सरोकार रखते है आैर पार्टी हित में इसका उल्लेख करते है। इसके विपरीत समय से पाला बदलने वालों के लिए पार्टी की निष्ठा कोई मायने नही रखती आैर वे सत्ताशीर्ष की चापलुसी कर अपना हित साधने में लगे हुए है। इसी लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं में यह बात आम होती जा रही है कि "गैरों पर करम, अपनों पर सितम" ये जाने वफा ऐसा दर्द न दे।

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कांग्रेस पर दल-बदलुओं का कब्जा--