राजेन्द्र द्विवेदी- वोट चोरी के मुद्दे पर कांग्रेस अकेली पड़ती दिख रही है। इंडिया ब्लॉक के घटक दल इस मुद्दे पर पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता एवं जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने स्पष्ट कहा है कि वोट चोरी केवल कांग्रेस पार्टी का मुद्दा है, इंडिया ब्लॉक का इससे कोई लेना-देना नहीं है। अब्दुल्ला ने यहाँ तक कहा कि आने वाले दिनों में वह अपना मुद्दा खुद तय करेंगे। उमर अब्दुल्ला के इस बयान को इस संदर्भ में देखने की आवश्यकता है कि उनकी पार्टी ने 2024 के विधानसभा चुनाव में 41 सीटें जीतीं, जो पिछले चुनाव की तुलना में 16 अधिक हैं, जबकि कांग्रेस की सीटें 15 से घटकर मात्र 6 रह गईं।
इंडिया गठबंधन की दूसरी सहयोगी पार्टी एनसीपी की नेता और सांसद सुप्रिया सुले ने संसद में कहा कि वह ईवीएम पर सवाल नहीं उठाएगी, क्योंकि वह इसी मशीन से चार बार जीतकर आई हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में एनसीपी ने 10 सीटों पर चुनाव लड़ा और 8 सीटें जीतीं। ऐसे में एनसीपी वोट चोरी के मुद्दे पर कांग्रेस से अलग राय रखती है। लोकसभा में देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी ने अखिलेश यादव के नेतृत्व में 37 सीटें जीतकर 2004 में अपने पिता मुलायम सिंह यादव का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी को तब 36 सीटें मिली थीं।
इसी प्रकार झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जो इंडिया गठबंधन के घटक दल के नेता हैं, लगातार दो बार विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार बना चुके हैं। लोकसभा में भी उनकी पार्टी की सीटें बढ़ी हैं। ऐसे में हेमंत सोरेन राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों का खुला समर्थन कैसे कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार विधानसभा चुनाव जीत रही हैं। भारतीय जनता पार्टी के तमाम विरोध और प्रबंधन भी ममता को सत्ता से बाहर नहीं कर पाए हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की लोकसभा में 2019 की तुलना में उनकी सीटें बढ़ी हैं। ऐसे में राहुल गांधी के वोट चोरी के मुद्दे पर उनका समर्थन मिलना कठिन है। हाँ, यह जरूर है कि ममता बनर्जी विशेष मतदाता पुनरीक्षण (SIR) अभियान का कड़ा विरोध कर रही हैं। उन्हें आशंका है कि SIR के माध्यम से भाजपा टीएमसी समर्थकों के वोट काट सकती है, इसलिए वह इस अभियान का हर स्तर पर विरोध कर रही हैं। कांग्रेस की सहयोगी पार्टी और इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन भी राहुल गांधी के वोट चोरी के मुद्दे के साथ खड़े होते दिखाई नहीं देते। उन्होंने 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में सर्वाधिक सीटें जीतीं और 2021 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के साथ सरकार बनाई। ऐसे में वह कांग्रेस के वोट चोरी के आरोपों के साथ स्वर कैसे मिला सकते हैं।
यह जरूर है कि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव और महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता उद्धव ठाकरे कांग्रेस के वोट चोरी के मुद्दे का समर्थन करते दिखाई देते हैं, लेकिन वे भी इस एजेंडे से पूरी तरह संतुष्ट नहीं लगते। इंडिया गठबंधन के घटक दलों के रुख को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस वोट चोरी के मुद्दे पर अकेले आगे बढ़ना चाह रही है, क्योंकि 14 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित “वोट चोर, गद्दी छोड़” रैली में गठबंधन के सहयोगी दलों को आमंत्रित नहीं किया गया। हालाँकि, इस रैली में कांग्रेस अकेले ही बड़ी भीड़ जुटाने में सफल रही। इसके पीछे यह माना जा रहा है कि हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान के नेताओं ने काफ़ी मेहनत की और भीड़ जुटाने में अहम भूमिका निभाई। इस दृष्टि से इसे कांग्रेस की एक सफल रैली कहा जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि इंडिया गठबंधन या अन्य विपक्षी दल भारत निर्वाचन आयोग के कामकाज से पूरी तरह संतुष्ट हैं। विपक्षी दल भी चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ियों के आरोप आयोग पर लगाते रहे हैं। लोकसभा में एसआईआर और निर्वाचन आयोग को लेकर विपक्ष ने गंभीर सवाल उठाए, लेकिन वोट चोरी के मुद्दे पर खुलकर और आक्रामक रूप से केवल कांग्रेस ही सामने आई। कई विपक्षी नेता राहुल गांधी के “वोट चोर, गद्दी छोड़” नारे से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि यह मतदाताओं का अपमान है—चाहे उन्होंने भाजपा को वोट दिया हो या किसी गैर-भाजपा दल को। उनके अनुसार, वोट चोरी जैसा आरोप मतदाताओं की समझ और निर्णय पर सवाल खड़ा करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस वोट चोरी के मुद्दे पर अलग-थलग पड़ गई है। इसके पीछे यह भी माना जा रहा है कि लगातार मिलती चुनावी हार का ठीकरा सीधे राहुल गांधी पर न फूटे, इसलिए पार्टी इस मुद्दे पर ज़ोर दे रही है। राहुल गांधी निस्संदेह एक संघर्षशील, ईमानदार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में उभरते नेता हैं, लेकिन कांग्रेस को लगातार मिल रही हारों ने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं। राहुल गांधी की विशेषता यह है कि वह चुनाव हारने के बाद भी आगे बढ़कर हार को स्वीकार करते हैं। लेकिन बार-बार की हार से कांग्रेस के भीतर यह धारणा बन रही है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी सत्ता तक नहीं पहुँच सकती।
इस असंतोष और आरोपों को दबाने तथा शीर्ष नेतृत्व को बचाने के लिए वोट चोरी का मुद्दा कांग्रेस के लिए एक मजबूत हथियार बन गया है। कांग्रेस यह भी जानती है कि उसका एक बड़ा वोट बैंक मुस्लिम समुदाय है। यदि इस वर्ग को यह विश्वास हो गया कि कांग्रेस भाजपा का प्रभावी विकल्प नहीं बन सकती, तो वह अन्य राजनीतिक विकल्प तलाश सकता है। चुनावी नतीजे यह संकेत भी देते हैं कि जिन राज्यों में मुस्लिम मतदाताओं ने दूसरा विकल्प चुना, वहाँ कांग्रेस बेहद कमजोर या लगभग समाप्त हो गई।
इसीलिए कांग्रेस के लिए यह मजबूरी बन गई है कि वह अपने समर्थकों, कार्यकर्ताओं और खासकर मुस्लिम मतदाताओं के बीच यह संदेश दे कि वह मतदाताओं की वजह से नहीं, बल्कि निर्वाचन आयोग और भाजपा की मिलीभगत से हुई वोट चोरी के कारण चुनाव हार रही है। इसी संदर्भ में रामलीला मैदान की रैली में कांग्रेस ने जहाँ “वोट चोर, गद्दी छोड़” के नारों के साथ भाजपा पर तीखा हमला बोला, वहीं आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार, आयुक्त सुखबीर सिंह संधू और विवेक जोशी नाम लेकर भाजपा की मदद करने का सीधा आरोप लगाया गया। आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों का नाम लेकर चेतावनी देना उचित नहीं माना जा सकता, लेकिन लगातार हार से जूझ रही कांग्रेस के सामने वोट चोरी का मुद्दा अब एक राजनीतिक मजबूरी बन चुका है, जिससे वह पीछे हटने की स्थिति में नहीं दिखती। इंडिया गठबंधन के घटक दल जो लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अधिक सीटें जीत रहे है वह कांग्रेस के वोट चोर जैसे मुद्दे पर सहमत नहीं है ऐसे में कांग्रेस अकेली पड़ती दिख रही है।
25th December, 2025
