बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का जनादेश यह स्पष्ट करता है कि राजनीति में भरोसा, स्थिरता और शासन की साख अब सबसे निर्णायक पूंजी बन चुकी है। नतीजों ने बता दिया कि बिहार के मतदाताओं ने एक बार फिर एनडीए को भारी बहुमत देकर नीतीश कुमार को दसवीं बार नेतृत्व सौंपा है। यह केवल राजनीतिक जीत नहीं, बल्कि उस भरोसे का विस्तार है, जो दो दशकों से बिहार की राजनीति को स्थिरता और प्रशासनिक संतुलन देता आया है। इस चुनाव ने एक और बड़े परिवर्तन की पुष्टि की, बिहार की राजनीति जातीय ध्रुवीकरण के पुराने घेरे से बाहर निकलकर नये सामाजिक समीकरण की ओर बढ़ चुकी है। लालू प्रसाद यादव का पारंपरिक 'एम-वाई' (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक इस बार नीतीश कुमार के नये एम-वाई (महिला- युवा) वोट बैंक के सामने फीका पड़ गया। यही वह निर्णायक बदलाव है, जिसने पूरे चुनावी परिदृश्य को पलट दिया और हवा की दिशा एनडीए के पक्ष में मजबूती से मोड़ दी।
महिला युवा मतदाताओं की यह साझी चेतना बिहार की राजनीति को नयी दिशा दे रही है। यह नया समीकरण न सिर्फ 2025 के चुनाव परिणामों को आकार देता है, बल्कि बिहार की भविष्य की राजनीति के लिए एक नया खाका भी तैयार करता है। वोटों के पैटर्न दर्शाते हैं कि यह नया समीकरण आकस्मिक नहीं, बल्कि पिछले कई वर्षों में बने भरोसे का परिणाम है। इस चुनाव में महिलाओं का मतदान पुरुषों से लगभग नौ प्रतिशत अधिक रहा, जो सिर्फ भागीदारी नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश था। महिलाओं ने सुरक्षा, शिक्षा, स्वच्छता और सामाजिक सम्मान के आधार पर अपने वोट का इस्तेमाल किया। साइकिल योजना से लेकर छात्रवृत्ति, स्वच्छता कार्यक्रमों और स्वयं सहायता समूहों तक नीतीश सरकार की नीतियों ने महिलाओं के जीवन में प्रत्यक्ष बदलाव और आत्मविश्वास की अनुभूति पैदा की। शराबबंदी को लेकर भले राजनीतिक बहस हो, लेकिन ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बड़ी संख्या में महिलाओं ने इसे सामाजिक सुरक्षा की नीति के रूप में देखा जब मतदान की बारी आयी, तो उनकी कतारें बता रही थीं कि वे इस चुनाव को केवल राजनीतिक प्रतियोगिता नहीं, बल्कि अपने अधिकारों और सुरक्षित भविष्य की बहाली की तरह देख रही थीं। दूसरी तरफ, युवा मतदाताओं का रुझान भी इस चुनाव का निर्णायक कारक बना। विपक्ष ने बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बनाकर युवाओं को आकर्षित करने की कोशिश की, लेकिन उसके सामने विश्वसनीयता का संकट था। महागठबंधन के भीतर अस्थिरता, नेतृत्व की असंगति और वादों के रिकॉर्ड की कमी ने युवाओं के विश्वास को मजबूत नहीं किया। इसके विपरीत, नीतीश कुमार ने विकास की निरंतरता और स्थिर शासन का मॉडल पेश किया।
स्किल डेवलपमेंट मिशन तकनीकी संस्थानों का विस्तार, स्टार्टअप योजनाएं और भर्ती प्रक्रियाओं में सुधार ने युवाओं को यह संकेत दिया कि परिवर्तन क्रमिक है, लेकिन दिशा सही है। यही संतुलित सोच एक ऐसे वर्ग को आकर्षित कर गयी, जो भावनात्मक नारेबाजी से अधिक व्यावहारिक संभावनाओं को तरजीह देता है। प्रचार रणनीतियों में दोनों पक्षों के दृष्टिकोण का फर्क भी मतदाताओं ने साफ साफ महसूस किया।
महागठबंधन ने उम्मीदों से भरे बड़े वादे किये, लेकिन उनके आधार और विश्वसनीयता की कमी बार-बार उजागर हुई। विपक्ष सत्ता परिवर्तन की मांग तो कर रहा था, मगर शासन की ठोस वैकल्पिक रूपरेखा पेश करने में कमी रह गयी। इसके उलट नीतीश कुमार ने अपने अभियान में उपलब्धियों और नीतियों की जमीन पर राजनीतिक तर्क गढ़े। ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का विस्तार, सड़क शिक्षा स्वास्थ्य के ढांचे में सुधार, कानून-व्यवस्था की स्थिरता और महिलाओं की सुरक्षा ने चुनावी हवा को पूरी तरह प्रभावित किया। नीतीश कुमार भले कभी-कभी राजनीतिक समीकरणों में बदलाव के कारण आलोचना का विषय बने हों, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर उनकी डिलीवरी क्षमता पर जनता का भरोसा अडिग रहा। जैसे-जैसे मतदान के चरण आगे बढ़े, यह स्पष्ट होता गया कि सियासी हवा में बदलाव आ चुका है।
महिलाओं ने सुरक्षा, शिक्षा और सामाजिक सम्मान के आधार पर मतदान किया। युवाओं ने स्थिर अवसरों और व्यावहारिक नीतियों पर भरोसा जताया। किसानों, मजदूरों और मध्यम वर्ग ने शासन की निरंतरता को प्राथमिकता दी और इस कसौटी पर नीतीश कुमार एक बार फिर अब्बल साबित हुए हैं। आज जब बिहार का राजनीतिक परिदृश्य फिर से आकार ले रहा है, तो यह स्पष्ट दिखाई देता है कि यह वह बिहार है जो अब 'कौन जीतेगा' नहीं पूछ रहा, बल्कि 'कौन बेहतर शासन देगा' यह तय कर रहा है। यही असली लोकतंत्र की परिपक्वता है और यही 2025 के बिहार चुनाव की सबसे बड़ी उपलब्धि दसवीं बार मुख्यमंत्री बनना केवल रिकॉर्ड का विस्तार नहीं, बल्कि उस भरोसे का प्रमाण है, जो बिहार की जनता ने उन्हें लगातार दिया है।
अब चुनौती इस भरोसे को अगले पांच वर्षों में और मजबूत करने की है, जिसे नीतीश कुमार भली-भांति समझते हैं और उनका इतिहास बताता है कि वे सामना करने में सक्षम हैं। यह चुनाव बिहार के लिए एक निर्णायक मोड़ है। महिला युवा गठजोड़ ने साबित कर दिया कि वे अब केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि राजनीतिक शक्ति हैं। यदि कोई राजनीतिक दल इन आकांक्षाओं को समझने और पूरा करने में असफल रहता है, तो उसे सत्ता के समीकरण में जगह नहीं मिलेगी। इतिहास संभवतः इस चुनाव को उस क्षण के रूप में याद करेगा, जब बिहार ने जातीय पहचान से ऊपर उठकर शासन की गुणवत्ता, नेतृत्व की साख और स्थिरता के मॉडल को प्राथमिकता दी। यह सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतना का वह बिंदु है, जिसने बिहार को नये युग की ओर अग्रसर कर दिया है। एक ऐसा युग जहां सत्ता का प्रश्न जातीय समीकरण नहीं, बल्कि भरोसे और प्रदर्शन पर टिकेगा।
15th November, 2025
