राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- लखनऊ। राजनीतिक दलों में परिवारवाद की तरह विकासवाद भी चल रहा हैं। देश का कोई भी राजनीतिक दल हो, जिस नेता का परिवार है उसमें परिवारवाद चल रहा है। परिवारवाद का मिथक उन्ही नेताओं से टूटता है जिनका परिवार नही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सपा, कांग्रेस, आरजेडी सहित तमाम दलों पर जिनका भाजपा से गठबंधन नही हैं उन पर परिवारवाद का आरोप और एक परिवार की पार्टी कहते हैं। इसमें सच्चाई भी हैं दूसरी तरफ परिवारवाद का आरोप झेल रहे अखिलेश यादव कहते है जिनका परिवार नही वह परिवार वालों की पीड़ा नही समझ सकते। प्रियंका गांधी वाड्रा कहती है मोदी को परिवारवाद से नही बल्कि उन्हें हमारे एक परिवार से परेशानी है। परिवारवाद की परिभाषा अलग-अलग नही हो सकती हैं। कड़वा सच यही है मोदी एवं योगी परिवारवाद का आरोप दूसरे दलों पर चाहे जितना लगाये भाजपा में भी परिवारवाद की जड़े बहुत गहरी हैं।
सियासत में परिवारवाद सभी दलों में हावी है लेकिन इसे अपने-अपने तरीके से सियासत में नेता आरोप-प्रत्यारोप लगाते है। देश का कोई भी ऐसा नेता या पार्टी नही है जिसका परिवार हो और उसमे परिवारवाद न चल रहा हो। कहने का मतलब है कि सियासत में कोई भी पार्टी कोई भी सियासत घराना हो सभी में परिवारवाद कड़वी सच्चाई हैं। जनता भी जानती हैं।
परिवारवाद की तरह सबका साथ सबका विकास नारा देने वाली भाजपा में भी सपा, कांग्रेस, बसपा व अन्य सरकारों की तरह विकासवाद भी चल रहा हैं। जो नेता अधिक ताकतवर होता है विकास कार्य उसकी सियासत की ताकत की आधार पर मनमाने क्षेत्रों में होते हैं। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद विकासवाद के भेदभाव रोग से बचे नही हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी प्राथमिकता में गोरखपुर सबसे ऊपर है। तुलनात्मक रूप से जितना अधिक विकास कार्य सभी क्षेत्रों में हुआ है उतना प्रदेश के अन्य जनपदों में नही हुआ हैं। यही नही दिखाने के लिए प्रदेश भर में करोड़ों-करोड़ों की योजनाओं का शिलान्यास और घोषणा प्रत्येक जनपद के लिए की जाती है लेकिन जमीन पर कार्य वास्तविक रुप से नही होते। उन्ही घोषणाओं का और विकास कार्याे पर तेजी से कार्य होते है जिसमें मुख्यमंत्री व्यक्तिगत रूचि लेकर निरन्तर समीक्षा करते रहते हैं। उदाहरण के रूप में प्रदेश में 45 जनपदों में मेडिकल कालेज बनाने की घोषण हुई हैं। इसी तरह अन्य जनपदों में स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, सिचाई, उद्योग, लगाने की घोषणनाएं शिलान्यास हुए लेकिन जितना अधिक तेजी से विकास कार्य गोरखपुर में हुआ उतना अन्य जनपदों में नही हुआ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज 6 दिसम्बर 2021 को योगी के गृह जनपद गोरखपुर में दस हजार करोड़ से अधिक योजना का लोकापर्ण करेंगे। इनमें खाद, कारखाना, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), रीजनल मेडिकल रिसर्च सेन्टर प्रमुख रूप से शामिल है। इन परियोजनाओं में तेजी से कार्य इसलिए हुआ क्योेंकि योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद है। योगी के कार्यकाल में ही 75 जनपदों में कोई ऐसा जनपद नही बचा जहां पर सबका साथ सबका विकास के नाम पर करोड़ों-करोड़ो की परियोजनाएं की घोषण एवं शिलान्यास न हुआ हो लेकिन जमीन पर विकास आपेक्षाकृत गोरखपुर की तुलना में बहुत ही कम है। विकासवाद की प्राथमिकता गोरखपुर और राजनीतिक लाभ के लिए अयोध्या एवं पूर्वाचंल सड़क आदि जैसी परियोजानएं भी हैं। गोरखपुर की तरह प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी विकासवाद हावी रहा है।
गोरखपुर व वाराणसी को छोड़ दे तो अन्य जनपदों में वैसा विकास नही हुआ है जैसी घोषणा और शिलान्यास किये गये हैं। विकासवाद का रोग भाजपा सरकार में ही नही पूर्व सरकारों में भी परिवारवाद की तरह हावी रहा है। कांग्रेस की सत्ता में रहते हुए भी उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के जुड़े संसदीय क्षेत्र रायबरेली और अमेठी ही विकास की प्राथमिकता में रहे हैं। जब तक कांग्रेस सरकार थी ऐसा लगता था कि उत्तर प्रदेश में विकास का मतलब केवल रायबरेली एवं अमेठी है । जब केन्द्र एवं प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के रहते रायबरेली एवं अमेठी में छोटी बड़े 400 से अधिक उद्योग लगे थे। 2004 से 2014 तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार में उत्तर प्रदेश में विकास के नाम पर जो भी परियोजनाएं दिल्ली से चली वह अमेठी, रायबरेली की सीमाओं में सीमित रह गयी। समाजवादी पार्टी सत्ता में रहते हुए विकासवाद का ऐसा ही आचरण सैफई में दिखाया हैं। जब तक समाजवादी पार्टी सत्ता में रही विकास की पहिया सैफई और उसके आस-पास घूमता रहा। अमेठी, रायबरेली की तरह इटावा एवं सैफई में भी तमाम ऐसी परियोजनाएं करोड़ों सपा सरकार में स्थापित की गयी। जो विकासवाद का बहुत बड़ा उदाहरण है। मायावती का विकासवाद भी भाजपा, सपा, कांग्रेस की तर्ज पर रहा। पार्क एवं हाथियों की श्रृंखला, मूर्तियां मायावती के गांव बादलपुर ही प्राथमिकता में रहे और ऐसा लग रहा था विकास का मतलब पत्थरों के बड़े-बड़े पार्क बड़ी-बड़ी हाथियों की मूर्तियां और मायावती सहित तमाम मूर्तियां ही रही हैं।
विकासवाद के इस सोच को नौकरशाह भलीभाँति जानते है इसीलिए जिसकी सत्ता होती है उसी का प्रभावशाली नेता प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री होते है उनको खुश करने के लिए गृह जनपद या विधानसभा व अन्य संसदीय क्षेत्र में विकास वाद की एक ऐसी श्रृंखला तैयार करते है और निरन्तर मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री के सामने लाते रहते है जिससे की अप्रत्याशित विकास कराने में वाह-वाही लूटकर नेताओं के निगाह में चमकते सितारे बने रहे। परिवारवाद की तरह अव्यवहारिक भेदभाव पूर्ण विकास कार्य भी देश एवं प्रदेश के लिए घातक है विकास का मतलब आवश्यकतानुसार जहां जैसे जरूरत हो, गांव, गरीब किसान, मजदूर आदि के सर्वागीण विकास के हिसाब से क्षेत्र व जनपदवार होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश आजादी से लेकर अभी तक 75 वर्ष होने जा रहे हैं। इस दौरान परिवारवाद की तरह विकासवाद भी दीमक की तरह लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है।
सियासत में परिवारवाद सभी दलों में हावी है लेकिन इसे अपने-अपने तरीके से सियासत में नेता आरोप-प्रत्यारोप लगाते है। देश का कोई भी ऐसा नेता या पार्टी नही है जिसका परिवार हो और उसमे परिवारवाद न चल रहा हो। कहने का मतलब है कि सियासत में कोई भी पार्टी कोई भी सियासत घराना हो सभी में परिवारवाद कड़वी सच्चाई हैं। जनता भी जानती हैं।
परिवारवाद की तरह सबका साथ सबका विकास नारा देने वाली भाजपा में भी सपा, कांग्रेस, बसपा व अन्य सरकारों की तरह विकासवाद भी चल रहा हैं। जो नेता अधिक ताकतवर होता है विकास कार्य उसकी सियासत की ताकत की आधार पर मनमाने क्षेत्रों में होते हैं। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद विकासवाद के भेदभाव रोग से बचे नही हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी प्राथमिकता में गोरखपुर सबसे ऊपर है। तुलनात्मक रूप से जितना अधिक विकास कार्य सभी क्षेत्रों में हुआ है उतना प्रदेश के अन्य जनपदों में नही हुआ हैं। यही नही दिखाने के लिए प्रदेश भर में करोड़ों-करोड़ों की योजनाओं का शिलान्यास और घोषणा प्रत्येक जनपद के लिए की जाती है लेकिन जमीन पर कार्य वास्तविक रुप से नही होते। उन्ही घोषणाओं का और विकास कार्याे पर तेजी से कार्य होते है जिसमें मुख्यमंत्री व्यक्तिगत रूचि लेकर निरन्तर समीक्षा करते रहते हैं। उदाहरण के रूप में प्रदेश में 45 जनपदों में मेडिकल कालेज बनाने की घोषण हुई हैं। इसी तरह अन्य जनपदों में स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, सिचाई, उद्योग, लगाने की घोषणनाएं शिलान्यास हुए लेकिन जितना अधिक तेजी से विकास कार्य गोरखपुर में हुआ उतना अन्य जनपदों में नही हुआ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज 6 दिसम्बर 2021 को योगी के गृह जनपद गोरखपुर में दस हजार करोड़ से अधिक योजना का लोकापर्ण करेंगे। इनमें खाद, कारखाना, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), रीजनल मेडिकल रिसर्च सेन्टर प्रमुख रूप से शामिल है। इन परियोजनाओं में तेजी से कार्य इसलिए हुआ क्योेंकि योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद है। योगी के कार्यकाल में ही 75 जनपदों में कोई ऐसा जनपद नही बचा जहां पर सबका साथ सबका विकास के नाम पर करोड़ों-करोड़ो की परियोजनाएं की घोषण एवं शिलान्यास न हुआ हो लेकिन जमीन पर विकास आपेक्षाकृत गोरखपुर की तुलना में बहुत ही कम है। विकासवाद की प्राथमिकता गोरखपुर और राजनीतिक लाभ के लिए अयोध्या एवं पूर्वाचंल सड़क आदि जैसी परियोजानएं भी हैं। गोरखपुर की तरह प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी विकासवाद हावी रहा है।
गोरखपुर व वाराणसी को छोड़ दे तो अन्य जनपदों में वैसा विकास नही हुआ है जैसी घोषणा और शिलान्यास किये गये हैं। विकासवाद का रोग भाजपा सरकार में ही नही पूर्व सरकारों में भी परिवारवाद की तरह हावी रहा है। कांग्रेस की सत्ता में रहते हुए भी उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के जुड़े संसदीय क्षेत्र रायबरेली और अमेठी ही विकास की प्राथमिकता में रहे हैं। जब तक कांग्रेस सरकार थी ऐसा लगता था कि उत्तर प्रदेश में विकास का मतलब केवल रायबरेली एवं अमेठी है । जब केन्द्र एवं प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के रहते रायबरेली एवं अमेठी में छोटी बड़े 400 से अधिक उद्योग लगे थे। 2004 से 2014 तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार में उत्तर प्रदेश में विकास के नाम पर जो भी परियोजनाएं दिल्ली से चली वह अमेठी, रायबरेली की सीमाओं में सीमित रह गयी। समाजवादी पार्टी सत्ता में रहते हुए विकासवाद का ऐसा ही आचरण सैफई में दिखाया हैं। जब तक समाजवादी पार्टी सत्ता में रही विकास की पहिया सैफई और उसके आस-पास घूमता रहा। अमेठी, रायबरेली की तरह इटावा एवं सैफई में भी तमाम ऐसी परियोजनाएं करोड़ों सपा सरकार में स्थापित की गयी। जो विकासवाद का बहुत बड़ा उदाहरण है। मायावती का विकासवाद भी भाजपा, सपा, कांग्रेस की तर्ज पर रहा। पार्क एवं हाथियों की श्रृंखला, मूर्तियां मायावती के गांव बादलपुर ही प्राथमिकता में रहे और ऐसा लग रहा था विकास का मतलब पत्थरों के बड़े-बड़े पार्क बड़ी-बड़ी हाथियों की मूर्तियां और मायावती सहित तमाम मूर्तियां ही रही हैं।
विकासवाद के इस सोच को नौकरशाह भलीभाँति जानते है इसीलिए जिसकी सत्ता होती है उसी का प्रभावशाली नेता प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री होते है उनको खुश करने के लिए गृह जनपद या विधानसभा व अन्य संसदीय क्षेत्र में विकास वाद की एक ऐसी श्रृंखला तैयार करते है और निरन्तर मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री के सामने लाते रहते है जिससे की अप्रत्याशित विकास कराने में वाह-वाही लूटकर नेताओं के निगाह में चमकते सितारे बने रहे। परिवारवाद की तरह अव्यवहारिक भेदभाव पूर्ण विकास कार्य भी देश एवं प्रदेश के लिए घातक है विकास का मतलब आवश्यकतानुसार जहां जैसे जरूरत हो, गांव, गरीब किसान, मजदूर आदि के सर्वागीण विकास के हिसाब से क्षेत्र व जनपदवार होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश आजादी से लेकर अभी तक 75 वर्ष होने जा रहे हैं। इस दौरान परिवारवाद की तरह विकासवाद भी दीमक की तरह लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है।
6th December, 2021