राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद सदस्यों का कार्यकाल 07 मार्च 2022 को समाप्त हो रहा हैं। जबकि विधानसभा का कार्यकाल 4 अप्रैल 2022 को पूरा हो रहा हैं। वैसे योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री पद का शपथ लिया था लेकिन विधानसभा का कार्यकाल कैबिनेट के पहली बैठक से लिया जाता है जोकि 4 अप्रैल 2017 को हुई थी इसलिए विधानसभा का कार्यकाल 04 अप्रैल 2022 तक हैं। स्थानीय निकाय क्षेत्र के 36 विधान परिषद सदस्यों का कार्यकाल 07 मार्च 2022 को पूरा हो रहा हैं। सरकार और निर्वाचन आयोग विधान परिषद चुनाव को विधानसभा चुनाव के पहले करा सकता हैं। आयोग से मिली जानकारी के अनुसार जनवरी 2022 के दूसरे सप्ताह में विधानसभा चुनाव घोषित हो सकते हैं। इसके पहले नवम्बर, दिसंबर में विधान परिषद चुनाव कराया जा सकता था लेकिन अभी तक जानकारी के अनुसार विधान परिषद चुनाव योगी सरकार नहीं करवाना चाहते।
चुनाव न कराने को लेकर दो ही सवाल है पहला भाजपा प्रदेश की राजनीतिक हालात को देखते हुए चुनाव कराने से डर गयी हैं क्योंकि पंचायतों के चुनाव में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। प्रधान, जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य पदों पर निर्दलीय एवं गैर भाजपा दलों का कब्जा हो गया था। यह अलग बात है कि सपा सरकार की तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख पदों पर सत्ता के बल पर कब्जा करने में सफल रहे हैं। जिला पंचायत के 75 जनपदों में 69 जनपद और 825 ब्लाक प्रमुखों में 609 ब्लाक प्रमुख पद पर भाजपा के समर्थित प्रत्याशी चुनाव जीते हैं। इन दोनों पदों का चुनाव सदस्यों द्वारा होता है। यह माना जाता है कि जिला पंचायत अध्यक्ष एवं ब्लाक प्रमुख और स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद सदस्य के पदों पर जिसकी सत्ता होती है उसी का कब्जा होता है।
सपा सरकार में 63 जिला पंचायत अध्यक्ष और 623 ब्लाक प्रमुख सपा के चुने गये थे एवं 36 विधान परिषद सदस्यों में 33 पर सपा चुनाव जीती थी। जिसकी पुनरावृत्ति सत्ता के बल पर योगी सरकार ने जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख पदों पर कब्जा करके दिखा दिया था। यह माना जा रहा था कि अखिलेश यादव की तरह योगी आदित्यनाथ ने भी मुख्यमंत्री के रूप में स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद सदस्यों का चुनाव कराकर भाजपा का परचम जिला पंचायत अध्यक्ष एवं प्रमुख की तरह लहरा देंगे। लेकिन चुनाव न कराने से दो सवाल उठे है स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद चुनाव ग्रामीण पंचायत क्षेत्र एवं शहरी पंचायत क्षेत्र के चुने हुए सदस्य करते हैं।
जिसकी सरकार होती है उसी का कब्जा होता हैं। अब चुनाव न कराने से पहला सवाल क्या भाजपा डर गयी है कि बदले हुए राजनीतिक माहौल में चुनाव कराने से विधानसभा चुनाव की तैयारी में व्यवधान और पार्टी के अन्दर आपसी कलह भी होगी। दूसरा कहीं मतदातओं की नाराजगी भाजपा को पराजय न दिला दे। अगर ऐसा नहीं है तो क्या भाजपा को इतना अधिक आत्मविश्वास हो गया है कि 2022 में सरकार भाजपा की ही बनेगी। सरकार बनाने के बाद स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद सदस्यों का चुनाव कराकर सत्ता के बल पर काबिज हो जायेगें।
क्योकि कोई भी सरकार दोनों सदनों विधानसभा और विधानपरिषद में पूर्ण बहुमत का प्रयास करती है। विधानसभा का चुनाव जनता द्वारा सीधे होता है जिससे बहुमत मिलता है। जबकि विधान परिषद के 100 सदस्य का चुनाव सीधे नहीं होता। इनमें स्थानीय निकाय के 36 सदस्य का चुनाव जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं नगर निगम और नगर पालिका के प्रतिनिधि करते है। 8-8 सीटें शिक्षक निर्वाचन एवं स्नातक निर्वाचन से चुन कर आते है। 38 सदस्य चुने हुए विधायक चुनते है एवं 10 सदस्यों को राज्यपाल नामित करते है। इस तरह से विधान परिषद में बहुमत विधानसभा के बहुमत पर काफी कुछ निर्भर करता है। अब अगर किसी को विधानसभा में बहुमत का खतरा दिखाई देता है तो वह सरकार में रहते हुए सत्ता के बल पर स्थानीय निकाय के 36 सदस्यों के निर्वाचन करा कर काबिज कराने प्रयास करती है और यह सत्य भी और परम्परा भी बनी है कि जिसकी सरकार होती है उसी का अधिकांश सीटों पर कब्ज़ा होता है।
समय तय करेगा चुनाव परिणाम के बाद 2022 में किसकी सरकार बनेगी। विधान परिषद् का चुनाव न कराने से सरकार डर गई है या अति आत्मविश्वास हो गया है ?यह सवाल जरूर उठ रहे हैं ।
अखिलेश सरकार में स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद के चुने गये सदस्यों में अरविन्द प्रताप यादव, अमित यादव, अक्षय प्रताप सिंह, आनन्द भदौरिया, उदयवीर सिंह, जसवंत सिंह, घनश्याम सिंह लोधी, डा. दिलीप यादव, दिलीप यादव उर्फ कल्लू यादव, नरेन्द्र सिंह भाटी, परवेज अली, पुष्पराज जैन उर्फ पम्पी जैन, महफुजुर्रहमान उर्फ महफूज खाँ, मोहम्मद इमलाक खाँ, सैयद मिस्बाहुद्ददीन, रमा निरंजन, रविशंकर सिंह पप्पू भैया, राकेश यादव, राकेश कुमार यादव उर्फ गुड्डू , रमेश मिश्र, राजेश कुमार यादव, रामअवध यादव, रामलली मिश्रा, वासुदेव यादव, संतोष यादव "सनी", सुनील कुमार सिंह, "साजन", सी.पी. चन्द, शशांक यादव, शैलेन्द्र प्रताप सिंह, हीरालाल यादव, बृजेश कुमार सिंह "प्रिन्सू", महमूद अली, दिनेश प्रताप सिंह, बृजेश कुमार सिंह उर्फ अरूण, विशाल सिंह "चंचल" आदि हैं।
चुनाव न कराने को लेकर दो ही सवाल है पहला भाजपा प्रदेश की राजनीतिक हालात को देखते हुए चुनाव कराने से डर गयी हैं क्योंकि पंचायतों के चुनाव में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। प्रधान, जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य पदों पर निर्दलीय एवं गैर भाजपा दलों का कब्जा हो गया था। यह अलग बात है कि सपा सरकार की तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख पदों पर सत्ता के बल पर कब्जा करने में सफल रहे हैं। जिला पंचायत के 75 जनपदों में 69 जनपद और 825 ब्लाक प्रमुखों में 609 ब्लाक प्रमुख पद पर भाजपा के समर्थित प्रत्याशी चुनाव जीते हैं। इन दोनों पदों का चुनाव सदस्यों द्वारा होता है। यह माना जाता है कि जिला पंचायत अध्यक्ष एवं ब्लाक प्रमुख और स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद सदस्य के पदों पर जिसकी सत्ता होती है उसी का कब्जा होता है।
सपा सरकार में 63 जिला पंचायत अध्यक्ष और 623 ब्लाक प्रमुख सपा के चुने गये थे एवं 36 विधान परिषद सदस्यों में 33 पर सपा चुनाव जीती थी। जिसकी पुनरावृत्ति सत्ता के बल पर योगी सरकार ने जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख पदों पर कब्जा करके दिखा दिया था। यह माना जा रहा था कि अखिलेश यादव की तरह योगी आदित्यनाथ ने भी मुख्यमंत्री के रूप में स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद सदस्यों का चुनाव कराकर भाजपा का परचम जिला पंचायत अध्यक्ष एवं प्रमुख की तरह लहरा देंगे। लेकिन चुनाव न कराने से दो सवाल उठे है स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद चुनाव ग्रामीण पंचायत क्षेत्र एवं शहरी पंचायत क्षेत्र के चुने हुए सदस्य करते हैं।
जिसकी सरकार होती है उसी का कब्जा होता हैं। अब चुनाव न कराने से पहला सवाल क्या भाजपा डर गयी है कि बदले हुए राजनीतिक माहौल में चुनाव कराने से विधानसभा चुनाव की तैयारी में व्यवधान और पार्टी के अन्दर आपसी कलह भी होगी। दूसरा कहीं मतदातओं की नाराजगी भाजपा को पराजय न दिला दे। अगर ऐसा नहीं है तो क्या भाजपा को इतना अधिक आत्मविश्वास हो गया है कि 2022 में सरकार भाजपा की ही बनेगी। सरकार बनाने के बाद स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद सदस्यों का चुनाव कराकर सत्ता के बल पर काबिज हो जायेगें।
क्योकि कोई भी सरकार दोनों सदनों विधानसभा और विधानपरिषद में पूर्ण बहुमत का प्रयास करती है। विधानसभा का चुनाव जनता द्वारा सीधे होता है जिससे बहुमत मिलता है। जबकि विधान परिषद के 100 सदस्य का चुनाव सीधे नहीं होता। इनमें स्थानीय निकाय के 36 सदस्य का चुनाव जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं नगर निगम और नगर पालिका के प्रतिनिधि करते है। 8-8 सीटें शिक्षक निर्वाचन एवं स्नातक निर्वाचन से चुन कर आते है। 38 सदस्य चुने हुए विधायक चुनते है एवं 10 सदस्यों को राज्यपाल नामित करते है। इस तरह से विधान परिषद में बहुमत विधानसभा के बहुमत पर काफी कुछ निर्भर करता है। अब अगर किसी को विधानसभा में बहुमत का खतरा दिखाई देता है तो वह सरकार में रहते हुए सत्ता के बल पर स्थानीय निकाय के 36 सदस्यों के निर्वाचन करा कर काबिज कराने प्रयास करती है और यह सत्य भी और परम्परा भी बनी है कि जिसकी सरकार होती है उसी का अधिकांश सीटों पर कब्ज़ा होता है।
समय तय करेगा चुनाव परिणाम के बाद 2022 में किसकी सरकार बनेगी। विधान परिषद् का चुनाव न कराने से सरकार डर गई है या अति आत्मविश्वास हो गया है ?यह सवाल जरूर उठ रहे हैं ।
अखिलेश सरकार में स्थानीय निकाय क्षेत्र के विधान परिषद के चुने गये सदस्यों में अरविन्द प्रताप यादव, अमित यादव, अक्षय प्रताप सिंह, आनन्द भदौरिया, उदयवीर सिंह, जसवंत सिंह, घनश्याम सिंह लोधी, डा. दिलीप यादव, दिलीप यादव उर्फ कल्लू यादव, नरेन्द्र सिंह भाटी, परवेज अली, पुष्पराज जैन उर्फ पम्पी जैन, महफुजुर्रहमान उर्फ महफूज खाँ, मोहम्मद इमलाक खाँ, सैयद मिस्बाहुद्ददीन, रमा निरंजन, रविशंकर सिंह पप्पू भैया, राकेश यादव, राकेश कुमार यादव उर्फ गुड्डू , रमेश मिश्र, राजेश कुमार यादव, रामअवध यादव, रामलली मिश्रा, वासुदेव यादव, संतोष यादव "सनी", सुनील कुमार सिंह, "साजन", सी.पी. चन्द, शशांक यादव, शैलेन्द्र प्रताप सिंह, हीरालाल यादव, बृजेश कुमार सिंह "प्रिन्सू", महमूद अली, दिनेश प्रताप सिंह, बृजेश कुमार सिंह उर्फ अरूण, विशाल सिंह "चंचल" आदि हैं।
5th December, 2021