विजय शंकर पंकज, यूरीड मीडिया- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अलीगढ़ से यूपी चुनाव का शंखनाद किया। यहाँ पर मोदी ने योगी की ईमानदारी और कर्मठता का जिस तरह से गुणगान किया है उससे भाजपा के अंदर ही योगी विरोधियों का मुंह बंद करा दिया, वहीं विपक्षी नेताओं को भी यह जता दिया कि चुनाव में उनके खिलाफ कुछ कहने का कोई ताकतवर हथियार नहीं है। डिफेंस कॉरिडोर के उद्घाटन के अवसर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अनुपस्थिति ने आतंरिक कलह का भी संकेत दे दिया है।
मोदी ने जिस तरह से योगी की ईमानदार छवि, जुझारू व्यक्तित्व और कठोर परिश्रम की प्रशंसा की उससे साफ़ है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हीं का चेहरा प्रमुख होगा। यही नहीं प्रत्याशी चयन में भी उन्हीं की चलेगी। योगी ने अभी से चुनाव की तैयारियों के बीच अपने समर्थकों को क्षेत्र में जाने के लिए संकेत दे दिया है।
मोदी ने जिस प्रकार मुख्यमंत्री योगी की ईमानदारी की तारीफ की उससे साफ़ है कि अगला चुनाव ईमानदार नेता और बेईमान नेता के बीच होगा। सपा के अखिलेश यादव पर भ्रष्टाचार के साथ ही जातिवाद तथा मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप हैं तो बसपा नेता मायावती भी भ्रष्टाचार और जातिवाद के आरोप से बरी नहीं हो पायी है। सपा और बसपा नेताओं के खिलाफ अब भी कई केस कोर्ट में चल रहे है। ऐसे में योगी की छवि अपने प्रतिद्वंदी दोनों नेताओं पर भारी पड़ेगी।
उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए भाजपा की दो स्तर पर तैयारी चल रही है। संगठन स्तर पर पार्टी के प्रमुख नेताओं को जिलावार जिम्मेदारी सौपी गयी हैं। इनका प्रभारी केंद्रीय तथा संघ के वरिष्ठों को दी गयी है। चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा ने बूथ स्तर की कमेटियों को सबसे जोड़ दिया है। इसमें पन्ना प्रमुख तक की संरचना की गयी है। हालांकि पन्ना प्रमुख की जिस तरह भाजपा बात कर रही है वह कार्यदायी रूप में अतिश्योक्तिपूर्ण लग रही है। हर 20 मतदाता पर एक पन्ना प्रमुख की नियुक्ति किसी के गले नहीं उतरती। भाजपा ढाई दशकों से ग्राम एवं बूथ इकाइयां गठित करने का दावा करती आ रही है परन्तु मैदान में यह कभी खरी नहीं उतरी। चुनाव के समय यह स्थिति अधिकांशत: देखने को मिलती है कि कई ग्राम पंचायतों में भाजपा के बूथ तक नहीं लग पाते। ऐसे में मण्डल से लेकर ग्राम स्तर तक के भाजपा संगठन का ढांचा हवा हवाई ही साबित होता है।
भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या प्रत्याशी चयन को लेकर है। योगी शासन में विधायकों की स्थिति अब तक की सबसे दयनीय रही है। हालात यह है कि विधायक अपने क्षेत्र में जनता एवं कार्यकर्ताओं के बीच उनके जवाब देने की स्थिति में नहीं खड़ा है। सरकार बनने के बाद जब तक विधायक अपने क्षेत्र के विकास का ख़ाका खींचता तब कोरोना के संकट ने सभी कामकाज ठप कर दिया। योगी की ईमानदारी के नाम पर पुलिस और प्रशासन ने विधायक की एक नहीं सुनी। भाजपा कार्यकर्त्ता अपने छोटे मोटे कार्यों को लेकर भी विधवा विलाप करता रह गया। विधायक जी की पैरवी काम नहीं आयी। अब भाजपा चुनाव के समय कुछ महीनों के लिए आउटसोर्स कार्यकर्ताओं के बल पर संगठन का खाका खींच रहा है। यह आउटसोर्स सोशल मीडिया के कार्यकर्ता कितना वोट डलवा पाएंगे ये तो समय ही बताएगा।
भाजपा में अभी से यह चर्चा है कि पार्टी में निष्क्रिय और अलोकप्रिय सौ से ज्यादा विधायकों के टिकट काटे जायेंगे। इससे पार्टी में एक हलचल मची हुई है। हर विधायक सशंकित है कि उसे अगला टिकट मिलेगा कि नहीं। सबसे दुविधा की स्थिति ब्राह्मण विधायकों की है। ब्राह्मण विधायक की पैरवी के लिए पार्टी का कोई नेता भी नहीं है। योगी के आश्वाशन से ठाकुर विधायक आश्वस्त है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतन्त्र देव सिंह पिछड़ा चेहरा जरूर है परन्तु उनकी राजनीतिक हैसियत टिकट दिलाने की नहीं है। वैसे मोदी और अमित शाह की पूरी रणनीति पिछड़ी राजनीति को लेकर है इसलिए पिछड़े भी अपने टिकट को लेकर आश्वस्त है। आरक्षित सीटों पर दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित है।
टिकट कटने के आशंका को लेकर भाजपा में अगले महीने से भारी हलचल मचने वाली है। कई विधायक अभी से सपा से जोड़ तोड़ करने में लगे हुए है। अभी बसपा तथा कांग्रेस का राजनीतिक गणित टिकटार्थियों को आकर्षित नहीं कर रहा है। ऐस में भाजपा विधायकों का बड़ा दल सपा की तरफ जाता है तो चुनावी गणित बदल सकता है।
भाजपा नेतृत्व को उत्तर प्रदेश में अपने अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी साधना पड़ेगा। राजनाथ सिंह की भी इस चुनाव में अति महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उनकी उपेक्षा पार्टी में भारी पड़ सकती है। योगी की ईमानदारी के साथ उनका अहं, अफसरशाही की मनमानी और विधायकों एवं कार्यकर्ताओं की उपेक्षा चुनाव में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
मोदी ने जिस तरह से योगी की ईमानदार छवि, जुझारू व्यक्तित्व और कठोर परिश्रम की प्रशंसा की उससे साफ़ है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हीं का चेहरा प्रमुख होगा। यही नहीं प्रत्याशी चयन में भी उन्हीं की चलेगी। योगी ने अभी से चुनाव की तैयारियों के बीच अपने समर्थकों को क्षेत्र में जाने के लिए संकेत दे दिया है।
मोदी ने जिस प्रकार मुख्यमंत्री योगी की ईमानदारी की तारीफ की उससे साफ़ है कि अगला चुनाव ईमानदार नेता और बेईमान नेता के बीच होगा। सपा के अखिलेश यादव पर भ्रष्टाचार के साथ ही जातिवाद तथा मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप हैं तो बसपा नेता मायावती भी भ्रष्टाचार और जातिवाद के आरोप से बरी नहीं हो पायी है। सपा और बसपा नेताओं के खिलाफ अब भी कई केस कोर्ट में चल रहे है। ऐसे में योगी की छवि अपने प्रतिद्वंदी दोनों नेताओं पर भारी पड़ेगी।
उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए भाजपा की दो स्तर पर तैयारी चल रही है। संगठन स्तर पर पार्टी के प्रमुख नेताओं को जिलावार जिम्मेदारी सौपी गयी हैं। इनका प्रभारी केंद्रीय तथा संघ के वरिष्ठों को दी गयी है। चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा ने बूथ स्तर की कमेटियों को सबसे जोड़ दिया है। इसमें पन्ना प्रमुख तक की संरचना की गयी है। हालांकि पन्ना प्रमुख की जिस तरह भाजपा बात कर रही है वह कार्यदायी रूप में अतिश्योक्तिपूर्ण लग रही है। हर 20 मतदाता पर एक पन्ना प्रमुख की नियुक्ति किसी के गले नहीं उतरती। भाजपा ढाई दशकों से ग्राम एवं बूथ इकाइयां गठित करने का दावा करती आ रही है परन्तु मैदान में यह कभी खरी नहीं उतरी। चुनाव के समय यह स्थिति अधिकांशत: देखने को मिलती है कि कई ग्राम पंचायतों में भाजपा के बूथ तक नहीं लग पाते। ऐसे में मण्डल से लेकर ग्राम स्तर तक के भाजपा संगठन का ढांचा हवा हवाई ही साबित होता है।
भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या प्रत्याशी चयन को लेकर है। योगी शासन में विधायकों की स्थिति अब तक की सबसे दयनीय रही है। हालात यह है कि विधायक अपने क्षेत्र में जनता एवं कार्यकर्ताओं के बीच उनके जवाब देने की स्थिति में नहीं खड़ा है। सरकार बनने के बाद जब तक विधायक अपने क्षेत्र के विकास का ख़ाका खींचता तब कोरोना के संकट ने सभी कामकाज ठप कर दिया। योगी की ईमानदारी के नाम पर पुलिस और प्रशासन ने विधायक की एक नहीं सुनी। भाजपा कार्यकर्त्ता अपने छोटे मोटे कार्यों को लेकर भी विधवा विलाप करता रह गया। विधायक जी की पैरवी काम नहीं आयी। अब भाजपा चुनाव के समय कुछ महीनों के लिए आउटसोर्स कार्यकर्ताओं के बल पर संगठन का खाका खींच रहा है। यह आउटसोर्स सोशल मीडिया के कार्यकर्ता कितना वोट डलवा पाएंगे ये तो समय ही बताएगा।
भाजपा में अभी से यह चर्चा है कि पार्टी में निष्क्रिय और अलोकप्रिय सौ से ज्यादा विधायकों के टिकट काटे जायेंगे। इससे पार्टी में एक हलचल मची हुई है। हर विधायक सशंकित है कि उसे अगला टिकट मिलेगा कि नहीं। सबसे दुविधा की स्थिति ब्राह्मण विधायकों की है। ब्राह्मण विधायक की पैरवी के लिए पार्टी का कोई नेता भी नहीं है। योगी के आश्वाशन से ठाकुर विधायक आश्वस्त है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतन्त्र देव सिंह पिछड़ा चेहरा जरूर है परन्तु उनकी राजनीतिक हैसियत टिकट दिलाने की नहीं है। वैसे मोदी और अमित शाह की पूरी रणनीति पिछड़ी राजनीति को लेकर है इसलिए पिछड़े भी अपने टिकट को लेकर आश्वस्त है। आरक्षित सीटों पर दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित है।
टिकट कटने के आशंका को लेकर भाजपा में अगले महीने से भारी हलचल मचने वाली है। कई विधायक अभी से सपा से जोड़ तोड़ करने में लगे हुए है। अभी बसपा तथा कांग्रेस का राजनीतिक गणित टिकटार्थियों को आकर्षित नहीं कर रहा है। ऐस में भाजपा विधायकों का बड़ा दल सपा की तरफ जाता है तो चुनावी गणित बदल सकता है।
भाजपा नेतृत्व को उत्तर प्रदेश में अपने अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी साधना पड़ेगा। राजनाथ सिंह की भी इस चुनाव में अति महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उनकी उपेक्षा पार्टी में भारी पड़ सकती है। योगी की ईमानदारी के साथ उनका अहं, अफसरशाही की मनमानी और विधायकों एवं कार्यकर्ताओं की उपेक्षा चुनाव में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
14th September, 2021