राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- देश की जनता कोरोना वायरस के संकट में ऑक्सीजन की कमी से मर रही है इसके लिए किसी एक को दोषी नहीं कहा जा सकता है। कोई एक सरकार दोषी नहीं है। जनता से लेकर पूरी व्यवस्था इसके लिए जिम्मेदार है। गिव एंड टेक, देने और लेने का बैलेंस होना चाहिए। एक कहावत है जैसा बोवोगे वैसा ही काटोगे। बोया पेड़ बबूल का आम कहां से पाऊं। यह सब लाइने जीवन का यथार्थ है और आईना दिखाती हैं। तीन दशक पहले आप चले जाइए सड़कें चौड़ी जरूर कम थी लेकिन सीजन में फल और साल के 365 दिन भरपूर ऑक्सीजन देती थी। विकास की दौड़ ने फोर-लेन सिक्स-लेन एयरप्लेन और पता नहीं कितने लेन बनते जा रहे हैं। सौ- सौ, दो-दो सौ वर्ष पुराने पेड़ों को ऐसे बेरहमी से कांटा है, जड़ से नाश किया है और उनकी जड़ों पर जो हमें बरसों से ऑक्सीजन का जीवन दान देते आ रहे हैं। कंक्रीट से पाट दिया।
लखनऊ से लेकर देश के किसी भी प्रमुख मार्ग पर चले जाइए। शहर के अंदर या शहर के बाहर सड़क कैसे हो गई हैं जैसे कि सोलह सिंगार करने वाली सफेद साड़ी में आ गई हो। लखनऊ से देवरिया तक चले जाएं, लखनऊ से दिल्ली चले जाएं, कानपुर चले जाएं, सुल्तानपुर, बनारस, पटना किसी भी रोड पर चले जाएं जो पुराने रोड थे उन्हें उजाड़ दिया गया है बड़े-बड़े पेड़ जिनमें आम जामुन और तमाम तरह के फलदार वृक्ष थे जो सीजन में चलते राहगीरों का फल से पेट भर देते थे आज आप चले जाएं अगर आपकी गाड़ी में ऐसी नहीं है तो टेंपरेचर इतना अधिक होगा कि परेशानी निश्चित होगी इसी तरह से ऑक्सीजन के सबसे बड़े स्रोत पेड़ पौधों को तबाह किया, कांटा और जो पौधे लगाए वैसे हैं जिन्हें खुद ऑक्सीजन की आवश्यकता है।
फर्जी पौध लगाने के आंकड़ों का पूरे देश में दशकों से खेल चल रहा है इसके लिए कोई एक सरकार जिम्मेदार नहीं है कोई एक समाज और व्यक्ति जिम्मेदार नहीं है हम सभी सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं। जो वृक्ष हम लगा रहे हैं उन्हें हम आप ऑक्सीजन की दृष्टि से नहीं कमर्शियल उद्देश्य से लगा रहे हैं। दिल्लीवासी शीला दीक्षित जी को दिल से धन्यवाद दें और श्रद्धांजलि दें कि उनके प्रयास से कोरोना वायरस के संकट में भी ऑक्सीजन की कमी अस्पतालों में है लेकिन खुले शहर में नहीं है क्योंकि शीला दीक्षित ने ऑक्सीजन देने वाले वृक्ष नीम और पीपल से दिल्ली को हरा भरा कर दिया। पूरे देश में केंद्रीय मंत्री गडकरी बहुत चौड़े होकर कहते हैं कि पूर्व सरकार की तुलना में मोदी सरकार में तीन से चार गुना सड़क प्रतिदिन अधिक बन रही है लेकिन गडकरी यह भूल जा रहे हैं कि कंक्रीट की बन रही सड़कों से आने वाले दिनों में विकास से ज्यादा विनाश होगा।
सड़के लूट का कारण बन गई है। 6 वर्षों में गडकरी सड़कों की वाहवाही लूट रहे हैं लेकिन किसी एक भी रूट पर बता दें कि उन्होंने ऑक्सीजन देने वाले कितने वृक्ष लगवाए। जो आज बड़े होकर जनता को ऑक्सीजन दे रहे हैं। तबाही ही तबाही चारों तरफ हो रही है। बड़े-बड़े वृक्ष जिन्हें हम बरसों से अपने बचपन से देख रहे थे चौड़ीकरण की दुनिया ने रातो रात निगल लिया। वृक्षों के साथ अब आप नदियों और गांव के तालाबों, शहर के झीलों को देखें। सरकारों के देखभाल में भ्रष्ट नौकरशाहों के लूट में शामिल होकर सब को तबाह कर दिया है नदियां सूख रही हैं अतिक्रमण का शिकार हो रही हैं। प्रदूषण से भर रही हैं और विकास के नाम पर नदियों के स्वच्छता अभियान के नाम पर पिछले पांच दशक में अरबों अरबों रुपए नौकरशाह और नेताओं के काकस ने पानी की तरह पी लिया।
कल्पना से परे है कि जिस तरह से अवैध खनन हो रहा है नदी नाले पट गए हैं। शहर हो या गांव हर जगह वृक्षों की तरह जल का दोहन हो रहा है निश्चित रूप से माननीय और देश की जनता मानसिक रूप से तैयार हो जाए कि ऑक्सीजन की कमी से तो उबर जाओगे लेकिन पानी की कमी से कोई नहीं बचा पाएगा। ऑक्सीजन के प्लांट लग जा रहे हैं कृतिम ऑक्सीजन पैदा कर ले रहे हो। कृतिम जल नहीं पैदा कर पाओगे जिस तरह से दोहन कर रहे हो प्रकृति को बर्बाद कर रहे हो जल ही जीवन है ऑक्सीजन ही जीवन है इसे सभी जानते हैं लेकिन हम सब मिलकर दोहन कर रहे हैं। इसके लिए कोई एक जिम्मेदार नहीं है व्यवस्था के साथ-साथ कार्यपालिका न्यायपालिका विधायिका मीडिया और हर व्यक्ति जिम्मेदार है। जो जल जरूरत से ज्यादा दोहन कर रहा है पिछले चार दशक से जो भी सरकार रही हो हर सरकार में नदियों को बचाने, जल बचाने, वृक्ष लगाने के अभियान चलते रहे लेकिन परिणाम दुर्भाग्यपूर्ण ही रहा क्योंकि सभी ने लूटा है। एक तरफा प्रकृति को लूटा है आजाद भारत में जनता ने सरकार सभी ने प्रकृति से लिया ही है दिया नहीं और आज भी ले रहे हैं। प्रकृति को बचाने के लिए उसे कुछ देने का प्रयास नहीं कर रहे हैं जो भी छह दशक या उससे अधिक उम्र के हो गए वह सभी पिछले 40 साल पुराने गांव और शहरों, सड़कों, नदी नालों, तालाबों और भाईचारे तथा नैतिक मूल्यों को देखा होगा और आज भी देख रहे हैं जो लोग प्रकृति को बर्बाद किए हैं और आज कर रहे हैं वह सोचे जब एक वायरस ने ऑक्सीजन की कमी से कोहराम मचा दिया है। श्मशान और कब्रिस्तान में जगह नहीं बची है और यह कमी पूरा करने के लिए हमारा देश कटोरा लेकर दुनिया भर के देशों से भीख मांग रहा है। कह रहा है बचाओ बचाओ हमारे पास आक्सीजन नहीं है, वेंटिलेटर नहीं है और हम मर रहे हैं दुनिया के छोटे बड़े बहुत सारे देश रहम खा कर दया करके हमें ऑक्सीजन और जरूरत के मेडिकल संसाधन उपलब्ध करा रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत की वास्तविकता यही है कि हम आज अपने लोगों को ऑक्सीजन नहीं दे पा रहे हैं।
कल यही स्थिति पानी की होगी। कल्पना कीजिए कि जिस तरह से स्थिति बन रही है शहरों का विस्तारीकरण हो रहा है। मल्टी स्टोरी 15-18-40 और 50 मंजिला गगनचुंबी इमारतें बनी है पानी का स्रोत सूखेगा तो फिर क्या होगा ? कैसे लोग जिंदा रहेंगे और कौन सा योग पानी की कमी को पूरा करेगा ? कोरोना वायरस ने देश की जनता और कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका मीडिया तथा उन सभी व्यवस्था के प्रभावशाली लोगों के लिए एक चेतावनी है कि अगर जिंदा रहना है तो प्रकृति का दोहन बंद कीजिए जितना आप प्रकृति से ले रहे हैं चाहे वृक्षों खनन हो, जल हो या अन्य किसी प्रकार के संसाधन जो प्रकृति से हम ले रहे हैं हमें उससे अधिक प्रकृति को देने का प्रयास करना चाहिए। राजनीति भी होगी जब जनता होगी और जनता जब भी होगी जब जीवन और जल होगा।
लखनऊ से लेकर देश के किसी भी प्रमुख मार्ग पर चले जाइए। शहर के अंदर या शहर के बाहर सड़क कैसे हो गई हैं जैसे कि सोलह सिंगार करने वाली सफेद साड़ी में आ गई हो। लखनऊ से देवरिया तक चले जाएं, लखनऊ से दिल्ली चले जाएं, कानपुर चले जाएं, सुल्तानपुर, बनारस, पटना किसी भी रोड पर चले जाएं जो पुराने रोड थे उन्हें उजाड़ दिया गया है बड़े-बड़े पेड़ जिनमें आम जामुन और तमाम तरह के फलदार वृक्ष थे जो सीजन में चलते राहगीरों का फल से पेट भर देते थे आज आप चले जाएं अगर आपकी गाड़ी में ऐसी नहीं है तो टेंपरेचर इतना अधिक होगा कि परेशानी निश्चित होगी इसी तरह से ऑक्सीजन के सबसे बड़े स्रोत पेड़ पौधों को तबाह किया, कांटा और जो पौधे लगाए वैसे हैं जिन्हें खुद ऑक्सीजन की आवश्यकता है।
फर्जी पौध लगाने के आंकड़ों का पूरे देश में दशकों से खेल चल रहा है इसके लिए कोई एक सरकार जिम्मेदार नहीं है कोई एक समाज और व्यक्ति जिम्मेदार नहीं है हम सभी सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं। जो वृक्ष हम लगा रहे हैं उन्हें हम आप ऑक्सीजन की दृष्टि से नहीं कमर्शियल उद्देश्य से लगा रहे हैं। दिल्लीवासी शीला दीक्षित जी को दिल से धन्यवाद दें और श्रद्धांजलि दें कि उनके प्रयास से कोरोना वायरस के संकट में भी ऑक्सीजन की कमी अस्पतालों में है लेकिन खुले शहर में नहीं है क्योंकि शीला दीक्षित ने ऑक्सीजन देने वाले वृक्ष नीम और पीपल से दिल्ली को हरा भरा कर दिया। पूरे देश में केंद्रीय मंत्री गडकरी बहुत चौड़े होकर कहते हैं कि पूर्व सरकार की तुलना में मोदी सरकार में तीन से चार गुना सड़क प्रतिदिन अधिक बन रही है लेकिन गडकरी यह भूल जा रहे हैं कि कंक्रीट की बन रही सड़कों से आने वाले दिनों में विकास से ज्यादा विनाश होगा।
सड़के लूट का कारण बन गई है। 6 वर्षों में गडकरी सड़कों की वाहवाही लूट रहे हैं लेकिन किसी एक भी रूट पर बता दें कि उन्होंने ऑक्सीजन देने वाले कितने वृक्ष लगवाए। जो आज बड़े होकर जनता को ऑक्सीजन दे रहे हैं। तबाही ही तबाही चारों तरफ हो रही है। बड़े-बड़े वृक्ष जिन्हें हम बरसों से अपने बचपन से देख रहे थे चौड़ीकरण की दुनिया ने रातो रात निगल लिया। वृक्षों के साथ अब आप नदियों और गांव के तालाबों, शहर के झीलों को देखें। सरकारों के देखभाल में भ्रष्ट नौकरशाहों के लूट में शामिल होकर सब को तबाह कर दिया है नदियां सूख रही हैं अतिक्रमण का शिकार हो रही हैं। प्रदूषण से भर रही हैं और विकास के नाम पर नदियों के स्वच्छता अभियान के नाम पर पिछले पांच दशक में अरबों अरबों रुपए नौकरशाह और नेताओं के काकस ने पानी की तरह पी लिया।
कल्पना से परे है कि जिस तरह से अवैध खनन हो रहा है नदी नाले पट गए हैं। शहर हो या गांव हर जगह वृक्षों की तरह जल का दोहन हो रहा है निश्चित रूप से माननीय और देश की जनता मानसिक रूप से तैयार हो जाए कि ऑक्सीजन की कमी से तो उबर जाओगे लेकिन पानी की कमी से कोई नहीं बचा पाएगा। ऑक्सीजन के प्लांट लग जा रहे हैं कृतिम ऑक्सीजन पैदा कर ले रहे हो। कृतिम जल नहीं पैदा कर पाओगे जिस तरह से दोहन कर रहे हो प्रकृति को बर्बाद कर रहे हो जल ही जीवन है ऑक्सीजन ही जीवन है इसे सभी जानते हैं लेकिन हम सब मिलकर दोहन कर रहे हैं। इसके लिए कोई एक जिम्मेदार नहीं है व्यवस्था के साथ-साथ कार्यपालिका न्यायपालिका विधायिका मीडिया और हर व्यक्ति जिम्मेदार है। जो जल जरूरत से ज्यादा दोहन कर रहा है पिछले चार दशक से जो भी सरकार रही हो हर सरकार में नदियों को बचाने, जल बचाने, वृक्ष लगाने के अभियान चलते रहे लेकिन परिणाम दुर्भाग्यपूर्ण ही रहा क्योंकि सभी ने लूटा है। एक तरफा प्रकृति को लूटा है आजाद भारत में जनता ने सरकार सभी ने प्रकृति से लिया ही है दिया नहीं और आज भी ले रहे हैं। प्रकृति को बचाने के लिए उसे कुछ देने का प्रयास नहीं कर रहे हैं जो भी छह दशक या उससे अधिक उम्र के हो गए वह सभी पिछले 40 साल पुराने गांव और शहरों, सड़कों, नदी नालों, तालाबों और भाईचारे तथा नैतिक मूल्यों को देखा होगा और आज भी देख रहे हैं जो लोग प्रकृति को बर्बाद किए हैं और आज कर रहे हैं वह सोचे जब एक वायरस ने ऑक्सीजन की कमी से कोहराम मचा दिया है। श्मशान और कब्रिस्तान में जगह नहीं बची है और यह कमी पूरा करने के लिए हमारा देश कटोरा लेकर दुनिया भर के देशों से भीख मांग रहा है। कह रहा है बचाओ बचाओ हमारे पास आक्सीजन नहीं है, वेंटिलेटर नहीं है और हम मर रहे हैं दुनिया के छोटे बड़े बहुत सारे देश रहम खा कर दया करके हमें ऑक्सीजन और जरूरत के मेडिकल संसाधन उपलब्ध करा रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत की वास्तविकता यही है कि हम आज अपने लोगों को ऑक्सीजन नहीं दे पा रहे हैं।
कल यही स्थिति पानी की होगी। कल्पना कीजिए कि जिस तरह से स्थिति बन रही है शहरों का विस्तारीकरण हो रहा है। मल्टी स्टोरी 15-18-40 और 50 मंजिला गगनचुंबी इमारतें बनी है पानी का स्रोत सूखेगा तो फिर क्या होगा ? कैसे लोग जिंदा रहेंगे और कौन सा योग पानी की कमी को पूरा करेगा ? कोरोना वायरस ने देश की जनता और कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका मीडिया तथा उन सभी व्यवस्था के प्रभावशाली लोगों के लिए एक चेतावनी है कि अगर जिंदा रहना है तो प्रकृति का दोहन बंद कीजिए जितना आप प्रकृति से ले रहे हैं चाहे वृक्षों खनन हो, जल हो या अन्य किसी प्रकार के संसाधन जो प्रकृति से हम ले रहे हैं हमें उससे अधिक प्रकृति को देने का प्रयास करना चाहिए। राजनीति भी होगी जब जनता होगी और जनता जब भी होगी जब जीवन और जल होगा।
4th May, 2021