डॉक्टर अनिल चतुर्वेदी, यूरीद मीडिया- युद्ध में राम ने रावण के ह्रदय को विदीर्ण करने वाला बाण चलाया, तो उस बाण ने रावण के शरीर का अंत करके उसके खून से रंग कर शीघ्रतापूर्ण धरती में समा गया और इस प्रकार रावण अपने जीवन से हाथ धो बैठा। उसकी मृत्यु का समाचार सुनते ही सभी वानर सेना हर्ष और उत्साह से भर गयी और रावण के वध की घोषणा करते हुए ज़ोर-ज़ोर से गर्जना करने लगी। परन्तु पराजित हुये भाई को रणभूमि में पड़ा देख विभीषण का ह्रदय शोक से व्याकुल हो गया और वह विलाप करने लगे। विभीषण के कहा कि, मैंने आपको पहले से ही आगाह कर दिया था, परन्तु उस समय काम और मोह के वशीभूत होने के कारण, आपने मेरी बात नहीं मानी। तब विभीषण से श्री राम जी ने कहा, यह रावण युद्ध में असमर्थ होकर नहीं मारा गया है। इन्होने प्रचंड पराक्रम प्रकट किया है। इनका उत्साह बहुत बढ़ा हुआ था। इन्हें मृत्यु से कोई भय नहीं था। यह दैवीय प्रकोप से रणभूमि में धाराशाही हुए हैं। रावण जैसे बुद्धिमान वीर ने इंद्र सहित तीन लोकों को युद्ध में भयभीत कर रखा था आज वही इस समय काल के अधीन हो गया तो उसके लिए शोक यह करने का अवसर नहीं है। इन्हें तो इनकी वीरता का सम्मान मिलना चाहिए।
युद्ध में "किसी को भी सदा विजय ही विजय मिले, ऐसा पहले भी कभी नहीं हुआ है। वीर पुरुष संग्राम में या तो शत्रुओं द्वारा मारा जाता है या स्वयं ही शत्रुओं को मार गिराता है।" क्षत्रियवृत्ति से रहने वाला वीर पुरुष यदि युद्ध में मारा गया हो तो वह शोक के योग्य नहीं होता है। यही शास्त्र का सिद्धांत भी है। शास्त्र के इस निश्चय पर विचार करके, सात्विक बुद्धि का आश्रय लेकर तुम निश्चित हो जाओ और आगे जो कुछ कार्य करना हो उसके सम्बन्ध में विचार करो। राम जी ने कहा कि, रावण अग्निहोत्री, महातपस्वी, वेदांतवेता तथा यज्ञ कर्मों में श्रेष्ठ सूर व परम कर्मठी रहे है। अतः रावण के लिए सर्वोत्तम लोकों की प्राप्ति कराने वाला अंत्येष्टि कर्म करने की आज्ञा दी आपको दी जाती है। प्रभु बोले, विभीषण बैर किसी व्यक्ति के जीवन काल तक ही रहता है। मरने के बाद उस बैर का अंत हो जाता है। यह सुनकर बुद्धिमान विभीषण ने विनयपूर्वक यह बात कही कि, भगवन जिसने धर्म और सदाचार का त्याग कर दिया था, जो क्रूर, निर्दयी, असत्यवादी तथा परायी स्त्री को स्पर्श करने वाला था, उसका दाह संस्कार करना मैं उचित नहीं समझता हूँ। सबके अहित में संलग्न रहने वाला यह रावण, भाई के रूप में मेरा शत्रु था। हालांकि यह बड़ा था तथा मेरा पूज्य था फिर भी वह मुझसे सत्कार पाने योग्य नहीं है। मेरी यह बात सुनकर, संस्कारी मनुष्य मुझे क्रूर अवश्य कहेंगे, परन्तु जब रावण के दुर्गुणों को भी सुनेंगे, तब सब लोग मेरे इस विचार को उचित ही बताएंगे। ऐसे वचन सुन कर प्रभु श्री राम बोले "राक्षसराज, मुझे तुम्हारा भी प्रिय करना है" क्योकि तुम्हारे ही प्रभाव से मेरी जीत हुई है। यह निशाचर भले ही अधर्मी और असत्यवादी रहा हो, परन्तु संग्राम में सदा ही तेजस्वी, बलवान तथा सूरवीर रहा है। सुना जाता है कि इंद्र आदि देवता भी इसे परास्त नहीं कर सके थे। समस्त लोकों को रुलाने वाला रावण बल और पराक्रम से संपन्न महामनस्वी था।
बैर मरने तक ही रहता है। मरने के बाद उसका अंत हो जाता है। अब हमारा प्रयोजन भी सिद्ध हो चुका है। अतः "इस समय जैसे यह तुम्हारा भाई है, वैसे ही मेरा भी है, इसलिए इसका विधि पूर्वक दाह संस्कार करो।" प्रभु श्री राम की यह शिक्षा आज भी पूरे संसार में युद्ध के दौरान दिखाई देती है। आज भी दुनिया में युद्धों में शहीद होने वाले सैनिकों के शवों को बहुत ही सम्मान की दृष्टी से देखा जाता है। चाहे वह सैनिक अपने देश का हो या किसी अन्य देश का। इसकी मिसाल विभिन्न युद्धों में समय-समय पर दिखाई देती है। परन्तु रावण का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा, कि आज भी उस वीर पुरुष को मरने के बावजूद सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है। इसे असत्य पर सत्य की जीत के रूप में देखा जाता है और उसके मृत्य शरीर का घोर अपमान भी किया जाता है।
पश्चिम के महान दार्शनिक हेरा क्लेट्स ने लिखा कि "संसार संघर्ष द्वारा नियंत्रित होता है। युद्ध सभी का पिता और सम्राट है, यदि संघर्ष अथवा विपरीतता न हो तो संसार स्थिर हो जायेगा और समाप्त हो जायेगा।" भगवांन की दृष्टी में सभी चीज़े अच्छी और यथोचित है और भगवान् सभी चीज़ों को उनके सही रूप में ही होने का आदेश करता है। चूंकि रावण में अच्छे और बुरे के संतुलन का अभाव दिखाई दिया, तो काल ने उसकी जान ले ली। लेकिन उसके शव को इस तरह से अपमान करना किसी भी तर्क पर सही नहीं उतरता है। यदि हम आज के सामाज के परिपेक्ष में देखे तो रावण से बड़ा और विभत्सय प्रदुषण की समस्या है। यह पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव जन्तुओं को अकाल मृत्यु देता है लेकिन हम उस प्रदुषण को रावण का जलाकर उससे भी बड़ा रावण सालों साल से पैदा करते आ रहे हैं। आज हमारा समाज राम की इन शिक्षाओं को भूलकर स्वार्थवश समाज में बैर, हिंसा, अपमान एवं वैमनस्य को बढ़ावा दे रहा है।
युद्ध में "किसी को भी सदा विजय ही विजय मिले, ऐसा पहले भी कभी नहीं हुआ है। वीर पुरुष संग्राम में या तो शत्रुओं द्वारा मारा जाता है या स्वयं ही शत्रुओं को मार गिराता है।" क्षत्रियवृत्ति से रहने वाला वीर पुरुष यदि युद्ध में मारा गया हो तो वह शोक के योग्य नहीं होता है। यही शास्त्र का सिद्धांत भी है। शास्त्र के इस निश्चय पर विचार करके, सात्विक बुद्धि का आश्रय लेकर तुम निश्चित हो जाओ और आगे जो कुछ कार्य करना हो उसके सम्बन्ध में विचार करो। राम जी ने कहा कि, रावण अग्निहोत्री, महातपस्वी, वेदांतवेता तथा यज्ञ कर्मों में श्रेष्ठ सूर व परम कर्मठी रहे है। अतः रावण के लिए सर्वोत्तम लोकों की प्राप्ति कराने वाला अंत्येष्टि कर्म करने की आज्ञा दी आपको दी जाती है। प्रभु बोले, विभीषण बैर किसी व्यक्ति के जीवन काल तक ही रहता है। मरने के बाद उस बैर का अंत हो जाता है। यह सुनकर बुद्धिमान विभीषण ने विनयपूर्वक यह बात कही कि, भगवन जिसने धर्म और सदाचार का त्याग कर दिया था, जो क्रूर, निर्दयी, असत्यवादी तथा परायी स्त्री को स्पर्श करने वाला था, उसका दाह संस्कार करना मैं उचित नहीं समझता हूँ। सबके अहित में संलग्न रहने वाला यह रावण, भाई के रूप में मेरा शत्रु था। हालांकि यह बड़ा था तथा मेरा पूज्य था फिर भी वह मुझसे सत्कार पाने योग्य नहीं है। मेरी यह बात सुनकर, संस्कारी मनुष्य मुझे क्रूर अवश्य कहेंगे, परन्तु जब रावण के दुर्गुणों को भी सुनेंगे, तब सब लोग मेरे इस विचार को उचित ही बताएंगे। ऐसे वचन सुन कर प्रभु श्री राम बोले "राक्षसराज, मुझे तुम्हारा भी प्रिय करना है" क्योकि तुम्हारे ही प्रभाव से मेरी जीत हुई है। यह निशाचर भले ही अधर्मी और असत्यवादी रहा हो, परन्तु संग्राम में सदा ही तेजस्वी, बलवान तथा सूरवीर रहा है। सुना जाता है कि इंद्र आदि देवता भी इसे परास्त नहीं कर सके थे। समस्त लोकों को रुलाने वाला रावण बल और पराक्रम से संपन्न महामनस्वी था।
बैर मरने तक ही रहता है। मरने के बाद उसका अंत हो जाता है। अब हमारा प्रयोजन भी सिद्ध हो चुका है। अतः "इस समय जैसे यह तुम्हारा भाई है, वैसे ही मेरा भी है, इसलिए इसका विधि पूर्वक दाह संस्कार करो।" प्रभु श्री राम की यह शिक्षा आज भी पूरे संसार में युद्ध के दौरान दिखाई देती है। आज भी दुनिया में युद्धों में शहीद होने वाले सैनिकों के शवों को बहुत ही सम्मान की दृष्टी से देखा जाता है। चाहे वह सैनिक अपने देश का हो या किसी अन्य देश का। इसकी मिसाल विभिन्न युद्धों में समय-समय पर दिखाई देती है। परन्तु रावण का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा, कि आज भी उस वीर पुरुष को मरने के बावजूद सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है। इसे असत्य पर सत्य की जीत के रूप में देखा जाता है और उसके मृत्य शरीर का घोर अपमान भी किया जाता है।
पश्चिम के महान दार्शनिक हेरा क्लेट्स ने लिखा कि "संसार संघर्ष द्वारा नियंत्रित होता है। युद्ध सभी का पिता और सम्राट है, यदि संघर्ष अथवा विपरीतता न हो तो संसार स्थिर हो जायेगा और समाप्त हो जायेगा।" भगवांन की दृष्टी में सभी चीज़े अच्छी और यथोचित है और भगवान् सभी चीज़ों को उनके सही रूप में ही होने का आदेश करता है। चूंकि रावण में अच्छे और बुरे के संतुलन का अभाव दिखाई दिया, तो काल ने उसकी जान ले ली। लेकिन उसके शव को इस तरह से अपमान करना किसी भी तर्क पर सही नहीं उतरता है। यदि हम आज के सामाज के परिपेक्ष में देखे तो रावण से बड़ा और विभत्सय प्रदुषण की समस्या है। यह पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव जन्तुओं को अकाल मृत्यु देता है लेकिन हम उस प्रदुषण को रावण का जलाकर उससे भी बड़ा रावण सालों साल से पैदा करते आ रहे हैं। आज हमारा समाज राम की इन शिक्षाओं को भूलकर स्वार्थवश समाज में बैर, हिंसा, अपमान एवं वैमनस्य को बढ़ावा दे रहा है।
26th October, 2020