
डॉक्टर अनिल चतुर्वेदी, यूरीड मीडिया-जब सहस्त्रार्जुन द्वारा आर्यार्वत पर आक्रमण की सूचना भृगु के आश्रम में पहुंची। तो वहां अन्य आश्रमवासियों के साथ जिसमे कि, चक्रवर्ती भरत, शिवि, भद्रसेन आदि लोग, जमदग्नि के आश्रम में ही उपस्थित थे। भद्रसेन, सहस्त्रार्जुन को भली भांति पहचानते थे। उसकी प्रलयकारी समुन्द्र के समान सेना को रोकना असंभव है। अतः उन सभी ने निर्णय किया कि, आर्यार्वत के सभी लोग को एकांत जंगल में, पर्वत पर और हो सके तो सिन्धु नदी के किनारे चले जाना चाहिए। तब भद्रसेन ने जमदग्नि ऋषि को भी अपने साथ चलने को कहा तो उन्होंने सर हिलाते हुए कहा कि नहीं, "भद्रसेन मैं तो ऋषि हूँ।" एवं सहस्त्रार्जुन का परम्परागत गुरु भी हूँ। मैं तो यही रहूँगा।
भद्रसेन बोले कि, वह तो सर्वभक्षी है। कोई तपस्वी हो या शीलवती स्त्री हो, किसी के प्रति उसके मन में सम्मान का भाव नहीं है। "जमदग्नि बोले माना कि, वह बलवान है, पर ऐसे बलवानों की शक्ति परिमित होती है। वह मार सकता है, पर तपस्वियों के तप को भंग नहीं कर सकता। तुम सब यहाँ से चले जाओ।" किसी शस्त्रधारी को आश्रम में नहीं रहना चाहिए। इससे उसके पशुबल को उत्तेजना मिलेगी। यदि मैं अकेला ही यहाँ रहूँगा, तो वह ऊँगली भी नहीं उठा सकेगा। उनकी पत्नी रेणुका ने कहा कि महर्षि मैं आपके साथ ही रहूंगी।
सरस्वती के एक तट पर वशिष्ठ ऋषि ने अपने शिष्यों को बुला कर कहा कि, तपस्वियों आर्यार्वत में भारी विपत्ति आ गयी है। परशुराम(भार्गव) के अतिरिक्त और कोई इसे नहीं रोक सकता और उन्हें आने में अभी भी देर लगेगी। तुम में जो भाग सके, वे भाग जाये और हो सके तो हिमालय की गुफा में जाकर छिप जाये, लेकिन मैं आश्रम नहीं छोडूंगा।
शिष्यों, यहाँ आपातकाल आया है इसलिए आपद धर्म को स्वीकार करना ही होगा। मेरी चिंता न करना। मैंने राजा दिवोदास और गाधी राजा के समय से मैंने आर्यार्वत को विद्या, शौर्य एवं समृद्धि को विकास पाते देखा है। आज उसी आर्यार्वत को जलाकर भस्म करने वाला यहाँ तक आ पंहुचा है। मैं या तो उसे तप के बल पर पिघला कर आर्यार्वत को बचा लूँगा, नहीं तो इस प्रयत्न में मर मिटूंगा और यह कीर्ति कथा की धरोहर तुम्हारे लिए छोड़ जाऊंगा।
सहस्त्रार्जुन आर्यार्वत में भृगुओ के आश्रम पर अधिकार करने का संकल्प लेकर चला। अपने शत्रु भार्गव(परशुराम) को मारना उसका सर्वप्रथम लक्ष्य था। वह सरस्वती नदी को पार कर वशिष्ठ मुनि के आश्रम पंहुचा। वशिष्ठ मुनि के उसके आने का कोई संज्ञान नहीं लिया। तब सहस्त्रार्जुन ने दम्भ में आकर मुनि से कहा कि तुमने मुझे पहचाना नहीं। देवताओं की भी आज्ञा है कि तुम्हे मेरे आदेश का पालन करना चाहिए। अन्यथा मैं आर्यार्वत को जलाकर कर भस्म कर दूंगा। मुनि ने कहा कि लूटपाट करना, संहार करना, जला कर भस्म कर देना यह सब तो कोई भी कर सकता है। यह सुनते ही सहस्त्रार्जुन मुनि की दाढ़ी पकड़ने के लिए झपटा, अभी वह स्पर्श भी नहीं कर पाया था, कि मुनि ने अपने प्राण छोड़ दिए। इस प्रकार मुनि के अपमान करने की उसकी साध अपूर्ण ही रह गयी।
वशिष्ठ मुनि के मृत्यु के बाद सहस्त्रार्जुन जमदग्नि के आश्रम पंहुचा। वहां जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ बैठे थे। उन्हें देखते ही अर्जुन ने उनकी खिल्ली उड़ाते हुए कहा, मैं सहस्त्रार्जुन कृत्यवीर का पुत्र आपको प्रणाम करता हूँ। इस पर मुनि ने कहा यदि तू श्रापग्रस्त कृत्यवीर का पुत्र है, तो तुमने इस आश्रम को भ्रष्ट कर दिया है। मेरे पिता ऋचीक का श्राप अभी भी तेरे कुल से उतरा नहीं है। अर्जुन बोला इसलिए ही तो मैं यहाँ आया हूँ। तुम्हारे पिता ने मेरे दादा को श्राप दिया था, वही उतारने के लिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ। जमदग्नि ने कहा रे दुष्ट! भृगुओं का श्राप तो हज़ार जीवा सर्प बन कर डस्ता ही जायेगा। अर्जुन बोला, इस समय तो मैं सबका काल बन कर आया हूँ और वह तुम्हारा पुत्र? परशुराम कहाँ छुप कर बैठा है। महर्षि ने उत्तर दिया, जब तेरी मरने की घड़ी आ पहुंचेगी, तभी वह तुझसे आ मिलेंगे। यह सुनकर उसने क्रोध से कहा कि आप हमारे परम्परागत गुरु हैं और आप मेरे पुरोहित हो जाईये। यदि आप पुरोहित हो जायेंगे तो मेरे हैहयों को शांति प्राप्त होगी और मेरी प्रतिष्ठा बढ़ जाएगी। यदि आप मेरी मांग को स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं क्षुब्ध होकर सब कुछ नष्ट कर दूंगा। तब जमदग्नि बोले, जिनका उद्धार ही संभव नहीं है, उसका गुरु भला कौन बन सकता है। अर्जुन बोला जानते हैं इसका परिणाम क्या होगा ? मैं तुम्हारे प्राण ले लूंगा। महर्षि ने उत्तर दिया, यह कार्य तो सिंह, भेड़िये और सर्प भी कर सकते हैं पर यह सब तू न करेगा, तो नर पिशाच कैसे कहा जायेगा। अर्जुन चिल्ला उठा, उसने जमदग्नि को एक वृक्ष से बाँध दिया और अपने तरकश से एक तीर निकाला और उसने जमदग्नि के शरीर पर दे मारा, उनके शरीर से खून की धार बहने लगी। उसने हॅसते हुए रेणुका से कहा, बुढ़िया! तू अपने पति की सेवा यही बैठ कर करना। रेणुका रोते हुए अपने पति के चरणों में बैठी रही और मुनि के शरीर से रुक रुक कर रक्त की धार बह रहा था। जमदग्नि बोले, कि रेणुका राम कब आएगा। यह कह वह मूर्क्षित हो गए। अगले सुबह रेणुका ने मुनी से रुधे कंठ से पूछा, कि इस वेदना को कब तक सहन करना होगा ? मुनि बोले, "यह वेदना नहीं है, यह तो पशु व आर्य के बीच युद्ध चल रहा है। इसमें तो आर्योतव की ही विजय होगी"। तो आप का क्या होगा ? रेणुका ने पूछा और अपने आँसू भरे नयनों से अगले दिन की प्रतीक्षा करती रही और मन ही मन कहती रही "राम ! राम ! भार्गव ! तू कब आएगा ? उनके रोम रोम से यही स्वर गूँज रहा था" महर्षि पर होने वाला एक एक आघात उसके ह्रदय में सहस्त्र सहस्त्र आघात कर रहा था। उनकी हर सांस में एक ही प्रार्थना निकल रही थी।
"मेरे राम तू कब आएगा"
भद्रसेन बोले कि, वह तो सर्वभक्षी है। कोई तपस्वी हो या शीलवती स्त्री हो, किसी के प्रति उसके मन में सम्मान का भाव नहीं है। "जमदग्नि बोले माना कि, वह बलवान है, पर ऐसे बलवानों की शक्ति परिमित होती है। वह मार सकता है, पर तपस्वियों के तप को भंग नहीं कर सकता। तुम सब यहाँ से चले जाओ।" किसी शस्त्रधारी को आश्रम में नहीं रहना चाहिए। इससे उसके पशुबल को उत्तेजना मिलेगी। यदि मैं अकेला ही यहाँ रहूँगा, तो वह ऊँगली भी नहीं उठा सकेगा। उनकी पत्नी रेणुका ने कहा कि महर्षि मैं आपके साथ ही रहूंगी।
सरस्वती के एक तट पर वशिष्ठ ऋषि ने अपने शिष्यों को बुला कर कहा कि, तपस्वियों आर्यार्वत में भारी विपत्ति आ गयी है। परशुराम(भार्गव) के अतिरिक्त और कोई इसे नहीं रोक सकता और उन्हें आने में अभी भी देर लगेगी। तुम में जो भाग सके, वे भाग जाये और हो सके तो हिमालय की गुफा में जाकर छिप जाये, लेकिन मैं आश्रम नहीं छोडूंगा।
शिष्यों, यहाँ आपातकाल आया है इसलिए आपद धर्म को स्वीकार करना ही होगा। मेरी चिंता न करना। मैंने राजा दिवोदास और गाधी राजा के समय से मैंने आर्यार्वत को विद्या, शौर्य एवं समृद्धि को विकास पाते देखा है। आज उसी आर्यार्वत को जलाकर भस्म करने वाला यहाँ तक आ पंहुचा है। मैं या तो उसे तप के बल पर पिघला कर आर्यार्वत को बचा लूँगा, नहीं तो इस प्रयत्न में मर मिटूंगा और यह कीर्ति कथा की धरोहर तुम्हारे लिए छोड़ जाऊंगा।
सहस्त्रार्जुन आर्यार्वत में भृगुओ के आश्रम पर अधिकार करने का संकल्प लेकर चला। अपने शत्रु भार्गव(परशुराम) को मारना उसका सर्वप्रथम लक्ष्य था। वह सरस्वती नदी को पार कर वशिष्ठ मुनि के आश्रम पंहुचा। वशिष्ठ मुनि के उसके आने का कोई संज्ञान नहीं लिया। तब सहस्त्रार्जुन ने दम्भ में आकर मुनि से कहा कि तुमने मुझे पहचाना नहीं। देवताओं की भी आज्ञा है कि तुम्हे मेरे आदेश का पालन करना चाहिए। अन्यथा मैं आर्यार्वत को जलाकर कर भस्म कर दूंगा। मुनि ने कहा कि लूटपाट करना, संहार करना, जला कर भस्म कर देना यह सब तो कोई भी कर सकता है। यह सुनते ही सहस्त्रार्जुन मुनि की दाढ़ी पकड़ने के लिए झपटा, अभी वह स्पर्श भी नहीं कर पाया था, कि मुनि ने अपने प्राण छोड़ दिए। इस प्रकार मुनि के अपमान करने की उसकी साध अपूर्ण ही रह गयी।
वशिष्ठ मुनि के मृत्यु के बाद सहस्त्रार्जुन जमदग्नि के आश्रम पंहुचा। वहां जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ बैठे थे। उन्हें देखते ही अर्जुन ने उनकी खिल्ली उड़ाते हुए कहा, मैं सहस्त्रार्जुन कृत्यवीर का पुत्र आपको प्रणाम करता हूँ। इस पर मुनि ने कहा यदि तू श्रापग्रस्त कृत्यवीर का पुत्र है, तो तुमने इस आश्रम को भ्रष्ट कर दिया है। मेरे पिता ऋचीक का श्राप अभी भी तेरे कुल से उतरा नहीं है। अर्जुन बोला इसलिए ही तो मैं यहाँ आया हूँ। तुम्हारे पिता ने मेरे दादा को श्राप दिया था, वही उतारने के लिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ। जमदग्नि ने कहा रे दुष्ट! भृगुओं का श्राप तो हज़ार जीवा सर्प बन कर डस्ता ही जायेगा। अर्जुन बोला, इस समय तो मैं सबका काल बन कर आया हूँ और वह तुम्हारा पुत्र? परशुराम कहाँ छुप कर बैठा है। महर्षि ने उत्तर दिया, जब तेरी मरने की घड़ी आ पहुंचेगी, तभी वह तुझसे आ मिलेंगे। यह सुनकर उसने क्रोध से कहा कि आप हमारे परम्परागत गुरु हैं और आप मेरे पुरोहित हो जाईये। यदि आप पुरोहित हो जायेंगे तो मेरे हैहयों को शांति प्राप्त होगी और मेरी प्रतिष्ठा बढ़ जाएगी। यदि आप मेरी मांग को स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं क्षुब्ध होकर सब कुछ नष्ट कर दूंगा। तब जमदग्नि बोले, जिनका उद्धार ही संभव नहीं है, उसका गुरु भला कौन बन सकता है। अर्जुन बोला जानते हैं इसका परिणाम क्या होगा ? मैं तुम्हारे प्राण ले लूंगा। महर्षि ने उत्तर दिया, यह कार्य तो सिंह, भेड़िये और सर्प भी कर सकते हैं पर यह सब तू न करेगा, तो नर पिशाच कैसे कहा जायेगा। अर्जुन चिल्ला उठा, उसने जमदग्नि को एक वृक्ष से बाँध दिया और अपने तरकश से एक तीर निकाला और उसने जमदग्नि के शरीर पर दे मारा, उनके शरीर से खून की धार बहने लगी। उसने हॅसते हुए रेणुका से कहा, बुढ़िया! तू अपने पति की सेवा यही बैठ कर करना। रेणुका रोते हुए अपने पति के चरणों में बैठी रही और मुनि के शरीर से रुक रुक कर रक्त की धार बह रहा था। जमदग्नि बोले, कि रेणुका राम कब आएगा। यह कह वह मूर्क्षित हो गए। अगले सुबह रेणुका ने मुनी से रुधे कंठ से पूछा, कि इस वेदना को कब तक सहन करना होगा ? मुनि बोले, "यह वेदना नहीं है, यह तो पशु व आर्य के बीच युद्ध चल रहा है। इसमें तो आर्योतव की ही विजय होगी"। तो आप का क्या होगा ? रेणुका ने पूछा और अपने आँसू भरे नयनों से अगले दिन की प्रतीक्षा करती रही और मन ही मन कहती रही "राम ! राम ! भार्गव ! तू कब आएगा ? उनके रोम रोम से यही स्वर गूँज रहा था" महर्षि पर होने वाला एक एक आघात उसके ह्रदय में सहस्त्र सहस्त्र आघात कर रहा था। उनकी हर सांस में एक ही प्रार्थना निकल रही थी।
"मेरे राम तू कब आएगा"
30th September, 2020