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भाजपा का दोहरा चेहरा

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भाजपा का दोहरा चेहरा

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कांग्रेस नेता के रूप में राहुल अपनी बचकानियों से नेतृत्व का भार नही संभाल पा रहे है तो राज्य स्तर पर बिखरे क्षेत्रीय दल अपनी ही सीमाओं में बंधकर रह गये है। ऐसे में मोदी एवं भाजपा देश की राजनीति में विकल्प हीनता के पोषक बनकर रह गये है। अपने प्रतिद्वन्दी दलालों की अपेक्षा भाजपा ने जातिय आधार पर सभी वर्गो को अपने साथ जोड़ने की वर्षो से मुहिम चला रखी है और उस दिशा में लगातार प्रयास किये जा रहे है जबकि कांग्रेस तथा राज्य के सपा एवं बसपा कुछ जातियों में ही सिमट कर रह गये है।
सपा पर अन्य जातियों की उपेक्षा कर यादव वाद का शिकार होने का आरोप है तो बसपा दलित वर्ग के चमार एवं पासी की जमीन से अपने को मुक्त नही कर पायी है। कांग्रेस के पास अभी तक कोई अपना वोट बैंक नही बच पाया है। इस दिशा में कांग्रेस नेतृत्व दिग्भ्रमित सा है। पिछले चुनाव में आनन-फानन में कांग्रेस ने जिस प्रकार से पहले शीला दीक्षित और फिर से राजबब्बर को सामने लाकर चुनाव लड़ा, उसका नतीजा सिफर रहा। उसके बाद भी कांग्रेस अभी तक अपनी चुनावी दिशा तय नही कर पायी है।