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राम - अब मंदिर नही संग्रहालय

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राम - अब मंदिर नही संग्रहालय

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भारतीय समाज की कहावत है- "बिन घरनी-घर सूना"। अयोध्या का हाले बयां भी कुछ ऐसा ही है। वैसे तो अयोध्या का मसला धार्मिक रूप से आजादी के बाद 1948 में ही अपना स्वरूप दिखाने लगा था जब हिन्दू मान्यताओं के अनुसार विवादित स्थल पर राम लला की मूर्ति प्रस्फुटित हुई। उस समय तक मुसलमान उक्त स्थल को बाबरी मस्जिद के नाम से पुकारते थे जबकि हिन्दू राम जन्म स्थल कहते थे। विवाद के कारण मस्जिद कहलाने के बाद भी कभी वहां पर मुस्लिम समुदाय नमाज नही पढ़ता था। रामलला की मूर्ति के प्राक्ट्य ने हिन्दू जनमानस में जो धार्मिक भाव प्रस्फुटित किया, वही से यहां पर पूजा-अर्चना शुरू हो गयी। पूजा के विवाद से प्रशासन ने रामलला के प्राक्ट्य स्थल पर ताला लगा दिया परन्तु बाहरी चबूतरे पर पूजा की अनुमति जारी रही। यही से विवादित स्थल के स्वामित्व को लेकर विवाद शु डिग्री हुआ। किसी धार्मिक  स्थल के भूमि स्वामित्व को लेकर इतना लंबा सिविल केस विश्व के किसी देश में नही देखने को मिलता है। वर्ष 1986 में मंदिर का ताला खुलने के बाद यह मामला आन्दोलन का रूप लेता गया। उसके बाद का इतिहास सभी जानते है। भाजपा की तीन राज्यों में पहली बार 1991 में सरकार राम के नाम पर बनी परन्तु 1992 में विवादित स्थल ढहाने के बाद यह सरकारे तो भंग हो गयी परन्तु मंदिर निर्माण का नारा चलता रहा। केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार में मंदिर निर्माण से यह कहकर भाजपा पिन्ड छुड़ाती रही कि उसके लिए जनता का पूर्ण बहुमत नही मिला है। अब मोदी के नाम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के ढाई साल बाद भी भाजपा मंदिर निर्माण नही संग्रहालय का प्रस्ताव लेकर अयोध्या पहुंची है।