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राम - अब मंदिर नही संग्रहालय

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राम - अब मंदिर नही संग्रहालय

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विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)

लखनऊ। राजनीति तो छलावा है। इसीलिए सत्ता के लिए 'साम-दाम- दण्ड- भेद' की नीति अनिवार्य बनायी गयी है। आम जन जब इसका उपयोग करता है तो वह दण्ड का भागी होता है परन्तु सत्तासीनों के लिए यह आदर्श कार्य प्रणाली का हिस्सा माना जाता है। इसीलिए राजनीतिज्ञों आैर सत्ता नसीनों के लिए धर्म, सामाजिक नैतिकता आैर वादा खिलाफी को कोई गुनाह नही माना जाता है। सत्ता के लिए सारे उपाय किये जाते है। ऐसा नही होता तो "राम" के नाम पर दो सांसदों से केन्द्र की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली भाजपा तीन दशकों बाद भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के स्थान पर संग्रहालय का "लालीपाप" पकड़ाने को बाध्य नही होना पड़ता।

शायद यह सब कुछ...