हैदराबाद
:-
भारत में पढ़ाई के दौरान अपने बच्चों को एक कहावत उनके माता पिता लगातार कहते रहे हैं कि 'पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब'। इस कहावत के बिल्कुल उलट लंदन ओलंपिक में सायना नेहवाल और रियो में पीवी सिंधू के जरिए बैडमिंटन में लगातार भारत को पदक दिलाने में अहम योगदान देने वाले पुलेला गोपीचंद का कहना है कि वो भाग्यशाली थे कि पढ़ाई में अच्छे नहीं थे और आईआईटी की परीक्षा पास नहीं कर सके जिसकी वजह से उनका एक सफल खिलाड़ी बनने का रास्ता खुला।
अकादमी के लिए अपना घर गिरवी रखा -
- गोपीचंद 2001 में आल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीतने वाले सिर्फ दूसरे भारतीय बने।
- इसके बाद चोटिल होने की वजह से उन्होंने संन्यास लेने का फैसला किया।
- फिर अपनी अकादमी खोली, हालांकि, अकादमी खोलने की उनकी राह आसान नहीं रही।
- गोपीचंद ने बताया,'मुझे याद है कि कुछ साल पहले मैं सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी के पास गया।
- तीन दिन बाद शाम को एक बड़े पदाधिकारी ने मेरे पास आकर कहा कि बैडमिंटन में इंटनेशनल खेल बनने की क्षमता नहीं है।
- गोपीचंद ने कहा,'यह अंतिम दिन था जब मैं स्पॉन्सरशिप के लिए किसी के पास गया।
- उसी रात मैं वापस चला गया और मेरे माता पिता और पत्नी का आभार, हमने हमारा घर गिरवी रख दिया और इस तरह अकादमी बनी।
हैदराबाद
:-
भारत में पढ़ाई के दौरान अपने बच्चों को एक कहावत उनके माता पिता लगातार कहते रहे हैं कि 'पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब'। इस कहावत के बिल्कुल उलट लंदन ओलंपिक में सायना नेहवाल और रियो में पीवी सिंधू के जरिए बैडमिंटन में लगातार भारत को पदक दिलाने में अहम योगदान देने वाले पुलेला गोपीचंद का कहना है कि वो भाग्यशाली थे कि पढ़ाई में अच्छे नहीं थे और आईआईटी की परीक्षा पास नहीं कर सके जिसकी वजह से उनका एक सफल खिलाड़ी बनने का रास्ता खुला।
:-
भारत में पढ़ाई के दौरान अपने बच्चों को एक कहावत उनके माता पिता लगातार कहते रहे हैं कि 'पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब'। इस कहावत के बिल्कुल उलट लंदन ओलंपिक में सायना नेहवाल और रियो में पीवी सिंधू के जरिए बैडमिंटन में लगातार भारत को पदक दिलाने में अहम योगदान देने वाले पुलेला गोपीचंद का कहना है कि वो भाग्यशाली थे कि पढ़ाई में अच्छे नहीं थे और आईआईटी की परीक्षा पास नहीं कर सके जिसकी वजह से उनका एक सफल खिलाड़ी बनने का रास्ता खुला।
अकादमी के लिए अपना घर गिरवी रखा -
- गोपीचंद 2001 में आल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीतने वाले सिर्फ दूसरे भारतीय बने।
- इसके बाद चोटिल होने की वजह से उन्होंने संन्यास लेने का फैसला किया।
- फिर अपनी अकादमी खोली, हालांकि, अकादमी खोलने की उनकी राह आसान नहीं रही।
- गोपीचंद ने बताया,'मुझे याद है कि कुछ साल पहले मैं सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी के पास गया।
- तीन दिन बाद शाम को एक बड़े पदाधिकारी ने मेरे पास आकर कहा कि बैडमिंटन में इंटनेशनल खेल बनने की क्षमता नहीं है।
- गोपीचंद ने कहा,'यह अंतिम दिन था जब मैं स्पॉन्सरशिप के लिए किसी के पास गया।
- उसी रात मैं वापस चला गया और मेरे माता पिता और पत्नी का आभार, हमने हमारा घर गिरवी रख दिया और इस तरह अकादमी बनी।
1st September, 2016