सुयोग्य राज द्विवेदी
यूरिड मीडिया डेस्क
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हमेशा से ही प्रकृति में कई तरह के बदलाव होते रहे हैं। हमेशा से ही प्रकृति समय-समय पर करवट बदलती रहती है। ऐसे में जीव-जन्तुओं की प्रजातियों की संख्या में उतार-चढ़ाव भी काफी हद तक स्थिति को तय करता है। हमारे आस-पास ऐसे कई तरह के जीव जन्तु रहते हैं जिनको हम लोग देख कर भी नज़र अंदाज़ कर देते हैं पर उनकी गिरती-बढ़ती जनसंख्या हमारे जीवन में बहुत ही विकट तरह की समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं इसके बारे में हम लोग तनिक भी नहीं सोचते।
ऐसा ही एक जीव है गिद्ध जिसकी जनसंख्या में साल दर साल गिरावट आती जा रही है। सरकार भी इसके संरक्षण के लिए समय-समय पर तमाम तरह के प्रयास करती रही है। गिद्ध समुदाय की तीन सबसे प्रचलित प्रजातियां हैं Gyps bengalensis, Gyps indicus और Gyps tenuirostris (क्रमशः सफेद पीठ वाले गिद्ध, लंबे चोंच वाले गिद्ध और पतले चोच वाले गिद्ध) इनकी आबादी में पिछले दो दशकों में तेजी से गिरावट आई है, नब्बे के दशक की तुलना में, जनसंख्या में दुर्घटना 99% से अधिक है।
वैसे तो गिद्ध विभिन्न जीव-जन्तुओं व इंसानी मांस को खाकर ज़िंदा रहते हैं परंतु अगर प्रकृति के दूरदर्शी चश्मे से देखा जाए तो इनका यही काम प्रकृति को किस हद तक लाभकारी है इस बारे हमने कभी भी नहीं सोचा। गिद्ध आम तौर पर जीव-जन्तुओं व इंसानी मांस को खाकर ज़िंदा रहते हैं परंतु इनकी गिरती जनसंख्या किस तरह प्रकृति को नुकसान पहुंचा रही है।
आपको आज ये बताते हैं--
जो भी जीव जन्तु मर जाते हैं उनके खात्मे का काम यही करते हैं। ये उन जीवों का मांस खाकर गंदगी व गंभीर बीमारियों को फैलने से बचाते हैं। इनकी अनुपस्थिति में तमाम जानवर जो की मरने के बाद गिद्धों का भोजन बनते वे सड़कों पर पड़े-पड़े सड़ने लगते हैं और बहुत सारी गंभीर बीमारियों को न्योता देते हैं। गिद्धों का एक झुंड बड़े से बड़े जानवर के शव को 20 मिनट में निपटा सकता है। जानवरों में विशेष तौर पर कुत्ते व चूहे होते हैं जो बीमारियों को वजह बनते हैं। अगर आंकड़ो की तरफ गौर करें तो भारत में अकेले 1.8 करोड़ कुत्ते हैं जो दुनिया में मौजूद सभी देशों में सबसे अधिक हैं। भारत में प्रति साल तकरीबन 30 हज़ार लोग रेबीज़ से मरते हैं। अगर अन्य गंभीर बीमारियों की बात की जाए तो मुख्य तौर पर रेबीज़, प्लेग व एंथ्रेक्स इनमें पहले स्थान पर हैं।
जनसंख्या में गिरावट-
पिछले कई वर्षों से इनकी संख्या में भरी गिरावट दर्ज की गई है। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर, राजस्थान, में प्रारंभिक रूप से 1985 और 1999 के बीच भारतीय सफेद पीठ वाले गिद्धों की संख्या में 96% की गिरावट आई तथा लंबी चोंच वाले गिद्धों में 97% गिरावट दर्ज की गई।
गिद्धों की प्रकृति सबसे कुशल मैला ढोने वालों की रही है। भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से 5 जीनस गिप्सश के हैं। गिद्धों की सभी प्रजातियां मैला ढोने वाले हैं और आदमी के खानेवाले हैं। अत्यंत उच्च घनत्व में उनकी उपस्थिति शव निपटान की आदिम पद्धति की वजह से प्रचुर मात्रा में भोजन की आपूर्ति की उपलब्धता के कारण है। उन्होंने सफलतापूर्वक व्यापक डेयरी फार्मिंग से आदमी द्वारा बनाई गई विशाल खाद्य संसाधनों का फायदा उठाया है। गिद्धों के लिए प्रमुख भोजन पशुओं के शव हैं पर अब भोजन के लिए ज्यादातर मानव गतिविधियों पर निर्भर हैं।
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के सहयोग से हरियाणा वन विभाग ने पिंजौर में एक गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र स्थापित किया है। शुरू में यह केन्द्रह एक गिद्ध केयर सेंटर के रूप में गिद्धों की आबादी में गिरावट की जांच और अध्य यन करने के लिए 2001 में स्थाएपित किया गया था। वर्तमान में इस केंद्र में 127 गिद्ध हैं (सफेद पीठ वाले गिद्ध 55 नग, लंबी चोंच वाले गिद्ध 55 नग, पतली चोंच वाले गिद्ध 15 और हिमालय नौसिकुआ 2 नग)। यह दुनिया में कहीं भी एक ही स्थान पर गिद्ध की तीन गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों का सबसे बड़ा संग्रह है।
28th August, 2016