
राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- लोकतंत्र में जनता जनार्दन अहम होती है। जिस दल को अधिक समर्थन मिलता है, वह सत्ता में प्रधानमंत्री बनता है और दूसरे सबसे बड़े दल का नेता प्रतिपक्ष होता है। दोनों लोकतंत्र की महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। देश की सुरक्षा, विकास में पक्ष और विपक्ष दोनों की अहम भूमिका होती है। सत्तापक्ष जितना महत्वपूर्ण है, विपक्ष की भूमिका उससे कम नहीं होती। पक्ष और विपक्ष मिलकर ही लोकतंत्र में सरकारें चलाते हैं। निश्चित रूप से जैसा नाम पक्ष और विपक्ष है, दोनों में वैचारिक, नीतिगत मतभेद होते हैं। लेकिन जब भी देश का मामला आता है, सारे मतभेद भूलकर देशहित में एकसाथ होते हैं। कई अवसर आए हैं जब चाहे 1962 चीन की लड़ाई, 1965, 1971 पाकिस्तान से लड़ाई, 1999 कारगिल की लड़ाई, 2019 में पुलवामा और 2025 ऑपरेशन सिंदूर रहा हो — विपक्ष ने एकजुट होकर सत्ता का साथ दिया। इसका परिणाम यह रहा कि देश के जांबाज सेना के जवानों ने पाकिस्तान को सभी युद्धों में करारी शिकस्त दी।
22 अप्रैल 2025 को पहलगांम में पाकिस्तान के आतंकवादियों ने 26 लोगों की धर्म पूछकर हत्या कर दी, जिसके खिलाफ पूरे देश में आक्रोश फैला। मोदी सरकार पर दबाव बना, विपक्ष ने एकतरफा समर्थन दिया। देश के जांबाज सैनिकों ने पाकिस्तान में घुसकर 9 आतंकवादी ठिकानों को तहस-नहस करके 100 से अधिक आतंकवादी मारे। पाक के 10 एयरबेस को नुकसान पहुंचाया। इसके बाद से सेना के इस शौर्य की क्रेडिट लेने की होड़ मच गई। कांग्रेस-भाजपा दोनों ने तिरंगा यात्रा निकाली। सभी ने सेना को बधाइयां दी और सलाम किया। यहाँ तक तो ठीक था, लेकिन इसके बाद जो शुरू हुआ वह चिंता का विषय और दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर्वदलीय बैठक में नहीं गए, बल्कि बिहार की चुनावी रैली में 22 अप्रैल 2025 की घटना का सबक सिखाने की घोषणा की, जबकि यह बात प्रधानमंत्री को सर्वदलीय बैठक में शामिल होकर कहना चाहिए था।
दो बहादुर महिलाएँ कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी मीडिया को देने के लिए सेना ने अधिकृत किया। दोनों बहादुर बेटियों ने ऑपरेशन सिंदूर में कैसे भारत के जांबाज़ों ने पाक के आतंकवादी कैंपों को नष्ट किया, इसकी जानकारी दी। देश की 140 करोड़ जनता ने इन बहादुर बेटियों को सम्मान दिया। लेकिन हद तो तब हो गई जब भाजपा के मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह और उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और सपा के रामगोपाल यादव ने इन बहादुर बेटियों पर जाति और धर्म को लेकर शर्मनाक टिप्पणी की, जो चिंता का विषय और सेना का अपमान है। इन बयानों को न्यायालय ने संज्ञान में लिया और एफआईआर करने के निर्देश दिए, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सपा नेता अखिलेश यादव बहादुर बेटियों और सेना के अपमान पर चुप रहे। उच्च न्यायालय मध्य प्रदेश ने टिप्पणी की थी — "सेना इस देश की शायद अंतिम संस्था है, जिसमें ईमानदारी, अनुशासन और बलिदान का अद्वितीय उदाहरण मिलता है। मंत्री विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ गटर जैसी भाषा का इस्तेमाल किया है। यह किसी अफसर नहीं बल्कि सेना को नीचा दिखाने की कोशिश है, इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
न्यायालय के निर्देश पर एफआईआर तो दर्ज हुई लेकिन बहुत कमजोर। इन्हीं सब विवादों के बीच विपक्ष ने अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा यह कहना कि उन्होंने भारत-पाक पर दबाव डालकर सीज़फायर कराया है, इसे भारत की संप्रभुता पर हमला और मोदी की प्रतिष्ठा को प्रभावित करने वाला कहा जा सकता है। ट्रम्प के बयानों को लेकर विपक्ष हमलावर है। दूसरा, विदेश मंत्री जयशंकर का यह बयान कि उन्होंने हमले से पहले पाकिस्तान को सचेत कर दिया था, विपक्ष इसे राष्ट्रद्रोह मानता है और विदेश मंत्री से इस्तीफ़ा देने की माँग कर रहा है। सीज़फायर पर उठे विवाद पर देश में आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। यही नहीं, ऑपरेशन सिंदूर और आतंकवादी घटना को लेकर भारत अपना पक्ष पूरी दुनिया को बताने के लिए सात सर्वदलीय सांसदों की टीम गठित की है। सांसदों के नाम को लेकर भी विवाद है। राहुल गांधी ने कई ऐसे सवाल उठाए हैं, जिसे भाजपा पाकिस्तान की मदद करने वाला बताकर राहुल गांधी के आधे चेहरे को पाकिस्तान के जनरल मुनीर के चेहरा जोड़ दिया है। प्रतिक्रिया में कांग्रेस ने मोदी का चेहरा नवाज शरीफ से जोड़ दिया है। इस तरीके से कांग्रेस और भाजपा के बीच मर्यादाओं को तार-तार कर लोकतंत्र को कलंकित और देशद्रोह जैसी हरकतें की जा रही हैं। मोदी और राहुल के बीच ऐसी दुश्मनी की लकीर खिंची हुई है कि देशहित में भी संवाद नहीं हो रहा है। दोनों नेताओं का अहम देश से ऊपर हो गया है। जबकि देश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष का अहंकार इतना बढ़ जाए कि देश के हितों को लेकर भी बात न हो। दुर्भाग्य की बात यह भी है कि आज देश में ऐसा कोई बड़ा नेता नहीं है जो ऐसे अहंकारी नेताओं के बीच संवादवाहक बने और राष्ट्रीय हितों पर आमने-सामने बैठकर बात करा सके।
22 अप्रैल 2025 को पहलगांम में पाकिस्तान के आतंकवादियों ने 26 लोगों की धर्म पूछकर हत्या कर दी, जिसके खिलाफ पूरे देश में आक्रोश फैला। मोदी सरकार पर दबाव बना, विपक्ष ने एकतरफा समर्थन दिया। देश के जांबाज सैनिकों ने पाकिस्तान में घुसकर 9 आतंकवादी ठिकानों को तहस-नहस करके 100 से अधिक आतंकवादी मारे। पाक के 10 एयरबेस को नुकसान पहुंचाया। इसके बाद से सेना के इस शौर्य की क्रेडिट लेने की होड़ मच गई। कांग्रेस-भाजपा दोनों ने तिरंगा यात्रा निकाली। सभी ने सेना को बधाइयां दी और सलाम किया। यहाँ तक तो ठीक था, लेकिन इसके बाद जो शुरू हुआ वह चिंता का विषय और दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर्वदलीय बैठक में नहीं गए, बल्कि बिहार की चुनावी रैली में 22 अप्रैल 2025 की घटना का सबक सिखाने की घोषणा की, जबकि यह बात प्रधानमंत्री को सर्वदलीय बैठक में शामिल होकर कहना चाहिए था।
दो बहादुर महिलाएँ कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी मीडिया को देने के लिए सेना ने अधिकृत किया। दोनों बहादुर बेटियों ने ऑपरेशन सिंदूर में कैसे भारत के जांबाज़ों ने पाक के आतंकवादी कैंपों को नष्ट किया, इसकी जानकारी दी। देश की 140 करोड़ जनता ने इन बहादुर बेटियों को सम्मान दिया। लेकिन हद तो तब हो गई जब भाजपा के मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह और उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और सपा के रामगोपाल यादव ने इन बहादुर बेटियों पर जाति और धर्म को लेकर शर्मनाक टिप्पणी की, जो चिंता का विषय और सेना का अपमान है। इन बयानों को न्यायालय ने संज्ञान में लिया और एफआईआर करने के निर्देश दिए, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सपा नेता अखिलेश यादव बहादुर बेटियों और सेना के अपमान पर चुप रहे। उच्च न्यायालय मध्य प्रदेश ने टिप्पणी की थी — "सेना इस देश की शायद अंतिम संस्था है, जिसमें ईमानदारी, अनुशासन और बलिदान का अद्वितीय उदाहरण मिलता है। मंत्री विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ गटर जैसी भाषा का इस्तेमाल किया है। यह किसी अफसर नहीं बल्कि सेना को नीचा दिखाने की कोशिश है, इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
न्यायालय के निर्देश पर एफआईआर तो दर्ज हुई लेकिन बहुत कमजोर। इन्हीं सब विवादों के बीच विपक्ष ने अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा यह कहना कि उन्होंने भारत-पाक पर दबाव डालकर सीज़फायर कराया है, इसे भारत की संप्रभुता पर हमला और मोदी की प्रतिष्ठा को प्रभावित करने वाला कहा जा सकता है। ट्रम्प के बयानों को लेकर विपक्ष हमलावर है। दूसरा, विदेश मंत्री जयशंकर का यह बयान कि उन्होंने हमले से पहले पाकिस्तान को सचेत कर दिया था, विपक्ष इसे राष्ट्रद्रोह मानता है और विदेश मंत्री से इस्तीफ़ा देने की माँग कर रहा है। सीज़फायर पर उठे विवाद पर देश में आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। यही नहीं, ऑपरेशन सिंदूर और आतंकवादी घटना को लेकर भारत अपना पक्ष पूरी दुनिया को बताने के लिए सात सर्वदलीय सांसदों की टीम गठित की है। सांसदों के नाम को लेकर भी विवाद है। राहुल गांधी ने कई ऐसे सवाल उठाए हैं, जिसे भाजपा पाकिस्तान की मदद करने वाला बताकर राहुल गांधी के आधे चेहरे को पाकिस्तान के जनरल मुनीर के चेहरा जोड़ दिया है। प्रतिक्रिया में कांग्रेस ने मोदी का चेहरा नवाज शरीफ से जोड़ दिया है। इस तरीके से कांग्रेस और भाजपा के बीच मर्यादाओं को तार-तार कर लोकतंत्र को कलंकित और देशद्रोह जैसी हरकतें की जा रही हैं। मोदी और राहुल के बीच ऐसी दुश्मनी की लकीर खिंची हुई है कि देशहित में भी संवाद नहीं हो रहा है। दोनों नेताओं का अहम देश से ऊपर हो गया है। जबकि देश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष का अहंकार इतना बढ़ जाए कि देश के हितों को लेकर भी बात न हो। दुर्भाग्य की बात यह भी है कि आज देश में ऐसा कोई बड़ा नेता नहीं है जो ऐसे अहंकारी नेताओं के बीच संवादवाहक बने और राष्ट्रीय हितों पर आमने-सामने बैठकर बात करा सके।
21st May, 2025