यूरीड मीडिया- समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव के लिए 'इत्रनगरी' कन्नौज से अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। इस दौरान उनकी पत्नी डिंपल यादव, चाचा शिवपाल और रामगोपाल समेत पार्टी के कई पदाधिकारी मौजूद रहे। पहले इस सीट से सपा ने अखिलेश के भतीजे और मैनपुरी से पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार घोषित किया था।
यूपी की कन्नौज सीट पर अब मुकाबला दिलचस्प हो गया है। सपा का गढ़ रही कन्नौज सीट पर बीजेपी ने वर्तमान सांसद सुब्रत पाठक को ही उतारा है। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को हराया था।
नामांकन पर बोले अखिलेश यादव
नामांकन करने के बाद अखिलेश ने कहा कि कन्नौज को अब और आगे बढ़ाना है। कन्नौज के विकास और सम्मान के लिए, कन्नौज के विकास के लिए। कन्नौज का कारोबार न केवल भारत में बल्कि विश्व में है, जो विकास यहां का थम गया उसे जानकर रोका बीजेपी ने क्योंकि यह सपा का गढ़ था।
सपा मुखिया ने कहा कि बीजेपी के लोगों ने ना जाने कितनी बार यहां के लोगों को अपमानित किया है। कन्नौज की जनता ने विकास होते हुए देखा है, पुराने लोग जिन्होंने लोहिया जी को चुना था वह जानते हैं नेताजी ने सिद्धांतो को आगे बढ़ाया। मुझे एक बार फिर यहां आने का सौभाग्य मिला है, मैं यहां के विकास के लिए काम करूंगा, इसका नाम और हो जाए इसके लिए काम करूंगा।
यहां जो बिजली में काम हुआ वह सपा का काम है। नदियों पर जो पुल बने, केवल कन्नौज ही नहीं बाकी जगह भी सपा ने बनवाए। यहां हवाई पट्टी बनी थी केवल एक बार हवाई जहाज उतरा, बीजेपी की नकारात्मकता देखी जा सकती है उससे। आठ लेन गंगा का पुल बनवाया सपा ने, जहां से शुरू हुआ आखिर तक, सबसे पहले हमने बनवाया। जो मंडी बनी थी आज भी आधी अधूरी है, किसान बाजार सब बन पड़ा है।
कन्नौज से शुरू हुई थी अखिलेश की सियासी पारी
अखिलेश यादव इस सीट से पहले भी सांसद रहे हैं। वे 2012 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से पहले तीन बार कन्नौज से सांसद चुने गए। साल 2000 में अखिलेश की सियासी पारी का आगाज इसी कन्नौज सीट से हुआ था। अखिलेश ने पिता मुलायम सिंह के इस्तीफे के बाद खाली हुई इस सीट से उपचुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी।
डिंपल यादव भी दो बार रहीं सांसद
जब अखिलेश यादव साल 2012 में सूबे के मुखिया बने तो यह सीट खाली हो गई।उसके बाद उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल की सियासी पारी की शुरुआत हो गई। यहां तक 2014 में मोदी लहर के बावजूद डिंपल ने कन्नौज सीट पर जीत हासिल की थी। हालांकि 2019 के चुनाव में डिंपल और सैफई परिवार को बड़ा झटका लगा और सपा का गढ़ कहे जाने लगी इत्र नगरी हाथ से निकल गई। सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन होने के बावजूद डिंपल को सफलता नहीं मिली और यहां बीजेपी के स्थानीय नेता सुब्रत पाठक ने जीत हासिल की। अब 2024 में अखिलेश के फिर मैदान में आने से कन्नौज बीजेपी और सपा के बीच करीबी मुकाबले की ओर बढ़ रहा है।
25th April, 2024