
दिनेश दुबे, सोमवार से शुरू हो रहे लोकसभा के पांच दिवसीय विशेष सत्र में क्या तानाशाही की इबारत लिखी जायेगी ? केंद्र सरकार की पहल और कार्यवाही से उसकी मंशा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वह सत्ता पर काबिज़ रहने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है । देखना यह है कि लोकतंत्र का सर्वोच्च व नवीन मंदिर लोकतंत्र की संवैधानिक व स्वतंत्र संस्था "चुनाव आयोग" को मजबूत बनाने का श्रीगणेश करेगा या फिर उसे कमजोर करने का साक्षी बनेगा । क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त सहित अन्य चुनाव आयुक्तों की नियक्ति पर 2 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा दिये गए आदेश को पलटने के लिए सरकार बीते 10 अगस्त को ही राज्यसभा में विधेयक प्रस्तुत कर चुकी है, जिस पर बहस होना बाकी है !
विपक्ष सहित राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सत्तारूढ़ सरकार इस विधेयक के जरिये न सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने जा रही है बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था 'चुनाव आयोग' को भी पालतू तोता बनाने की तैयारी कर चुकी है । सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च 2023 में दिए अपने फैसले में कहा था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता की उच्चाधिकार कमेटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी । सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते समय यह भी कहा था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकार के नियंत्रण से बाहर होनी चाहिए ! यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि यह मानदंड तब तक लागू रहेगा जब तक कि इस मुद्दे पर संसद द्वारा कानून नहीं बनाया जाता । साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा था कि अभी जो चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की व्यवस्था है, उसे कायम नहीं रखा जा सकता !
यहां पर यह उल्लेखनीय है कि साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई थी । जिसमें कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का अधिकार अभी केंद्र सरकार के पास है, जो संविधान के अनुच्छेद-14 व अनुच्छेद 324 (2) का उल्लंघन करता है । इसी तरह एक अन्य याचिका भी दाखिल हुई थी जिसमें चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र पैनल बनाने की मांग की गई थी । सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर 2018 को इस संबंध में दाखिल सभी याचिकाओं को क्लब करते हुए मामला संवैधानिक बेंच में ट्रांसफर कर दिया । सुप्रीम कोर्ट में नवंबर 2022 से इन याचिकाओं पर लगातार सुनवाई हुई थी, जिसके बाद कोर्ट ने कुछ समय के लिए फैसला सुरक्षित रखने के बाद 2 मार्च 2023 को 378 पृष्ठों का आदेश जारी किया ।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते हुए केंद्र सरकार ने अपने नए विधेयक के माध्यम से इस फैसले को बदल दिया और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को सरकार के दायरे में वापस ला दिया है ! अब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां करने वाली कमेटी में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री शामिल किया गया है ! सरकार द्वारा इस विधेयक को राज्यसभा में 10 अगस्त को पेश करते समय भारी हंगामा हुआ और लोकसभा सत्र अनिश्चित काल के लिए स्थगित हुआ था जो अब सरकार के प्रस्ताव पर विशेष सत्र के रूप में शुरू हुआ है । विशेष सत्र का पहला दिन पुराने संसद भवन में शुरू होगा जबकि शेष चार दिनों की कार्यवाही नए संसद भवन "सेंट्रल वेस्टा" में संपन्न होगी । बीते 19 मई को सेंट्रल वेस्टा का उद्घाटन हुआ था और अब गणेश चतुर्दशी के दिन से सेंट्रल वेस्टा में विधिवत विधायी कार्य संपन्न होंगे । विपक्ष ने सरकार के इस विधेयक को लेकर जबरदस्त घेराबंदी कर रखी है । दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहले ही कह चुके हैं कि प्रधान मंत्री जी देश के सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते । उनका संदेश साफ है, जो सुप्रीम कोर्ट का आदेश उन्हें पसंद नहीं आएगा, वो संसद में कानून लाकर उसे पलट देंगे । यदि प्रधानमंत्री खुलेआम सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते तो ये बेहद खतरनाक स्थिति है ।
विपक्ष का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक निष्पक्ष कमेटी बनाई थी, जो निष्पक्ष चुनाव आयुक्तों का चयन करती ! लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटकर मोदी जी ने ऐसी कमेटी बना दी जो उनके कंट्रोल में होगी और जिससे वो अपने मन पसंद व्यक्ति को चुनाव आयुक्त बना सकेंगे । इससे चुनावों की निष्पक्षता प्रभावित होगी । एक के बाद एक निर्णयों से प्रधानमंत्री जी भारतीय जनतंत्र को कमजोर करते जा रहे हैं । वहीं दूसरी ओर टीएमसी नेता साकेत गोखले ने कहा, मोदी सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेशर्मी से कुचल दिया है और चुनाव आयोग को अपना चमचा बना रही है । अब मूल रूप से मोदी और 1 मंत्री पूरे चुनाव आयोग की नियुक्ति करेंगी । इंडिया गठबंधन द्वारा भाजपा के दिल में हार का डर पैदा करने के चलते यह 2024 के चुनावों में धांधली की दिशा में स्पष्ट कदम है ! कांग्रेस के संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल भी आरोप लगा चुके हैं कि यह कदम निर्वाचन आयोग को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास है । सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा फैसले का क्या, जिसमें एक निष्पक्ष चुनाव आयोग की आवश्यकता की बात की गई है ? प्रधानमंत्री को पक्षपाती चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की आवश्यकता क्यों महसूस होती है ? यह एक असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित विधेयक है जिसका हर मंच पर इसका विरोध किया जायेगा ।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
सम्पर्क :- 9415147159
18th September, 2023