राजेन्द्र द्विवेदी, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में जातीय जड़ें इतनी गहरी हो गयी हैं कि चुनाव जीतने के लिए कल तक जो राजनेता थे, वह अब जाति नेता बनते जा रहे हैं। जातियों में भी उपजातियों या अपने गोत्र जाति में सिमट कर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। कांग्रेस के बड़े नेता आरपीएन सिंह जो तीन बार विधायक, सांसद और केंद्र में मंत्री रहे हैं। भाजपा में शामिल होते ही वह अब पिछड़ी जातियों में सैंथवार जाति के नेता हो गए है। आरपीएन सिंह की पहचान राजनेता से ज्यादा पिछड़ों के सैंथवार नेता की बनाई गयी है। यही स्थिति देश के सभी राजनेताओं की होती जा रही है। सभी धीरे धीरे जातीय नेता के रूप में खुद को बताने में अपनी ताकत और गौरव महसूस करते है। शुरुवात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करें, जो कि एक लोकप्रिय नेता हैं जिनकी लोकप्रियता किसी जाति धर्म की सीमा में नहीं बंधी है लेकिन वह भी सियासत में वोट पाने के लिए राजेनता से ज्यादा पिछड़ों के नेता बनना और कहने में गर्व महसूस करते हैं। यह इसीलिए करते है कि जिससे चुनाव में पिछड़ी जाति का समर्थन मिले। यही नहीं पिछड़ी जातियों में भी मोदी जिस उपजाति से आते हैं उनके समर्थक उस उपजाति का नाम लेकर भी काफी प्रचार करते हैं। मोदी से लेकर जो भी बड़े बड़े नेता हैं वह सभी धीरे-धीरे जातीय नेता बनते जा रहे हैं।
कांग्रेस के राजनेता के रूप में राहुल गाँधी भी जनेऊ पहन कर ब्राह्मण जाति का बताने में नहीं चूके। योगी आदित्यनाथ जो एक मठ के महंत भी हैं जिनकी कोई जाति नहीं होती लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में ठाकुर जाति के बन चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लोकप्रिय राजनेता हैं वह भी पिछड़ी जातियों में यादव जाति के बन कर रह गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती एक लोकप्रिय राजनेता हैं लेकिन वह भी दलित जाति की नेता बनकर रह गयी हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह राजनेता हैं जिनकी अपनी लोकप्रियता है लेकिन उन्हें भी वोट बैंक की सियासत में राजपूत बहुल क्षेत्रों में ही विधानसभा चुनाव में मीटिंग कराई जाती है। राजनेता से ज्यादा राजपूत नेता की छवि बनाये है। यही स्थिति प्रदेश भर के सभी जाति व धर्म से जुड़े राजनेता, जाति नेता बन कर रह गए है। अनुप्रिया पटेल कुर्मी की नेता, ओम प्रकाश राजभर, राजभर जाति, संजय निषाद, निषाद जाति के नेता बनने की होड़ में शामिल है।
स्वामी प्रसाद मौर्या, केशव प्रसाद मौर्या, महान दल के केशव देव मौर्या, उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, बृजेश पाठक, हरी शंकर तिवारी सहित तमाम बड़े राजनेता की छवि अपने-अपने जाति के नेता की बन कर रह गयी है। कहने का मतलब यह है कि जाति की जड़ें इतनी गहरी बन गयी है कि अगर चुनाव जीतना है तो जातीय नेता बनना जरुरी है। अगर आप बड़े से बड़े राजनेता भी है तो चुनाव में जातियों का वोट लेने के लिए अपने जाति की पहचान खुल कर बनाती पड़ती है। यह लोकतंत्र के लिए जहर है। यह पर भारत निर्वाचन आयोग को रोक लगानी चाहिए।
26th January, 2022