यूरीड मीडिया- प्रदेश में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं। ज़मीन और आसमान से राजनीतिक दलों में यात्राओं की होड़ लग गयी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित कांग्रेस शासित राज्यों छत्तीसगढ़, पंजाब के मुख्यमंत्री की हवाई यात्रायें शुरू है। अखिलेश यादव उनके चाचा शिवपाल यादव एक ही दिन 12 अक्टूबर से रथ यात्रा शुरू की है। आप पार्टी के संजय सिंह, AIMIM के ओवैसी, निषाद पार्टी के ओम प्रकाश राजभर सहित सभी छोटे बड़े दल क्षमता एवं आर्थिक सम्पन्नता के अनुसार सड़क एवं हवाई मार्ग से जनता से रुबरु हो रहे हैं। पूरी सियासत जाति धर्म में बंटी हुई है। अगड़ों, पिछडों, दलित, मुस्लिम के अनुसार विधानसभा वार प्रत्याशी तय करने की जोड़-तोड़ सभी दलों में जारी है।
मतदाता भी पूरी तरह से राजनीतिक दलों के जाति एवं धर्म के शिकंजे में फंस चुके हैं। प्रदेश के विकास की चिंता करने वाले पढ़े लिखे सभी वर्गों के युवा महिला मतदाता जो मात्र 20% है वही विकास की बात कर रहे हैं। 80% मतदाता पश्चमी उत्तर प्रदेश, मध्य उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल में बदहाल व्यवस्था के बजाय मोदी, योगी, अखिलेश, मायावती, केजरीवाल, आवैसी, प्रियंका गाँधी वाड्रा, राजभर, निषाद आदि तमाम नेताओं के समर्थक बन चुके हैं। एक रिसर्च के अनुसार इनमें से 30% मतदाता पूरी तरह से राजनीतिक दलों के अंध भक्त हो चुके हैं। 50% विवेक के अनुसार डिबेट करते हैं लेकिन उनका भी माइंडसेट किसी न किसी दल के साथ जुड़ चुका है। कहने का मतलब यह है कि 20% मतदाता ही विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक निर्णायक होंगे।
विधानसभा चुनाव 2022 देश की सियासत में एक नयी राजनीतिक दिशा तय करेगा। भाजपा 2017 की तरह भारी मतों से जीतती है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मनमाने तरीके से राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होंगे। प्रदेश में भाजपा की जीत के बाद विपक्ष 2024 की एकता भी कमजोर होगी लेकिन अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा पराजित होती है तो राष्ट्रीय स्तर पर 2024 के लिए एक नया मजबूत विकल्प बनने की सम्भावना बढ़ जाएगी। इसी महत्त्व को देखते हुए जाति एवं धर्म में बंटी सियासत जनता को लुभाने के लिए फ्री योजनाओं की होड़ लगाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गत 7 वर्षों में 300 से अधिक योजनाएं घोषित कर चुके हैं। इन योजनाओं के माध्यम से गरीब और अमीर छोटे और बड़े किसानों को बड़े ही सुनियोजित तरीके से विभाजित करने में सफलता भी हासिल की है इसीलिये मोदी को बढ़ती महगाई, पेट्रोल, डीजल की अप्रत्याशित कीमतें, किसान आंदोलन किसी की भी चिंता नहीं है। क्योकि उन्होंने फ्री योजनाओं के माध्यम से गरीब माध्यम और अमीरों के बीच में एक लम्बी खाई बना दी है। मूलभूत आवश्यकताओं में फ्री आवास, फ्री कनेक्शन, फ्री गैस सिलेंडर, फ्री इलाज, जनधन खाते, फ्री टेबलेट, किसानों के खाते में 6 -6 हजार रूपये, गरीबों के लिए खाद्यान्न योजना आदि तमाम ऐसी फ्री योजना का लाभ गरीबों को दे रहे हैं जिसकी संख्या आवश्यकतानुसार जीत के लिए विधानसभा चुनाव 2022 में अप्रत्याशित रूप से बढ़ सकती है।
मोदी और योगी की जोड़ी के द्वारा फ्री योजनाओं के खिलाफ जनता को अधिक फ्री योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए सपा, बसपा, कांग्रेस, आप पार्टी व अन्य छोटे बड़े दलों में चिंता भी है और होड़ भी मची हुई है। आप पार्टी ने 300 यूनिट फ्री बिजली देने की घोषणा भी कर दी है। समाजवादी पार्टी जो भाजपा के विकल्प के रूप सामने खड़ी है उसके भी घोषणा पत्र में फ्री योजनाओं की बौछार होने वाली है। जिनमें किसान, मजदूर, छात्र, महिला, दलित, अगड़े, पिछड़े, मुस्लिम सभी शामिल होंगे। बसपा कांग्रेस आप कोई भी दल पीछे नहीं रहेगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि वादों का अम्बार लगा कर सत्ता हासिल करने वाले राजनीतिक दल फ्री योजनाएं पूरी कैसे करेंगे? इन फ्री योजनाओं के लिए धनराशि कहाँ से आएगी और उसका स्रोत क्या होगा? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह शराब, पेट्रोल, रोड टैक्स, टोल टैक्स के नाम पर वसूली करके फ्री योजनाओं की आधी अधूरी पूर्ति करेंगे या फिर विभिन्न सेवाओं में शहरी हो या नगरीय सबसे भारी टैक्स लगाएंगे। आखिर यह धनराशि कहाँ से आएगी इसका भी स्रोत घोषणा पत्र में फ्री योजना घोषित करते समय राजनीतिक दलों को बताना चाहिए।
भारत निर्वाचन आयोग की भी जिम्मेदारी है कि जाति-धर्म आधारित सियासत को फ्री योजनाओं के माध्यम से बर्बाद करने के अव्यहारिक योजनाओं पर रोक लगाएं। घोषणा पत्रों का चुनाव पूर्व समीक्षा करे और राजनीतिक दलों को यह निर्देशित करे कि फ्री योजनाओं के नाम पर मतदाताओं को लुभाने के लिए धनराशि का स्रोत क्या होगा ? निर्वाचन आयोग को वित्त से जुड़े हुए विशेषज्ञ की एक टीम भी बनानी चाहिए जो फ्री योजनाओं में आने वाली धनराशि कहाँ से लाएंगे इसके लिए राजनीतिक दलों द्वारा दी गयी जानकारी का परिक्षण करें और तुलनात्मक अध्ययन करे कि क्या फ्री योजनाएं और धनराशि का जो स्रोत है दोनों व्यावहारिक है। अगर ऐसा नहीं है तो घोषणा पत्रों पर रोक लगानी चाहिए।
मतदाता भी पूरी तरह से राजनीतिक दलों के जाति एवं धर्म के शिकंजे में फंस चुके हैं। प्रदेश के विकास की चिंता करने वाले पढ़े लिखे सभी वर्गों के युवा महिला मतदाता जो मात्र 20% है वही विकास की बात कर रहे हैं। 80% मतदाता पश्चमी उत्तर प्रदेश, मध्य उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल में बदहाल व्यवस्था के बजाय मोदी, योगी, अखिलेश, मायावती, केजरीवाल, आवैसी, प्रियंका गाँधी वाड्रा, राजभर, निषाद आदि तमाम नेताओं के समर्थक बन चुके हैं। एक रिसर्च के अनुसार इनमें से 30% मतदाता पूरी तरह से राजनीतिक दलों के अंध भक्त हो चुके हैं। 50% विवेक के अनुसार डिबेट करते हैं लेकिन उनका भी माइंडसेट किसी न किसी दल के साथ जुड़ चुका है। कहने का मतलब यह है कि 20% मतदाता ही विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक निर्णायक होंगे।
विधानसभा चुनाव 2022 देश की सियासत में एक नयी राजनीतिक दिशा तय करेगा। भाजपा 2017 की तरह भारी मतों से जीतती है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मनमाने तरीके से राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होंगे। प्रदेश में भाजपा की जीत के बाद विपक्ष 2024 की एकता भी कमजोर होगी लेकिन अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा पराजित होती है तो राष्ट्रीय स्तर पर 2024 के लिए एक नया मजबूत विकल्प बनने की सम्भावना बढ़ जाएगी। इसी महत्त्व को देखते हुए जाति एवं धर्म में बंटी सियासत जनता को लुभाने के लिए फ्री योजनाओं की होड़ लगाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गत 7 वर्षों में 300 से अधिक योजनाएं घोषित कर चुके हैं। इन योजनाओं के माध्यम से गरीब और अमीर छोटे और बड़े किसानों को बड़े ही सुनियोजित तरीके से विभाजित करने में सफलता भी हासिल की है इसीलिये मोदी को बढ़ती महगाई, पेट्रोल, डीजल की अप्रत्याशित कीमतें, किसान आंदोलन किसी की भी चिंता नहीं है। क्योकि उन्होंने फ्री योजनाओं के माध्यम से गरीब माध्यम और अमीरों के बीच में एक लम्बी खाई बना दी है। मूलभूत आवश्यकताओं में फ्री आवास, फ्री कनेक्शन, फ्री गैस सिलेंडर, फ्री इलाज, जनधन खाते, फ्री टेबलेट, किसानों के खाते में 6 -6 हजार रूपये, गरीबों के लिए खाद्यान्न योजना आदि तमाम ऐसी फ्री योजना का लाभ गरीबों को दे रहे हैं जिसकी संख्या आवश्यकतानुसार जीत के लिए विधानसभा चुनाव 2022 में अप्रत्याशित रूप से बढ़ सकती है।
मोदी और योगी की जोड़ी के द्वारा फ्री योजनाओं के खिलाफ जनता को अधिक फ्री योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए सपा, बसपा, कांग्रेस, आप पार्टी व अन्य छोटे बड़े दलों में चिंता भी है और होड़ भी मची हुई है। आप पार्टी ने 300 यूनिट फ्री बिजली देने की घोषणा भी कर दी है। समाजवादी पार्टी जो भाजपा के विकल्प के रूप सामने खड़ी है उसके भी घोषणा पत्र में फ्री योजनाओं की बौछार होने वाली है। जिनमें किसान, मजदूर, छात्र, महिला, दलित, अगड़े, पिछड़े, मुस्लिम सभी शामिल होंगे। बसपा कांग्रेस आप कोई भी दल पीछे नहीं रहेगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि वादों का अम्बार लगा कर सत्ता हासिल करने वाले राजनीतिक दल फ्री योजनाएं पूरी कैसे करेंगे? इन फ्री योजनाओं के लिए धनराशि कहाँ से आएगी और उसका स्रोत क्या होगा? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह शराब, पेट्रोल, रोड टैक्स, टोल टैक्स के नाम पर वसूली करके फ्री योजनाओं की आधी अधूरी पूर्ति करेंगे या फिर विभिन्न सेवाओं में शहरी हो या नगरीय सबसे भारी टैक्स लगाएंगे। आखिर यह धनराशि कहाँ से आएगी इसका भी स्रोत घोषणा पत्र में फ्री योजना घोषित करते समय राजनीतिक दलों को बताना चाहिए।
भारत निर्वाचन आयोग की भी जिम्मेदारी है कि जाति-धर्म आधारित सियासत को फ्री योजनाओं के माध्यम से बर्बाद करने के अव्यहारिक योजनाओं पर रोक लगाएं। घोषणा पत्रों का चुनाव पूर्व समीक्षा करे और राजनीतिक दलों को यह निर्देशित करे कि फ्री योजनाओं के नाम पर मतदाताओं को लुभाने के लिए धनराशि का स्रोत क्या होगा ? निर्वाचन आयोग को वित्त से जुड़े हुए विशेषज्ञ की एक टीम भी बनानी चाहिए जो फ्री योजनाओं में आने वाली धनराशि कहाँ से लाएंगे इसके लिए राजनीतिक दलों द्वारा दी गयी जानकारी का परिक्षण करें और तुलनात्मक अध्ययन करे कि क्या फ्री योजनाएं और धनराशि का जो स्रोत है दोनों व्यावहारिक है। अगर ऐसा नहीं है तो घोषणा पत्रों पर रोक लगानी चाहिए।
12th October, 2021