राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- भारत दुनिया का सबसे युवा राष्ट्र है। 60 करोड़ से अधिक आबादी युवा है। इस युवा भारत की तस्वीर कितनी दुखद और डरावनी है। इसमें 15 से 24 वर्ष के युवा में हर सातवां बच्चा अवसादग्रस्त है। यह कोई कोरी कल्पना या फेक न्यूज़ नहीं है। भारत के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने यूनिसेफ की रिपोर्ट को जारी करते हुए यह जानकारी दी। बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली यूनिसेफ की ओर से बच्चों की मानसिक स्थिति पर 21 देशों में कराये गए सर्वे में यह बात सामने आयी है। स्वास्थ्य मंत्री ने अवसादग्रस्त युवाओं एवं किशोरों को चिन्हित करके मानसिक समस्याओं को दूर करने के लिए विशेष प्रशिक्षण अभियान 10 अक्टूबर से शुरू भी कर दिया है। मंडाविया ने परिवार के वरिष्ठ सदस्यों एवं स्कूलों में शिक्षकों को विशेष रूप से प्रशिक्षित करने पर जोर दिया है। लेकिन स्वास्थ्य मंत्री जो भी घोषणा करें, प्रयास करें लेकिन उनकी घोषणा और प्रयास अवसादग्रस्त युवाओं की समस्या को कैसे दूर कर पाएंगे। इन युवाओं में लम्बे अरसे से शिक्षा में आवश्यकतानुसार पढाई न होने से भविष्य को लेकर चिंतित हैं। यह चिंता दूर करने के लिए फर्जी घोषणा, बयानबाजी धरना प्रदर्शन काम नहीं आएगा। इसके लिए नियमित रूप से चरणवद्ध तरीके से कार्य करना होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 7 वर्ष के कार्यकाल में शिक्षा और रोजगार को लेकर युवाओं में चिंता बढ़ी है। इस सत्य को किसी घोषणा या फर्जी बयानबाजी से नकारा या झुठलाया नहीं जा सकता है। यह कड़वा सच है कि 2014 के पहले मनमोहन सरकार में भ्रष्टाचार एक समस्या थी लेकिन उसके बाद भी चारो तरफ युवाओं, मजदूरों में रोजगार उपलब्ध थे और उनमें उत्साह था। मनमोहन सरकार की कमजोरियों का फैयादा उठाते हुए नरेन्द्र मोदी ने देश के युवाओं को एक सपना दिखाया था। लेकिन उनके 7 साल के कार्यकाल में सपना टूट गया है। नोटबंदी, GST से लेकर कोरोना काल में बढ़ी बेरोजगारी, बंद शिक्षण संस्थाओं के कारण खुशहाल रहने वाला युवा अपनी भविष्य के आशंकाओं से ग्रसित होकर भी अवसाद ग्रस्त है।
स्वास्थ्य मंत्री ने रिपोर्ट जारी की। समाज, राजनीतिक दल, सरकार और मीडिया सभी ने मिलकर युवाओं के इस गंभीर समस्या को नजर अंदाज किया है। युवाओं के प्रति चिंतित रहने वाले पीएम मोदी अवसाद को समाप्त करने के लिए उनके सुनहरे भविष्य को लेकर अभी तक कोई ऐसी सार्थक और जमीनी कार्ययोजना नहीं बनाई है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 24 वर्ष के 26 करोड़ युवा की समस्या हल हो सके। जिस देश में हर सातवां युवा अवसाद ग्रस्त है उसका भविष्य युवाओं के कन्धों पर कितना मजबूत और उज्जवल होगा ?
यह पहला अवसर नहीं है इसके पहले भी ICMR (भारतीय चिकित्सा शोध परिषद) ने 2017 में मोदी की सरकार बनने के 3 साल बाद व्यापक अध्ययन में पता चला कि भारत में मानसिक बीमारी मोदी सरकार में साल दर साल बढ़ रही है। 2017 में 19.7 करोड़ लोग मानसिक बीमारी से ग्रसित थे। इसका मतलब हर सातवां भारतीय अवसाद, चिंता से परेशान रहा। अवसाद एवं बढ़ती चिंताओं का प्रभाव देश में दिखाई भी दे रहा है। शोध में महिलाएं और दक्षिण भारतियों में सबसे अधिक असर दिखाई दे रहा है। गरीब राज्यों में जिन्हें अपने और अपने बच्चों के भविष्य की चिंता कम है वहां तुलनात्मक रूप से अवसादग्रस्त की संख्या कम है। शोध के रिपोर्ट का विश्लेषण करें तो उसका अर्थ यही निकलता है कि सर्वाधिक शिक्षित राज्यों में भविष्य को लेकर चिंतित युवा ज्यादा परेशान एवं अवसादग्रस्त है। छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा जैसे राज्य जहाँ पर अशिक्षा और गरीबी सबसे अधिक है इन राज्यों में राजनीतिक दलों के बहकावे में जनता गरीबी और अशिक्षा के कारण फंस गयी। जाति और धर्म में बंटी जनता को मानसिक रूप से राजनीतिक दलों ने बांट करके सत्ता की सीढियाँ चढ़ रही है।
एम्स के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर भी मानते है कि भारत में मानसिक बीमारी तेजी से बढ़ रही है। आज सबसे अधिक जरुरत युवा भारत को आगे ले जाने के लिए अवसादग्रस्त युवाओं की समस्याओं को दूर करने की जरूरत है। राजनीतिक दल विशेष कर जो सत्ता में है उनकी ज़िम्मेदारी सबसे अधिक है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 7 वर्ष के कार्यकाल में शिक्षा और रोजगार को लेकर युवाओं में चिंता बढ़ी है। इस सत्य को किसी घोषणा या फर्जी बयानबाजी से नकारा या झुठलाया नहीं जा सकता है। यह कड़वा सच है कि 2014 के पहले मनमोहन सरकार में भ्रष्टाचार एक समस्या थी लेकिन उसके बाद भी चारो तरफ युवाओं, मजदूरों में रोजगार उपलब्ध थे और उनमें उत्साह था। मनमोहन सरकार की कमजोरियों का फैयादा उठाते हुए नरेन्द्र मोदी ने देश के युवाओं को एक सपना दिखाया था। लेकिन उनके 7 साल के कार्यकाल में सपना टूट गया है। नोटबंदी, GST से लेकर कोरोना काल में बढ़ी बेरोजगारी, बंद शिक्षण संस्थाओं के कारण खुशहाल रहने वाला युवा अपनी भविष्य के आशंकाओं से ग्रसित होकर भी अवसाद ग्रस्त है।
स्वास्थ्य मंत्री ने रिपोर्ट जारी की। समाज, राजनीतिक दल, सरकार और मीडिया सभी ने मिलकर युवाओं के इस गंभीर समस्या को नजर अंदाज किया है। युवाओं के प्रति चिंतित रहने वाले पीएम मोदी अवसाद को समाप्त करने के लिए उनके सुनहरे भविष्य को लेकर अभी तक कोई ऐसी सार्थक और जमीनी कार्ययोजना नहीं बनाई है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 24 वर्ष के 26 करोड़ युवा की समस्या हल हो सके। जिस देश में हर सातवां युवा अवसाद ग्रस्त है उसका भविष्य युवाओं के कन्धों पर कितना मजबूत और उज्जवल होगा ?
यह पहला अवसर नहीं है इसके पहले भी ICMR (भारतीय चिकित्सा शोध परिषद) ने 2017 में मोदी की सरकार बनने के 3 साल बाद व्यापक अध्ययन में पता चला कि भारत में मानसिक बीमारी मोदी सरकार में साल दर साल बढ़ रही है। 2017 में 19.7 करोड़ लोग मानसिक बीमारी से ग्रसित थे। इसका मतलब हर सातवां भारतीय अवसाद, चिंता से परेशान रहा। अवसाद एवं बढ़ती चिंताओं का प्रभाव देश में दिखाई भी दे रहा है। शोध में महिलाएं और दक्षिण भारतियों में सबसे अधिक असर दिखाई दे रहा है। गरीब राज्यों में जिन्हें अपने और अपने बच्चों के भविष्य की चिंता कम है वहां तुलनात्मक रूप से अवसादग्रस्त की संख्या कम है। शोध के रिपोर्ट का विश्लेषण करें तो उसका अर्थ यही निकलता है कि सर्वाधिक शिक्षित राज्यों में भविष्य को लेकर चिंतित युवा ज्यादा परेशान एवं अवसादग्रस्त है। छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा जैसे राज्य जहाँ पर अशिक्षा और गरीबी सबसे अधिक है इन राज्यों में राजनीतिक दलों के बहकावे में जनता गरीबी और अशिक्षा के कारण फंस गयी। जाति और धर्म में बंटी जनता को मानसिक रूप से राजनीतिक दलों ने बांट करके सत्ता की सीढियाँ चढ़ रही है।
एम्स के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर भी मानते है कि भारत में मानसिक बीमारी तेजी से बढ़ रही है। आज सबसे अधिक जरुरत युवा भारत को आगे ले जाने के लिए अवसादग्रस्त युवाओं की समस्याओं को दूर करने की जरूरत है। राजनीतिक दल विशेष कर जो सत्ता में है उनकी ज़िम्मेदारी सबसे अधिक है।
11th October, 2021