राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया ग्रुप- प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव में तमाम छोटे दल सत्ता में भागीदारी के लिए जोड़ तोड़ में जुटे हैं। यह सही भी है कि छोटे दलों को जीत के लिए बड़े दलों से गठबंधन या समर्थन जरुरी है। राजनीतिक अस्थिरता के दौर में कभी छोटे दल 1 और 2 सीट पाने के बाद भी सरकार बनवाने के लिए बड़े दलों से सौदेबाजी करते थे लेकिन 2007 के बाद बहुमत सरकारों में छोटे दलों की जीत बड़े दलों के साथ मिलने से ही हो रही है।
भारत निर्वाचन आयोग के आकड़ों का विश्लेषण करें तो 2007 से 2017 तीन बहुमत की सरकारों में छोटे दल चुनाव लड़े जरूर लेकिन उन्हें अपेक्षाकृत सफलताएं नहीं मिली। इन छोटे दलों ने बड़े दल से समझौता किया और अप्रत्याशित रूप से सफलता हासिल की और सत्ता में भागीदारी भी कर रहे है।
अपना दल
उदाहरण के लिए 2017 विधानसभा चुनाव में अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल ने भाजपा से 11 सीटों पर समझौता किया जिसमें मात्र 1% से भी कम वोट पाकर 9 सीटों पर चुनाव जीती और 2 पर दूसरी स्थान पर रही। लोकसभा में भाजपा से समझौता का लाभ लिया, 2 सीटें जीती और सांसद बनकर केंद्र में मंत्री बनी। अनुप्रिया पटेल के पति आशीष विधान परिषद सदस्य भी है। इसके पहले अपना दल 2012 में 76 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 1 सीट जीती थी और 69 सीटों पर जमानत जब्त हो गयी थी। मात्र 0.9% मत मिले थे। 2007 में 39 सीटें लड़ी थी और खाता नहीं खुला था।
# |
Year |
Contestants |
Won |
FD |
Votes |
Votes % |
1 |
2017 |
11 |
9 |
0 |
8,51,336 |
0.98% |
2 |
69 |
6,79,199 |
0.9 % |
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3 |
0 |
30 |
5,51,643 |
1.1 % |
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सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर जो सत्ता में भागीदारी के लिए गठबंधन बनाने में जुटे हैं। वह जानते है कि बिना बड़े दलों के चुनावी तालमेल के बिना सत्ता में भागीदारी या चुनाव नहीं जीता जा सकता। कहने के लिए बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं लेकिन वास्तविक स्थिति यही है कि ओम प्रकाश राजभर जैसा सयाना नेता भाजपा, सपा एवं बसपा जैसे बड़े दल या छोटे दलों का महागठबंधन बना के ही चुनाव लड़ेगा। राजभर अकेले चुनाव लड़ने का परिणाम जानते है। 2007 में 97 सीटों पर और 2012 में 52 सीटों पर चुनाव लड़ चुके है लेकिन पार्टी का खाता नहीं खुला था। 2007 में 94 और 2012 में 48 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो चुकी है। 2017 में भाजपा से समझौता किया। 8 सीटों पर चुनाव लड़े। मात्र 0.7 % मत, एक प्रतिशत से भी कम मत पाकर 4 सीटों पर चुनाव जीते 3 पर दूसरे स्थान पर रहे। चुनाव जीतने के बाद प्रदेश सरकार में मंत्री भी बने लेकिन महत्वाकांक्षा के कारण अति पिछड़ों को अधिकार दिलाने के नाम पर सरकार से हटे और अब 2022 में सत्ता में भागीदारी का नया समीकरण ढूंढ रहे है।
# |
Year |
Contestants |
Won |
FD |
Votes |
Votes % |
1 |
0 |
6,07,911 |
0.7 % |
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2 |
0 |
48 |
4,77,332 |
0.6 % |
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3 |
0 |
94 |
4,91,347 |
0.9 % |
निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी)
निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) के मुखिया संजय निषाद 2022 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से सौदेबाजी करने में जुटे हैं और उनका सबसे अधिक दवाब योगी आदित्यनाथ पर है क्योकि गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज आदि जनपदों में पिछड़ों की आबादी 60% से भी अधिक है। बिना पिछड़ों के सहयोग के भारतीय जनता पार्टी पूर्वांचल के इन पिछड़ें बहुल्य जनपदों में काफी नुकसान उठा सकती है। सरकारी आकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में गोरखपुर में 60% देवरिया में 63.79% महराजगंज में 62.54% तथा कुशीनगर में 66.10% आबादी है इनमें संजय निषाद का अच्छा वर्चस्व है लेकिन अकेले चुनाव लड़कर निषाद पार्टी भी सफलता हासिल नहीं कर सकती क्योकि 2017 में संजय निषाद अकेले लड़ कर प्रयोग कर चुके है। 2017 में निषाद पार्टी 72 सीटों पर चुनाव लड़ी मात्र 1 सीट जीती और 70 पर जमानत जब्त हो गयी। जबकि एक प्रतिशत से कम मत पाकर भाजपा से समझौते में ओम प्रकाश राजभर 4 सीटे और अनुप्रिया पटेल 9 सीटें जीतने में सफल रही। संजय निषाद समय के अनुसार अपने राजनीतिक वजूद बचाने के लिए 2018 लोकसभा उपचुनाव में बेटे प्रवीण निषाद को समाजवादी पार्टी से योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर के परम्परागत संसदीय सीट से चुनाव लड़ाया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के घर में 21000 मतों से जीत कर एक रिकॉर्ड बनाया। पहली बार समाजवादी पार्टी उस समय चुनाव जीती जब योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री और सबसे ताकतवर नेता हैं। गोरखपुर की सीट के हार से भाजपा में हड़कंप मच गया इसलिए योगी आदित्यनाथ ने पूरा प्रयास करके संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को भाजपा में शामिल करा के संत कबीर नगर से प्रत्याशी बनाया और 2019 में प्रवीण निषाद भाजपा से सांसद चुने गए। 2022 में संजय निषाद भाजपा से अपनी राजनीतिक जातीय ताकत के आधार पर सम्मानजनक समझौता करके अधिक से अधिक सीटें लेना चाहते है क्योंकि वह जानते है कि भाजपा गठबंधन से चुनाव लड़ने पर जितनी अधिक सीटें मिलेंगे उमसे जीत की संभावनाएं अधिक होंगी। भाजपा की भी मजबूरी है कि पिछड़ों के आबादी की ताकत को देखते हुए योगी आदित्यनाथ के हिंदुत्व चेहरे पर भी एकतरफा चुनाव नहीं जीत सकती। भाजपा को हिंदुत्व एजेंडे के साथ जातीय समीकरण को भी ध्यान में रखना होगा। संजय निषाद भाजपा और अपनी दोनों की कमजोरी जानते है इसलिए भाजपा को छोड़ नहीं सकते और अकेले लड़ नहीं सकते। दोनों स्थितियों में भाजपा और संजय निषाद दोनों की मजबूरी है कि सफलता के लिए किसी न किसी बिंदु पर तालमेल करें।
# |
Year |
Contestants |
Won |
FD |
Votes |
Votes % |
1 |
70 |
540539 |
0.62 % |
राष्ट्रीय लोकदल
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की उत्तराधिकारी अपनी कार्यशैली से जन समर्थन खोने के कारण बार बार राजनीतिक वजूद बचाने के लिए बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है। जब रालोद अकेले चुनाव लड़ती है तो जाट बहुल्य अपने घर में ही शिकस्त मिलती है और जब बड़े राजनीतिक दल से समझौता करते है तो चुनाव जीतने में सफलता मिलती है। 2017 में रालोद 277 सीटों पर चुनाव लड़ी। 1 सीट जीती और 266 में जमानत जब्त हुई और 1.8% मत मिले। इसके पहले 2012 में कांग्रेस के साथ समझौता था 46 सीटें लड़ी और 9 जीती थी। 2002 में भाजपा के साथ समझौते में 38 सीटों पर लड़ी और 14 पर जीती। 2007 में 254 सीटों पर लड़कर 10 सीटें जीती थी और 222 पर जमानत जब्त हो गयी थी। 2019 में जयंत चौधरी लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। 2022 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन को खुला समर्थन देकर अपनी खोई हुई जमीन को सपा के साथ गठबंधन करके वापस लाना चाहते है। 2022 में सपा से गठबंधन के साथ जयंत किसान आंदोलन की ताकत को जोड़कर राजनीतिक हैसियत बढ़ाना चाहते है।
# |
Year |
Contestants |
Won |
FD |
Votes |
Votes % |
1 |
266 |
15,45,810 |
1.8 % |
|||
2 |
20 |
17,63,354 |
2.3 % |
|||
3 |
222 |
19,29,631 |
3.7 % |
|||
4 |
12 |
13,32,810 |
2.5 % |
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM)
उत्तर प्रदेश 2022 विधानसभा चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण करके सियासत में अपना दबदबा बनाने के लिए हैदराबाद के सांसद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन(AIMIM) के मुखिया निरंतर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है और यह 100 सीटों प्रदेश की 20 मुस्लिम बहुल्य जनपद में शामिल हो। ओवैसी बड़े जोर शोर से जोशीले भाषणों के साथ काफी धन खर्च करके लम्बे लम्बे काफिलों में उत्तर प्रदेश दौरा कर रहे है। ओवैसी की सियासस्त पर सपा, बसपा और कांग्रेस यह आरोप भी लगा रहे है कि प्रदेश में बिहार और पश्चिमी बंगाल में भाजपा की मदद करने के लिए चुनाव लड़ रहे है क्योंकि गैर भाजपा दलों की सियासत में मुस्लिम मतदाता एक प्रमुख वोट बैंक के रूप में देखा जाता है।
उत्तर प्रदेश में 2017 में ओवैसी 38 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके है जिसमें 37 में जमानत जब्त हुई थी और 1 प्रतिशत से कम मात्र। 0.24% वोट मिले थे। 2022 में ओवैसी का प्रयास है कि वह हिन्दुओं के जाति आधार पर गठित छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर चुनाव लड़े। इसमें उन्हें कितनी सफलता मिलती है यह उनकी चुनावी रणनीति और सियासत के रूख का भी पता चल जायेगा। फिलहाल अभी तक जो धार्मिक समीकरण व सियासत दिखाई दे रही है उसमे ओवैसी के साथ बिहार के तर्ज पर मुस्लिम जुड़ते है तो समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस को नुकसान होगा और भाजपा को फ़ायदा मिलेगा क्योकि मुस्लिम मत के विभाजन से भाजपा हमेशा लाभ में रहती है। अगर पश्चिमी बंगाल की तरह मुस्लिम ओवैसी को नकारते है तो गैर भाजपा दलों को फ़ायदा और भाजपा को नुकसान उठाना पड़ेगा। वैसे भी प्रदेश में धार्मिक सियासत मजबूती के साथ जड़े जमा चुकी है। अभी तक चुनाव में जो रुझान रहा है उसके अनुसार मुस्लिम मतदाता सबसे पहले मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी के पक्ष में मत करता है वह किसी भी दल या निर्दलीय ही चुनाव क्यों न लड़ रहा हो। दूसरा मुस्लिम मतदाताओं की पसंद भाजपा को हराने वाले प्रत्याशी रहते हैं। 2022 में ओवैसी किस तरह से और कैसे प्रत्याशी धार्मिक एवं जाति समीकरण के अनुसार उतारते है यह बहुत कुछ मुस्लिम मतों के विभाजन पर निर्भर करेगा।
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Year |
Contestants |
Won |
FD |
Votes |
Votes % |
1 |
37 |
204142 |
0.24 % |
आम आदमी पार्टी
उत्तर प्रदेश की सरजमीं पर पिछले एक वर्ष से दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की आम आदमी पार्टी काफी सक्रिय है। प्रदेश के प्रभारी एवं राज्यसभा सदस्य संजय सिंह जिस तीखे अंदाज में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर सीधे हमला करते है। उस तरह के तथ्यात्मक सीधे हमले सपा बसपा व कांग्रेस नहीं कर पा रही है। जातीय समीकरण को देखते हुए ब्राह्मण योगी से नाराज है। ब्राह्मण मतों को जोड़ने के लिए संजय सिंह ने ही आक्रामक तेवर में योगी सरकार पर ब्राह्मण का उत्पीड़न और उनकी हत्या करने जैसे गंभीर आरोप लगाया। संजय सिंह के आरोप तथ्यों के साथ होते है इसलिए योगी सरकार में सबसे ईमानदार माने जाने वाले जल शक्ति मंत्री महेन्द्र सिंह पर भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप लगाया है और उसकी जांच की निरंतर मांग कर रहे है जबकि प्रदेश की दूसरी पार्टी ने भाजपा के किसी भी मंत्री पर तथ्यों के साथ आरोप लगाने में फिलहाल नहीं दिख रही है। आप पार्टी ने सितम्बर माह में ही सबसे पहले 100 प्रत्याशियों की सूची जातीय एवं धार्मिक समीकरण के अनुसार जारी कर दी है। इनमे कई ऐसे नाम और जुझारू चेहरे है जो 2022 विधानसभा चुनाव में मजबूती से लड़ेंगे। केजरीवाल ने दिल्ली के साथ पंजाब विधानसभा में आप पार्टी के प्रत्याशी मैदान में उतारे थे जिनमे 117 सीटों में 20 सीटें जीत कर बहुत पुराने दल शिरोमणि अकाली दल को तीसरे नंबर की पार्टी बना दिया। उत्तर प्रदेश में भी आप पार्टी मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में उतर रही है। सबसे बड़ा मुद्दा जनता को 300 यूनिट फ्री बिजली देने का घोषणा की है। यह माना भी जाता है कि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के बाद जनहित के मुद्दे सेट करने में केजरीवाल अन्य दलों से आगे हैं। दिल्ली से लगे हुए उत्तर प्रदेश में आप पार्टी जिस तरह से जातीय एवं धार्मिक समीकरण तथा मुद्दों के साथ आक्रामक तेवर से चुनाव लड़ने जा रही यही है। निश्चित रूप से बेहतर परफॉरमेंस की सम्भावना है।
उपरोक्त छोटे-छोटे दलों के अलावा अन्य कई अन्य कई जाति एवं धर्म आधारित पार्टी है जो चुनाव लड़ती है लेकिन इन्हें भी कोई सफलता अभी तक नहीं मिली है। इन छोटे दलों में एनसीपी, इत्तेहाद-ए-मिल्लत परिषद
, पीस पार्टी, राष्ट्रीय परिवर्तन दल, जनमोर्चा, जनता दल(यू), उत्तर प्रदेश यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी, भारतीय जनशक्ति पार्टी, अखिल भारतीय लोकतान्त्रिक कांग्रेस आदि ।