कांग्रेस का ब्राह्मण मुख्यमंत्री ?
विजय शंकर पंकज, यूरीड मीडिया- तीन दशकों के बाद 2022 का विधानसभा का चुनाव एक ऐसा चुनाव होगा जब जातीय समीकरण में ब्राह्मण मतदाताओं का प्रभाव ज्यादा होगा। अभी तक सभी दल ब्राह्मण वर्ग को प्रभावित करने के लिए "प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन" के नाम पर आयोजन कर रहे हैं। प्रतिद्वंद्वी दलों की इस राजनीतिक चाल में कांग्रेस ने नया पेंच फंसा दिया है।
कांग्रेस में यह सुगबुगाहट चल रही है कि ब्राह्मण मुख्यमंत्री की घोषणा कर चुनाव मैदान में उतरेगी। सूत्रों के अनुसार प्रियंका गाँधी के यूपी दौरे में ब्राह्मण राजनीति को लेकर लंबी चर्चा हुई। प्रियंका ने भी कार्यकर्ताओं से इस बारे में रायशुमारी की है। पिछले 2 वर्षों में प्रियंका का आराधना मिश्रा उर्फ मोना के प्रति बढ़ते लगाव को भी कांग्रेस पार्टी में सकारात्मक नजरिये से देखा जा रहा है। इधर कुछ दिनों से प्रियंका ने संरक्षण के तौर पर प्रमोद तिवारी को महत्व देना शुरू कर दिया है।
बताया जाता है कि प्रियंका पार्टी हाईकमान के पास उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण चेहरा घोषित कर चुनाव में रणनीति बनाने का प्रस्ताव दे रही हैं। कांग्रेस हाईकमान प्रियंका के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है तो ब्राह्मण मुख्यमंत्री के रूप में प्रमोद तिवारी का चेहरा सबसे ऊपर होगा। कांग्रेस ने सबसे अनुभवी और लोकप्रिय प्रमोद तिवारी का नाम मुख्यमंत्री के रूप में आने पर सियासत नया रूप ले लेगी।
अभी तक किसी भी राजनीतिक दल ने ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाने की बात नहीं की है। सबसे पहले ब्राह्मण सम्मलेन की घोषणा करने वाले बसपा के सतीश चंद्र मिश्र, मायावती को ही मुख्यमंत्री बनाने की अपील करते आ रहे हैं। इसी प्रकार सपा के "प्रबुद्ध वर्ग सम्मलेन" से ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने की बात तो की जा रही है साथ ही परशुराम की बड़ी मूर्ति लगाने की भी बात की जा रही है। परन्तु किसी भी महत्वपूर्ण पद पर सपा ब्राह्मण को नहीं रखेगी। सपा में अखिलेश के अलावा दूसरा कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। जबकि प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी पिछड़े वर्ग का ही वर्चस्व रहता है।
भाजपा भी ब्राह्मण राजनीति की बात कर रही है लेकिन ब्राह्मण नेताओं को लेकर दो गुट बने हैं। ब्राह्मण राजनीति के तेज होते हुए भाजपा ने लखनऊ में ब्राह्मण सम्मलेन आयोजन किया जिसमे राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा को बुलाया गया। इस कार्यक्रम में प्रदेश सरकार के दो ब्राह्मण मंत्री डॉक्टरों दिनेश शर्मा और बृजेश पाठक भी शामिल हुए। भाजपा की गुटबाजी के चलते इस आयोजन में अन्य प्रमुख ब्राह्मण नेताओं डॉक्टर रमापति राम त्रिपाठी, शिव प्रताप शुक्ल, अजय मिश्रा उर्फ़ केनी, जितिन प्रसाद, लक्ष्मीकांत बाजपेयी, हरद्वार दुबे, प्रेम नारायण पांडेय आदि किसी को भी आमंत्रित नहीं किया गया था।
सूत्रों के अनुसार भाजपा में ब्राह्मण नेताओं को लेकर कुछ बड़े नेता नाराजगी जता रहे हैं। संगठन और सरकार में बैठे कई प्रभावशाली नेताओं का आरोप है कि भाजपा के ही कुछ ब्राह्मण नेता यह कुप्रचार कर रहे हैं कि ब्राह्मणों को महत्व नहीं दिया जा रहा है और यह वर्ग नाराज है। कानपुर के बिकरू काण्ड को भी मुख्यमंत्री और भाजपा विरोधी बताने में पार्टी के ही कुछ ब्राह्मण नेताओं का हाथ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विश्वसनीय सलाहकार अजय कुमार शर्मा राजनीति में आने के बाद पश्चिम में ब्राह्मण भूमिहार सम्मलेन कर एकजुट करने का प्रयास किया परन्तु पार्टी ने ही इसे आगे बढाने से मना कर दिया।
ब्राह्मण सम्मलेन के बाद भाजपा ने प्रबुद्ध वर्ग सम्मलेन का आयोजन किया। इसमें किसी भी ब्राह्मण नेता को नहीं बुलाया गया। प्रबुद्ध वर्ग सम्मलेन को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह और महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने अपने प्रबुद्धता दर्शायी। इस पर साफ़ है कि प्रदेश भाजपा की राजनीतिक में ब्राह्मण वर्ग को लेकर असामंजस्य की स्थिति बनी हुई है। ऐसी स्थिति में प्रतिद्वंदी दलों का ब्राह्माण प्रेम भाजपा के जाति गठजोड़ में सेंध लगा सकता है।
असल रूप में सामान्य ब्राह्मण वर्ग के लिए भाजपा अब भी पहली पसंद है। सपा और बसपा ब्राह्मणों को अपने पक्ष में करने के लिए कुछ भी लुभावने नारे दे परन्तु उनके लुभावने नारों से ब्राह्मण प्रभावित होने वाला नहीं है। ब्राह्मण वर्ग का कुछ अंश ही सपा बसपा की तरफ रुझान रख सकता जिन्हे चुनाव में टिकट या फिर कुछ अन्य लाभ हो। इन दलों के बीच कांग्रेस मुख्यमंत्री के रूप में ब्राह्मण चेहरा आगे लेकर आती है तो चुनाव नई करवट ले सकता है। यह साफ़ है कि कांग्रेस के अलावा अन्य कोई दल मुख्यमंत्री के रूप में ब्राह्मण चेहरे की घोषणा नहीं कर सकता। ब्राह्मणों का वैसे भी कांग्रेस के लिए पुराना रुझान रहा है। कांग्रेस शासन में उत्तर प्रदेश में 8 मुख्यमंत्री बने। कई राज्यों के मुख्यमंत्री पद पर ब्राह्मण नेताओं का वर्चस्व रहा। भाजपा के शासनकाल में एक भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं है।
विजय शंकर पंकज, यूरीड मीडिया- तीन दशकों के बाद 2022 का विधानसभा का चुनाव एक ऐसा चुनाव होगा जब जातीय समीकरण में ब्राह्मण मतदाताओं का प्रभाव ज्यादा होगा। अभी तक सभी दल ब्राह्मण वर्ग को प्रभावित करने के लिए "प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन" के नाम पर आयोजन कर रहे हैं। प्रतिद्वंद्वी दलों की इस राजनीतिक चाल में कांग्रेस ने नया पेंच फंसा दिया है।
कांग्रेस में यह सुगबुगाहट चल रही है कि ब्राह्मण मुख्यमंत्री की घोषणा कर चुनाव मैदान में उतरेगी। सूत्रों के अनुसार प्रियंका गाँधी के यूपी दौरे में ब्राह्मण राजनीति को लेकर लंबी चर्चा हुई। प्रियंका ने भी कार्यकर्ताओं से इस बारे में रायशुमारी की है। पिछले 2 वर्षों में प्रियंका का आराधना मिश्रा उर्फ मोना के प्रति बढ़ते लगाव को भी कांग्रेस पार्टी में सकारात्मक नजरिये से देखा जा रहा है। इधर कुछ दिनों से प्रियंका ने संरक्षण के तौर पर प्रमोद तिवारी को महत्व देना शुरू कर दिया है।
बताया जाता है कि प्रियंका पार्टी हाईकमान के पास उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण चेहरा घोषित कर चुनाव में रणनीति बनाने का प्रस्ताव दे रही हैं। कांग्रेस हाईकमान प्रियंका के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है तो ब्राह्मण मुख्यमंत्री के रूप में प्रमोद तिवारी का चेहरा सबसे ऊपर होगा। कांग्रेस ने सबसे अनुभवी और लोकप्रिय प्रमोद तिवारी का नाम मुख्यमंत्री के रूप में आने पर सियासत नया रूप ले लेगी।
अभी तक किसी भी राजनीतिक दल ने ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाने की बात नहीं की है। सबसे पहले ब्राह्मण सम्मलेन की घोषणा करने वाले बसपा के सतीश चंद्र मिश्र, मायावती को ही मुख्यमंत्री बनाने की अपील करते आ रहे हैं। इसी प्रकार सपा के "प्रबुद्ध वर्ग सम्मलेन" से ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने की बात तो की जा रही है साथ ही परशुराम की बड़ी मूर्ति लगाने की भी बात की जा रही है। परन्तु किसी भी महत्वपूर्ण पद पर सपा ब्राह्मण को नहीं रखेगी। सपा में अखिलेश के अलावा दूसरा कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। जबकि प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी पिछड़े वर्ग का ही वर्चस्व रहता है।
भाजपा भी ब्राह्मण राजनीति की बात कर रही है लेकिन ब्राह्मण नेताओं को लेकर दो गुट बने हैं। ब्राह्मण राजनीति के तेज होते हुए भाजपा ने लखनऊ में ब्राह्मण सम्मलेन आयोजन किया जिसमे राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा को बुलाया गया। इस कार्यक्रम में प्रदेश सरकार के दो ब्राह्मण मंत्री डॉक्टरों दिनेश शर्मा और बृजेश पाठक भी शामिल हुए। भाजपा की गुटबाजी के चलते इस आयोजन में अन्य प्रमुख ब्राह्मण नेताओं डॉक्टर रमापति राम त्रिपाठी, शिव प्रताप शुक्ल, अजय मिश्रा उर्फ़ केनी, जितिन प्रसाद, लक्ष्मीकांत बाजपेयी, हरद्वार दुबे, प्रेम नारायण पांडेय आदि किसी को भी आमंत्रित नहीं किया गया था।
सूत्रों के अनुसार भाजपा में ब्राह्मण नेताओं को लेकर कुछ बड़े नेता नाराजगी जता रहे हैं। संगठन और सरकार में बैठे कई प्रभावशाली नेताओं का आरोप है कि भाजपा के ही कुछ ब्राह्मण नेता यह कुप्रचार कर रहे हैं कि ब्राह्मणों को महत्व नहीं दिया जा रहा है और यह वर्ग नाराज है। कानपुर के बिकरू काण्ड को भी मुख्यमंत्री और भाजपा विरोधी बताने में पार्टी के ही कुछ ब्राह्मण नेताओं का हाथ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विश्वसनीय सलाहकार अजय कुमार शर्मा राजनीति में आने के बाद पश्चिम में ब्राह्मण भूमिहार सम्मलेन कर एकजुट करने का प्रयास किया परन्तु पार्टी ने ही इसे आगे बढाने से मना कर दिया।
ब्राह्मण सम्मलेन के बाद भाजपा ने प्रबुद्ध वर्ग सम्मलेन का आयोजन किया। इसमें किसी भी ब्राह्मण नेता को नहीं बुलाया गया। प्रबुद्ध वर्ग सम्मलेन को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह और महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने अपने प्रबुद्धता दर्शायी। इस पर साफ़ है कि प्रदेश भाजपा की राजनीतिक में ब्राह्मण वर्ग को लेकर असामंजस्य की स्थिति बनी हुई है। ऐसी स्थिति में प्रतिद्वंदी दलों का ब्राह्माण प्रेम भाजपा के जाति गठजोड़ में सेंध लगा सकता है।
असल रूप में सामान्य ब्राह्मण वर्ग के लिए भाजपा अब भी पहली पसंद है। सपा और बसपा ब्राह्मणों को अपने पक्ष में करने के लिए कुछ भी लुभावने नारे दे परन्तु उनके लुभावने नारों से ब्राह्मण प्रभावित होने वाला नहीं है। ब्राह्मण वर्ग का कुछ अंश ही सपा बसपा की तरफ रुझान रख सकता जिन्हे चुनाव में टिकट या फिर कुछ अन्य लाभ हो। इन दलों के बीच कांग्रेस मुख्यमंत्री के रूप में ब्राह्मण चेहरा आगे लेकर आती है तो चुनाव नई करवट ले सकता है। यह साफ़ है कि कांग्रेस के अलावा अन्य कोई दल मुख्यमंत्री के रूप में ब्राह्मण चेहरे की घोषणा नहीं कर सकता। ब्राह्मणों का वैसे भी कांग्रेस के लिए पुराना रुझान रहा है। कांग्रेस शासन में उत्तर प्रदेश में 8 मुख्यमंत्री बने। कई राज्यों के मुख्यमंत्री पद पर ब्राह्मण नेताओं का वर्चस्व रहा। भाजपा के शासनकाल में एक भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं है।
11th September, 2021