विजय शंकर पंकज। भारत में धर्मान्तरण की शुरूआत बुद्धिज्म से हुई। इस कार्य में तत्कालीन सत्ताधीशो से बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार से लेकर धर्मान्तरण में सहयोग दिया। मौर्य बंश के शासक अशोक का इसमें सबसे बड़ा योगदान रहा। इसके पूर्व द्वापर काल तक वैदिक धर्म को ही सामाजिक तौर पर वरीयता दी गयी। वैदिक धर्म की स्थापना तथा उसमें मानवीय गुणों के भाव विकसित करने के लिए राम और कृष्ण का योगदान अविस्मरणीय रहा। यही कारण है कि भारतीय समान ने इन दोनों ही महापुरूषो को भगवान की उपाधि ही नही दी बल्कि कोटी कोटी लोगो के मानस में अभी तक विराजमान है। यही वैदिक धर्म बाद में हिन्दू धर्म कहलाया।
हिन्दू धर्म वैदिक मान्यताओं के अनुसार जीवन जीने की अवधारणा है। इस प्रथा का ब्रााह्मण समाज ने प्रति स्थापित किया और जीवन्त बनाया। वैदिक जीवन हर काल और परिस्थितियों के अनुरूप निरन्तर प्रवाहमान होते हुए सुधारात्मक रहा। यह सब कुछ वैचारिक मान्यताओं के आधार पर था। वैदिक काल के प्रारम्भ में ईश्वरवाद की अवधारणा पनपी और उससे आस्था जनमानस की प्रेरणा बनी। वैदिक काल के प्रारम्भ में प्राकृतिक तथ्यों (सूर्य , अग्नि, वायु, वरूण, पृथ्वी, आकाश आदि - आदि) ईश्वरीय तत्व बने। उस समय पूजा पद्धति तथा कर्मकांड नही थे। शुरूआत में वैदिक अग्निहोत्र का ही प्रभाव रहा। इसी कालखंड में अनिश्वरवाद की भी अवधारणा पनपी। ब्रााह्मण समाज ईश्वरवादी की अवधारणा के साथ वैदिक रिति रिवाज को लेकर आगे चला तो अनिश्वरवाद का प्रचार श्रमण करते थे। श्रमणो के इन्ही अनिश्वरवाद से तीर्थाकंर हुए, जिन्होने बाद में जैन धर्म की स्थापना की। ब्रााह्मणो और श्रमणांे के इस वैचारिक अभियान में कही भी धर्मान्तरण का नामो निशां नही था। दोनों वर्गो अपने वैचारिक अभियान से जनसमाज को अपने पक्षधर बनाते थे। कालान्तर में समाज में ब्रााह्मण वर्ग के बढ़ते प्रभाव के कारण सत्ताधीश वर्ग को परेशानी होने लगी। ब्रााह्मण वर्ग का वैचारिक प्रभाव यह होता कि उनके आह्वान पर बड़े से बड़े सत्ताधीश गद्दी से उतार दिये जाते। इससे परेशान सत्ताधीश वर्ग ने ब्रााह्मण वर्ग के खिलाफ अनिश्वरवादी श्रमणांे को समर्थन देना शुरू कर दिया। ब्रााह्मण वर्ग ने ईश्वरीय आस्था को बढ़ाने और समाज को जोड़े रखने के लिए मंदिर, देवी देवताओं की मूर्ति से लेकर पूजा और कर्मकांड की पद्धति विकसित की। इसमें भी कई वर्ग पैदा हुए परन्तु सबका लक्ष्य वैदिक रीति रिवाजो को ही स्थापित करना था।
भारत में 7 बड़े धर्म परिवर्तन हुए जिसके बाद यह बहुधर्मीय देश बन गया। विश्व में स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन की कम ही घटनाएं है। वह भी प्रचारित की गयी है। विश्व इतिहास में ईसाईयों और मुस्लिमों में धर्मयुद्ध की कई घटनाएं है जो अब भी जारी है। इसे क्रुसेड और जेहाद कहा गया। बौद्ध, ईसाई और इस्लाम द्वारा विश्व भर में जबरदस्ती किये गये धर्म परिवर्तन के बाद ही धर्मान्तरण शब्द की व्याख्या की गयी। भारत में प्राचीन काल में हिन्दुओं का धर्मान्तरण जैन, बौद्ध धर्म में धर्मान्तरण हुआ तो मध्यकाल में इस्लाम और सिख धर्म और बाद में ईसाई,बौद्ध और इस्लाम में अब भी धर्म परिवर्तन जारी है।
विश्व में सबसे प्राचीन धर्मो में हिन्दू धर्म कहा जाता है। ऋगवेद विश्व की सबसे प्राचीन धार्मिक पुस्तक है। वैदिक काल में यह आर्य धर्म कहा गया जो बाद में हिन्दू धर्म बना।
आर्य धर्म की स्थापना लगभग 20 हजार वर्ष पुरानी मानी जाती है। आर्य धर्म ने पूरी दुनिया में मानव समाज की जीवन शैली बदल दी। कबायली और अनियन्त्रित समाज ने विकास और सभ्यता का नया पाठ सीखा और शान्ति से मिल जुलकर जीने और नैतिक मूल्यांे की स्थापना की। सर्व प्रथम स्वयंभू मनु ने धरती पर शासन स्थापित किया और मनुष्य समाज को जीने की नयी राह दी। इसके बाद वर्षो तक उनकी पीढ़िया विश्वभर में सत्ता तंत्र तथा मनुष्य के विकास के लिए काम करते रहे। प्राचीन काल में भारत वर्ष हिन्दूकुश पर्वत माला से, वर्मा तथा इन्डोनेशिया तक फैला था। इस जम्बूदीप के इस खंड में आज 23 देश है।
वैदिक काल में ब्रााह्मण तथा श्रमण के विचारो में मतभेद था परन्तु दोनो का ही लक्ष्य मोक्ष था। ब्रााह्मण वर्ग ईश्वर को मानता था तो श्रमण आत्मा को ही सर्वोच्च प्राथमिकता देते थे। अरिष्टनेमी और कृष्ण तक यह परम्परा इस प्रकार साथ साथ चली कि आम जन को इसमें भेद ही पता नही चला। श्रमणांे की परम्परा को प्राय: विद्रोहियो की परम्परा कहा जाता था। राजा जनक अष्टावक्र भी श्रमण परम्परा के थे। चार्वाक विचारधारा भी इसी से पनपी। भारत के कई दार्शनिक नास्तिक विचारधारा के थे। गुरू वशिष्ठ तथा विश्वामित्र ने वैदिक धर्म की व्यवस्था दी परन्तु इनकी लड़ाई से मतभिन्नता का दौर शुरू हो गया। भगवान कृष्ण ने द्वापर में वैदिक धर्म को नये सिरे से प्रतिस्थापित किया। इसके चलते जैन धर्म लगभग लुप्त प्राय: हो गया। पाश्र्वनाथ जैन 23वे तीर्थंकर थे। इनका जन्म अरिष्टनेमी के 1000 वर्ष बाद इक्ष्वाकु बंश में हुआ। इन्हांेने जैन धर्म को नयी व्यवस्था देकर दोबारा प्रचारित प्रसारित किया। 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर से जैन परम्परा को बल मिला।
कालान्तर में हिन्दू धर्म में बढ़ते कर्मकांड तथा पूजा पद्धति को लेकर तमाम सामाजिक बुराइया आ गयी। इसी दौर में 563 ईसा पूर्व भगवान बुद्ध का अवतरण हुआ। बुद्ध के प्रभाव से भिक्षु होने की समाज में होड़ लग गयी। राजसत्ता का संरक्षण मिलने से बौद्ध भिक्षु कामकाज छोड़ मठो के आश्रित रहने लगे। भारत के बाहर भी बौद्ध धर्म का खुब प्रचार प्रसार हुआ। बुद्ध के निर्वाण के बाद भिक्षुओं में भी मतभेद हो गये और बाद में इसकी कई शाखाएं हो गयी। भारत की आजादी के बाद एक नवबौद्ध सम्प्रदाय भी बना। जाति व्यवस्था ने हिन्दू धर्म को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। हिन्दू समाज के शासक वर्ग ने अपने स्वार्थ के लिए अन्य वर्गो का शोषण किया जिससे बिखराव बढ़ता गया।
भारत में ईसा की पहली सदी में ईसाई धर्म आया। थामस ने चेन्नई शहर में ईसाई धर्म का प्रचार शुरू किया। सेंट थामस 72 ईस्वी में एक आदिवासी के भाले से मारे गये। दक्षिण भारत में सीरियाई ईसाई सेंट थामस के आगमन का संकेत देता है। सन 1542 में फ्रांसिस जेवियर के आगमन से रोमन कैथोलिक धर्म की स्थापना हुई। ईसाई मिशनरियों ने आदिवासियों की अशिक्षा तथा गरीबी का लाभ उठाकर उनका धर्म परिवर्तन कराया। इसमें ब्रिाटिश सरकार ने पूरा सहयोग दिया। अंग्रेजो के जाने के बाद मदर टेरेसा ने सेवा भाव के बहाने बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराया।
7 वीं शताब्दी में अरब व्यापारियों के माध्यम से इस्लाम दक्षिण भारत में आया। इसके पहले इस्लाम ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर वहां से हिन्दू शाही बंश का खात्मा किया। महाभारत का शकुनि क्षत्रिय राजा अफगानिस्तान के ही गांधार ( आज कन्धार) का राजा था। उस समय केरल और बंगाल इस्लाम के मुख्य केन्द्र थे। इसी समय मोहम्मद बिन कासिम ने बड़े पैमाने पर कत्लेआम कर बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया। आज का पाकिस्तान तथा भारत का पंजाब कभी पांचााल तथा कुरू राज्य था परन्तु कासिम के कब्जे के बाद यहां से ज्यादातर हिन्दू पलायन कर गये और नही गये वे मुसलमान बन गये। ईरान के सूफीवाद ने भी भारत में इस्लाम के प्रचार प्रसार में महति भूमिका निभायी। 12वीं सदी तक इस्लाम पूरे भारत वर्ष में फैल गये। मुगलशासक तुर्की थे और इनके शासनकाल विशेषकर औरंगजेब ने बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराया। औरंगजेब के अत्याचार से त्रस्त हिन्दुओं ने सिखो के नौवे गुरू तेगबहादूर सिंह से गुहार लगायी। सिख धर्म की स्थापना ही इस्लाम से हिन्दू समाज की स्थापना के लिए हुई थी।
सिख धर्म की स्थापना 15वीं शताब्दी में गुरूनानक ने एकेश्वरवाद की विचारधारा और समाज में भाईचारे के लिए किया। सिखो ने कभी धर्मान्तरण का कार्य नही किया। पंजाब में हिन्दू मुसलमानों के बीच बढ़ते वैमनस्य से सिख गुरूओं ने हर हिन्दू परिवार से एक बच्चा धर्म और देश की रक्षा के लिए मांगा। गुरू तेगबहादूर ने काश्मीरी पंडितो तथा हिन्दुओं की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। बाद में खालसा पंथ की स्थापना हुई और गुरू गोबिन्द सिंह तथा महाराजा रणजीत सिंह के काल में हिन्दू वर्ग अपने को सुरक्षित महसूस करने लगा।
आजादी के बाद भी भारत में धर्म परिवर्तन की घटनाएं लगातार चलती रहती है। इसमें बहुत कुछ राजनीतिक तुष्टिकरण की नीति ने काम किया। तुष्टिकरण के कारण ही भारत में आजादी के बाद कई बड़ी साम्प्रदायिक घटनाएं भी हुई। देश के मुस्लिम बाहुल्य इलाको में वोट के लिए कई राजनीतिक दल अब भी तुष्टिकरण की रणनीति अपनाते है। केवल भारतीय जनता पार्टी ने ही मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का खुला विरोध किया। यही कारण है कि केन्द्र में भाजपा की मोदी सरकार बनने के बाद से मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले राजनीतिक दलों में खलबली मची है। पहले कोई दल मुस्लिम समर्थन के बिना सरकार बनने की कल्पना भी नही करता था। वर्ष 1991 में राममंदिर आन्दोलन के बाद पहली बार मुस्लिम विरोध के बाद भी भाजपा की सरकार बनी और जनता में एक नया विश्वास पैदा हुआ। धर्म और तुष्टिकरण के चलते अपराध और हिंसा को बढ़ावा देने वाला वर्ग यूपी के मोदी सरकार में भयभीत और नियन्त्रित रहने को मजबूर हो गया है।
हिन्दू धर्म वैदिक मान्यताओं के अनुसार जीवन जीने की अवधारणा है। इस प्रथा का ब्रााह्मण समाज ने प्रति स्थापित किया और जीवन्त बनाया। वैदिक जीवन हर काल और परिस्थितियों के अनुरूप निरन्तर प्रवाहमान होते हुए सुधारात्मक रहा। यह सब कुछ वैचारिक मान्यताओं के आधार पर था। वैदिक काल के प्रारम्भ में ईश्वरवाद की अवधारणा पनपी और उससे आस्था जनमानस की प्रेरणा बनी। वैदिक काल के प्रारम्भ में प्राकृतिक तथ्यों (सूर्य , अग्नि, वायु, वरूण, पृथ्वी, आकाश आदि - आदि) ईश्वरीय तत्व बने। उस समय पूजा पद्धति तथा कर्मकांड नही थे। शुरूआत में वैदिक अग्निहोत्र का ही प्रभाव रहा। इसी कालखंड में अनिश्वरवाद की भी अवधारणा पनपी। ब्रााह्मण समाज ईश्वरवादी की अवधारणा के साथ वैदिक रिति रिवाज को लेकर आगे चला तो अनिश्वरवाद का प्रचार श्रमण करते थे। श्रमणो के इन्ही अनिश्वरवाद से तीर्थाकंर हुए, जिन्होने बाद में जैन धर्म की स्थापना की। ब्रााह्मणो और श्रमणांे के इस वैचारिक अभियान में कही भी धर्मान्तरण का नामो निशां नही था। दोनों वर्गो अपने वैचारिक अभियान से जनसमाज को अपने पक्षधर बनाते थे। कालान्तर में समाज में ब्रााह्मण वर्ग के बढ़ते प्रभाव के कारण सत्ताधीश वर्ग को परेशानी होने लगी। ब्रााह्मण वर्ग का वैचारिक प्रभाव यह होता कि उनके आह्वान पर बड़े से बड़े सत्ताधीश गद्दी से उतार दिये जाते। इससे परेशान सत्ताधीश वर्ग ने ब्रााह्मण वर्ग के खिलाफ अनिश्वरवादी श्रमणांे को समर्थन देना शुरू कर दिया। ब्रााह्मण वर्ग ने ईश्वरीय आस्था को बढ़ाने और समाज को जोड़े रखने के लिए मंदिर, देवी देवताओं की मूर्ति से लेकर पूजा और कर्मकांड की पद्धति विकसित की। इसमें भी कई वर्ग पैदा हुए परन्तु सबका लक्ष्य वैदिक रीति रिवाजो को ही स्थापित करना था।
भारत में 7 बड़े धर्म परिवर्तन हुए जिसके बाद यह बहुधर्मीय देश बन गया। विश्व में स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन की कम ही घटनाएं है। वह भी प्रचारित की गयी है। विश्व इतिहास में ईसाईयों और मुस्लिमों में धर्मयुद्ध की कई घटनाएं है जो अब भी जारी है। इसे क्रुसेड और जेहाद कहा गया। बौद्ध, ईसाई और इस्लाम द्वारा विश्व भर में जबरदस्ती किये गये धर्म परिवर्तन के बाद ही धर्मान्तरण शब्द की व्याख्या की गयी। भारत में प्राचीन काल में हिन्दुओं का धर्मान्तरण जैन, बौद्ध धर्म में धर्मान्तरण हुआ तो मध्यकाल में इस्लाम और सिख धर्म और बाद में ईसाई,बौद्ध और इस्लाम में अब भी धर्म परिवर्तन जारी है।
विश्व में सबसे प्राचीन धर्मो में हिन्दू धर्म कहा जाता है। ऋगवेद विश्व की सबसे प्राचीन धार्मिक पुस्तक है। वैदिक काल में यह आर्य धर्म कहा गया जो बाद में हिन्दू धर्म बना।
आर्य धर्म की स्थापना लगभग 20 हजार वर्ष पुरानी मानी जाती है। आर्य धर्म ने पूरी दुनिया में मानव समाज की जीवन शैली बदल दी। कबायली और अनियन्त्रित समाज ने विकास और सभ्यता का नया पाठ सीखा और शान्ति से मिल जुलकर जीने और नैतिक मूल्यांे की स्थापना की। सर्व प्रथम स्वयंभू मनु ने धरती पर शासन स्थापित किया और मनुष्य समाज को जीने की नयी राह दी। इसके बाद वर्षो तक उनकी पीढ़िया विश्वभर में सत्ता तंत्र तथा मनुष्य के विकास के लिए काम करते रहे। प्राचीन काल में भारत वर्ष हिन्दूकुश पर्वत माला से, वर्मा तथा इन्डोनेशिया तक फैला था। इस जम्बूदीप के इस खंड में आज 23 देश है।
वैदिक काल में ब्रााह्मण तथा श्रमण के विचारो में मतभेद था परन्तु दोनो का ही लक्ष्य मोक्ष था। ब्रााह्मण वर्ग ईश्वर को मानता था तो श्रमण आत्मा को ही सर्वोच्च प्राथमिकता देते थे। अरिष्टनेमी और कृष्ण तक यह परम्परा इस प्रकार साथ साथ चली कि आम जन को इसमें भेद ही पता नही चला। श्रमणांे की परम्परा को प्राय: विद्रोहियो की परम्परा कहा जाता था। राजा जनक अष्टावक्र भी श्रमण परम्परा के थे। चार्वाक विचारधारा भी इसी से पनपी। भारत के कई दार्शनिक नास्तिक विचारधारा के थे। गुरू वशिष्ठ तथा विश्वामित्र ने वैदिक धर्म की व्यवस्था दी परन्तु इनकी लड़ाई से मतभिन्नता का दौर शुरू हो गया। भगवान कृष्ण ने द्वापर में वैदिक धर्म को नये सिरे से प्रतिस्थापित किया। इसके चलते जैन धर्म लगभग लुप्त प्राय: हो गया। पाश्र्वनाथ जैन 23वे तीर्थंकर थे। इनका जन्म अरिष्टनेमी के 1000 वर्ष बाद इक्ष्वाकु बंश में हुआ। इन्हांेने जैन धर्म को नयी व्यवस्था देकर दोबारा प्रचारित प्रसारित किया। 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर से जैन परम्परा को बल मिला।
कालान्तर में हिन्दू धर्म में बढ़ते कर्मकांड तथा पूजा पद्धति को लेकर तमाम सामाजिक बुराइया आ गयी। इसी दौर में 563 ईसा पूर्व भगवान बुद्ध का अवतरण हुआ। बुद्ध के प्रभाव से भिक्षु होने की समाज में होड़ लग गयी। राजसत्ता का संरक्षण मिलने से बौद्ध भिक्षु कामकाज छोड़ मठो के आश्रित रहने लगे। भारत के बाहर भी बौद्ध धर्म का खुब प्रचार प्रसार हुआ। बुद्ध के निर्वाण के बाद भिक्षुओं में भी मतभेद हो गये और बाद में इसकी कई शाखाएं हो गयी। भारत की आजादी के बाद एक नवबौद्ध सम्प्रदाय भी बना। जाति व्यवस्था ने हिन्दू धर्म को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। हिन्दू समाज के शासक वर्ग ने अपने स्वार्थ के लिए अन्य वर्गो का शोषण किया जिससे बिखराव बढ़ता गया।
भारत में ईसा की पहली सदी में ईसाई धर्म आया। थामस ने चेन्नई शहर में ईसाई धर्म का प्रचार शुरू किया। सेंट थामस 72 ईस्वी में एक आदिवासी के भाले से मारे गये। दक्षिण भारत में सीरियाई ईसाई सेंट थामस के आगमन का संकेत देता है। सन 1542 में फ्रांसिस जेवियर के आगमन से रोमन कैथोलिक धर्म की स्थापना हुई। ईसाई मिशनरियों ने आदिवासियों की अशिक्षा तथा गरीबी का लाभ उठाकर उनका धर्म परिवर्तन कराया। इसमें ब्रिाटिश सरकार ने पूरा सहयोग दिया। अंग्रेजो के जाने के बाद मदर टेरेसा ने सेवा भाव के बहाने बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराया।
7 वीं शताब्दी में अरब व्यापारियों के माध्यम से इस्लाम दक्षिण भारत में आया। इसके पहले इस्लाम ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर वहां से हिन्दू शाही बंश का खात्मा किया। महाभारत का शकुनि क्षत्रिय राजा अफगानिस्तान के ही गांधार ( आज कन्धार) का राजा था। उस समय केरल और बंगाल इस्लाम के मुख्य केन्द्र थे। इसी समय मोहम्मद बिन कासिम ने बड़े पैमाने पर कत्लेआम कर बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया। आज का पाकिस्तान तथा भारत का पंजाब कभी पांचााल तथा कुरू राज्य था परन्तु कासिम के कब्जे के बाद यहां से ज्यादातर हिन्दू पलायन कर गये और नही गये वे मुसलमान बन गये। ईरान के सूफीवाद ने भी भारत में इस्लाम के प्रचार प्रसार में महति भूमिका निभायी। 12वीं सदी तक इस्लाम पूरे भारत वर्ष में फैल गये। मुगलशासक तुर्की थे और इनके शासनकाल विशेषकर औरंगजेब ने बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराया। औरंगजेब के अत्याचार से त्रस्त हिन्दुओं ने सिखो के नौवे गुरू तेगबहादूर सिंह से गुहार लगायी। सिख धर्म की स्थापना ही इस्लाम से हिन्दू समाज की स्थापना के लिए हुई थी।
सिख धर्म की स्थापना 15वीं शताब्दी में गुरूनानक ने एकेश्वरवाद की विचारधारा और समाज में भाईचारे के लिए किया। सिखो ने कभी धर्मान्तरण का कार्य नही किया। पंजाब में हिन्दू मुसलमानों के बीच बढ़ते वैमनस्य से सिख गुरूओं ने हर हिन्दू परिवार से एक बच्चा धर्म और देश की रक्षा के लिए मांगा। गुरू तेगबहादूर ने काश्मीरी पंडितो तथा हिन्दुओं की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। बाद में खालसा पंथ की स्थापना हुई और गुरू गोबिन्द सिंह तथा महाराजा रणजीत सिंह के काल में हिन्दू वर्ग अपने को सुरक्षित महसूस करने लगा।
आजादी के बाद भी भारत में धर्म परिवर्तन की घटनाएं लगातार चलती रहती है। इसमें बहुत कुछ राजनीतिक तुष्टिकरण की नीति ने काम किया। तुष्टिकरण के कारण ही भारत में आजादी के बाद कई बड़ी साम्प्रदायिक घटनाएं भी हुई। देश के मुस्लिम बाहुल्य इलाको में वोट के लिए कई राजनीतिक दल अब भी तुष्टिकरण की रणनीति अपनाते है। केवल भारतीय जनता पार्टी ने ही मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का खुला विरोध किया। यही कारण है कि केन्द्र में भाजपा की मोदी सरकार बनने के बाद से मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले राजनीतिक दलों में खलबली मची है। पहले कोई दल मुस्लिम समर्थन के बिना सरकार बनने की कल्पना भी नही करता था। वर्ष 1991 में राममंदिर आन्दोलन के बाद पहली बार मुस्लिम विरोध के बाद भी भाजपा की सरकार बनी और जनता में एक नया विश्वास पैदा हुआ। धर्म और तुष्टिकरण के चलते अपराध और हिंसा को बढ़ावा देने वाला वर्ग यूपी के मोदी सरकार में भयभीत और नियन्त्रित रहने को मजबूर हो गया है।
31st July, 2021