राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव के पहले विपक्ष भारतीय जनता पार्टी के जाल में फंसता नज़र आ रहा है। यह सही है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव जातीय एवं धार्मिक मतों के जोड़-तोड़ और ध्रुवीकरण के आधार पर ही होते है। 1989 के बाद गठित होने वाली गैर कांग्रेसी सरकारें जातीय एवं धार्मिक एजेंडे पर ही चुनाव लड़ी और सरकारें बनती रही। 2017 विधानसभा चुनाव को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़े ही सलीके से विकास के मुद्दे से हटाकर धार्मिक एवं जातीय एजेंडे में उलझा दिया। सात चरणों के चुनाव में हर चरण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विकास से हटकर ‘श्मशान’, ‘कब्रिस्तान’, ‘गधे’, 'कसाब', 'कट्टा' आदि मुद्दों में अखिलेश को उलझा कर अप्रत्याशित परिणाम हासिल किया। पांच वर्ष के कार्यकाल में मोदी और योगी सरकार ने लगभग 300 विभिन्न योजनाएं शुरू की जो गांव, गरीब, किसान, महिलाएं व सभी वर्गों के लिए हैं। इन योजनाओं में जैसा कि सरकार दावा कर रही है उसके अनुसार तुलनात्मक परिणाम नहीं है।
सरकार जानती है और उसे ज़मीनी हकीकत पता भी है कि कोरोना संकट में अपेक्षाकृत स्वास्थ्य सेवाएं नहीं थी। आक्सीजन के बिना मौतें हुई। अस्पतालों में जगह नहीं थी और श्मशान एवं कब्रिस्तान में अन्तिम संस्कार और दफनाने के लिए 24 से 30 घंटे तक का इंतजार करना पड़ा। महंगाई एवं बेरोजगारी चरम सीमा पर है। इन सभी स्थितियों को जानते हुए बड़े सुनियोजित तरीके से विपक्ष को ब्राह्मण सम्मेलन, भाईचारा सम्मेलन एवं अन्य जातीय सम्मेलन तथा अयोध्या मंदिर निर्माण आदि तमाम मुद्दों पर उलझा दिया। सभी दल जनता की मूल समस्याओं से हट कर जातीय धार्मिक मुद्दों में उलझ गए है जबकि वास्तविक स्थिति यह है जातीय और धार्मिक मुद्दों पर भाजपा हमेशा दूसरे दलों पर भारी रही है। विपक्ष के लिए भाजपा के जातीय एवं धार्मिक मुद्दों में फंसने के बजाय जनता की मूल समस्याओं पर मुहिम शुरू करनी चाहिए। और हर मुहिम के लिए तथ्य आकड़े के विश्लेषण के साथ जन भावनाओं को जोड़कर आगे बढ़ना चाहिए। जबकि विपक्ष पुराने ढर्रे की मौसमी सियासत करने पर जुटा है। जिसे देखते हुए आज कह सकते हैं कि चर्चा व परसेप्शन कुछ भी हो भाजपा अपने रणनीति के अनुसार उतनी कमजोर नहीं है जितना विपक्ष समझ रहा है।
सबसे प्रबल दावेदार अखिलेश यादव, मायावती, प्रियंका सभी के लिए भाजपा को घेरने का सबसे बड़ा मुद्दा स्वास्थ्य सेवाएं, किसान व गरीबों से जुड़ी योजनाएं हैं। उदाहरण के रूप में भाजपा किसान सम्मान निधि प्रतिवर्ष 6 हज़ार रुपये देने का दावा कर रही है और इसे किसानों का सबसे हितैषी बता रही है। इसका जवाब किसान हित में विपक्ष के पास नहीं है लेकिन अगर विपक्ष अखिलेश, माया या प्रियंका कोई भी किसान सम्मान निधि और वर्तमान में डीजल-पेट्रोल सहित अन्य आवश्यक वस्तुओं का तुलनात्मक अध्यन्न करके किसानों को यह समझाते कि प्रतिवर्ष 6 हज़ार रुपये के नाम पर प्रतिदिन 16.43 पैसे दिए जा रहे है जबकि पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों में 25 से 30 रुपये किसान सामान निधि लागू होने के बाद से बढ़ोतरी हो चुकी है। कोई भी किसान एवं उसके परिवार का सदस्य 1 लीटर भी डीजल या पेट्रोल प्रतिदिन उपयोग करता है तो किसान सम्मान निधि पर भारी है क्योंकि किसान सम्मान निधि में 16 रुपये मिलते है और उसे 1 लीटर पर 25 रुपये खर्च करना पड़ रहा। छोटे किसान ही मोटर साइकिल का उपयोग करते है। देखा यह जा रहा है कि गांव में सड़कों का जाल बिछने के बाद नई पीढ़ी खेतों में जाने के लिए मोटर साइकिल का ही उपयोग करती है।
अगर ट्रैक्टर वाले किसान है तो उन्हें किसान सम्मान निधि का कई गुना धनराशि केवल डीजल पर देने पड़ रही है इसी तरह दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले हर वस्तु पर कई गुणा कीमतें बढ़ चुकी है। इसी तरह किसानों के उत्पाद में उपयोग आने वाले खाद्, बिजली, दवाएं सभी कई गुना महंगी हो गई अगर इनकी महँगाई की कीमत और किसान सम्मान निधि के 16 रुपए की तुलना करें तो महँगाई निधि पर भारी पड़ेगी । अगर किसान के मुद्दे किसान सम्मान निधि पर तुलनात्मक विश्लेषण करके किसानों को समझाये तो किसान सम्मान निधि का जो वाहवाही भाजपा लूट रही है वह हवा हो जाएगी।
दूसरा स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति दिनों दिन ख़राब होती जा रही है। योगी आदित्य नाथ का यह दावा सही है कि 70 वर्षों में 12 मेडिकल कॉलेज थे और गत 5 वर्षों में लगभग 75 जनपदों में 75 मेडिकल कॉलेज बन जायेंगे। चुनाव में जब यह घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और भाजपा के नेता स्वास्थ्य सेवाओं में गिनाएंगे तो जनता को लगेगा कि भाजपा कार्यकाल में बहुत मेडिकल कॉलेज खुले और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ। मेडिकल कॉलेज की तरह एम्स व अन्य मेडिकल इंस्टिट्यूट के दावे भाजपा करेगी। लेकिन वास्तविक स्थिति दावे के विपरीत है। मेडिकल कॉलेज की घोषणा और उसका लाभ स्थानीय स्तर पर जनपदों में लोगों को मिले इसके लिए बिल्डिंग और मशीन नहीं फैकल्टी चाहिए। जिसमे चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टाफ की अपेक्षाकृत संख्या हो। लेकिन किसी भी मेडिकल कॉलेज में मेरी जानकारी के अनुसार फैकल्टी, स्टाफ और दवाएं नहीं हैं। केवल बिल्डिंग और प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी तैनात होकर जनता की गाढ़ी कमाई का करोड़ों रुपया ले रहे है। विपक्ष के लिए स्वास्थ्य सेवा एक अहम मुद्दा है जिसको सरकार के दावे के अनुरूप एक-एक
मेडिकल कॉलेज की वास्तविक स्थिति जनता के सामने लाती तो मेडिकल कॉलेज के दावे की कलई खुल जाती।
तीसरा सबसे अहम मुद्दा बेरोजगारी और कोरोना संकट में आक्सीजन के बिना और कोरोना से हुई मौते शामिल हैं। लोकसभा में यह बयान दिया गया कि आक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई जबकि आक्सीजन से हुई मौतों को प्रदेश की जनता देखा है। हज़ारों परिवार आक्सीजन की कमी से हुई मौतों से प्रभावित है। विपक्ष सपा बसपा और कांग्रेस को अपने संगठन एवं नेटवर्क के माध्यम या किसी अन्य एजेंसी के माध्यम से आक्सीजन के बिना हुई मौतों और कोरोना से हुई मौतों का डाटा गांव शहर और जनपद वार प्रत्येक परिवार का नाम, पते के साथ जारी करते और सरकार के दावे को चुनौती देते तो तो जमीनी हकीकत को नकारने का सरकार के पास कोई रास्ता नहीं बचाता। जहाँ तक 5 किलो अनाज देने की बात है। 5 किलों अनाज की कीमत और उपभोक्ता के रूप में वस्तुओं के उपयोग दवा, खाद्यान्न वस्तुएं, नमक, तेल, साबुन आदि सभी गरीब प्रतिदिन उपयोग करते है उसकी तुलना करते तो 5 किलो अनाज पर भी महँगाई भारी पड़ती। कोरोना काल में डेढ़ वर्षों में रोजगार छीने है व विभिन्न योजनाओं का जो लाभ मिल रहा था उमसे कटौती हुई है।
इन सब का जमीनी हक़ीक़त का अध्ययन करके विधानसभा वार जनता के सामने सच लाते तो सरकार के दावों की असलियत सामने आती लेकिन यह सब करने के बजाय अखिलेश यादव रथ यात्रा से निकाल रहे है। रालोद और सपा भाईचारा सम्मेलन कर रहे है। मायावती ब्राह्मण सम्मलेन कर रही हैं। कांग्रेस व अन्य सभी दल जातीय एवं धार्मिक बयानों और विवादों में उलझ गए है क्योंकि कोई भी मेहनत नहीं करना चाहता। जनता के नाम पर सत्ता चाहते है इसलिए मोदी की रणनीति विपक्ष पर चुनाव में भारी पड़ती है। उत्तर प्रदेश के विपक्ष को भाजपा से लड़ने के लिए ममता के राजनीतिक कार्यशैली का अध्ययन करके अपनाना चाहिये। ज़मीनी हक़ीक़त के तथ्य और आकड़ों के साथ आक्रामक सियासत ही 2022 में मोदी और अमित शाह जैसे अनुभवी ताकतवर और रणनीतिकार को चुनौती दे सकती है। मौजूदा हालात में विपक्ष की सियासत को देखते हुए हम यह कह सकते है कि अगर विपक्ष जनता की भावनाओं के अनुरूप ज़मीनी हकीकत को तथ्य और सत्य आकड़ों के साथ सियासत नहीं करेगा तो 2022 में मेरा व्यक्तिगत मानना है कि 7 चरणों का चुनाव पूरे होने और परिणाम आने के बाद एक बार फिर विपक्ष को EVM का रोना रह जायेगा।
सरकार जानती है और उसे ज़मीनी हकीकत पता भी है कि कोरोना संकट में अपेक्षाकृत स्वास्थ्य सेवाएं नहीं थी। आक्सीजन के बिना मौतें हुई। अस्पतालों में जगह नहीं थी और श्मशान एवं कब्रिस्तान में अन्तिम संस्कार और दफनाने के लिए 24 से 30 घंटे तक का इंतजार करना पड़ा। महंगाई एवं बेरोजगारी चरम सीमा पर है। इन सभी स्थितियों को जानते हुए बड़े सुनियोजित तरीके से विपक्ष को ब्राह्मण सम्मेलन, भाईचारा सम्मेलन एवं अन्य जातीय सम्मेलन तथा अयोध्या मंदिर निर्माण आदि तमाम मुद्दों पर उलझा दिया। सभी दल जनता की मूल समस्याओं से हट कर जातीय धार्मिक मुद्दों में उलझ गए है जबकि वास्तविक स्थिति यह है जातीय और धार्मिक मुद्दों पर भाजपा हमेशा दूसरे दलों पर भारी रही है। विपक्ष के लिए भाजपा के जातीय एवं धार्मिक मुद्दों में फंसने के बजाय जनता की मूल समस्याओं पर मुहिम शुरू करनी चाहिए। और हर मुहिम के लिए तथ्य आकड़े के विश्लेषण के साथ जन भावनाओं को जोड़कर आगे बढ़ना चाहिए। जबकि विपक्ष पुराने ढर्रे की मौसमी सियासत करने पर जुटा है। जिसे देखते हुए आज कह सकते हैं कि चर्चा व परसेप्शन कुछ भी हो भाजपा अपने रणनीति के अनुसार उतनी कमजोर नहीं है जितना विपक्ष समझ रहा है।
सबसे प्रबल दावेदार अखिलेश यादव, मायावती, प्रियंका सभी के लिए भाजपा को घेरने का सबसे बड़ा मुद्दा स्वास्थ्य सेवाएं, किसान व गरीबों से जुड़ी योजनाएं हैं। उदाहरण के रूप में भाजपा किसान सम्मान निधि प्रतिवर्ष 6 हज़ार रुपये देने का दावा कर रही है और इसे किसानों का सबसे हितैषी बता रही है। इसका जवाब किसान हित में विपक्ष के पास नहीं है लेकिन अगर विपक्ष अखिलेश, माया या प्रियंका कोई भी किसान सम्मान निधि और वर्तमान में डीजल-पेट्रोल सहित अन्य आवश्यक वस्तुओं का तुलनात्मक अध्यन्न करके किसानों को यह समझाते कि प्रतिवर्ष 6 हज़ार रुपये के नाम पर प्रतिदिन 16.43 पैसे दिए जा रहे है जबकि पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों में 25 से 30 रुपये किसान सामान निधि लागू होने के बाद से बढ़ोतरी हो चुकी है। कोई भी किसान एवं उसके परिवार का सदस्य 1 लीटर भी डीजल या पेट्रोल प्रतिदिन उपयोग करता है तो किसान सम्मान निधि पर भारी है क्योंकि किसान सम्मान निधि में 16 रुपये मिलते है और उसे 1 लीटर पर 25 रुपये खर्च करना पड़ रहा। छोटे किसान ही मोटर साइकिल का उपयोग करते है। देखा यह जा रहा है कि गांव में सड़कों का जाल बिछने के बाद नई पीढ़ी खेतों में जाने के लिए मोटर साइकिल का ही उपयोग करती है।
अगर ट्रैक्टर वाले किसान है तो उन्हें किसान सम्मान निधि का कई गुना धनराशि केवल डीजल पर देने पड़ रही है इसी तरह दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले हर वस्तु पर कई गुणा कीमतें बढ़ चुकी है। इसी तरह किसानों के उत्पाद में उपयोग आने वाले खाद्, बिजली, दवाएं सभी कई गुना महंगी हो गई अगर इनकी महँगाई की कीमत और किसान सम्मान निधि के 16 रुपए की तुलना करें तो महँगाई निधि पर भारी पड़ेगी । अगर किसान के मुद्दे किसान सम्मान निधि पर तुलनात्मक विश्लेषण करके किसानों को समझाये तो किसान सम्मान निधि का जो वाहवाही भाजपा लूट रही है वह हवा हो जाएगी।
दूसरा स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति दिनों दिन ख़राब होती जा रही है। योगी आदित्य नाथ का यह दावा सही है कि 70 वर्षों में 12 मेडिकल कॉलेज थे और गत 5 वर्षों में लगभग 75 जनपदों में 75 मेडिकल कॉलेज बन जायेंगे। चुनाव में जब यह घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और भाजपा के नेता स्वास्थ्य सेवाओं में गिनाएंगे तो जनता को लगेगा कि भाजपा कार्यकाल में बहुत मेडिकल कॉलेज खुले और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ। मेडिकल कॉलेज की तरह एम्स व अन्य मेडिकल इंस्टिट्यूट के दावे भाजपा करेगी। लेकिन वास्तविक स्थिति दावे के विपरीत है। मेडिकल कॉलेज की घोषणा और उसका लाभ स्थानीय स्तर पर जनपदों में लोगों को मिले इसके लिए बिल्डिंग और मशीन नहीं फैकल्टी चाहिए। जिसमे चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टाफ की अपेक्षाकृत संख्या हो। लेकिन किसी भी मेडिकल कॉलेज में मेरी जानकारी के अनुसार फैकल्टी, स्टाफ और दवाएं नहीं हैं। केवल बिल्डिंग और प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी तैनात होकर जनता की गाढ़ी कमाई का करोड़ों रुपया ले रहे है। विपक्ष के लिए स्वास्थ्य सेवा एक अहम मुद्दा है जिसको सरकार के दावे के अनुरूप एक-एक
मेडिकल कॉलेज की वास्तविक स्थिति जनता के सामने लाती तो मेडिकल कॉलेज के दावे की कलई खुल जाती।
तीसरा सबसे अहम मुद्दा बेरोजगारी और कोरोना संकट में आक्सीजन के बिना और कोरोना से हुई मौते शामिल हैं। लोकसभा में यह बयान दिया गया कि आक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई जबकि आक्सीजन से हुई मौतों को प्रदेश की जनता देखा है। हज़ारों परिवार आक्सीजन की कमी से हुई मौतों से प्रभावित है। विपक्ष सपा बसपा और कांग्रेस को अपने संगठन एवं नेटवर्क के माध्यम या किसी अन्य एजेंसी के माध्यम से आक्सीजन के बिना हुई मौतों और कोरोना से हुई मौतों का डाटा गांव शहर और जनपद वार प्रत्येक परिवार का नाम, पते के साथ जारी करते और सरकार के दावे को चुनौती देते तो तो जमीनी हकीकत को नकारने का सरकार के पास कोई रास्ता नहीं बचाता। जहाँ तक 5 किलो अनाज देने की बात है। 5 किलों अनाज की कीमत और उपभोक्ता के रूप में वस्तुओं के उपयोग दवा, खाद्यान्न वस्तुएं, नमक, तेल, साबुन आदि सभी गरीब प्रतिदिन उपयोग करते है उसकी तुलना करते तो 5 किलो अनाज पर भी महँगाई भारी पड़ती। कोरोना काल में डेढ़ वर्षों में रोजगार छीने है व विभिन्न योजनाओं का जो लाभ मिल रहा था उमसे कटौती हुई है।
इन सब का जमीनी हक़ीक़त का अध्ययन करके विधानसभा वार जनता के सामने सच लाते तो सरकार के दावों की असलियत सामने आती लेकिन यह सब करने के बजाय अखिलेश यादव रथ यात्रा से निकाल रहे है। रालोद और सपा भाईचारा सम्मेलन कर रहे है। मायावती ब्राह्मण सम्मलेन कर रही हैं। कांग्रेस व अन्य सभी दल जातीय एवं धार्मिक बयानों और विवादों में उलझ गए है क्योंकि कोई भी मेहनत नहीं करना चाहता। जनता के नाम पर सत्ता चाहते है इसलिए मोदी की रणनीति विपक्ष पर चुनाव में भारी पड़ती है। उत्तर प्रदेश के विपक्ष को भाजपा से लड़ने के लिए ममता के राजनीतिक कार्यशैली का अध्ययन करके अपनाना चाहिये। ज़मीनी हक़ीक़त के तथ्य और आकड़ों के साथ आक्रामक सियासत ही 2022 में मोदी और अमित शाह जैसे अनुभवी ताकतवर और रणनीतिकार को चुनौती दे सकती है। मौजूदा हालात में विपक्ष की सियासत को देखते हुए हम यह कह सकते है कि अगर विपक्ष जनता की भावनाओं के अनुरूप ज़मीनी हकीकत को तथ्य और सत्य आकड़ों के साथ सियासत नहीं करेगा तो 2022 में मेरा व्यक्तिगत मानना है कि 7 चरणों का चुनाव पूरे होने और परिणाम आने के बाद एक बार फिर विपक्ष को EVM का रोना रह जायेगा।
27th July, 2021