यूरीड मीडिया- उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए एक चेतावनी है जिसे एजेंडे पर भाजपा सरकार का पहिया दौड़ रहा था उस पर पंचायत चुनाव में बहुत बड़ा अवरोध पैदा कर दिया है। धार्मिक रूप से काशी, अयोध्या और मथुरा तीनों को लेकर भाजपा के लंबे अरसे से आंदोलन कर रही है और इसे चुनावी एजेंडे में शामिल करती है। 5 दशक से अधिक चल रहे अयोध्या विवाद उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद समाप्त हो गया जबकि काशी और मथुरा को नए सिरे से चुनाव एजेंडे में शामिल करने की पहल भाजपा के अनुषांगिक संगठन ने शुरू कर दिया है। यह माना जा रहा है कि हिंदुत्व झंडे पर ही भारतीय जनता पार्टी चुनाव दर चुनाव जीतने का लक्ष्य बनाया है। तभी तो काशी मथुरा और अयोध्या में लगातार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दौरा कर रहे हैं समय दे रहे हैं और विकास की घोषणाएं कर रहे हैं।
सरकार बनने के बाद से अयोध्या में कई धार्मिक आयोजन करके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कीर्तिमान बनाया और लगातार इन तीनों स्थानों को विकास को लेकर तरह तरह की घोषणाएं कर रहे हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के इस चुनाव में जो परिणाम आए हैं उससे भारतीय जनता पार्टी को नए सिरे से सोचना चाहिए क्योंकि धार्मिक एजेंडे पर जन समस्याएं भारी पड़ रही हैं। गत 4 वर्षों में उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी बढ़ी है। 2 वर्ष होने जा रहे हैं कोरोना वायरस ने उद्योग धंधे बर्बाद कर दिए है। स्कूल बंद है अस्पतालों में त्राहिमाम मची हुई है। ऑक्सीजन के बिना लोगों की जान जा रही है। अस्पतालों में जगह नहीं है और पूरी तरह से कोरोना वायरस के कारण हाहाकार मचा हुआ है। 24 करोड़ आबादी सहम सी गई है जिस तरह से कोरोनावायरस के पिक समय में पंचायतों के चुनाव और मतगणना हुई है उससे कोरोना वायरस ग्रामीण क्षेत्रों तक फैल गया है। पंचायत चुनाव में कोई भी पार्टी चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़ती है लेकिन समर्थित उम्मीदवार जरूर खड़ा करती है। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार अभी तक घोषित चुनाव परिणाम में काशी, मथुरा, अयोध्या तीनों स्थानों पर भारतीय जनता पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली है क्योंकि तीनों स्थानों पर समाजवादी पार्टी व अन्य दलों निर्दलीयों का दबदबा हो गया है सबसे खराब स्थिति अयोध्या की है जो कि उत्तर प्रदेश सरकार के सबसे महत्वपूर्ण एजेंडे में शामिल थी।
योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर के बाद अगर किसी एक शहर व धार्मिक स्थल पर यात्रा की है तो वह है अयोध्या। लगातार दीपोत्सव और अन्य तरह-तरह के कार्य व धार्मिक आयोजन होते रहे हैं। करोड़ों करोड़ों विकास के नाम पर स्वीकृति हुई है अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट बन रहा है लेकिन इसके बाद भी अयोध्या की जनता ने भाजपा पर भरोसा नहीं किया। घोषित परिणामों में समाजवादी पार्टी लगभग आधी सीटें जीती है जबकि भाजपा को मात्र 20% सीट ही मिली है। जिला पंचायत सदस्य 40 सीटों में सपा 17 भाजपा को 8: बसपा को 4 और एक निर्दलीय प्रत्याशी जीता है। योगी आदित्यनाथ को मंथन करना चाहिए कि अयोध्या जिसको उन्होंने सबसे अधिक ज़ोर दिया, राम मंदिर निर्माण हो रहा है आखिर वहां की जनता ने भाजपा को क्यों नकारा है ? लगभग यही स्थिति मथुरा और वाराणसी की है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से किसानों का आंदोलन प्रभावी दिखाई दिया।
भाजपा को करारी शिकस्त मिली है। परिस्थिति पूर्वांचल मध्य क्षेत्र व अन्य जनपदों की भी है जहां पर भाजपा को अपेक्षाकृत बहुत कम सीटें मिली है जबकि 2015 में सत्ता में नहीं थी तो जिला पंचायत सदस्य में 1000 से अधिक सीटें जीती थी और दो तिहाई सीटें समाजवादी पार्टी सत्ता में रहते हुए जीती थी। यह माना जाता कि पंचायत का चुनाव सरकार का होता है लेकिन 2021 के पंचायत चुनाव में ऐसा नहीं हुआ है। योगी आदित्यनाथ निश्चित रूप से ईमानदार मुख्यमंत्री हैं लेकिन अनुभवहीनता और नौकरशाही के काकस ने जमीनी हकीकत से दूर रखा है। यही कारण है जो पूरे प्रदेश में अस्पतालों में बेड नहीं है। ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा है। लोग मर रहे हैं। दवाई नहीं है। यहां तक कि कब्रिस्तान और श्मशान में जगह नहीं बची है। 24 और 39 घंटे तक लोगों को कब्रिस्तान श्मशान में इंतजार करना पड़ता है। इसके बाद भी सरकार का यह दावा कि सब कुछ ठीक है किसी चीज की कमी नहीं है दुर्भाग्यपूर्ण और जमीनी हकीकत से बहुत दूर होना माना जाता है।
अयोध्या विवाद हल होने के बाद मंदिर निर्माण को लेकर जिस तरह से सुस्ती बढ़ती गई उससे यह लग रहा था कि तेजी तभी आएगी जब 2022 का चुनाव आएगा और लगभग हो भी वही रहा है लेकिन अगर पंचायत चुनाव के परिणाम को आधार बनाया जाए तो 2022 में फिर राम की लहर राम मंदिर के निर्माण व धार्मिक एजेंडे को ज्यादा महत्व मिलेगा। ऐसी संभावना कम ही होगी क्योंकि जनता हर स्तर पर परेशान है विशेषकर महिलाएं युवा मजदूर और मध्यम श्रेणी परिवार शामिल है। 5 किलो अनाज कोरोना वायरस संकट में देना अच्छी बात है लेकिन यह अनाज 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए बहुत कारगर साबित नहीं होगा। 4 वर्षों के कार्यकाल में जिस तरह से मुख्यमंत्री नौकरशाहों के बीच घिरे रहे और तमाम विकास की घोषणाएं और योजनाएं कोशिश करते रहे उसका जमीन में बहुत प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा है। चुनाव को बहुत कम समय बचा है। पंचायत चुनाव योगी सरकार के लिए एक चुनौती है और चेतावनी भी है कि जनता से जुड़े समस्याओं को देखें नौकरशाहों के सलाह और मीडिया मैनेजमेंट करके जमीनी हकीकत से दूर न भागे अन्यथा पंचायत चुनाव की तरह ही 2022 के भी चुनाव परिणाम आ सकते हैं।
सरकार बनने के बाद से अयोध्या में कई धार्मिक आयोजन करके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कीर्तिमान बनाया और लगातार इन तीनों स्थानों को विकास को लेकर तरह तरह की घोषणाएं कर रहे हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के इस चुनाव में जो परिणाम आए हैं उससे भारतीय जनता पार्टी को नए सिरे से सोचना चाहिए क्योंकि धार्मिक एजेंडे पर जन समस्याएं भारी पड़ रही हैं। गत 4 वर्षों में उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी बढ़ी है। 2 वर्ष होने जा रहे हैं कोरोना वायरस ने उद्योग धंधे बर्बाद कर दिए है। स्कूल बंद है अस्पतालों में त्राहिमाम मची हुई है। ऑक्सीजन के बिना लोगों की जान जा रही है। अस्पतालों में जगह नहीं है और पूरी तरह से कोरोना वायरस के कारण हाहाकार मचा हुआ है। 24 करोड़ आबादी सहम सी गई है जिस तरह से कोरोनावायरस के पिक समय में पंचायतों के चुनाव और मतगणना हुई है उससे कोरोना वायरस ग्रामीण क्षेत्रों तक फैल गया है। पंचायत चुनाव में कोई भी पार्टी चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़ती है लेकिन समर्थित उम्मीदवार जरूर खड़ा करती है। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार अभी तक घोषित चुनाव परिणाम में काशी, मथुरा, अयोध्या तीनों स्थानों पर भारतीय जनता पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली है क्योंकि तीनों स्थानों पर समाजवादी पार्टी व अन्य दलों निर्दलीयों का दबदबा हो गया है सबसे खराब स्थिति अयोध्या की है जो कि उत्तर प्रदेश सरकार के सबसे महत्वपूर्ण एजेंडे में शामिल थी।
योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर के बाद अगर किसी एक शहर व धार्मिक स्थल पर यात्रा की है तो वह है अयोध्या। लगातार दीपोत्सव और अन्य तरह-तरह के कार्य व धार्मिक आयोजन होते रहे हैं। करोड़ों करोड़ों विकास के नाम पर स्वीकृति हुई है अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट बन रहा है लेकिन इसके बाद भी अयोध्या की जनता ने भाजपा पर भरोसा नहीं किया। घोषित परिणामों में समाजवादी पार्टी लगभग आधी सीटें जीती है जबकि भाजपा को मात्र 20% सीट ही मिली है। जिला पंचायत सदस्य 40 सीटों में सपा 17 भाजपा को 8: बसपा को 4 और एक निर्दलीय प्रत्याशी जीता है। योगी आदित्यनाथ को मंथन करना चाहिए कि अयोध्या जिसको उन्होंने सबसे अधिक ज़ोर दिया, राम मंदिर निर्माण हो रहा है आखिर वहां की जनता ने भाजपा को क्यों नकारा है ? लगभग यही स्थिति मथुरा और वाराणसी की है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से किसानों का आंदोलन प्रभावी दिखाई दिया।
भाजपा को करारी शिकस्त मिली है। परिस्थिति पूर्वांचल मध्य क्षेत्र व अन्य जनपदों की भी है जहां पर भाजपा को अपेक्षाकृत बहुत कम सीटें मिली है जबकि 2015 में सत्ता में नहीं थी तो जिला पंचायत सदस्य में 1000 से अधिक सीटें जीती थी और दो तिहाई सीटें समाजवादी पार्टी सत्ता में रहते हुए जीती थी। यह माना जाता कि पंचायत का चुनाव सरकार का होता है लेकिन 2021 के पंचायत चुनाव में ऐसा नहीं हुआ है। योगी आदित्यनाथ निश्चित रूप से ईमानदार मुख्यमंत्री हैं लेकिन अनुभवहीनता और नौकरशाही के काकस ने जमीनी हकीकत से दूर रखा है। यही कारण है जो पूरे प्रदेश में अस्पतालों में बेड नहीं है। ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा है। लोग मर रहे हैं। दवाई नहीं है। यहां तक कि कब्रिस्तान और श्मशान में जगह नहीं बची है। 24 और 39 घंटे तक लोगों को कब्रिस्तान श्मशान में इंतजार करना पड़ता है। इसके बाद भी सरकार का यह दावा कि सब कुछ ठीक है किसी चीज की कमी नहीं है दुर्भाग्यपूर्ण और जमीनी हकीकत से बहुत दूर होना माना जाता है।
अयोध्या विवाद हल होने के बाद मंदिर निर्माण को लेकर जिस तरह से सुस्ती बढ़ती गई उससे यह लग रहा था कि तेजी तभी आएगी जब 2022 का चुनाव आएगा और लगभग हो भी वही रहा है लेकिन अगर पंचायत चुनाव के परिणाम को आधार बनाया जाए तो 2022 में फिर राम की लहर राम मंदिर के निर्माण व धार्मिक एजेंडे को ज्यादा महत्व मिलेगा। ऐसी संभावना कम ही होगी क्योंकि जनता हर स्तर पर परेशान है विशेषकर महिलाएं युवा मजदूर और मध्यम श्रेणी परिवार शामिल है। 5 किलो अनाज कोरोना वायरस संकट में देना अच्छी बात है लेकिन यह अनाज 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए बहुत कारगर साबित नहीं होगा। 4 वर्षों के कार्यकाल में जिस तरह से मुख्यमंत्री नौकरशाहों के बीच घिरे रहे और तमाम विकास की घोषणाएं और योजनाएं कोशिश करते रहे उसका जमीन में बहुत प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा है। चुनाव को बहुत कम समय बचा है। पंचायत चुनाव योगी सरकार के लिए एक चुनौती है और चेतावनी भी है कि जनता से जुड़े समस्याओं को देखें नौकरशाहों के सलाह और मीडिया मैनेजमेंट करके जमीनी हकीकत से दूर न भागे अन्यथा पंचायत चुनाव की तरह ही 2022 के भी चुनाव परिणाम आ सकते हैं।
5th May, 2021