दिनेश दुबे -सामान्य तौर पर माना जाता है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनावों के अतिरिक्त हमारे देश में होने वाले विभिन्न प्रकार के चुनाव जैसे नगर निकाय, मंडी परिषद, सहकारिता और पंचायत के चुनाव। ये सबके सब सत्ता के चुनाव होते है। राज्य सरकार की सत्ता पर जो काबिज़ होता है राज्य निर्वाचन आयोग रबर स्टैम्प की तरह भूमिका निभाते हुए कथित निष्पक्षता से चुनाव संपन्न करवाता है और पूरी की पूरी प्रशासनिक मशीनरी वही करती है जो सत्तारूढ़ सरकार चाहती है ! इस खरी बात में किसी को भो कोई संदेह नहीं होना चाहिए। क्योंकि ढाई दशक की पत्रकारिता में खुद मैंने ये सब बहुत करीब से देखा है और उसके पुख्ता साक्ष्य भी हमारे पास मौजूद हैं। एक साक्ष्य तो मैंने अपने एक राजनेता मित्र को कोर्ट में पेश करने के लिए इस शर्त पर दिया था कि वो कोर्ट को हमारा नाम नहीं बतायेंगे ? उन्होंने ऐसा किया भी !! खैर इस मुद्दे पर फिर कभी लिखूंगा ..!!
आज त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के परिणामों को देखकर लगता है कि प्रदेश की जनता वर्तमान सरकार से बहुत ज्यादा ही खफ़ा है। क्योंकि सबकुछ होने के बाद भी सत्तारूढ़ दल के स्थानीय नेताओं को आम जनमानस ने पूरी तरह नकार दिया है। गांव की संसद से लेकर ब्लाक और जिले की संसद तक अर्थात ग्राम प्रधान, ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों पर सत्तारूढ़ दल से ज्यादा मुख्य विपक्षी दल के कार्यकर्ता पदारूढ़ होते दिख रहे हैं । सांसद व विधायक के बाद देश में सबसे बड़ा पद जिला पंचायत अध्यक्ष का माना जाता है जिसको लेकर सत्तापक्ष के नेता काफी जोड़तोड़ करते हैं और पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सदस्य बनने के लिए अपनी पार्टी से टिकट पाने से लेकर चुनाव जीतने तक सबकुछ करते हैं। क्योंकि उन्हें पूर्ण विश्वास होता है कि जब सत्ता उनके साथ है तो फिर चुनाव जीतना ही नहीं बल्कि जिला पंचायत अध्यक्ष बनना तो तय ही है। इस तरह का विचार प्रदेश के प्रत्येक जिले में उस जिले की विधान सभा सीटों से कम से कम दोगुने लोगों का होता ही है ? लेकिन इस बार यूपी के लगभग प्रत्येक जिले में सत्तारूढ़ दल के 10 नेताओं को बड़ा झटका लगा है ! कारण आम जन मानस ने उन्हें सिरे से ख़ारिज कर दिया है। जबकि हारे हुए सत्तारूढ़ दल के नेता शासन-प्रशासन के असहयोग के साथ ही स्थानीय स्तर के बड़े नेताओं द्वारा भितरघात किये जाने का आरोप लगा रहे हैं। जिससे अब लगभग हर जिले में सिर फुटव्वल की स्थिति बन रही है जो सत्तारूढ़ सरकार के लिए सिरदर्द है।
आज त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के परिणामों को देखकर लगता है कि प्रदेश की जनता वर्तमान सरकार से बहुत ज्यादा ही खफ़ा है। क्योंकि सबकुछ होने के बाद भी सत्तारूढ़ दल के स्थानीय नेताओं को आम जनमानस ने पूरी तरह नकार दिया है। गांव की संसद से लेकर ब्लाक और जिले की संसद तक अर्थात ग्राम प्रधान, ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों पर सत्तारूढ़ दल से ज्यादा मुख्य विपक्षी दल के कार्यकर्ता पदारूढ़ होते दिख रहे हैं । सांसद व विधायक के बाद देश में सबसे बड़ा पद जिला पंचायत अध्यक्ष का माना जाता है जिसको लेकर सत्तापक्ष के नेता काफी जोड़तोड़ करते हैं और पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सदस्य बनने के लिए अपनी पार्टी से टिकट पाने से लेकर चुनाव जीतने तक सबकुछ करते हैं। क्योंकि उन्हें पूर्ण विश्वास होता है कि जब सत्ता उनके साथ है तो फिर चुनाव जीतना ही नहीं बल्कि जिला पंचायत अध्यक्ष बनना तो तय ही है। इस तरह का विचार प्रदेश के प्रत्येक जिले में उस जिले की विधान सभा सीटों से कम से कम दोगुने लोगों का होता ही है ? लेकिन इस बार यूपी के लगभग प्रत्येक जिले में सत्तारूढ़ दल के 10 नेताओं को बड़ा झटका लगा है ! कारण आम जन मानस ने उन्हें सिरे से ख़ारिज कर दिया है। जबकि हारे हुए सत्तारूढ़ दल के नेता शासन-प्रशासन के असहयोग के साथ ही स्थानीय स्तर के बड़े नेताओं द्वारा भितरघात किये जाने का आरोप लगा रहे हैं। जिससे अब लगभग हर जिले में सिर फुटव्वल की स्थिति बन रही है जो सत्तारूढ़ सरकार के लिए सिरदर्द है।
4th May, 2021