लोकतंत्र में जनता की कराह ----
विजय शंकर पंकज। यूरीड मीडिया-राम चरित मानस की ''जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवसि नरक अधिकारी" यह चौपाई आज बार - बार मेरे मन को व्यथित कर रही थी। यह भाव इसलिए भी द्रवित कर रहा था कि आज कल विश्व के अधिकांश देशो में लोकतांत्रिक सरकारे है।
इन सरकारो का दावा है कि उनके पीछे जनता की सहभागिता और समर्थन है। उनके देश की जनता ने उन्हें समर्थन दिया है। आखिर लोकतंत्र की यह सरकारे जनता के भरोसे पर कितना खरी उतरती है।
कोरोना महामारी से राजाओं के चरित्र और जनता की सोच की भी कलई खोली है। राजाओं के कर्म और चरित्र से प्रकृति नाराज है तो उसे सत्ता सौपने वाली जनता भी उतनी ही दोषी है। जनता ने जब दोषी राजाओं का चयन करेगी तो उनसे अच्छे परिणाम की भी अपेक्षा नही की जा सकती है। इसीलिए धर्मशास्त्रो में मनिषियो ने राजा के कर्म और शुद्ध चरित्र का विशद विवरण दिया है। जनता के हितो के खिलाफ चलने वाले राजाओं को हटाने के भी दृष्टान्त दिये गये है।
दावा है कि लोकतंत्र में जनता का शासन होता है। इसकी मिसाले दी जाती है। कुछ वर्षो पर ऐसा अवसर आता भी है। वह अवसर भी जनता के हाथो से कैसे फिसल जाता है, वह जान भी नही पाती। फिलहाल जब सत्ता बदलती है तो कुछ लोग खुश होते है कि उनकी सरकार बनी है। धीरे - धीरे यह धुंध साफ होने लगती है। आवाज आती है - सत्ता का चरित्र एक जैसा होता है। शासन में जो भी बैठा होता है, उस तक जनता की चीख नही पहुंचती है। सब कुछ दिखायी देता है परन्तु जैसे न्याय की देेवी की आंख पर पट्टी बंधी होती है तो सत्ताधीश की भावनाओं को महसूस करने वाली सभी इन्द्रिया और संवेदनाएं स्पन्दन रहित हो जाती है।
मानव सभ्यता आधुनिक काल के विकास क्रम को लोकतंत्र का उद्गम मानती है। मानव विकास के क्रम में कई जगह ऐसी राजशाही रही है जो आज के लोकतंत्र से ज्यादा बेहतर थी। भारतीय धर्म ग्रन्थो में तो राजाओं के क्रम की तमाम बाते कही गयी है। राजा के लिए जनता पुत्र के समान होती थी। कई राजाओं ने जनभावनाओं के लिए अपने प्रियजनो का त्याग किया। इस क्रम में मर्यादा पुरूषोत्तम राम का अपनी पत्नी सीता का परित्याग अब भारतीय जनमानस में शताब्दियो बाद भी उद्धरण के रूप में प्रस्तुत होता है।
राम चरित मानस में कई स्थानो पर राजा के कर्तव्य तथा उसके राजकाज के प्रभाव का उल्लेख किया गया है। आर्यावर्त के भूमि खंड में आज तक रामराज को ही आदर्श राज की संज्ञा दी गयी है। मानस के उत्तरकांड में इसका विस्तृत विवरण है। इसके साथ ही वनवास काल में जब राम चित्रकूट में जाकर वास करते है तो उस क्षेत्र की पूरी प्रकृति ही सुहानी हो जाती है। राम को मनाने जब भरत जाते है तो चित्रकूट की प्रकृति का कुछ ऐसा ही विवरण है। ''बिपुल बिचित्र बिहग मृग नाना। प्रजा समाजु न जाई बखाना।। बयरू बिहाई चरहि एक संगा। जह तह मनहु सेन चतुरंगा।। बेलि बिटप तृन सफल सफूलां। सब समाज मुद मंगल मूला।।"
भाव यह है कि राजा का कर्म और विचार अच्छा होता है तो प्रकृति भी उसका साथ देती है। सदह्मदय राजा का स्वागत प्रकृति अपने अनुरूप करती है। सारा वातावरण प्रजा के अनुरूप हो जाता है।
राम चरित मानस के उत्तर कांड में रामराज के बारे में कहा गया है। '' रामराज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका। बयरू न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।"
जनता के जीवन पर जब राजा का ऐसा प्रभाव होता है तो आज कल पूरे संसार में क्या हो गया है। क्या संसार में कोई ऐसा राजा नही है जिसका सह्मदय मन तथा कर्म जनता में खुशहाली का कारक हो। कोरोना के रूप में विश्व भर को भयावह आक्रान्त करती महामारी क्या राजाओं के रहस्यमय कुकर्र्मो का परिणाम है। चूंकि जनता भी ऐसे ही शासक का चुनाव कर रही है तो उसको भी कुछ तो भुगतान करना ही होगा। कोरोना महामारी ऐसे राजाओं के ही कुकर्र्र्र्मो का पर्दाफाश कर रही है और जनता को भी ऐसे लोगो को चुनने की चेतावनी दे रही है।
कोरोना महामारी से त्रस्त विश्व भर की जनता त्राहि - त्राहि कर रही है। सरकारे बयानबाजी और कानूनी दांव पेच की सफाई दे रही है। विश्व भर के कोने कोने से जनता की असहाय पुकार आ रही है परन्तु सत्ताधीशो को यह सुनायी नही दे रहा है। अपनी कमी को छिपाने के लिए बहाने ढूढे जा रहे है। इस महामारी में भी शासकीय वर्ग अपनी कमायी बढ़ाने में लगा हुआ है। आम गरीब जन में अपने जीवन का अन्तकाल का दिख रहा है। वह अपनो के पास रहना चाहता है परन्तु वहां तक पहुंचने की राह नही मिल रही है। सरकारे लोक लुभावन घोषणाएं कर ऐसी कठिन परिस्थिति में भी गरीबो को छलने का काम कर रही है।
ऐसी विपदा की स्थिति में जनता के साथ छल करने और उन्हें मरने के लिए छोड़ने वाले शासको और उसके सहयोगियो को भी एक दिन इसका भुगतना करना ही होगा। अन्त समय सभी को उनके आराध्य याद आते है चाहे वह जिस रूप में हो। भगवान राम का कथन सत्य है- ''जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी - सो नृप अवसि नरक अधिकारी "।
ॐ शान्ति - शान्ति ---
विजय शंकर पंकज। यूरीड मीडिया-राम चरित मानस की ''जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवसि नरक अधिकारी" यह चौपाई आज बार - बार मेरे मन को व्यथित कर रही थी। यह भाव इसलिए भी द्रवित कर रहा था कि आज कल विश्व के अधिकांश देशो में लोकतांत्रिक सरकारे है।
इन सरकारो का दावा है कि उनके पीछे जनता की सहभागिता और समर्थन है। उनके देश की जनता ने उन्हें समर्थन दिया है। आखिर लोकतंत्र की यह सरकारे जनता के भरोसे पर कितना खरी उतरती है।
कोरोना महामारी से राजाओं के चरित्र और जनता की सोच की भी कलई खोली है। राजाओं के कर्म और चरित्र से प्रकृति नाराज है तो उसे सत्ता सौपने वाली जनता भी उतनी ही दोषी है। जनता ने जब दोषी राजाओं का चयन करेगी तो उनसे अच्छे परिणाम की भी अपेक्षा नही की जा सकती है। इसीलिए धर्मशास्त्रो में मनिषियो ने राजा के कर्म और शुद्ध चरित्र का विशद विवरण दिया है। जनता के हितो के खिलाफ चलने वाले राजाओं को हटाने के भी दृष्टान्त दिये गये है।
दावा है कि लोकतंत्र में जनता का शासन होता है। इसकी मिसाले दी जाती है। कुछ वर्षो पर ऐसा अवसर आता भी है। वह अवसर भी जनता के हाथो से कैसे फिसल जाता है, वह जान भी नही पाती। फिलहाल जब सत्ता बदलती है तो कुछ लोग खुश होते है कि उनकी सरकार बनी है। धीरे - धीरे यह धुंध साफ होने लगती है। आवाज आती है - सत्ता का चरित्र एक जैसा होता है। शासन में जो भी बैठा होता है, उस तक जनता की चीख नही पहुंचती है। सब कुछ दिखायी देता है परन्तु जैसे न्याय की देेवी की आंख पर पट्टी बंधी होती है तो सत्ताधीश की भावनाओं को महसूस करने वाली सभी इन्द्रिया और संवेदनाएं स्पन्दन रहित हो जाती है।
मानव सभ्यता आधुनिक काल के विकास क्रम को लोकतंत्र का उद्गम मानती है। मानव विकास के क्रम में कई जगह ऐसी राजशाही रही है जो आज के लोकतंत्र से ज्यादा बेहतर थी। भारतीय धर्म ग्रन्थो में तो राजाओं के क्रम की तमाम बाते कही गयी है। राजा के लिए जनता पुत्र के समान होती थी। कई राजाओं ने जनभावनाओं के लिए अपने प्रियजनो का त्याग किया। इस क्रम में मर्यादा पुरूषोत्तम राम का अपनी पत्नी सीता का परित्याग अब भारतीय जनमानस में शताब्दियो बाद भी उद्धरण के रूप में प्रस्तुत होता है।
राम चरित मानस में कई स्थानो पर राजा के कर्तव्य तथा उसके राजकाज के प्रभाव का उल्लेख किया गया है। आर्यावर्त के भूमि खंड में आज तक रामराज को ही आदर्श राज की संज्ञा दी गयी है। मानस के उत्तरकांड में इसका विस्तृत विवरण है। इसके साथ ही वनवास काल में जब राम चित्रकूट में जाकर वास करते है तो उस क्षेत्र की पूरी प्रकृति ही सुहानी हो जाती है। राम को मनाने जब भरत जाते है तो चित्रकूट की प्रकृति का कुछ ऐसा ही विवरण है। ''बिपुल बिचित्र बिहग मृग नाना। प्रजा समाजु न जाई बखाना।। बयरू बिहाई चरहि एक संगा। जह तह मनहु सेन चतुरंगा।। बेलि बिटप तृन सफल सफूलां। सब समाज मुद मंगल मूला।।"
भाव यह है कि राजा का कर्म और विचार अच्छा होता है तो प्रकृति भी उसका साथ देती है। सदह्मदय राजा का स्वागत प्रकृति अपने अनुरूप करती है। सारा वातावरण प्रजा के अनुरूप हो जाता है।
राम चरित मानस के उत्तर कांड में रामराज के बारे में कहा गया है। '' रामराज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका। बयरू न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।"
जनता के जीवन पर जब राजा का ऐसा प्रभाव होता है तो आज कल पूरे संसार में क्या हो गया है। क्या संसार में कोई ऐसा राजा नही है जिसका सह्मदय मन तथा कर्म जनता में खुशहाली का कारक हो। कोरोना के रूप में विश्व भर को भयावह आक्रान्त करती महामारी क्या राजाओं के रहस्यमय कुकर्र्मो का परिणाम है। चूंकि जनता भी ऐसे ही शासक का चुनाव कर रही है तो उसको भी कुछ तो भुगतान करना ही होगा। कोरोना महामारी ऐसे राजाओं के ही कुकर्र्र्र्मो का पर्दाफाश कर रही है और जनता को भी ऐसे लोगो को चुनने की चेतावनी दे रही है।
कोरोना महामारी से त्रस्त विश्व भर की जनता त्राहि - त्राहि कर रही है। सरकारे बयानबाजी और कानूनी दांव पेच की सफाई दे रही है। विश्व भर के कोने कोने से जनता की असहाय पुकार आ रही है परन्तु सत्ताधीशो को यह सुनायी नही दे रहा है। अपनी कमी को छिपाने के लिए बहाने ढूढे जा रहे है। इस महामारी में भी शासकीय वर्ग अपनी कमायी बढ़ाने में लगा हुआ है। आम गरीब जन में अपने जीवन का अन्तकाल का दिख रहा है। वह अपनो के पास रहना चाहता है परन्तु वहां तक पहुंचने की राह नही मिल रही है। सरकारे लोक लुभावन घोषणाएं कर ऐसी कठिन परिस्थिति में भी गरीबो को छलने का काम कर रही है।
ऐसी विपदा की स्थिति में जनता के साथ छल करने और उन्हें मरने के लिए छोड़ने वाले शासको और उसके सहयोगियो को भी एक दिन इसका भुगतना करना ही होगा। अन्त समय सभी को उनके आराध्य याद आते है चाहे वह जिस रूप में हो। भगवान राम का कथन सत्य है- ''जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी - सो नृप अवसि नरक अधिकारी "।
ॐ शान्ति - शान्ति ---
4th May, 2021