यूरीड मीडिया- किसान ही देश की रीढ़ है और किसानों का अपमान सीधा सीधा राष्ट्रद्रोह है। किसान ही भरपेट भोजन देता है और किसान के बेटे ही सीमा की रक्षा करते है। जिस तरह से किसान आंदोलित है और सरकार द्वारा उपेक्षा की जा रही है यह उचित नहीं है उच्चतम न्यायालय को किसानों के दर्द को स्वत संज्ञान में लेना चाहिए। अगर किसान नहीं बचेगा तो देश नहीं बचेगा।
किसानों के मसीहा बनने वाले जो सभी बड़ी कंपनियों के एजेण्ट अपनी राजनीतिक स्वार्थ में देशद्रोह जैसी काम कर रहे है। जिस देश में किसान अपनी पैदा की हुई उपज को पाने के लिए मुकदमेबाज़ी करने के लिए मजबूर हो उस देश में किसान कैसे उन्नत कर सकता है। जिन कृषि नीति को लेकर किसान विरोध कर रहे है अगर वह किसान विरोधी नहीं तो किसानों को भरोसे में क्यों नहीं लिया गया और किसान विरोधी मानसिकता को मैं देशद्रोह इसलिए कह रहा है क्योकि इसका प्रत्यक्ष उदहारण कोरोना संकट काल है। जिसमे किसानों ने देश को बचा लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना संकट में 80 करोड़ आबादी को 5 किलो अनाज देकर जिंदा रखना चाहते थे। उसके लिए किसान ही भगवान बन कर खड़ा हुआ। आजादी के 73 वर्ष बाद देश में किसानों की सबसे अधिक उपेक्षा हुई लेकिन अपनी उपेक्षा और पीड़ा को सहते हुए भी किसानों ने देश को अनाज के मामले में स्वावलंबी बना दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहे जितनी क्रेडिट लेने की कोशिश करें और यह कहें कि वह गरीबों के लिए 80 करोड़ जनता के खाने पीने के लिए फ्री अनाज व्यवस्था कर रहे हैं लेकिन इसकी वास्तविक क्रेडिट अगर किसी को जानी चाहिए तो वह है किसान, लेकिन किसान किस हालात में है वह देश की जनता सामने है।
प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। किसानों के बच्चे शिक्षा और स्वास्थ्य से वंचित हैं। रहने के लिए आवास नहीं है। उनके उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। ₹80 प्रति लीटर डीजल खरीद करके किसान सिंचाई कर रहा है। कीमत 70% बढ़ चुकी है। बीज, दवाइयां और कीटनाशक का रेट पिछले 5 सालों में बढ़ा हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के 2 करोड़ से अधिक आबादी पूरी तरह बाढ़ प्रभावित हुई। किसानों की फसलें बर्बाद हुई। उनके घर टूट गए। पीड़ित किसान की वेदना प्रशासन सुनने के लिए तैयार नहीं है और प्रशासन के पास इन 73 वर्षों में सरकारों ने इतना संसाधन भी नहीं दिया कि वह बाढ़ पीड़ितों की मदद कर सकें। इतना जरूर है कि जो मिला है उसमें नेता नौकरशाह मिलकर लूट करके संकट को अवसर में जरूर बदल लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोचे कि अगर किसान भगवान बनकर नहीं खड़ा होता तो आपके सारे विकास माडल, सारी ताकत, सारी योजनाएं सब कुछ कोरोना संकट में देश को नहीं बचा सकती थी। देश को अगर बचाया है तो किसानों ने बचाया है और वही किसान आज भी पूरी तरह से उपेक्षित हैं। गांव गरीब किसानों की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के गांव में जा कर देखिए कि उनकी हालत क्या है? किस तरह से उन्हें लूटा गया है ? जो सड़कें बनी हैं, तालाब बन चुकी है। स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय के नाम पर लूट ही लूट हुई है। बैंकों में आपने खाता खुलवा दिया ₹500 दे दिए और इन ₹500 को निकालने के लिए गरीबों को चार-पांच दिन तक कोरोना संकट में लाइनों में लगना पड़ता है उसके बाद भी पैसा मिलेगा इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।
इन सब के बाद भी किसान आज खेत को छोड़कर सड़क पर है और अपनी मेहनत का सही मेहनताना पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। उन पर बल प्रयोग हो रहा है। वाटर कैनन का प्रयोग किया जा रहा है। क्या यह उचित है ?
किसानों के मसीहा बनने वाले जो सभी बड़ी कंपनियों के एजेण्ट अपनी राजनीतिक स्वार्थ में देशद्रोह जैसी काम कर रहे है। जिस देश में किसान अपनी पैदा की हुई उपज को पाने के लिए मुकदमेबाज़ी करने के लिए मजबूर हो उस देश में किसान कैसे उन्नत कर सकता है। जिन कृषि नीति को लेकर किसान विरोध कर रहे है अगर वह किसान विरोधी नहीं तो किसानों को भरोसे में क्यों नहीं लिया गया और किसान विरोधी मानसिकता को मैं देशद्रोह इसलिए कह रहा है क्योकि इसका प्रत्यक्ष उदहारण कोरोना संकट काल है। जिसमे किसानों ने देश को बचा लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना संकट में 80 करोड़ आबादी को 5 किलो अनाज देकर जिंदा रखना चाहते थे। उसके लिए किसान ही भगवान बन कर खड़ा हुआ। आजादी के 73 वर्ष बाद देश में किसानों की सबसे अधिक उपेक्षा हुई लेकिन अपनी उपेक्षा और पीड़ा को सहते हुए भी किसानों ने देश को अनाज के मामले में स्वावलंबी बना दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहे जितनी क्रेडिट लेने की कोशिश करें और यह कहें कि वह गरीबों के लिए 80 करोड़ जनता के खाने पीने के लिए फ्री अनाज व्यवस्था कर रहे हैं लेकिन इसकी वास्तविक क्रेडिट अगर किसी को जानी चाहिए तो वह है किसान, लेकिन किसान किस हालात में है वह देश की जनता सामने है।
प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। किसानों के बच्चे शिक्षा और स्वास्थ्य से वंचित हैं। रहने के लिए आवास नहीं है। उनके उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। ₹80 प्रति लीटर डीजल खरीद करके किसान सिंचाई कर रहा है। कीमत 70% बढ़ चुकी है। बीज, दवाइयां और कीटनाशक का रेट पिछले 5 सालों में बढ़ा हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के 2 करोड़ से अधिक आबादी पूरी तरह बाढ़ प्रभावित हुई। किसानों की फसलें बर्बाद हुई। उनके घर टूट गए। पीड़ित किसान की वेदना प्रशासन सुनने के लिए तैयार नहीं है और प्रशासन के पास इन 73 वर्षों में सरकारों ने इतना संसाधन भी नहीं दिया कि वह बाढ़ पीड़ितों की मदद कर सकें। इतना जरूर है कि जो मिला है उसमें नेता नौकरशाह मिलकर लूट करके संकट को अवसर में जरूर बदल लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोचे कि अगर किसान भगवान बनकर नहीं खड़ा होता तो आपके सारे विकास माडल, सारी ताकत, सारी योजनाएं सब कुछ कोरोना संकट में देश को नहीं बचा सकती थी। देश को अगर बचाया है तो किसानों ने बचाया है और वही किसान आज भी पूरी तरह से उपेक्षित हैं। गांव गरीब किसानों की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के गांव में जा कर देखिए कि उनकी हालत क्या है? किस तरह से उन्हें लूटा गया है ? जो सड़कें बनी हैं, तालाब बन चुकी है। स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय के नाम पर लूट ही लूट हुई है। बैंकों में आपने खाता खुलवा दिया ₹500 दे दिए और इन ₹500 को निकालने के लिए गरीबों को चार-पांच दिन तक कोरोना संकट में लाइनों में लगना पड़ता है उसके बाद भी पैसा मिलेगा इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।
इन सब के बाद भी किसान आज खेत को छोड़कर सड़क पर है और अपनी मेहनत का सही मेहनताना पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। उन पर बल प्रयोग हो रहा है। वाटर कैनन का प्रयोग किया जा रहा है। क्या यह उचित है ?
30th November, 2020