दिनेश दुबे, यूरीड मीडिया- अभिनेता से नेता बने चिराग पासवान का पॉलिटिकल ट्रेलर भी उनकी फिल्म की तरह ही बिहार विधान सभा चुनाव में कहीं फ्लॉप न हो जाये ! हालांकि इस बात की संभावनाएं कम ही हैं ! क्योंकि भारतीय राजनीति में 'मुद्दों' के बजाय 'संवेदनाएं' सिर चढ़कर बोलती हैं ! जिसके भुक्त भोगी ख़ुद चिराग के पिता रामविलास पासवान भी रह चुके हैं। पूरा देश जानता है कि राजनीति के माहिर खिलाड़ी रामविलास पासवान ने बिहार की जिस हाजीपुर लोकसभा सीट से अपनी लोकप्रियता की दम पर चुनाव जीतकर 'विश्व रिकॉर्ड' बनाया था। उसी हाजीपुर सीट के मतदाताओं ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद संवेदनाओं के ज्वार में बहकर सन 1984 के चुनाव में रामविलास पासवान को हरा दिया था ! चूंकि बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान ही लोजपा संस्थापक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रामविलास पासवान की अचानक मृत्यु हुई है, और बेटे चिराग़ पासवान द्वारा पिता के क्रिया-कर्म की रस्में निभाते हुए जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है उसे देखकर चिराग़ पासवान के पॉलिटिकल ट्रेलर को संवेदनाओं के सहारे मज़बूती मिलती नजर आ रही है ! यह बात अलग है कि ये मजबूती चिराग के राजनैतिक कैरियर के लिए मुफीद साबित नहीं होगी,क्योंकि उन्हें यह नहीं पता है कि 'वटवृक्ष' के नीचे किसी भी नस्ल का पौधा कभी फलता-फूलता ही नहीं हैं ?
चूंकि चिराग़ पासवान ने राजनेता के बजाय अभिनेता की तरह "ऐलान-ए-जंग" कर रखा है ! इसलिए उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि बिहार विधान सभा के सन 2015 में सम्पन्न हुए पिछले चुनाव में भाजपा के साथ 42 सीटों पर उन्होंने चुनाव लड़कर महज़ 2 सीटें हांसिल की थीं। जबकि सन 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने बिहार में 6 सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी 6 सीटों पर जीत भी दर्ज कराई थी तब भी वो एनडीए का हिस्सा थे! लेकिन इस बार जैसे ही भाजपा ने बिहार में अपनी हैसियत को भांपकर जदयू के नीतीश को पुनः मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते हुए उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने की योजना को अमलीजामा पहनाया! वैसे ही मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने व 6 सांसदों का गुणाभाग लगाने वाले लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने 4 अक्टूबर को एनडीए से विद्रोह कर दिया ! लेकिन भाजपा ने जब चिराग के विद्रोह की अनदेखी की तो उन्होंने ख़ुद को एनडीए से अलग करते हुए चुनावी दंगल में सबको ललकार लगा दी ! सच्चाई यह है कि उस दौरान चिराग पासवान का राजनैतिक पांसा एकदम उल्टा पड़ चुका था। लेकिन तभी 8 अक्टूबर को लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान की असमय मृत्यु हो गई। मोदी कैबिनेट के मंत्री पासवान को पूरा देश राजनैतिक मौसम विज्ञानी मानता था ! जबकि उनके बेटे चिराग पासवान को भी मौजूदा समय में राजनैतिक मौसम विज्ञानी माना जा सकता है, क्योंकि सन 2014 के लोकसभा चुनाव में जब जदयू के नीतीश बाबू नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के विरोध में सामने डटे हुए थे तब चिराग पासवान ने ही पिता राम विलास को समझाकर उन्हें एनडीए में शामिल करवाया था।
लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान इस समय एक साथ कई मोर्चों को सम्भाले हुए हैं ! चुनाव का पहला चरण नजदीक आ चुका है। अभिनेता के रूप में फ़िल्म 'मिले न मिले हम' में अभिनय करके रुपहले पर्दे पर फेल हो चुके चिराग पासवान ने नियती और संवेदनाओं के सहारे जिस अंदाज़ में अपने कदमों को आगे बढ़ा रखा है उसे देखकर यह कहना भी मुश्किल है कि आखिर में ऊंट किस करवट बैठेगा ? क्योंकि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व पर भरोसा बनाकर चिराग़ पासवान बिहार चुनाव में पूरा भौकाल गांठे हुए हैं ! यही नहीं चिराग पासवान दिवंगत पिता के अंतिम संस्कार से जुड़े क्रिया-कर्मों को सनातन पद्वति से संपन्न करके प्रतिदिन हजारों लोगों के बीच जाकर संस्कारी पुत्र और जिम्मेदार राजनेता होने का अहसास करा रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान चिराग पासवान भाजपा को जिताने और नीतीश को हराने का जनता से आवाहन कर रहे हैं। जिससे जनता में एक संदेश यह भी जा रहा है कि चिराग सोंची समझी रणनीति के तहत भाजपा की बी टीम बनकर नीतीश कुमार को नीचा दिखाना चाहते हैं ! लेकिन यह बात भी तो पूरा देश जानता है कि वट वृक्ष का रूप ले चुकी भाजपा आगे चलकर प्रकृति के विस्तार वादी नियम के तहत एक-एक करके सभी छोटे दलों को अस्तित्वहीन कर ही देगी ! इस लिहाज़ से भाजपा के लिए बिहार विधान सभा का यह चुनाव सबसे ज़्यादा फलदायी साबित होने वाला है ! क्योंकि छोटे दलों के आपस में लड़ने से भाजपा के वोटबैंक में तो किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी होनी नहीं है ? दूसरी बात यह कि भाजपा ने पहले ही कह रखा है कि उसे अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री नहीं बनाना है ! इसीलिए भाजपा ने अपने सहयोगी नीतीश कुमार को ही फिर से आगे किया है ! भाजपा ने यह भी साफ कर दिया है कि वह बिहार विधान सभा का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ रही है।
जबकि दूसरी ओर एनडीए से अलग होकर अपनी दम पर चुनाव लड़ रहे चिराग़ पासवान ने "मोदी तुमसे बैर नहीं ..नीतीश तुम्हारी खैर नहीं" का नारा बुलंद कर रखा है। चौकानें वाली बात यह है कि चिराग के इस नारे के विरोध में भाजपा के बड़े नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी व गिरिराज सिंह ने चिराग पासवान व उनकी पार्टी लोजपा को वोट कटवा तक कह डाला है ! चिराग पासवान के मसले पर भाजपा नेतृत्व की चुप्पी का राज इस समय भले ही किसी के समझ में न आ रहा हो लेकिन वो समय भी ज्यादा दूर नहीं है जब लोग भाजपा की चुप्पी के बारे में भी समझ जायेंगे ! जानने वाले जानते ही हैं कि भाजपा को अपने 'असल मक़सद' में मिलने वाली कामयाबी से पहले जश्न मनाने की जल्दबाजी कभी नहीं होती ? पिछले विधान सभा चुनाव में बीजेपी के साथ एनडीए में एलजेपी के अलावा जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी शामिल थी। लेकिन इस बार हो रहे चुनाव में स्थिति पूरी तरह से बदली हुई है। उस चुनाव में लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़कर सरकार बनाने वाले नीतीश कुमार घर वापसी कर चुके हैं और वो ही बिहार चुनाव में भाजपा व मोदी का चेहरा बन गए हैं। जबकि जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा व उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने बसपा के साथ नया मोर्चा बना लिया है। वाम दलों के साथ कांग्रेस और राजद का अपना अलग मोर्चा है, जिसमें 29:70: 144 सीटों पर क्रमशः सहमति बनी है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
चूंकि चिराग़ पासवान ने राजनेता के बजाय अभिनेता की तरह "ऐलान-ए-जंग" कर रखा है ! इसलिए उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि बिहार विधान सभा के सन 2015 में सम्पन्न हुए पिछले चुनाव में भाजपा के साथ 42 सीटों पर उन्होंने चुनाव लड़कर महज़ 2 सीटें हांसिल की थीं। जबकि सन 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने बिहार में 6 सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी 6 सीटों पर जीत भी दर्ज कराई थी तब भी वो एनडीए का हिस्सा थे! लेकिन इस बार जैसे ही भाजपा ने बिहार में अपनी हैसियत को भांपकर जदयू के नीतीश को पुनः मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते हुए उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने की योजना को अमलीजामा पहनाया! वैसे ही मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने व 6 सांसदों का गुणाभाग लगाने वाले लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने 4 अक्टूबर को एनडीए से विद्रोह कर दिया ! लेकिन भाजपा ने जब चिराग के विद्रोह की अनदेखी की तो उन्होंने ख़ुद को एनडीए से अलग करते हुए चुनावी दंगल में सबको ललकार लगा दी ! सच्चाई यह है कि उस दौरान चिराग पासवान का राजनैतिक पांसा एकदम उल्टा पड़ चुका था। लेकिन तभी 8 अक्टूबर को लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान की असमय मृत्यु हो गई। मोदी कैबिनेट के मंत्री पासवान को पूरा देश राजनैतिक मौसम विज्ञानी मानता था ! जबकि उनके बेटे चिराग पासवान को भी मौजूदा समय में राजनैतिक मौसम विज्ञानी माना जा सकता है, क्योंकि सन 2014 के लोकसभा चुनाव में जब जदयू के नीतीश बाबू नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के विरोध में सामने डटे हुए थे तब चिराग पासवान ने ही पिता राम विलास को समझाकर उन्हें एनडीए में शामिल करवाया था।
लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान इस समय एक साथ कई मोर्चों को सम्भाले हुए हैं ! चुनाव का पहला चरण नजदीक आ चुका है। अभिनेता के रूप में फ़िल्म 'मिले न मिले हम' में अभिनय करके रुपहले पर्दे पर फेल हो चुके चिराग पासवान ने नियती और संवेदनाओं के सहारे जिस अंदाज़ में अपने कदमों को आगे बढ़ा रखा है उसे देखकर यह कहना भी मुश्किल है कि आखिर में ऊंट किस करवट बैठेगा ? क्योंकि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व पर भरोसा बनाकर चिराग़ पासवान बिहार चुनाव में पूरा भौकाल गांठे हुए हैं ! यही नहीं चिराग पासवान दिवंगत पिता के अंतिम संस्कार से जुड़े क्रिया-कर्मों को सनातन पद्वति से संपन्न करके प्रतिदिन हजारों लोगों के बीच जाकर संस्कारी पुत्र और जिम्मेदार राजनेता होने का अहसास करा रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान चिराग पासवान भाजपा को जिताने और नीतीश को हराने का जनता से आवाहन कर रहे हैं। जिससे जनता में एक संदेश यह भी जा रहा है कि चिराग सोंची समझी रणनीति के तहत भाजपा की बी टीम बनकर नीतीश कुमार को नीचा दिखाना चाहते हैं ! लेकिन यह बात भी तो पूरा देश जानता है कि वट वृक्ष का रूप ले चुकी भाजपा आगे चलकर प्रकृति के विस्तार वादी नियम के तहत एक-एक करके सभी छोटे दलों को अस्तित्वहीन कर ही देगी ! इस लिहाज़ से भाजपा के लिए बिहार विधान सभा का यह चुनाव सबसे ज़्यादा फलदायी साबित होने वाला है ! क्योंकि छोटे दलों के आपस में लड़ने से भाजपा के वोटबैंक में तो किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी होनी नहीं है ? दूसरी बात यह कि भाजपा ने पहले ही कह रखा है कि उसे अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री नहीं बनाना है ! इसीलिए भाजपा ने अपने सहयोगी नीतीश कुमार को ही फिर से आगे किया है ! भाजपा ने यह भी साफ कर दिया है कि वह बिहार विधान सभा का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ रही है।
जबकि दूसरी ओर एनडीए से अलग होकर अपनी दम पर चुनाव लड़ रहे चिराग़ पासवान ने "मोदी तुमसे बैर नहीं ..नीतीश तुम्हारी खैर नहीं" का नारा बुलंद कर रखा है। चौकानें वाली बात यह है कि चिराग के इस नारे के विरोध में भाजपा के बड़े नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी व गिरिराज सिंह ने चिराग पासवान व उनकी पार्टी लोजपा को वोट कटवा तक कह डाला है ! चिराग पासवान के मसले पर भाजपा नेतृत्व की चुप्पी का राज इस समय भले ही किसी के समझ में न आ रहा हो लेकिन वो समय भी ज्यादा दूर नहीं है जब लोग भाजपा की चुप्पी के बारे में भी समझ जायेंगे ! जानने वाले जानते ही हैं कि भाजपा को अपने 'असल मक़सद' में मिलने वाली कामयाबी से पहले जश्न मनाने की जल्दबाजी कभी नहीं होती ? पिछले विधान सभा चुनाव में बीजेपी के साथ एनडीए में एलजेपी के अलावा जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी शामिल थी। लेकिन इस बार हो रहे चुनाव में स्थिति पूरी तरह से बदली हुई है। उस चुनाव में लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़कर सरकार बनाने वाले नीतीश कुमार घर वापसी कर चुके हैं और वो ही बिहार चुनाव में भाजपा व मोदी का चेहरा बन गए हैं। जबकि जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा व उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने बसपा के साथ नया मोर्चा बना लिया है। वाम दलों के साथ कांग्रेस और राजद का अपना अलग मोर्चा है, जिसमें 29:70: 144 सीटों पर क्रमशः सहमति बनी है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
22nd October, 2020