डॉक्टर अनिल चतुर्वेदी, यूरीड मीडिया- एक बार भगवान श्री राम ने अगस्त्य मुनि से पूछा, कि क्या राक्षस रावण के समय में कोई क्षत्रिय नरेश अथवा अन्य बलवान नहीं था जो रावण को पराजित कर सके। रामचन्द्र जी की बात सुनकर, अगस्त्य मुनि ने कहा कि रावण ने भगवान् शंकर को खुश कर सभी देवताओं, यक्षों, यम इत्यादि सभी के द्वारा अपने आप को रक्षित कर लिया लेकिन वह मनुष्यों को नगण्य समझते हुए उन्हें अपने बल द्वारा ही पराजित करने का बीड़ा उठाया। वह यह वरदान पाकर इन्द्र, यम, कुबेर इत्यादि सभी को हरा कर पृथ्वी की तरफ विचरण करने लगा एवं सभी राजाओं को पराजित करता हुआ आगे बढ़ने लगा। उसी समय वह, सहस्त्रार्जुन की राजधानी महिष्मती नगरी में जा पंहुचा। परन्तु संयोगवश उसी दिन राजा सहस्त्रबाहु अपनी स्त्रियों के साथ नर्मदा नदी में जल क्रीड़ा करने के लिए चले गए थे। रावण ने सहस्त्रार्जुन के मंत्रियों से कहा कि, मैं रावण हूँ, और तुम्हारे महाराज से युद्ध करने आया हूँ। उनके मंत्रियों ने कहा कि हमारे महाराज इस समय राजधानी में नहीं है। यह बात सुनकर रावण वहां से विशाल विंध्यगिरी पर्वत की तरफ चला गया। हिमालय के समान विशाल एवं विस्तृत विंध्यगिरी की शोभा देखते हुए ही बनती थी। यहाँ रावण अपने पुष्पक विमान से उतर कर नर्मदा के जल में डुबकी लगाई और नर्मदा के स्वच्छ जल को देखकर कहा कि यह साक्षात गंगा हैं। उसने अपने सेना को भी आदेश दिया कि सर्वदा सुख देने वाली इस नर्मदा नदी में स्नान करो। यह करके तुम पाप व ताप से मुक्त हो जाओगे। रावण के ऐसा कहने पर उसके सेनापति प्रहस्त्र, शुक, शारण, महोदर और धूम्राक्ष ने नर्मदा नदी में स्नान किया। उसके बाद उन सभी लोगों ने श्वेत वस्त्र धारण किया।
रावण जहाँ भी जाता था, वहां वह एक सोने का शिवलिंग अपने साथ लिए जाता था। उसने उस शिवलिंग को स्थापित कर भगवान् शंकर की भली भांति पूजन शुरू किया। उसी स्थान के निकट ही सहस्त्रार्जुन अपनी स्त्रियों के साथ जल क्रीड़ा कर रहा था। अर्जुन की भुजाओं द्वारा रोका हुआ, नर्मदा का निर्मल जल तट पर पूजा करते हुए रावण के पास पहुंच गया। यहाँ तक की नर्मदा नदी उल्टी गति से बहने लगी। रावण का वह पूजन अभी आधा ही समाप्त हुआ था, तभी लगा कि नर्मदा नदी में एक भीतर ज्वार आ गया है। तब रावण ने इसका कारण जानना चाहा तो उसके मंत्रियों ने कहा कि यह अर्जुन के कारण हो रहा है। राक्षस राज रावण सहस्त्रार्जुन को रोकने चला। अर्जुन को देखते ही रावण के नेत्र लाल हो गए और उसने अर्जुन से कहा कि मैं तुम्हारे साथ युद्ध करूँगा।
अर्जुन के सेनापतियों में रावण के इस ललकार से बेचैनी होने लगी। रावण के राक्षस, अर्जुन के सेना का संहार करने लगे। तब अर्जुन ने अपनी स्त्रियों से कहा कि तुम लोग डरना मत। अर्जुन, रावण से तनिक भी भयभीत नहीं हुआ। उसने अपना गदा को घुमाता हुआ प्रहस्त्र की ओर दौड़ा और ज़मीन पर गिरा दिया। प्रहस्त्र के धाराशायी होते हुए देख अन्य सेना भी युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ी हुई। "फिर तो हज़ार भुजाओं वाले नरनाथ और 20 भुजाओं वाले निशाचर नाथ में वहां भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया जो रोंगटे खड़े करने वाला था।" रावण ने भी अर्जुन की छाती पर वार किया। न तो अर्जुन ही थकता था और न ही राजा रावण। इसी बीच अर्जुन ने क्रोधित होकर रावण के विशाल वृक्ष स्थल पर प्रहार किया। चूकि रावण वर के प्रभाव से सुरक्षित था, फिर भी अर्जुन द्वारा गयी चलायी हुई गदा से आहत होकर बैठ गया। रावण को व्याकुल देख, अर्जुन सहर्ष उछल कर उसे पकड़ लिया, जैसे कि गरुण से झप्पटा मार कर किसी सर्प को धर दबाया हो।
अर्जुन ने रावण को अपने हज़ार हाथों द्वारा मजबूत रस्सों से बाँध लिया। अर्जुन ने समस्त राक्षसों को भयभीत कर रावण को लेकर अपने नगर महिष्मती में प्रवेश किया। रावण को पकड़ लेना, वायु को पकड़ने के समान था। धीरे धीरे यह बात देवताओं के मुख से रावण के दादा पुलस्त्य ऋषि ने सुनी। संतान के प्रति स्नेह के कारण, पुलस्त्य ऋषि अर्जुन से मिलने स्वर्ग लोक से महिष्मती नगर चले आये। पुलस्त्य ऋषि का दर्शन पाकर सहस्त्रार्जुन ने अपने को गौरवशाली महसूस किया और कहा कि मेरा जन्म आपके दर्शन से सफल हुआ और मेरी तपस्या भी सार्थक हो गयी।
आप मुझे आज्ञा दीजिये, हम आपकी क्या सेवा करे। तब ऋषि ने कहा, हे अर्जुन ! तुम्हारे बल की कहीं तुलना नहीं है क्योकि तुमने रावण को जीत लिया। जिसके भय से समुन्द्र और वायु भी चंचलता छोड़कर उसकी सेवा में उपस्थित होते है उस पौत्र को तुमने संग्राम में बाँध लिया। "ऐसा करके मेरे इस बच्चे का ऐश्वर्य समाप्त कर दिया और सभी जगह अपने नाम का ढिंढोरा पीट दिया। बस, अब मेरे कहने से तुम रावण को छोड़ दो, यह तुमसे मेरी याचना है, अर्जुन ने इसके विपरीत कोई बात नहीं कही और बड़ी खुशी के साथ राक्षस राज रावण को बंधन से मुक्त कर दिया।"
अर्जुन ने मनुष्य रूप में होते हुए भी, देवद्रोही राक्षस को बंधन मुक्त कर दिया। आभूषण और मालाओं से रावण की पूजा अर्चना की और अग्नि को साक्षी बना कर उसके साथ ऐसी मित्रता का सम्बन्ध स्थापित किया जिसके द्वारा मनुष्य हो या राक्षस किसी जीव के प्रति हिंसा नहीं करने की शपथ ली। अर्थात उन दोनों ने यह प्रतिज्ञा की कि हम लोग अपने मैत्री का उपयोग एक दूसरे प्राणियों की हिंसा में नहीं करेंगे।
यह कहते हुए अगस्त्य जी ने कहा कि, हे श्री राम ! इस प्रकार इस संसार में बलवान से बलवान वीर पड़े हुए हैं, अतः जो अपना कल्याण चाहते है उसे दूसरे की अवमानना और अवहेलना नहीं करनी चाहिए। यह शिक्षा देते हुए अगस्त्य मुनी ने कहा कि उसी सहस्त्रार्जुन के अहंकार एवं आतंक को भगवान् परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी से समाप्त किया था। आज भी भगवान् परशुराम इस पृथ्वी लोक में विचरण करते हैं और जहाँ भी अन्याय और आतंक से ग्रसित जनता की मुक्ति के लिए अहंकारियों का नाश करने के लिए तत्पर्य रहते है।
रावण जहाँ भी जाता था, वहां वह एक सोने का शिवलिंग अपने साथ लिए जाता था। उसने उस शिवलिंग को स्थापित कर भगवान् शंकर की भली भांति पूजन शुरू किया। उसी स्थान के निकट ही सहस्त्रार्जुन अपनी स्त्रियों के साथ जल क्रीड़ा कर रहा था। अर्जुन की भुजाओं द्वारा रोका हुआ, नर्मदा का निर्मल जल तट पर पूजा करते हुए रावण के पास पहुंच गया। यहाँ तक की नर्मदा नदी उल्टी गति से बहने लगी। रावण का वह पूजन अभी आधा ही समाप्त हुआ था, तभी लगा कि नर्मदा नदी में एक भीतर ज्वार आ गया है। तब रावण ने इसका कारण जानना चाहा तो उसके मंत्रियों ने कहा कि यह अर्जुन के कारण हो रहा है। राक्षस राज रावण सहस्त्रार्जुन को रोकने चला। अर्जुन को देखते ही रावण के नेत्र लाल हो गए और उसने अर्जुन से कहा कि मैं तुम्हारे साथ युद्ध करूँगा।
अर्जुन के सेनापतियों में रावण के इस ललकार से बेचैनी होने लगी। रावण के राक्षस, अर्जुन के सेना का संहार करने लगे। तब अर्जुन ने अपनी स्त्रियों से कहा कि तुम लोग डरना मत। अर्जुन, रावण से तनिक भी भयभीत नहीं हुआ। उसने अपना गदा को घुमाता हुआ प्रहस्त्र की ओर दौड़ा और ज़मीन पर गिरा दिया। प्रहस्त्र के धाराशायी होते हुए देख अन्य सेना भी युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ी हुई। "फिर तो हज़ार भुजाओं वाले नरनाथ और 20 भुजाओं वाले निशाचर नाथ में वहां भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया जो रोंगटे खड़े करने वाला था।" रावण ने भी अर्जुन की छाती पर वार किया। न तो अर्जुन ही थकता था और न ही राजा रावण। इसी बीच अर्जुन ने क्रोधित होकर रावण के विशाल वृक्ष स्थल पर प्रहार किया। चूकि रावण वर के प्रभाव से सुरक्षित था, फिर भी अर्जुन द्वारा गयी चलायी हुई गदा से आहत होकर बैठ गया। रावण को व्याकुल देख, अर्जुन सहर्ष उछल कर उसे पकड़ लिया, जैसे कि गरुण से झप्पटा मार कर किसी सर्प को धर दबाया हो।
अर्जुन ने रावण को अपने हज़ार हाथों द्वारा मजबूत रस्सों से बाँध लिया। अर्जुन ने समस्त राक्षसों को भयभीत कर रावण को लेकर अपने नगर महिष्मती में प्रवेश किया। रावण को पकड़ लेना, वायु को पकड़ने के समान था। धीरे धीरे यह बात देवताओं के मुख से रावण के दादा पुलस्त्य ऋषि ने सुनी। संतान के प्रति स्नेह के कारण, पुलस्त्य ऋषि अर्जुन से मिलने स्वर्ग लोक से महिष्मती नगर चले आये। पुलस्त्य ऋषि का दर्शन पाकर सहस्त्रार्जुन ने अपने को गौरवशाली महसूस किया और कहा कि मेरा जन्म आपके दर्शन से सफल हुआ और मेरी तपस्या भी सार्थक हो गयी।
आप मुझे आज्ञा दीजिये, हम आपकी क्या सेवा करे। तब ऋषि ने कहा, हे अर्जुन ! तुम्हारे बल की कहीं तुलना नहीं है क्योकि तुमने रावण को जीत लिया। जिसके भय से समुन्द्र और वायु भी चंचलता छोड़कर उसकी सेवा में उपस्थित होते है उस पौत्र को तुमने संग्राम में बाँध लिया। "ऐसा करके मेरे इस बच्चे का ऐश्वर्य समाप्त कर दिया और सभी जगह अपने नाम का ढिंढोरा पीट दिया। बस, अब मेरे कहने से तुम रावण को छोड़ दो, यह तुमसे मेरी याचना है, अर्जुन ने इसके विपरीत कोई बात नहीं कही और बड़ी खुशी के साथ राक्षस राज रावण को बंधन से मुक्त कर दिया।"
अर्जुन ने मनुष्य रूप में होते हुए भी, देवद्रोही राक्षस को बंधन मुक्त कर दिया। आभूषण और मालाओं से रावण की पूजा अर्चना की और अग्नि को साक्षी बना कर उसके साथ ऐसी मित्रता का सम्बन्ध स्थापित किया जिसके द्वारा मनुष्य हो या राक्षस किसी जीव के प्रति हिंसा नहीं करने की शपथ ली। अर्थात उन दोनों ने यह प्रतिज्ञा की कि हम लोग अपने मैत्री का उपयोग एक दूसरे प्राणियों की हिंसा में नहीं करेंगे।
यह कहते हुए अगस्त्य जी ने कहा कि, हे श्री राम ! इस प्रकार इस संसार में बलवान से बलवान वीर पड़े हुए हैं, अतः जो अपना कल्याण चाहते है उसे दूसरे की अवमानना और अवहेलना नहीं करनी चाहिए। यह शिक्षा देते हुए अगस्त्य मुनी ने कहा कि उसी सहस्त्रार्जुन के अहंकार एवं आतंक को भगवान् परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी से समाप्त किया था। आज भी भगवान् परशुराम इस पृथ्वी लोक में विचरण करते हैं और जहाँ भी अन्याय और आतंक से ग्रसित जनता की मुक्ति के लिए अहंकारियों का नाश करने के लिए तत्पर्य रहते है।
25th September, 2020